बीते दिनों के भीतर राजस्थान में दो घटनाएं घटीं। आरोप है कि एक रकबर खान नाम के एक गो-तस्कर को भीड़ ने पीट-पीटकर मार डाला। दूसरा एक दलित युवक को एक मुस्लिम लड़की से प्रेम करने के जुर्म में मुसलमानों की भीड़ ने पीट-पीटकर हत्या कर दी।
जाहिर है दोनों ही घटनाएं जघन्य अपराध है और इसे इसी नजरिये से देखा जाना चाहिए। लेकिन दुर्भाग्य इस देशका है कि एक घटना मुस्लिम से जुड़ी हुई है इसलिए मीडिया में छाई हुई है, वहीं हिंदू दलित की भीड़ द्वारा हत्या किए जाने की खबर तक नहीं है।
हैरत करने वाली बात ये भी है कि मारा गया रकबर खान वांटेड अपराधी था और वह कोई मासूम नहीं था। उसपर अलवर के नौगाम स्टेशन में दिसंबर 2014 में के संख्या 355/2014 केस भी दर्ज है, लेकिन उसे मीडिया का एक विशेष वर्ग मासूम बताने पर तुला हुआ है। यहां तक कि विदेशी अखबारों में भी भारत को बदनाम करने के लिए एजेंडा चलाया जा कहा है।
दूसरी ओर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने गैर जिम्मेदाराना बयान जारी किया है। प्रधानमंत्री मोदी से उनके नफरत का आलम यह है कि उन्होंने भारत को ही बदनाम करने के लिए इसे पीएम मोदी का क्रूर इंडिया कह डाला।
Policemen in #Alwar took 3 hrs to get a dying Rakbar Khan, the victim of a lynch mob, to a hospital just 6 KM away.
Why?
They took a tea-break enroute.
This is Modi’s brutal “New India” where humanity is replaced with hatred and people are crushed and left to die. https://t.co/sNdzX6eVSU
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) 23 July 2018
स्थानीय पुलिस की लापरवाही की घटना को सीधे हिंदू-मुस्लिम एंगल देना और इसके लिए प्रधानमंत्री को दोष देना कांग्रेस की एक सोची समझी साजिश है।
सच्चाई तो ये भी है कि राहुल गांधी ने न तो दलित युवक की मुसलमानों द्वारा की हत्या पर कुछ कहा और न ही केरल में चिकेन चोरी करने के जुर्म में कांग्रेस कार्यकर्ताओं द्वारा एक बंगाली युवक की हत्या किए जाने पर ही कोई बयान दिया।
जाहिर है देश को बदनाम करने की नीयत से सिर्फ और सिर्फ मुसलमानों के मुद्दे को उठाना राहुल गांधी अपना फर्ज समझते हैं। बाकी देश में जो भी अपराध हिंदुओं पर हो रहे हैं, उसपर वे कुछ भी बयान देने से बचते हैं।
बहरहाल राहुल गांधी के इसी दोहरे चरित्र को केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने अपने ट्वीट से जोरदार जवाब दिया है। उन्होंने लिखा, ‘’हर बार जब कोई अपराध होता है तो उसपर आनंद से कूदना बंद करो, मि. राहुल गांधी। राज्य ने पहले से ही सख्त और त्वरित कार्रवाई का आश्वासन दिया है। आप समाज अपने लाभ के लिए हर तरह से बांटते हैं और फिर मगरमच्छ की तरह आंसू बहाते हैं। अब बहुत हो गया है। आप नफरत के सौदागर हैं।”
Stop jumping with joy every time a crime happens, Mr Rahul Gandhi.
The state has already assured strict & prompt action.
You divide the society in every manner possible for electoral gains & then shed crocodile tears.
Enough is Enough. You are a MERCHANT OF HATE. https://t.co/4thsyNL3nx
— Piyush Goyal (@PiyushGoyal) 23 July 2018
दरअसल कांग्रेस समेत पूरा विपक्ष प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का सामना करने में समर्थ नहीं हो पा रहा है। इसी झल्लाहट में अनाप-शनाप आरोप और निगेटिव प्रोपेगेंडा का दौर चल पड़ा है। हालांकि समय के साथ इन सियासतदानों के चेहरे का ‘मुखौटा’ भी हटता रहा है।
केरल और पश्चिम बंगाल में होती है सबसे अधिक मॉब लिंचिंग
आंकड़ों पर नजर डालें तो मॉब लिंचिंग के मामलों में केरल और पश्चिम बंगाल सबसे ऊपर हैं। केरल में वामपंथी गठबंधन की सरकार है। उससे पहले कांग्रेस की अगुवाई वाली यूडीएफ की सरकार थी। पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस की सरकार है। वर्ष 2014 में केरल और कर्नाटक में देश में सबसे अधिक 65 और 46 घटनाएं हुईं थी। इसी तरह वर्ष 2016 में समाजवादी सरकार के उत्तर प्रदेश में 116 लोगों को भीड़ ने मार डाला था। पश्चिम बंगाल में 53 और केरल में 50 लोगों को इसी हत्यारी भीड़ ने मार डाला था, लेकिन तब कांग्रेस और तथाकथित सेक्यूलरवादियों की जुबानों पर ताले लगे रहे।
मॉब लिंचिंग को मजहबी रंग देती रही है कांग्रेस
यूपी के दादरी में वर्ष 2015 में गोमांस रखने के आरोप में भीड़ ने अखलाक की हत्या कर दी। वर्ष 2017 में वल्लभगढ़ में सीट के झगड़े में कुछ लोगों ने जुनैद नाम के एक युवक की हत्या कर दी। इसी तरह 2017 में राजस्थान के अलवर में पहलू खां नाम के व्यक्ति को गोवध के आरोप में पीट-पीटकर मार डाला गया। हालांकि यह स्थानीय कानून व्यवस्था का मामला था, लेकिन कांग्रेस ने इन तीनों ही घटनाओं को मजहबी रंग दे दिया। कांग्रेस और सेक्यूलर मीडिया ने मोदी सरकार के विरुद्ध असहिष्णुता कैंपैन, अवार्ड वापसी अभियान और ब्लैक ईद जैसे कार्यक्रम तक कर डाले थे।
अयूब पंडित और कार्तिक की मॉब लिंचिंग पर खामोश रही कांग्रेस
जुलाई 2017 में फेसबुक पर एक पोस्ट डालने के कारण पश्चिम बंगाल के बशीरहाट थाना क्षेत्र में हिंसा हुई। इसमें मुसलमानों की उन्मादी भीड़ ने कार्तिक घोष को पीट-पीट कर मार डाला। जून, 2017 में ही कश्मीर के श्रीनगर में डीएसपी अयूब पंडित को भीड़ ने पीट-पीटकर मार डाला था। निर्वस्त्र कर उनकी मौत के बाद भी उन पर पत्थर फेंके जाते रहे। ऐसी क्रूर भीड़ थी जिसने अयूब पंडित के शव तक को नाली में फेंक दिया। लेकिन कांग्रेस समेत हमारे ‘सेक्यूलर’ पंडितों को ये ‘आजादी’ की मांग लगी थी। तब धर्मनिरपेक्षता के किसी लंबरदार की जुबान तक नहीं खुली थी।
हिंसा की निंदा करते रहे हैं प्रधानमंत्री मोदी
15 अगस्त, 2017
“आस्था के नाम पर हिंसा प्रसन्न होने की बात नहीं है. भारत में यह स्वीकार नहीं किया जाएगा। भारत शांति, एकता और सौहार्द का देश है। जातिवाद और सांप्रदायिकता से हमें कुछ लाभ नहीं होगा।”
27 अगस्त, 2017
”कानून हाथ में लेने वाले, हिंसा के राह पर दमन करने वाले किसी को भी, चाहे वो व्यक्ति हो या समूह हो, न ये देश कभी बर्दाश्त करेगा और न ही कोई सरकार बर्दाश्त करेगी।”
08 अक्टूबर, 2015
”हिंदुओं और मुसलमानों का आपस में लड़ने से देश का भला नहीं होगा। हमारे देश का भला तब होगा जब हिंदू और मुसलमान एक होकर गरीबी के खिलाफ लड़ाई लड़ें। हम गरीबी को परास्त करें।”
9 अगस्त, 2016
”हिंसा का रास्ता, इस देश में कभी भी चल नहीं सकता, यह देश कभी स्वीकार नहीं कर सकता है। इसलिए, मैं देशवासियों से आग्रह करूंगा, उस समय ‘भारत छोड़ो’ का नारा था, आज नारा है ‘भारत जोड़ो’।”
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विरोधी कुछ निहित स्वार्थी तत्व और ‘Sick’ular विपक्ष पिछले काफी समय से जानबूझकर देश का माहौल खराब करने में लगे हुए हैं। हालांकि तथ्यों के आधार पर बात करें तो ऐसे मामले राज्यों के अधिकार क्षेत्र में आते हैं और उन्हें ही कार्रवाई करनी होती है। हाल में सुप्रीम कोर्ट ने भी साफ कहा है कि कानून व्यवस्था राज्यों की जिम्मेदारी है। बहरहाल आइये हम कुछ अन्य तथ्यों पर भी नजर डालते हैं।
केरल, यूपी और पश्चिम बंगाल में ज्यादा मामले
केंद्र सरकार ने राज्यों से मिली अपराध के आंकड़ों के आधार पर विपक्षी दलों की बोलती बंद कर दी है। दरअसल विपक्ष हाल में मॉब लिंचिंग की कुछ वारदाताओं पर खूब हाय-तोबा मचा रहा है। लेकिन केंद्रीय गृहमंत्रालय को राज्यों की पुलिस से जो अपराधों के जो आंकड़े मिले हैं, उसके अनुसार सांप्रदायिक हिंसा के मामलों में केरल, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल सबसे ऊपर हैं। ये आंकड़े साल 2014 से 2016 के बीच के हैं। सवाल उठना लाजिमी है कि क्या अपनी नाकामियों को छिपाने के लिये ही विपक्ष प्रधामंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार को बदनाम करके की साजिशें रच रहा है।
केरल और कर्नाटक की घटनाओं पर चुप्पी क्यों ?
आंकड़ों के अनुसार 1969 से अबतक केरल में लगभग 172 आरएसएस-बीजेपी कार्यकर्ताओं की इसी तरह से हत्याओं की रिपोर्ट दर्ज है, जिनमें से अधिकतर आरोपी लेफ्ट के कार्यकर्ता हैं। केरल ही नहीं कांग्रेस शासित पड़ोसी राज्य कर्नाटक में भी हाल के कुछ महीनों में इसी तरह चुन-चुन कर आरएसएस कार्यकर्ताओं की हत्याएं की गई हैं। क्या उनका खून, खून नहीं था ? लेकिन क्या कभी किसी सेक्युलर नेता या मौजूदा निहित स्वार्थी तत्वों ने इसपर सवाल उठाने की कोशिश की है ?
पश्चिम बंगाल की घटनाओं पर क्यों रहती है बोलती बंद ?
पिछले दिनों पश्चिम बंगाल के 24 परगना में कट्टरपंथियों ने कानून और संविधान को खुली चुनौती दे दी गई। लेकिन किसी सेक्युलर और मोदी विरोधी की जुबान नहीं खुली। क्योंकि वहां देश की संप्रभुता खतरे में डाली गई थी। आपत्ति तो तब की जाती है जब देशभक्ति की बातें होती हैं, राष्ट्र निर्माण की बातें होती हैं, देश की संस्कृति की बातें होती हैं।
पश्चिम बंगाल में सरेआम शरिया कानून लागू किये जाने की मांग उठती है, आरोपी को सीधे भीड़ के हवाले करने की मांग को लेकर दंगा भड़का दिया जाता है, लेकिन इसपर बोलने के लिये कोई सेक्यूलर तैयार नहीं होता। ऐसा एकबार नहीं बार-बार होता रहा है। लेकिन ममता को तो छोड़िये बाकी विपक्षी पार्टियों में से भी कोई बोलने की हिम्मत नहीं जुटा पाता। क्योंकि असल में उन्हें धर्मनिरपेक्षता की आड़ में तुष्टिकरण की राजनीति करनी है।

किस बिल में दुबक जाता है फ्री स्पीच और मॉब लिंचिंग गैंग ?
विपक्षी नेताओं को तो राजनीति करनी है। वो तो सियासी फायदे के लिये इतने अंधे हो जाते हैं कि उन्हें देश के खतरे का भी अंदाजा नहीं रहता। उसी तरह आजकल फ्री स्पीच गैंग भी घटनाओं के हिसाब से सोच समझकर सक्रिय होता है। यानी अगर किसी घटना का बीजेपी सरकार से कनेक्शन जुड़ सकता है तो वो सड़कों पर उतरने में देर नहीं लगाते हैं। इन दिनों वो बात-बात में #NotInMyName के नाम से प्रदर्शन भी चलाने लगते हैं। लेकिन जैसे ही उन्हें पता चलता है कि घटना के तार SICKULAR दलों की सरकारों से जुड़ती हैं तो वो चूहों को तरह बिल में दुबक जाते हैं।