नूपुर शर्मा के विवादित बयान के बाद आज पूरे देश में एक नारा गूंज रहा है ‘गुस्ताख-ए-रसूल की एक ही सजा, सर तन से जुदा, सर तन से जुदा।’ यह नारा हिन्दुओं के लिए खौफ का पर्याय बन गया है। राजस्थान में दर्जी कन्हैयाल लाल की निर्मम हत्या के बाद देशभर में हिन्दुओं पर लगातार हमले हो रहे हैं। इस्लामिक जिहादी कन्हैया लाल से लेकर प्रवीण नेट्टारू तक 6 हिन्दुओं को मौत के घाट उतार चुके हैं। लेकिन इस पूरे घटनाक्रम में अंतरराष्ट्रीय मीडिया की चुप्पी हैरान करने वाली है। सोशल मीडिया और पूरे हिन्दुस्तान में इस बात की चर्चा हो रही है कि आखिर झूठे मॉब लिंचिंग, अल्पसंख्यकों पर हमले और अभिव्यक्ति की आजादी को लेकर हाय-तौबा मचाने वाली अंतरराष्ट्रीय मीडिया हिन्दुओं की निर्मम हत्या पर मौन क्यों है ?
⚡️Sar tan se juda
No international media has covered it. We all should ?? pic.twitter.com/LeyqEtEpSo
— Kreately.in (@KreatelyMedia) July 29, 2022
क्या अगला नंबर आपका हो सकता है ?
उदयपुर में दर्जी कन्हैयाल की निर्मम हत्या के बाद ‘सर तन से जुदा’ की आग पूर देश में फैल गई है। इसकी चपेट में उमेश कोल्हे, मुनीश भारद्वाज, अंकित झा, शानू पांडे, निशंक राठौर और प्रवीण नेट्टारू जैसे हिन्दू युवा आते चले गए। निशंक राठौर का शव रेलवे ट्रैक पर मिला था, जिसमें उनके पिता को “गुस्ताख-ए-नबी की एक ही सजा” लिखा हुआ एक गुप्त संदेश भेजा गया था। इससे आम हिन्दुओं में खौफ बढ़ता जा रहा है। हिन्दुओं को लग रहा है कि यह इस्लामिक आतंकवाद है, जो मनोवैज्ञानिक रूप से लड़ा जा रहा है। सोशल मीडिया पर इसे खत्म करने के लिए सख्त कदम उठाने की मांग की जा रही है। कहा जा रहा है कि अगर इसके खिलाफ नहीं उठे तो अगला नंबर आपका हो सकता है।
The idealogy of “Sar Tan Se Juda” is not going to end till the Killers of Kanhaiya Lal, Umesh Kohle, Kamlesh Tiwari, Praveen Nettaru and many more Hindus are not Publicly Hanged.#IslamicTerrorismInIndia is a Psychological Terror war & it needs Fear of Visual Punishment to end. pic.twitter.com/1O1xJ2V5lo
— Mrs_RightWay (@MrsRightway) July 28, 2022
बढ़ता दुस्साहस, खौफ और आक्रोश
जिहादियों का दुस्साहस बढ़ता ही जा रहा है। वे नूपुर शर्मा का समर्थन करने वाले और हिन्दुओं पर हो रहे हमले के खिलाफ आवाज उठाने वालों को ‘सर तन से जुदा’ की धमकी दे रहे हैं। इससे सैकड़ों हिन्दू खौफ में जीने को मजबूर है। दिल्ली में सुप्रीम कोर्ट के वकील और सामजिक कार्यकर्ता विनीत जिंदल को इस्लामिक जिहादियों ने ‘सर तन से जुदा’ की धमकी दी है। इससे उनका पूरा परिवार दहशत में हैं। उन्होंने सोशल मीडिया पर ट्वीट कर लिखा, “आज तीसरी रात है जब अपने परिवार की सुरक्षा करने के लिए सोया नहीं हूं और दिल्ली पुलिस का कोई पुलिस अधिकारी नहीं हैं मेरी व परिवार की जान की सुरक्षा के लिए।” इस ट्वीट के बाद विनीत जिंदल के परिवार की सुरक्षा की मांग उठ रही है। इसके साथ ही लोगों में जिहादियों के बढ़ते दुस्साहस के खिलाफ आक्रोश भी बढ़ता जा रहा है।
आज तीसरी रात हे जब अपने परिवार की सुरक्षा करने के लिए सोया नही हु ओर दिल्ली पुलिस का कोई पुलिस अधिकारी नही हे मेरी व परिवार की जान की सुरक्षा के लिए। @narendramodi @HMOIndia @CPDelhi @cp_delhi @DelhiPolice
— Adv.Vineet Jindal (@vineetJindal19) July 28, 2022
बीजेपी सांसद किरोड़ी लाल मीणा को धमकी भरा पत्र
राजस्थान के बीजेपी सांसद किरोड़ी लाल मीणा को धमकी भरा पत्र मिला। यह पत्र दिल्ली स्थित उनके सरकारी निवास पर डाक के जरिए भेजा गया था। इसमें कन्हैयालाल हत्याकांड का जिक्र करते हुए अगला नंबर किरोड़ी लाल मीणा के होने की धमकी दी गई थी। कादिर अली राजस्थानी नाम से भेजे गए धमकी भरे पत्र में लिखा था,”जो हमारे पैगंबरों के खिलाफ गुस्ताखी करेगा, उसका हाल कन्हैयालाल जैसा ही होगा। जो गुस्ताखी करने वालों की मदद करेगा वो बड़ा नेता ही क्यों ना हो उसको हम सबक सिखा देंगे। इसलिए अब किरोड़ीलाल मीणा तेरा नंबर है क्योंकि तू खुद को बड़ा हिंदूवादी नेता और हिंदुओं का पैरोकार समझकर हम मुसलमानों के खिलाफ जहर उगलता रहता है। कुछ दिन पहले भी उदयपुर जाकर अपनी तनख्वाह के पैसे देकर गुस्ताखी करने वालों की मदद की है।”
उदयपुर में जेहादियों का शिकार बने कन्हैयालाल जी के परिवार को एक महीने का वेतन देना किसी कादिर अली नाम के जेहादी को रास नहीं आया है। उसने मुझे जान से मारने की धमकी दी है, जिस पर कार्रवाई के लिए राजस्थान के मुख्यमंत्री व केंद्रीय गृह राज्य मंत्री को पत्र लिखा है।1/2 pic.twitter.com/NSLU3R807H
— Dr.Kirodi Lal Meena (@DrKirodilalBJP) July 18, 2022
अंतरराष्ट्रीय मीडिया के दोगले चरित्र पर तीखी प्रतिक्रिया
जब भीड़ की पिटाई से किसी चोर की मौत हो जाती है और वह मुस्लिम समुदाय से संबंध रखता है, तो मीडिया उसे धार्मिक रूप देकर अल्पसंख्यक की मॉब लिंचिंग करार देती है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सोशल मीडिया से लेकर मुख्यधारा की मीडिया तक में बहस छिड़ जाती है। बहुसंख्यक हिन्दुओं पर असहिष्णु होने का आरोप लगाया जाने लगता है। यही मीडिया अब हिन्दुओं की हित्या हो रही हैं, तो मौन है। उसे हिन्दुओं और मानवता के खिलाफ जिहाद दिखाई नहीं देता है। अंतरराष्ट्रीय मीडिया के इस दोगले चरित्र को लेकर तीखी प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है। लोगों का कहना है कि अंतरराष्ट्रीय मीडिया ‘सर तन से जुदा’ के तहत हो रही हत्याओं का कोई कवरेज नहीं कर रही है, क्योंकि उन्हें डर है कि अगर कवरेज किया तो “भारत में अल्पसंख्यक असुरक्षित है” के नैरेटिव की हवा निकल जाएगी।
No coverage of Sar Tan Se Juda murders by International Media because it will puncture their “India is unsafe for minorities” narrative.
I write for @CNNnews18 today. https://t.co/Dh1gcYCnzS
— Monica Verma (@TrulyMonica) July 28, 2022
जुबैर पर मुखर और हिन्दुओं की निर्मम हत्या पर मौन
पूरे भारत में जो आग लगी है, उसे लगाने वाले तथाकथित पत्रकार और अल्ट न्यूज के फैक्ट चेकर मोहम्मद जुबैर हैं। हिंदू देवी देवताओं का मजाक उड़ाने के लिए जुबैर ने सोशल मीडिया पर कई पोस्ट किए थे। लेकिन जुबैर ने टीवी चैलन पर बहस के दौरान नूपुर शर्मा के बयान को एडिट कर सोशल मीडिया पर डाला, जिसे राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पत्रकारों ने शेयर किया। जुबैर के अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क ने इस ट्वीट को मुस्लिम देशों में फैलाकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत और हिन्दुओं के खिलाफ साजिश रची। लेकिन हैरानी तब हुई जब मुस्लिम और पत्रकार के रूप में उसकी पहचान पर जोर देते हुए अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने उसकी गिरफ्तारी को सुर्खियों में कवर किया। बताया गया कि अल्पसंख्यक समुदाय से संबंधित पत्रकार को सताया जा रहा है। सरकार पत्रकारों को बोलने की आजादी पर पाबंदी लगा रखी है। मोदी सरकार को ऐसे पेश किया गया मानो वो अल्पसंख्यकों का दमन करने की नीति पर काम कर रही है। जुबैर के मामले में मुखर होने वाली मीडिया आज हिन्दुओं की हत्या के मामले में पूरी तरह मौन है।
भारतीय पत्रकारों और अंतरराष्ट्रीय मीडिया की सांठगांठ
भारत में अल्पसंख्यकों के खिलाफ होने वाली छोटी सी घटना भी तुरंत अंतरराष्ट्रीय रूप ले लेती है। क्योंकि भारत में विदेशी फंडिंग पर पल रहे एजेंडा पत्रकार विदेशी मीडिया के लिए आंख और कान का काम करते हैं। यहां तक कि मामले को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करते हैं ताकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनकी सरकार की छवि खराब हो सके। इसके माध्यम से मोदी सरकार पर अंतरराष्ट्रीय दबाव डालने की साजिश की जाती है। इससे भारत और बहुसंख्यक हिन्दुओं की छवि खराब होने और देश को होने वाले नुकसान से उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता। उनका मकसद सिर्फ विदेशी एजेंडे को भारत में लागू करना होता है। कई तथाकथित भारतीय “पत्रकार” अपने स्वयं के पूर्वाग्रह की वजह से मोदी सरकार के खिलाफ प्रोपेगैंडा में शामिल होते हैं। विदेशी मीडिया उन्हें आसानी से अपना चारा बनाती है।
क्या है अंतरराष्ट्रीय मीडिया की चुप्पी की वजह ?
दरअसल अंतरराष्ट्रीय मीडिया भारत में एक ऐसी धर्मनिरपेक्ष सरकार चाहती है, जिसमें अल्पसंख्यकों का बोलबाला हो। जो विदेशी सरकारों के ऐजेंडे को लागू कर सके। भारत के राष्ट्रीय हितों को दरकिनार कर दूसरे देशों के हितों के मुताबिक काम करें। विदेशी मीडिया भारत में मजबूत और राष्ट्रवादी सरकार के खिलाफ मौहाल बनाती है, ताकि बहुसंख्यक लोगों की आवाज को दबाया जा सके। अंतरराष्ट्रीय मीडिया बहुसंख्यकवाद यानि बहुसंख्यक हिन्दुओं को अपना एजेंडा लागू करने की राह में बाधा समझती है। इसलिए बहुसंख्यकवाद का विरोध करती है और अल्पसंख्यकवाद को बढ़वा देती है। उसे अल्पसंख्यकवाद से ही भारत में अपनी जड़े जमाने का मौका मिलता है। अगर वो अल्पसंख्यकों और इस्लामिक जिहादियों के विरोध में आवाज उठाने लगे तो उनका भारत में आधार खत्म हो जाएगा और अंतरराष्ट्रीय एजेंडा लागू नहीं हो पायेगा।
विदेशी मीडिया, विदेशी कंपनी और फर्जी पत्रकारोंं का कॉकटेल
भारत में अल्पसंख्यकवाद और बहुसंख्यवाद के खेल में विदेशी कंपनियोंं की अहम भूमिका होती है, जो अपने उत्पाद के लिए बाजार की तलाश में होती है। वो फर्जी पत्रकारों और मीडिया हाउस को फंडिंग कर अपने उत्पाद के पक्ष में नैरेटिव तैयार करती है। यहां तक कि भारत के स्वदेशी उत्पादों के खिलाफ सोशल मीडिया और अन्य मीडिया प्लेटफॉर्म पर मुहिम चलाती है, ताकि भारत में उसके उत्पाद का प्रवेश हो सके और उन्हें भारतीय बाजार में पकड़ बनाने में मदद मिल सके। अडानी, अंबानी और पतंजलि ग्रुप की कंपनियोंं के उत्पादों के बहिष्कार का मुहिम इसी रणनीति का हिस्सा है। जिसमें पत्रकारों का एक वर्ग फर्जी तथ्यों के आधार पर खबरें प्रकाशित करता और उसे सुनियोजित तरीके से मोदी सरकार से जोड़कर नैरेटिव तैयार करता है। इसमें विपक्षी दलों के समर्थक, पाकिस्तान परस्त और इस्लामिक जिहादी खुलकर मदद करते हैं। इसलिए विदेशी कंपनियों की मदद से संचालित होने वाले मीडिया संस्थान और विदेशी धन पर पलने वाले पत्रकार हिन्दुओं के खिलाफ जारी जिहाद के विरोध में आवाज नहीं उठा सकते। ये जितने अल्पसंख्यकों के खिलाफ हो रहे अत्याचार और अभिव्यक्ति की आजादी को लेकर आवाज उठाएंंगे, उन्हें विदेशी फंडिग मिलने में उतनी ही आसानी होगी।