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MODI@72: Ten Amazing Stories…संन्यास से अभिनय कला तक, मगरमच्छ पकड़ने से पक्षी बचाने तक, मामा के सफेद जूतों से स्कूल की चारदीवारी बनाने के बाद…ऐसे सच हुई धीरूभाई अंबानी की भविष्यवाणी

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी वर्ष 2014 के बाद से एक दमदार वैश्विक नेता के तौर पर उभरे हैं। कई बड़े मौकों पर उन्होंने निर्णय लेने की क्षमता से देश और दुनिया को चमत्कृत कर दिया है और बताया है कि उनके इरादे कितने अटल हैं। वे एक बार जो ठान लेते हैं, उसे पूरा करके ही दम लेते हैं। गुजरात के मुख्यमंत्री और फिर देश के प्रधानमंत्री रहते हुए नरेन्द्र मोदी ने सत्ता में पिछले साल अक्तूबर में दो दशक पूरे किए। संवैधानिक पद की जिम्मेदारी संभालते हुए अगले माह 7 तारीख को 21 साल पूरे हो जाएंगे। इससे पहले 17 सितंबर को वे 72 वर्ष पूरा कर अपने जीवन के 73वें वर्ष में प्रवेश करेंगे। इसी तारीख को नरेन्द्र दामोदर दास मोदी का जन्म 1950 में गुजरात के मेहसाणा जिले के वडनगर में हुआ था। उम्र के इस पड़ाव पर भी नरेन्द्र मोदी और ऊर्जावान बने हैं। प्रधानमंत्री का जीवन यूं तो एक खुली किताब की तरह रहा है, लेकिन बहुत सारे लोगों के लिए पीएम मोदी के जीवन की कई कहानियां अनकही हैं, कई किस्से अनसुने हैं। आइए जन्मदिन के अवसर पर कुछ ऐसे ही किस्सों के बारे में जानते हैं।

1.पढ़ाई में तेज, जोशीले आवाज, अच्छे तैराक और मगरमच्छ के बच्चे को घर ले आना
नरेन्द्र मोदी में बचपन से ही गुणी रहे हैं। उन्हें साइंस और इतिहास विषय काफी पसंद रहे हैं। वे कई तरह की पाठ्येत्तर गतिविधियों में माहिर रहे। पढ़ाई में अच्छा होने के साथ-साथ वे शेरो-शायरी के लिए भी जाने जाते थे। आज भी उनके भाषणों में इसका असर दिखता है। उनके स्कूल में उनकी आवाज और अभिनय कला की भी चर्चा होती थी। इतना ही नहीं मोदी बचपन से ही एक अच्छे तैराक भी रहे हैं। बालक नरेन्द्र के बचपन का यह किस्सा भी शानदार है। वे अपने बचपन के दोस्त के साथ शर्मिष्ठा सरोवर गए थे और वहां से एक मगरमच्छ के बच्चे को ही पकड़ ले आए थे। तब उनकी मां हीरा बा ने उन्हें समझाया था कि बच्चे को मां से अलग कर देना, कितनी बुरी बात है। मां की बात समझने पर वे वापस मगरमच्छ के बच्चे को सरोवर छोड़ आए।

2. गरीबी में बचपन, रेलवे स्टेशन पर चाय की दुकान और संन्यासी बनने की ख्वाहिश
दुनियावी माया-मोह से नरेन्द्र को बचपन से ही लगाव नहीं था। ईश्वर के प्रति उनकी बेहद आसक्ति थी, जो आज भी उनके कामों में नजर आती है। माया-मोह से विरक्ति के चलते मोदी बचपन से ही संन्यासी बनना चाहते थे। नरेन्द्र को बचपन से साधु जीवन और संन्यास बहुत पसंद था। एक बार तो वे घर छोड़कर भी चले गए थे। भाई-बहनों के परिवार में नरेन्द्र का बचपन गरीबी में गुजरा। बडनगर रेलवे स्टेशन पर उनके पिता की चाय की दुकान थी और वे स्कूल से आने के बाद चाय बेचा करते थे। वे युवावस्था की दहलीज पर थे और महज 17 वर्ष की उम्र में घर छोड़ वे अपनी आध्यात्मिक यात्रा पर निकल गए थे।

3. बचपन से ही मोह लेने वाली वक्तृत्व कला, भाषणों में आज भी दिखता है ज्ञान और विजन
नरेन्द्र की स्कूली पढ़ाई बडनकर में ही हुई। वे बचपन से पढ़ाई के साथ-साथ उन्हें भाषण देने में भी मजा आता था। उससे वे शुरू से ही भाषण कला में प्रवीण हो गए। यह प्रभाव उनके आज के भाषणों में बहुत दिखता है। अपने भाषणों से वे हर वर्ग को आकर्षित कर लेते हैं। उनके भाषणों से पता चलता है कि वे हर विषय के विद्वान हैं। हालांकि इसके पीछे उनकी मेहनत और तैयारी होती है। बहुत सारे विषयों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अच्छा ज्ञान रखते हैं। वे अपने आलोचना को भी सकारात्मकता के साथ लेते रहे हैं। उन्होंने अपने भाषणों में कहा कि आलोचना से उन्हें और ज्यादा अच्छा करने की प्रेरणा मिलती है।

4. बचपन का शरारती नरेन्द्र, शहनाई वादकों को इमली दिखाकर करते थे परेशान
जो बचपन शरारत के भरा न हो, वह बचपन ही क्या। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी बचपन में काफी शरारतें करते थे। एक शरारती किस्से का जिक्र उन्होंने मन की बात कार्यक्रम में भी किया था। उन्होंने बताया था कि वे शहनाई बजाने वालों को इमली दिखा दिया करते थे, ताकि उनके मुंह में पानी आ जाए और वे शहनाई ना बजा पाएं। शहनाई-वादक गुस्सा होकर नरेन्द्र के पीछे भी भागते थे। उनका मानना है कि शरारतों से भी बच्चों का विकास होता है और इससे बालमन काफी-कुछ सीखता है। इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा था कि शरारत के साथ बच्चों को पढ़ाई पर भी ध्यान देना चाहिए।

5. नरेन्द्र के नाटक का मंचन और हाईस्कूल की चारदीवारी के लिए पैसों का किया इंतजाम
पीएम और सीएम के रूप में नरेन्द्र मोदी ने हजारों स्कूल बनवाए हैं, ताकि देश के कर्णधार बेहतर शिक्षा हासिल कर खुद का और देश का नाम रोशन कर सकें। लेकिन मोदी ने बचपन में एक स्कूल की चारदीवारी बनवाकर सबकी खूब आशीष पाईं। हुआ यूं कि हाईस्कूल की पढ़ाई के दौरान नरेन्द्र मोदी के स्कूल का रजत जयंती वर्ष था। लेकिन उनके स्कूल में चारदीवारी तक नहीं थी। विद्यालय समिति के पास इतना पैसा भी नहीं था कि चारदीवारी बनवाई जा सके। तब किशोर नरेन्द्र के मन में विचार आया कि छात्रों को मिलकर इसमें मदद करनी चाहिए। अभिनय में माहिर नरेन्द्र ने अपने साथियों के साथ एक नाटक का मंचन किया और इससे जो पैसे आए, स्कूल को दे दिए ताकि स्कूल की चारदीवारी बन सके।

6. एनसीसी कैंप में खंभे पर चढ़कर फंसे पक्षी को बचाया, पशु-पक्षियों से है अगाध प्रेम
मां के कहने पर मगरमच्छ के बच्चे के वापस पानी में छोड़ने का जिक्र ऊपर आया है। दरअसल, नरेन्द्र के मन में बालपन से ही पशु-पक्षियों के प्रति अगाध प्रेम रहा है। ‘कॉमनमैन नरेंद्र मोदी’ में किशोर मकवाना ने एक किस्सा लिखा है- स्कूली दिनों में नरेंद्र एक एनसीसी कैंप में गए जहां से बाहर निकलना मना था। गोवर्धनभाई पटेल नाम के एक शिक्षक ने देखा कि मोदी एक खंभे पर चढ़े हुए हैं तो उन्हें बहुत गुस्सा आया, लेकिन अगले ही पल उन्होंने देखा कि नरेन्द्र खंभे पर चढ़कर एक फंसे हुए पक्षी को निकालने का प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने नरेन्द्र के इस प्रयास की भूरि-भूरि प्रशंसा की। जीवों से प्रेम उन्हें आज तक है। पीएम बनने के बाद मोर को अपने हाथ से दाना खिलाने के फोटो भी खूब वायरल हुआ था।

7. मोदी के जूतों की कहानी, मामा के दिलाए जूतों पर चॉक के पाउडर से चकाचक पालिश
हम पहले ही बता चुके हैं बालक नरेन्द्र के घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। उस समय परिवार के लिए संभव नहीं था कि वे नए जूते खरीद कर पहन सकें। एक बार उनके मामा ने उन्हें सफेद कैनवस जूते खरीद कर दिए। रंग सफेद था तो जूते गंदे होने का डर था और नरेन्द्र मोदी के पास पॉलिश के लिए भी पैसे नहीं होते थे। ऐसे में उन्होंने एक तरीका निकाला। शिक्षक चॉक के जो टुकड़े फेंक देते थे, नरेन्द्र उन्हें जमा कर लेते थे और फिर उनका पाउडर बना लेते थे। इस पाउडर को भिगोकर अपने जूतों पर लगा लिया करते थे. सूखने पर जूते चकाचक दिखते थे।

8. राजनीति का टर्निंग पॉइंट बनी इमरजेंसी, आडवाणी से जुड़े और पीछे मुड़कर नहीं देखा
संघ से नरेन्द्र मोदी किशोरावस्था में ही जुड़ गए थे। बाद में भाजपा में एंट्री के बाद मोदी ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। कहा जाता है कि मोदी ने ही संगठन मंत्री के पद के साथ राजनीति को मिलाना शुरू किया। जन संघ के प्रमुख दीनदयाल उपाध्याय ने 1950 में संगठन मंत्री का पद बनाया था। तब से ही यह पद भाजपा संगठन की रीढ़ रहा है। 1975 की इमरजेंसी मोदी के राजनीतिक करियर का टर्निंग पॉइंट साबित हुई। इसी दौरान वे लालकृष्ण आडवाणी के संपर्क में आए और उनके करीबी बने। इस दौरान खिंचवाई मोदी की एक तस्वीर काफी चर्चित है। तस्वीर में वो पगड़ीधारी सिख के रूप में दिख रहे हैं। मोदी को 1990 में लालकृष्ण आडवाणी की चर्चित रथयात्रा का गुजरात वाला हिस्सा आयोजित कराने की जिम्मेदारी मिली थी। गुजरात में रथयात्रा के हर महत्वपूर्ण पड़ाव के दौरान मोदी की तस्वीर लालकृष्ण आडवाणी के साथ दिखाई दी।

9. मोदी अभी सीएम भी नहीं बने थे…धीरूभाई अंबानी ने कर दी प्रधानमंत्री बनने की भविष्यवाणी
आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि रिलायंस के फाउंडर धीरुभाई अंबानी ने नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने की भविष्यवाणी बहुत पहले ही कर दी थी। तब वो गुजरात के सीएम तक नहीं बने थे। इस बारे में उनके उद्योपति बेटे अनिल अंबानी ने यह किस्सा शेयर करते हुए लिखा था, “मैं 1990 के दशक में पहली बार नरेन्द्र मोदी से मिला। मेरे पिता धीरूभाई अंबानी ने तब उन्हें घर पर खाने के लिए बुलाया था। बातचीत के बाद पापा ने गुजराती में कहा- लंबी रेस ने घोड़ो छे, लीडर छे, पीएम बनसे। उनका मतलब था- ये लंबी रेस का घोड़ा है, सही मायने में लीडर है और ये प्रधानमंत्री बनेगा। दूरदर्शी धीरूभाई अंबानी ने उनकी आंखों में सपने देख लिए थे। वो वैसे ही थे जैसे अर्जुन को अपना विजन पता होता था।10. बिग बी फिल्म ‘पा’ में टैक्स में छूट से लेकर ‘कुछ दिन तो गुजारो गुजरात में’ तक
नरेन्द्र मोदी के 66वें जन्मदिन पर बॉलीवुड के महानायक अमिताभ बच्चन ने एक किस्सा शेयर किया था। बिग बी के शब्दों में “मुख्यमंत्री निवास में आपसे पहली बार मुलाकात हुई थी। वो साधारण-सा एक घर था और उससे भी बहुत साधारण-सा कमरा था। मैं अपनी फिल्म ‘पा’ के लिए टैक्स में छूट की मांग के लिए आपसे मिलने गया था। तब आपने कहा कि साथ में फिल्म देखते हैं। आप अपनी ही गाड़ी में थिएटर ले गए। मेरे साथ फिल्म देखी और साथ में खाना खाया। इस बीच आपसे गुजरात टूरिज्म की ब्रांडिंग को लेकर भी बातचीत हुई।” बाद में अमिताभ गुजरात टूरिज्म के ब्रांड एंबेसडर भी बने। उनका ‘कुछ दिन तो गुजारो गुजरात में’ संवाद काफी लोकप्रिय हुआ।

 

 

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