भारत की G20 की अध्यक्षता एक महत्वपूर्ण क्षण है, जिसमें देश को कई वैश्विक मुद्दों को आकार देने में मदद मिलेगी। इनमें बहुपक्षीय विकास बैंकों का सुधार, अफ्रीकन यूनियन की सदस्यता और क्लाइमेट एक्शन पर ध्यान केंद्रित करना शामिल है। इस वर्ष G20 की अगुआई करने वाले मुखिया के रूप में, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सफलतापूर्वक यह सुनिश्चित किया है कि भारत, ग्लोबल साउथ की चिंताओं को दूर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाए। G20 समिट से पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ‘बिजनेस टुडे’ के साथ एक विशेष बातचीत की। इस दौरान उन्होंने वैश्विक चिंता के क्षेत्रों को हल करने में भारत के अवसर के बारे में, देश के डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर के दुनिया का पसंदीदा बनने, मैन्युफैक्चरिंग हब के तौर पर भारत की संभावनाओं तथा अन्य तमाम विषयों पर खुलकर बातचीत की।
प्रश्न: भारत को G20 की अध्यक्षता ऐसे समय में मिली है जब अंतरराष्ट्रीय एजेंसियां भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास क्षमता को लेकर उत्साहित हैं। आपके विचार में G20 समिट, एक उभरती हुई आर्थिक शक्ति और वैश्विक आर्थिक मंचों पर एक विश्वसनीय आवाज के रूप में भारत की छवि को मजबूत करने में कैसे मदद करेगा?
उत्तर: मुझे नहीं लगता कि किसी समिट के माध्यम से किसी देश की छवि और उसकी ब्रांडिंग को बढ़ावा दिया जा सकता है। वित्तीय दुनिया, कठिन तथ्यों पर काम करती है। यह प्रदर्शन पर आधारित है न कि धारणा पर।
चाहे वह, वह तरीका हो जिससे भारत ने कोविड-19 महामारी से लड़ाई लड़ी और अन्य देशों को ऐसा करने में मदद की, या जिस तरह से हमने अपनी अर्थव्यवस्था को सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था बनाने के लिए सुनियोजित प्रयास किया, या जिस तरह से हमारी वित्तीय और बैंकिंग प्रणाली लगातार मजबूत होती जा रही है, आज दुनिया भारत की प्रगति से परिचित है। इसलिए, किसी समिट को छवि निर्माण के चश्मे से देखना भारत की ग्रोथ स्टोरी को कमजोर करता है।
G20 समिट को वैश्विक संदर्भ में देखा जाना चाहिए। कोविड-19 महामारी के दौरान और उसके बाद, दुनिया काफी उथल-पुथल से गुजरी है और स्वाभाविक रूप से, G20 समूह के देशों ने भी चिंता महसूस की है।
G20 देशों ने यह भी महसूस किया कि सिर्फ अरबों-खरबों की बात करने से प्रभाव नहीं पड़ता तथा मानव-केंद्रित विकास पर ध्यान देना चाहिए।
मेरा अनुभव है कि हमारी G-20 अध्यक्षता के दौरान इसी तर्ज पर चर्चाएं होती रही हैं। इतनी सारी बैठकों और चर्चाओं में, हमने पुराने दृष्टिकोण में बदलाव देखा है, जिससे नए दृष्टिकोण सामने आए हैं।
विकसित देश और विकासशील देश पहली बार एक साथ आएंगे और वैश्विक समस्याओं का समाधान ढूंढेंगे। हमने अफ्रीकन यूनियन को आमंत्रित करके समावेशिता की नींव रखी है।
हमारी G20 की अध्यक्षता में भागीदारी की सीमा अभूतपूर्व रही है और प्रतिभागियों का खुलापन अद्वितीय रहा है। मुझे विश्वास है कि सभी देशों के योगदान से इसमें सफलता मिलेगी।
प्रश्न: आपकी सरकार ने भारत की G20 अध्यक्षता को आकार देने में बहुत अधिक मेहनत की है। भारत की अध्यक्षता के अंत में आप कौन से प्रमुख परिणाम प्राप्त करने की आशा करते हैं?
उत्तर: भारत के प्रयासों को देखने के लिए मैं आपका आभारी हूं। आज, सुधारों के अभाव में, दुनिया भर में बहुपक्षीय संस्थाएं, विश्वसनीयता और भरोसा खो रही हैं। दूसरी ओर, कई छोटे समूह उभर रहे हैं।
दुनिया देख रही है कि बहुपक्षीय संस्थानों के संदर्भ में, आज मौजूद शून्यता को भरने के लिए G20 कैसे आकार ले रहा है। दुनिया G20 को एक प्रेरक शक्ति के रूप में उभरने तथा मानवता के भविष्य को आकार देने वाली नीतियां बनाने में मदद करने वाले संगठन के तौर देख पर रही है। G20 समूह को, दुनिया, आशा की किरण के रूप में देख रही है और भारत की G20 की अध्यक्षता के दौरान इसकी जमीन तैयार हो रही है। जो काम हुआ है और जो परिणाम अपेक्षित हैं, वे सभी भविष्योन्मुखी हैं।
यह G20, ग्लोबल साउथ की आवाज़ और चिंताओं को प्रतिबिंबित कर रहा है। यह G20, महिला नेतृत्व वाले विकास को गति दे रहा है। जब टेक्नोलॉजी, भविष्य में एक बड़ी भूमिका निभाने जा रही है, तो यह G20, AI और DPI (डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर) के क्षेत्र में बड़ी छलांग लगा रहा है।
भारत की G20 की अध्यक्षता, अग्रणी हरित पहल के रूप में ‘वन अर्थ’ की दिशा में योगदान देगी।
भारत की G20 अध्यक्षता समावेशी और समग्र विकास के उद्देश्य से ऐतिहासिक प्रयासों के रूप में ‘वन फैमिली’ की दिशा में योगदान देगी।
भारत की G20 की अध्यक्षता, ग्लोबल साउथ की आवाज और चिंताओं को प्रतिबिंबित करने के साथ-साथ AI और DPI के रूप में टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में, सहयोग में बड़ी छलांग लगाकर ‘वन फ्यूचर’ की दिशा में योगदान देगी।
प्रश्न: एक्सट्रीम वैदर की घटनाओं और क्लाइमेट चेंज से लड़ने की आवश्यकता के एक तत्काल वैश्विक मुद्दे में तब्दील होने के साथ, आप G20 में क्या प्रगति हासिल करने की उम्मीद कर रहे हैं?
उत्तर: मनुष्य को यह स्वीकार करना होगा कि इस समस्या की जड़ में हम ही हैं। हां, कुछ बारीकियां हैं – ऐसे लोग हैं जो वर्तमान हालात के लिए दूसरों की तुलना में अधिक जिम्मेदार हैं। लेकिन हमें प्लेनेट पर ह्यूमन इम्पैक्ट की वास्तविकता को स्वीकार करने की आवश्यकता है। जिस दिन हम इसे पूरी तरह स्वीकार कर लेंगे, यह मुद्दा, चुनौती या समस्या बनकर सामने नहीं आएगा। हम स्वत: ही समाधान देखेंगे, चाहे वह टेक्नोलॉजी के माध्यम से हो या फिर लाइफस्टाइल के माध्यम से।
आज विश्व में इस मुद्दे को लेकर रिस्ट्रिक्टिव ऐटिट्यूड है। लिमिटेशन्स की बात हो रही है और क्लाइमेट एक्शन पर आलोचना का माहौल है। इसलिए क्लाइमेट एक्शन को लेकर देशों के बीच मनमुटाव है। यदि सारी एनर्जी केवल इस बात पर ध्यान केंद्रित करने में खर्च की जाती है कि क्या नहीं करना चाहिए, बजाय इसके कि क्या किया जाना चाहिए, तो इस तरह के अप्रोच से कार्रवाई नहीं हो सकती है।
इसके अलावा, एक विभाजित दुनिया, एक कॉमन चैलेंज से नहीं लड़ सकती। यही कारण है कि G20 की अध्यक्षता के दौरान और अन्यथा भी, हमारा दृष्टिकोण इस मुद्दे पर दुनिया को एकजुट करने पर रहा है कि क्या किया जा सकता है।
गरीबों और इस प्लेनेट, दोनों को मदद की जरूरत है। भारत इस पर न सिर्फ सकारात्मक सोच के साथ बल्कि समाधान लाने की मानसिकता के साथ आगे बढ़ रहा है। हमारी ‘वन वर्ल्ड, वन सन, वन ग्रिड’ पहल भी ऐसी ही सकारात्मक पहल थी।
सोच को क्रियान्वित करने की आवश्यकता है। यदि टेक्नोलॉजी का ट्रांसफर नहीं होगा, तो गरीब देश, क्लाइमेट चेंज से कैसे निपटेंगे? यदि अपर्याप्त क्लाइमेट फाइनेंस है, तो क्या गरीब देश क्लाइमेट चेंज से निपटने के लिए काम कर सकते हैं?
हमारी अध्यक्षता, क्लाइमेट फाइनेंस के लिए संसाधन जुटाने, इंडिविजुअल कंट्री की जरूरतों के लिए ट्रांजिशन के लिए समर्थन तैयार करने को प्राथमिकता देती है। इनोवेटिव ग्रीन टेक्नोलॉजीज की आवश्यकता को स्वीकार करते हुए, हम लो-कार्बन सॉल्यूशंस के डेवलपमेंट और डिप्लॉयमेंट में निजी निवेश को बढ़ावा देने के लिए वित्तीय समाधानों, नीतियों और प्रोत्साहनों पर जोर देते हैं।
अपनी G20 अध्यक्षता के तहत, भारत ट्रांजिशन पर एक डाइवर्स ग्लोबल पॉलिसी पैलेट की वकालत करता है, जो देशों को उनकी अनूठी स्थितियों के आधार पर कार्बन टैक्सेज से लेकर ग्रीन टेक्नोलॉजी स्टैंडर्ड्स तक विभिन्न मूल्य निर्धारण और गैर-मूल्य निर्धारण रणनीतियों में से चयन करने की अनुमति देता है।
इसके अलावा, भारत का अनुभव यह रहा है कि सच्चा परिवर्तन जन आंदोलनों से, लोगों की भागीदारी से ही आता है। हमारा मिशन LiFE, लाइफस्टाइल में बदलाव पर ध्यान केंद्रित करके क्लाइमेट चेंज के खिलाफ लड़ाई को एक जन आंदोलन बनाना चाहता है। जब प्रत्येक व्यक्ति जानता है कि वे दुनिया की भलाई में सीधा अंतर ला सकते हैं, तो परिणाम अधिक व्यापक होंगे।
प्रश्न: अन्य महत्वपूर्ण वित्तीय मुद्दे भी हैं जो भारत के G20 एजेंडे का हिस्सा हैं, जिसमें उच्च स्तर के सॉवरेन ऋण का सामना करने वाले देशों के लिए ऋण पुनर्गठन भी शामिल है। इन पर क्या प्रगति हुई है और आप भारत की अध्यक्षता रहने के दौरान इन मुद्दों पर आम सहमति को लेकर कितने आशान्वित हैं?
उत्तर: वित्तीय अनुशासन सभी देशों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। यह प्रत्येक देश का कर्तव्य है कि वह स्वयं को वित्तीय अनुशासनहीनता से बचाए, लेकिन साथ ही ऐसी ताकतें भी हैं जो ऋण संकट को उत्प्रेरित करके अनुचित लाभ उठाने की कोशिश कर रही हैं। इन ताकतों ने दूसरे देशों की मजबूरी का फायदा उठाया और उन्हें कर्ज के जाल में फंसाया।
G20 ने 2021 से, कम और मध्यम आय वाले देशों में ऋण जोखिमों को दूर करने को प्राथमिकता दी है। 2030 के सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल्स (SDG) के एजेंडे को प्राप्त करना इन देशों की प्रगति पर निर्भर करता है, फिर भी ऋण सेवा उनके प्रयासों में बाधा डालती है, जिससे SDG निवेशों के लिए राजकोषीय स्थान सीमित हो जाता है।
2023 में, भारत की अध्यक्षता में, G20 ने कॉमन फ्रेमवर्क के माध्यम से ऋण पुनर्गठन को महत्वपूर्ण बढ़ावा दिया। भारत की अगुवाई से पहले, केवल चाड ने इस ढांचे के तहत ऋण पुनर्गठन किया था। भारत के फोकस के साथ, जाम्बिया, इथियोपिया और घाना ने उल्लेखनीय प्रगति की है। भारत ने एक प्रमुख ऋणदाता होने के नाते एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
कॉमन फ्रेमवर्क के बाहर, G20 मंचों ने भारत, जापान और फ्रांस की सह-अध्यक्षता वाली एक समिति के साथ, श्रीलंका के लिए ऋण पुनर्गठन समन्वय की सुविधा प्रदान की।
भारतीय अध्यक्षता में वैश्विक संप्रभु ऋण गोलमेज सम्मेलन की शुरुआत भी हुई, जिसकी सह-अध्यक्षता आईएमएफ, वर्ल्ड बैंक और G20 प्रेसीडेंसी ने की। गोलमेज सम्मेलन का उद्देश्य प्रभावी ऋण उपचार की सुविधा के लिए कम्युनिकेशन को मजबूत करना और कॉमन फ्रेमवर्क के भीतर और बाहर, दोनों प्रमुख हितधारकों के बीच एक आम समझ को बढ़ावा देना है।
प्रश्न: क्रिप्टोकरेंसी के रेगुलेशन के लिए एक ग्लोबल फ्रेमवर्क की बात की गई है। इस पर क्या प्रगति हुई है?
उत्तर: टेक्नोलॉजी में बदलाव की तीव्र गति एक वास्तविकता है- इसे नजरअंदाज करने का कोई मतलब नहीं है। इसके बजाय इसे अपनाने, इसके लोकतंत्रीकरण और इंटीग्रेटेड अप्रोच पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए। साथ ही, इससे जुड़े नियम, विनियम और रूपरेखा किसी एक देश या देशों के समूह से संबंधित नहीं होने चाहिए।
इसलिए न केवल क्रिप्टो, बल्कि सभी उभरती टेक्नोलॉजीज को एक ग्लोबल फ्रेमवर्क और नियमों की आवश्यकता है।
एक ग्लोबल सर्वसम्मति-आधारित मॉडल की आवश्यकता है, विशेष रूप से वह जो ग्लोबल साउथ की चिंताओं पर विचार करता हो। हम एविएशन के क्षेत्र से सीख सकते हैं। चाहे वह हवाई यातायात नियंत्रण हो या हवाई सुरक्षा, इस क्षेत्र को नियंत्रित करने वाले कॉमन ग्लोबल रूल्स और रेगुलेशंस हैं।
पिछले नौ महीनों में, ऋण और क्रिप्टो एजेंडे में व्यापक प्रयास और ऊर्जा को लगाया गया है। भारत की G20 अध्यक्षता ने क्रिप्टो के बारे में बातचीत को वित्तीय स्थिरता से परे विस्तारित किया है ताकि इसके व्यापक मैक्रो-इकोनॉमिक निहितार्थों पर विचार किया जा सके, विशेष रूप से उभरते बाजारों और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के लिए। G20 ने इन मामलों पर एक सहमति बनाई है, जो मानक-निर्धारण निकायों का तदनुसार मार्गदर्शन कर रही है। हमारी अध्यक्षता ने भी समृद्ध सेमिनार और चर्चाएं आयोजित की हैं, जो क्रिप्टो एसेट्स में इनसाइट्स को गहरा कर रही हैं।
हम इस पर विचार करने से नहीं रुके हैं कि हमें कैसे आगे बढ़ना चाहिए। हम आगे के रास्ते पर ठोस विवरण भी लेकर आए हैं कि हमें कितनी तेजी से आगे बढ़ने की जरूरत है। इसलिए, हमारा रोड मैप डिटेल्ड और एक्शन ओरिएंटेड है।
प्रश्न: भारत ने बहुपक्षीय विकास बैंक (MDB) स्ट्रक्चर में रिफॉर्म का महत्वपूर्ण एजेंडा उठाया है। पिछले प्रयासों का ज्यादा असर नहीं हुआ है। आप किस हद तक उम्मीद कर रहे हैं कि भारत की अध्यक्षता इस प्रमुख एजेंडे को आगे बढ़ाएगी?
उत्तर: MDB एजेंडा पर, हाल तक G20 में प्रयास मुख्य रूप से, इस बात पर केंद्रित रहे हैं कि उनकी बैलेंस शीट को कैसे अनुकूलित किया जा सकता है ताकि वे अपने मौजूदा संसाधनों का सबसे प्रभावी ढंग से उपयोग कर सकें।
हालांकि, महामारी के बाद से, यह एहसास हुआ है कि MDB को जलवायु परिवर्तन, महामारी आदि जैसी वैश्विक चुनौतियों को अपने कोर डेवलपमेंट मैंडेट के भीतर इंटीग्रेटेड करने की आवश्यकता है। इसके लिए MDB के कार्यों के मौजूदा फ्रेमवर्क में सुधार और उनके मौजूदा वित्तीय संसाधनों के विस्तार की आवश्यकता होगी। पूरे ग्लोबल साउथ में इसकी जरूरत महसूस की जा रही है।
अपनी अध्यक्षता के दौरान हम इस मुद्दे को प्रभावी ढंग से निपटाने में सक्षम रहे हैं। पहले के विपरीत, MDB में सुधार की मांग, अब खुद इसके शेयरधारकों की ओर से आ रही है और इसने सुनिश्चित किया है कि भारतीय अध्यक्षता के MDB एजेंडे के आसपास बहुत अधिक ट्रैक्शन है। MDB के शेयरधारक अब इस मुद्दे के महत्व को समझते हैं।
हमने अपनी अध्यक्षता में MDB को मजबूत करने पर G20 स्वतंत्र विशेषज्ञ समूह की स्थापना की। समूह में इंटरनैशनल फाइनेंशियल आर्किटेक्चर पर कुछ बेस्ट ग्लोबल माइंडस शामिल हैं। समूह ने अपनी रिपोर्ट का वॉल्यूम-1 प्रस्तुत कर दिया है, और वॉल्यूम-2 अक्टूबर में प्रस्तुत किया जाएगा।
विशेषज्ञ समूह की सिफारिशें काफी हद तक MDBs की वित्तीय ताकत बढ़ाने, गरीबी उन्मूलन के कोर मैंडेट को पूरा करने के लिए ऋण स्तर बढ़ाने और उभरती वैश्विक चुनौतियों का समाधान करने के साथ-साथ, साझा समृद्धि को बढ़ावा देने पर भारत के विचारों को प्रतिध्वनित करती हैं। सर्वसम्मति बनाने के लिए इस रिपोर्ट और संवाद के माध्यम से, भारत ने MDB सुधारों पर व्यापक वैश्विक बातचीत में ग्लोबल साउथ की प्राथमिकताओं को प्रभावी ढंग से शामिल किया है।
प्रश्न: भारत का इंडिया स्टैक का डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर और आधार, यूपीआई, को-विन और प्रधानमंत्री जन धन योजना जैसी सेवाएं सीधे लाभार्थियों को सेवाएं प्रदान करने में बेहद सफल रही हैं। भारत G20 में डेवलपमेंट के लिए इन्हें एक व्यवहार्य मॉडल के रूप में प्रदर्शित करने और अन्य देशों को इनका सफलतापूर्वक उपयोग करने में, मदद करने में कितना सक्षम रहा है?
उत्तर: सामाजिक न्याय के लिए इंक्लूसिव ग्रोथ पहली आवश्यकता है और इंक्लूसिव ग्रोथ को अंतिम छोर तक पहुंचाने की जरूरत है। भारत ने दिखाया है कि टेक्नोलॉजी अंतिम मील तक डिलीवरी सुनिश्चित करने में एक बड़ी सहायक हो सकती है। टेक्नोलॉजी ने भारत को टार्गेटेड वेलफेयर डिलीवरी हासिल करने में मदद की है।
टेक्नोलॉजी के हमारे उपयोग का उद्देश्य, इंक्लूसिव ग्रोथ और फॉर्मलाइजेशन है। आकांक्षी जिलों में टेक्नोलॉजी के उपयोग से विभिन्न इंडीकेटर्स में महत्वपूर्ण सुधार हुआ है। इससे न केवल फॉर्मलाइजेशन में सुधार हुआ है बल्कि गरीबों के लिए किफायती ऋण और अन्य सुविधाएं भी उपलब्ध हुई हैं।
आज, हमारे लोगों के सामाजिक-आर्थिक विकास की दिशा में डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर को बढ़ावा देने और उपयोग करने में, भारत की सफलता को वैश्विक मान्यता मिल रही है। यह तथ्य कि ग्लोबल डिजिटल पेमेंट्स ट्रांजेक्शन का 46% अब भारत में है, यह हमारी नीतियों की सफलता का एक ज्वलंत उदाहरण है। दुनिया आज भारत को इनोवेशन के इनक्यूबेटर के रूप में देखती है।
ग्लोबल एक्सपर्ट्स ने न केवल भारत के डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर के उपयोग की सराहना की है, बल्कि वर्ल्ड लीडर्स के साथ अपनी बैठकों के दौरान मुझे भी उनमें काफी रुचि महसूस हुई है।
भारत के डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर में उत्पादों का एक विविध समूह है जो ग्लोबल साउथ और विकसित दुनिया, दोनों में अपनी उपयोगिता पाता है। कई देश हमारे अनुभव से सीखने में रुचि रखते हैं, और हमने कम से कम एक दर्जन देशों के साथ सफलतापूर्वक सहयोग शुरू किया है।
हम टेक्नोलॉजी का लाभ उठाकर ग्लोबल डेवलपमेंट में तेजी लाने के लिए G20 देशों के साथ काम कर रहे हैं, विशेष रूप से डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए एक आम दृष्टिकोण के माध्यम से डिजिटल पब्लिक गुड्स की अवधारणा को बढ़ावा दे रहे हैं और इसकी, G20 सदस्यों द्वारा बड़े पैमाने पर सराहना की गई है।
हमें विश्वास है कि भारत के डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर की बढ़ती लोकप्रियता, ग्लोबल फाइनेंशियल इंक्लूजन और जीवन सुगमता में काफी मदद करेगी।
प्रश्न: ग्लोबल स्टार्ट-अप इकोसिस्टम के निर्माण में मदद के लिए G20 मंच का उपयोग करने पर चर्चा हुई है। आपकी सरकार इस संबंध में किस प्रकार आगे बढ़ने की उम्मीद करती है?
उत्तर: यदि हम इतिहास पर नजर डालें तो काफी समय तक इन्क्रीमेंटल ग्रोथ का दौर रहा है। लेकिन आज, चीजें बदल गई हैं। इन्क्रीमेंटल चेंज के दौर से, हम डिसरप्टिव इनोवेशन के युग में चले गए हैं। जितना परिवर्तन पहले 100 वर्षों में देखा जाता था, वह अब केवल 10 वर्षों में हो जाता है! इसका मतलब यह है कि सरकारों और समाज को, तेजी से हो रहे बदलावों को समझने के लिए तैयार रहना होगा।
अगर हम भारत के अनुभव को देखें तो हमने न केवल स्टार्ट-अप की क्षमता को समझा, बल्कि उन्हें लॉन्च पैड भी उपलब्ध कराया।
हमने युवाओं को कई अवसरों से जोड़ा। हमने अटल इनोवेशन मिशन और अटल टिंकरिंग लैब्स शुरू की। आज 10,000 अटल टिंकरिंग लैब्स हैं जिनमें 75 लाख छात्रों ने लाखों इनोवेशन प्रोजेक्ट्स पर काम किया है। हमने इन्क्यूबेशन सेंटर्स स्थापित किए हैं और बड़ी संख्या में हैकथॉन आयोजित किए हैं। हमने विभिन्न देशों के साथ साझेदारी में हैकथॉन भी आयोजित किए हैं। इससे ‘प्रॉब्लम सॉल्विंग’ की मानसिकता का विकास हुआ।
इन सभी हस्तक्षेपों से स्टार्ट-अप का तेजी से उदय हुआ है और ये स्टार्ट-अप डिसरप्टिव चेंज ला रहे हैं।
आज, भारत में लगभग एक लाख स्टार्ट-अप और 100 यूनिकॉर्न हैं। बहुत से विशेषज्ञ भारत को स्टार्ट-अप के हब के रूप में देखते हैं। जब यह हमारी बेसिक गवर्नेंस फिलॉसफी है, तो यह स्वाभाविक है कि हम इस गति को विश्व स्तर पर ले जाना चाहते हैं।
हमारी सफलता के आधार पर और विश्व स्तर पर स्टार्ट-अप के महत्व को पहचानते हुए, भारत ने अपने G20 नेतृत्व के दौरान, स्टार्टअप-20 एंगेजमेंट ग्रुप की स्थापना करके एक महत्वपूर्ण कदम उठाया। G20 के तहत यह अपनी तरह की पहली पहल है। यह समूह विभिन्न स्टेकहोल्डर्स को एक साझा मंच पर एक साथ लाकर ग्लोबल स्टार्ट-अप इकोसिस्टम की आवाज के रूप में कार्य कर रहा है।
यह स्टार्ट-अप्स का समर्थन करने और स्टार्ट-अप्स, कॉरपोरेट्स, इन्वेस्टर्स, इनोवेशन एजेंसीज और अन्य प्रमुख इकोसिस्टम स्टेकहोल्डर्स के बीच तालमेल को सक्षम करने के लिए एक ग्लोबल नैरेटिव बनाने की इच्छा रखता है।
हम सकारात्मक हैं कि वे कपैसिटी बिल्डिंग, फंडिंग गैप्स की पहचान, रोजगार के अवसरों में वृद्धि, सस्टेनेबल डेवेलपमेंट लक्ष्यों की प्राप्ति और एक इंक्लूसिव इकोसिस्टम के डेवलपमेंट जैसे क्षेत्रों में ठोस कदम उठाने में सक्षम होंगे।
इस नए एंगेजमेंट ग्रुप की बैठकों ने काफी दिलचस्पी पैदा की है और हमें उम्मीद है कि यह खुद को G20 प्रक्रिया के प्रमुख स्तंभ के रूप में स्थापित करेगा।
प्रश्न: आईएमएफ ने कहा है कि इस वित्तीय वर्ष में 6.1 प्रतिशत की अनुमानित वृद्धि के साथ भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था है। क्या आपको उम्मीद है कि इस वित्तीय वर्ष में अर्थव्यवस्था अनुमान से बेहतर प्रदर्शन करेगी, यह देखते हुए कि अधिकांश मैक्रो-इकोनॉमिक इंडीकेटर्स मजबूत बने हुए हैं और मांग में सुधार की ओर इशारा करते हैं?
उत्तर: पिछले कुछ वर्षों का अनुभव बताता है कि भारत ने अनुमान से बेहतर प्रदर्शन किया है। यह हमारा ट्रैक रिकॉर्ड है।
आज, हम अधिकांश देशों की तुलना में तेजी से विकास कर रहे हैं और हमारे लोग इसके लिए श्रेय के पात्र हैं। अब, जब हम और भी तेजी से विकास करने की आकांक्षा रखते हैं, तो हमारे लोगों पर एक बड़ी जिम्मेदारी है। जैसे-जैसे हम विकास की अगली छलांग लगाएंगे, हमारा राष्ट्रीय चरित्र एक बड़ी भूमिका निभाएगा। जैसे स्वदेशी आंदोलन ने हमारे स्वतंत्रता आंदोलन को बड़ी ताकत दी, वैसे ही आज के जन आंदोलन विकास की अगली लहर को शक्ति देंगे।
यह वोकल फॉर लोकल, आत्मनिर्भर भारत, मैन्युफैक्चरिंग में जीरो डिफेक्ट और जीरो इफ़ेक्ट, जीरो इम्पोर्ट, कृषि में अधिकतम निर्यात और ऊर्जा जरूरतों में आत्मनिर्भरता के मंत्र के माध्यम से होगा।
जैसे-जैसे हमारे नागरिक इन सिद्धांतों को क्रियान्वित कर रहे हैं, हम भी अपने लक्ष्यों के करीब बढ़ रहे हैं। ग्लोबल मैन्युफैक्चरर्स भारत आ रहे हैं और अभूतपूर्व रोजगार सृजन का युग सामने आ रहा है। और जब मैं वोकल फॉर लोकल कहता हूं, तो मेरे लिए भारत में, भारतीयों के पसीने और मेहनत से बनी हर चीज लोकल है
करीब 10 साल पहले भारत की गिनती फ्रैजाइल 5 देशों में हो रही थी। भारत को एक ऐसे देश के रूप में देखा जाता था जो अपनी पूरी क्षमता से काम नहीं कर रहा था।
10 वर्षों में भारत, दुनिया की 10वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था से दुनिया की 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है। 10 वर्षों में, भारत को अब अपार संभावनाओं वाले देश के रूप में देखा जाता है जो उसके प्रभावशाली प्रदर्शन से समर्थित है।
हाल के वर्षों में सरकार के इंफ्रास्ट्रक्चर पर जोर देने से निजी पूंजीगत व्यय में भी मदद मिल रही है। भारत में जीडीपी के प्रतिशत के रूप में ग्रॉस फिक्स्ड कैपिटल फॉर्मेशन 34 प्रतिशत है, जो 2013-14 के बाद से सबसे अधिक है। 2022-23 में ऋण वृद्धि लगभग 15 प्रतिशत तक बढ़ गई, जो लगभग एक दशक में सबसे मजबूत है। ये इंडिकेटर एक नए निजी पूंजीगत व्यय चक्र की शुरुआत की ओर इशारा करते हैं।
ग्रामीण और शहरी दोनों ही क्षेत्रों में घरेलू खपत मजबूत बनी हुई है। मुद्रास्फीति नीचे की ओर है, चालू वर्ष में विदेशी मुद्रा प्रवाह मजबूत रहा है। प्रत्येक इंडिकेटर के बेहतर होने से, वृद्धि निश्चित रूप से मजबूत होगी। पिछले नौ वर्षों में, एफडीआई प्रवाह दोगुना हो गया है, विदेशी मुद्रा भंडार दोगुना हो गया है, केंद्र सरकार का पूंजीगत व्यय पांच गुना से अधिक बढ़ गया है, बैंकों की बैलेंस शीट को रिपेयर किया गया है और वे लाभ कमा रहे हैं।
मैं इस बात को लेकर पूरी तरह आश्वस्त हूं कि भारत की अर्थव्यवस्था अच्छा प्रदर्शन करती रहेगी और हमारे लोगों के लिए अभूतपूर्व अवसर और समृद्धि लाएगी।
प्रश्न: ऐप्पल और टेस्ला जैसी कंपनियों द्वारा भारत में मैन्युफैक्चरिंग सेंटर्स विकसित करने में रुचि दिखाने से, आपके विचार से देश ने, चीन के लिए एक व्यवहार्य वैकल्पिक वैश्विक उत्पादन केंद्र बनने में किस हद तक प्रगति की है? आप मेक इन इंडिया कार्यक्रम के कार्यान्वयन का आकलन कैसे करते हैं और आपको क्या लगता है कि ग्लोबल सप्लाई चेन्स में ‘चाइना प्लस वन’ धुरी से भारत को लाभ पहुंचाने के लिए और क्या करने की आवश्यकता है?
उत्तर: मैं आपके प्रश्न से हैरान हूं। अगर कोई अपनी सेहत सुधारने के लिए व्यायाम कर रहा है तो क्या इसे उसकी, किसी और से लड़ने की तैयारी के तौर पर देखा जाना चाहिए?
हमारे पास दुनिया की सबसे यंगेस्ट और टैलेंटेड युवा आबादी है। क्या उन्हें प्रगति के सपने देखने की आज़ादी नहीं मिलनी चाहिए? अगर भारत के पास इतना बड़ा बाज़ार है तो क्या उसे मैन्युफैक्चरिंग पावर बनने का भी सपना नहीं देखना चाहिए? मैं चाहता हूं कि मेरे साथी नागरिकों को विकसित देशों जैसी अच्छी सुविधाएं मिलें। दुनिया आज भारत की ताकत को पहचान रही है। वे यहां आ रहे हैं क्योंकि यह उनकी कंपनी, उनके उत्पाद और उनके मुनाफे के लिए अच्छा है।
हम जो प्रयास 2014 से कर रहे हैं वह 40-45 साल पहले ही कर देना चाहिए था। उस समय देश को पता था कि कौन सा काम करना सही है, लेकिन निर्णय लेने वालों ने गलत फैसले लिये।
हम 2014 से मैन्युफैक्चरिंग बढ़ाने और कारोबारी सुगमता में सुधार पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। वर्ल्ड क्लास इंफ्रास्ट्रक्चर, हमारे वर्कफोर्स का स्किल डेवलपमेंट, मददगार नीतियों और आकर्षक वित्तीय प्रोत्साहनों पर ध्यान केंद्रित करके, हम अपने मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को बदल रहे हैं।
भारत में एप्पल के मैन्युफैक्चरिंग फुटप्रिंट की ग्रोथ, माइक्रोन का भारत में सेमीकंडक्टर असेंबली स्थापित करने का निर्णय, ये सभी एक मैन्युफैक्चरिंग डेस्टिनेशन के रूप में भारत के बढ़ते आकर्षण को दर्शाते हैं।
भारत को कॉम्पिटेटिव अल्टरनेटिव ग्लोबल प्रोडक्शन हब में बदलने में सक्षम होने के लिए स्केल और वॉल्यूम का निर्माण महत्वपूर्ण है। यहीं पर सप्लाई चेन्स के डेवलपमेंट के लिए निवेश आकर्षित करना और मैन्युफैक्चरिंग कपैसिटीज का निर्माण आवश्यक है। हमारी पीएलआई योजनाएं, कंपनियों को साल दर साल अपनी मैन्युफैक्चरिंग कपैसिटीज और लोकल वैल्यू एडिशन बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए डिज़ाइन की गई हैं।
प्रश्न: भू-राजनीतिक प्रतिकूल परिस्थितियां, विशेष रूप से रूस-यूक्रेन युद्ध, वैश्विक सहमति बनाने के कार्य को जटिल बना देता है। भारत की G20 अध्यक्षता के दौरान, आप उन मुद्दों से कैसे निपटने की उम्मीद करते हैं जिन पर वैश्विक सहमति बनाना कठिन साबित हुआ है? हम देख रहे हैं कि देश, रूस और यूक्रेन के बीच शांति स्थापित करने का रास्ता खोजने की कोशिश कर रहे हैं। G20 अध्यक्ष के रूप में, क्या आपके पास कोई योजना है जो आपको लगता है कि रूस-यूक्रेन युद्ध से बाहर निकलने का रास्ता खोजने में मदद कर सकती है?
उत्तर: आप अपनी बिजनेस स्ट्रेटेजी के अनुसार, G20 पर एक विशेष अंक लेकर आ रहे हैं। हालांकि, आपका प्रश्न राजनीतिक बहस के बारे में अधिक है। इसलिए, आपको यह आकलन करना चाहिए कि क्या इस मुद्दे के साथ G20 या हमारी G20 अध्यक्षता को जोड़ना उचित है।
मैं आपसे पूछना चाहता हूं – आपके मन में सिर्फ इसी मुद्दे के बारे में पूछने का विचार क्यों आया, जैसे कि दुनिया में केवल एक ही समस्या है? आपके ध्यान में यह क्यों नहीं आया कि दुनिया के अन्य हिस्सों में भी समस्याएं हैं जैसे सीरिया में, अफ्रीका के कुछ देशों में, पूर्वी एशिया में, लैटिन अमेरिका में? एक बिजनेस मैगजीन के तौर पर, आपको राजनीतिक बहसों पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय अब तक हुई G20 की बैठकों पर ध्यान केंद्रित करने का विचार क्यों नहीं आया?
संयुक्त राष्ट्र जैसे अंतरराष्ट्रीय संगठन हैं जो इन सभी मुद्दों पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। मेरा ध्यान इस बात पर है कि हम अपनी G20 अध्यक्षता को उन विकासात्मक मुद्दों पर साझा स्थिति बनाने के लिए प्रेरित करेंगे जो ग्लोबल साउथ के लिए महत्वपूर्ण हैं।
प्रश्न: आपने अफ्रीकन यूनियन को G20 की सदस्यता दिलाने की पुरजोर वकालत की। आप G20 में अफ्रीकन यूनियन की क्या भूमिका देखते हैं और क्या आप नई उभरती विश्व व्यवस्था को आकार देने में अफ्रीकी महाद्वीप की भूमिका के बारे में अपना विजन शेयर कर सकते हैं?
उत्तर: अक्टूबर 2015 में, हमने नई दिल्ली में बड़े स्तर पर, भारत-अफ्रीका समिट आयोजित किया था। यह एक बड़ा प्रयास था, जहां अफ्रीकी महाद्वीप के 54 देशों के नेता भारत आए थे। यह एक विशेष अंक निकालने का उपयुक्त अवसर था। दुर्भाग्य से हमारे देश की मीडिया ने उस घटना के महत्व और विशिष्टता को नहीं समझा। दरअसल, आपको यह भी देखना चाहिए कि आपकी मैगजीन ने उस समिट को कितना कवरेज दिया।
मुझे ख़ुशी है कि कम से कम अब आपने अफ्रीकन यूनियन के बारे में सोचा और मुझसे यह प्रश्न पूछा।
मैं ग्लोबल साउथ के देशों के लिए गहराई से महसूस करता हूं। मेरा दृढ़ विश्वास है कि यदि हमें ग्लोबल डेवलपमेंट एजेंडे पर प्रगति करनी है तो हमें विकासशील विश्व को महत्व देना होगा। यदि हम उन्हें गौरवपूर्ण स्थान देते हैं, उनकी बात सुनते हैं, उनकी प्राथमिकताओं को समझते हैं, तो उनमें वैश्विक भलाई में योगदान देने की क्षमता और सामर्थ्य है।
जब मैं गुजरात का मुख्यमंत्री था, तब मैंने पहली बार अहमदाबाद में अफ्रीका डेवलपमेंट बैंक के समिट की मेजबानी की थी। यह पहली बार था जब उन्होंने अफ्रीका के बाहर अपनी बैठक आयोजित की थी। यह एक बड़ी कामयाबी थी
इस बार, हमने वसुधैव कुटुंबकम को अपनी G20 अध्यक्षता के आदर्श वाक्य के रूप में रखने का निर्णय लिया। यह हमारी मौलिक आस्था और लोकाचार पर आधारित है।
यदि हम विकासशील देशों को शामिल नहीं करते हैं, तो हम वसुधैव कुटुंबकम को कैसे साकार कर सकते हैं? ‘वन अर्थ, वन फैमिली, वन फ्यूचर’ कैसे हो सकता है?
इसीलिए, G20 की अध्यक्षता संभालने के बाद, मैंने जो पहला कार्यक्रम आयोजित किया, वह इस वर्ष जनवरी में ‘वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ समिट’ था। उनकी बात सुनने के बाद, उनकी प्राथमिकताओं और चिंताओं को समझने के बाद, हमने अपनी G20 अध्यक्षता के लिए एजेंडा तय किया। हम ग्लोबल साउथ की प्राथमिकताओं को G20 के एजेंडे में लाए हैं और हमने प्रगति की है।
इसी भावना के साथ ,मैंने हमारी अध्यक्षता के दौरान, अफ्रीकन यूनियन को G20 का स्थायी सदस्य बनाने की पहल की है। मुझे विश्वास है कि हमें इसे साकार करने के लिए समर्थन प्राप्त होगा। यह G20 को अधिक रिप्रेजेन्टेटिव बनाएगा और ग्लोबल साउथ को अधिक आवाज देगा।
विश्व व्यवस्था के लिए एक बड़ा खतरा तब उभरता है जब देशों को लगता है कि निर्णय लेने में उनके विचारों, चिंताओं और मुद्दों पर ध्यान नहीं दिया जाता है।
हमारा मानना है कि विकासशील दुनिया की आवाज और भागीदारी के बिना वैश्विक चुनौतियों का स्थायी समाधान नहीं पाया जा सकता है।
जब ग्लोबल गवर्नेंस संस्थानों की बात आती है, तो विशेष रूप से अफ्रीका को उचित मान्यता और स्थान नहीं दिया गया है। भारत और अफ्रीका के बीच बहुत विशेष संबंध हैं और भारत वैश्विक मामलों में अफ्रीका की बड़ी भूमिका का दृढ़ समर्थक रहा है।
G20 की हमारी अध्यक्षता के दौरान, हमने G20 में अफ्रीकन यूनियन के लिए एक स्थायी सीट की तलाश करने की पहल की है, और हमें विश्वास है कि हमारे प्रस्ताव को अन्य G20 सदस्यों का समर्थन प्राप्त होगा।
हमारा मानना है कि यह कदम, अफ्रीकी महाद्वीप को वैश्विक मंच पर अपनी चिंताओं और दृष्टिकोण को बेहतर ढंग से व्यक्त करने में सक्षम बनाएगा और विश्व व्यवस्था को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
सौजन्य: बिजनेस टुडे