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पीएम मोदी ने मिस्र की मस्जिद में जाकर विरोधियों को दिया करारा जवाब, फूटा अल्पसंख्यक विरोधी मोदी का गुब्बारा

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपने विरोधियों को उसी की भाषा में जवाब देने के लिए जाने जाते हैं। एक बार फिर उन्होंने अपने विरोधियों को विदेशी धरती से ही करारा जवाब दिया है, जिसकी कल्पना उन्होंने कभी नहीं की होगी। प्रधानमंत्री मोदी के अमेरिका दौरे के समय भारत में अल्पसंख्यक से संबंधित सवाल उठाया गया था। यहां तक कि अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक हुसैन ओबामा ने अल्पसंख्यकों को लेकर भारत के विभाजन तक का डर दिखाया था। प्रधानमंत्री मोदी ने मिस्र की मस्जिद में जाकर उन सभी को बड़ा संदेश दिया। इसके बाद मोदी विरोधियों पर एक और बड़ा वज्रपात हुआ। मुस्लिम बहुल मिस्र की सरकार ने अपने देश का सर्वोच्च सम्मान देकर मोदी विरोधियों के जले पर नमक छिड़क दिया। प्रधानमंत्री मोदी ने विदेशी धरती से अपने विरोधियों की बोलती बंद कर दी है। 

प्रधानमंत्री मोदी रविवार (25 जून, 2026) को मिस्र की राजधानी काहिरा में ऐतिहासिक अल-हकीम मस्जिद का दौरा किया। प्रधानमंत्री मोदी 1012 में बनी इस मस्जिद को देखने पहुंचे और इसकी दीवारों और दरवाज़ों पर बनी नक्काशी को देखा और वहां मौजूद लोगों से बात की। प्रधानमंत्री ने खासकर बोहरा समुदाय के नेताओं से भी मुलाकात की। बोहरा समुदाय ने भी प्रधानमंत्री मोदी का गर्मजोशी के साथ स्वागत किया। अपने बीच प्रधानमंत्री मोदी को देख बोहरा समुदाय के लोग काफी खुश नजर आ रहे थे। बोहरा समुदाय से जुड़े एक व्यक्ति ने कहा कि मैं यहां 26 सालों से रह रहा हूं। आज हमें बहुत अच्छा लग रहा है। प्रधानमंत्री यहां आए हैं, उनसे मिलना हमारे लिए सम्मान की बात है। यहां सभी बहुत खुश हैं। यह बयान और प्रधानमंत्री मोदी जिस तरह मस्जिद में सहज रूप में नजर आए, उसने भारत और विदेशों में बैठे उनके विरोधियों को असहज कर दिया है। 

दरअसल काहिरा के अल-हकीम मस्जिद में दाऊदी बोहरा समुदाय के लिए बहुत ही ज्‍यादा सांस्‍कृतिक महत्‍व रखती है। इस समुदाय की मदद से ही इस मस्जिद का निर्माण किया गया था। फरवरी में इस मस्जिद को दोबारा खोला गया था। अल-हकीम मस्जिद के निर्माण कार्य की ज़िम्मेदारी दाऊदी बोहरा समुदाय के 52वें धर्मगुरु सैयदना मोहम्मद बुरहानुद्दीन ने ली थी। मोहम्मद बुरहानुद्दीन का संबंध भारत से था और सामाजिक क्षेत्र में योगदान के लिए मोदी सरकार ने 2015 में उन्हें मरणोपरांत पद्मश्री से सम्मानित किया था। अल-हकीम मस्जिद के मरम्मत में सफेद संगमरमर और सोने की सजावट का प्रयोग किया गया है। 1979 में यूनेस्को ने विश्व धरोहर स्थल के रूप में शामिल किया था।

प्रधानमंत्री मोदी को अल्पसंख्यक विरोधी साबित करोने वालों को उस समय गहरा झटका लगा, जब एक मुस्लिम राष्ट्र मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फतह अल-सिसी ने उन्हें अपने देश के सर्वोच्च सम्मान ‘ऑर्डर ऑफ द नाइल’ से सम्मानित किया। यह सम्मान उन राष्ट्राध्यक्षों, राजकुमारों और उपराष्ट्रपतियों को दिया जाता है, जिन्होंने मिस्र या मानवता की अमूल्य सेवा की हो। यह प्रधानमंत्री मोदी को दिया गया किसी देश का 13वां सर्वोच्च राजकीय सम्मान है। इसमें मुस्लिम राष्ट्रों संयुक्त अरब अमीरात, फलस्तीन,अफगानिस्तान, सऊदी अरब द्वारा दिया गया अपने देश का सर्वोच्च सम्मान भी शामिल है। अब प्रधानमंत्री मोदी विरोधियों को यह समझ में नहीं आ रहा है कि वो भारत में और भारत के बाहर मुस्लिम विरोधी के रूप में प्रचारित करते हैं, उसका असर मुस्लिम राष्ट्रों पर क्यों नहीं हो रहा है ?

गौरतलब है कि प्रधाननंत्री मोदी के अमेरिका दौरे के समय संयुक्त प्रेस कन्फ्रेंस में अल्पसंख्यकों से भेदभाव से संबंधित सवाल उठाया गया था। इसी बीच अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक हुसैन ओबामा ने सीएनएन को दिए एक इंटरव्यू में विवादित बयान देकर मोदी विरोधियों के प्रोपेगैंडा को हवा दी थी। उन्होंने पीएम मोदी पर हमले का मौका दे दिया था। कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने ओबामा के बयान के आधार पर  प्रधानमंत्री  मोदी के अमेरिका दौरे को प्रभावित करने की कोशिश की थी। लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस में ही ओबामा और मोदी विरोधियों को एक साथ जवाब दे दिया। उन्होंने कहा कि जब लोकतंत्र की बात करते हैं तब अगर मानव मूल्य नहीं है, मानवता नहीं है, मानवाधिकार नहीं है, तो फिर वो लोकतंत्र है ही नहीं। और इसलिए जब आप लोकतंत्र कहते हैं, जब लोकतंत्र को स्वीकार करते हैं और जब हम लोकतंत्र को लेकर के जीते हैं तब भेदभाव का सवाल ही नहीं उठता है। 

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