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समुंदर में स्नॉर्कलिंग का लुत्फ, बीच पर मॉर्निंग वॉक : पीएम मोदी ने शेयर की लक्षद्वीप दौरे की शानदार तस्वीरें

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने हाल ही में लक्षद्वीप का दौरा किया था। इस दौरान उन्होंने वहां के लोगों को 1150 करोड़ रुपये से अधिक की विकास परियोजनाओं की सौगात दी। प्रधानमंत्री मोदी का यह दौरा लक्षद्वीप के पर्यटन के लिए वरदान साबित हो सकता है, क्योंकि उन्होंने सोशल मीडिया पर अपने लक्षद्वीप दौरे की मनमोहक तस्वीरें शेयर की हैं। इन तस्वीरों में वह समुंदर में स्नॉर्कलिंग का लुत्फ उठाते और बीच पर मॉर्निंग वॉक करते नज़र आ रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने इन तस्वीरों को शेयर करते हुए स्नॉर्कलिंग करने के अपने अनुभव को शानदार बताया और भारतीयों से लक्षद्वीप घूमने की अपील की। उन्होंने कहा कि लक्षद्वीप की सुंदरता को शब्दों में समेटना बहुत मुश्किल है, जो लोग दुनिया के अलग-अलग देशों के द्वीपों को देखने जाना चाहते हैं,वहां के समुंदर से अभिभूत है। उनसे मेरा आग्रह है कि वो पहले लक्षद्वीप आकर जरूर देखें।

समुंदर में स्नॉर्कलिंग का लुत्फ उठाते पीएम मोदी की तस्वीरें

सुबह के समय बीच पर मनोरम दृश्य और वॉक का आनंद

समुद्र तट के किनारे कुर्सी पर बैठे फुर्सत के कुछ पल

प्रधानमंत्री मोदी भरतीय पर्यटन के ब्रांड एंबेसडर हैं। आइए देखते हैं वह अपने दौरे से किस तरह पर्यटन को बढ़ावा दे रहे हैं…

पीएम मोदी आदि कैलाश का दर्शन करने वाले पहले प्रधानमंत्री
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 12 अक्टूबर 2023 को पिथौरागढ़ जिले के जोलिंगकोंग पहुंचे, जहां उन्होंने पार्वती कुंड में पूजा-अर्चना की। इसके बाद उन्होंने कैलाश व्यू प्वाइंट से आदि कैलाश के दर्शन किए। यह व्यू प्वाइंट जोलिंगकोंग इलाके में है जहां से कैलाश पर्वत साफ नजर आता है। इसके लिए अब चीन के कब्जे वाले तिब्बत जाने की जरूरत नहीं होगी। यहां से 20 किलोमीटर दूर चीन की सीमा शुरू हो जाती है। प्रधानमंत्री मोदी देश के पहले प्रधानमंत्री हैं, जिन्होंने उत्तराखंड से लगी भारत-चीन सीमा पर आदि कैलाश पर्वत का दर्शन किया। पीएम मोदी के आदि कैलाश दर्शन से इस पूरे इलाके में पर्यटन बढ़ने की उम्मीद है। भगवान शिव का घर माने जाने वाले कैलाश पर्वत के दर्शन अब भारत से ही हो सकेंगे। इसके लिए अब चीन के कब्जे वाले तिब्बत जाने की जरूरत नहीं होगी। उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले की 18 हजार फीट ऊंची लिपुलेख पहाड़ियों से कैलाश पर्वत साफ दिखाई देता है। यहां से पर्वत की हवाई दूरी करीब 50 किलोमीटर है।

पीएम मोदी के आदि कैलाश दर्शन से इलाके में पर्यटन बढेगा
लिपुलेख की जिस पहाड़ी से पर्वत दिखता है, वह नाभीढांग के ठीक 2 किलोमीटर ऊपर है। यहां से 4-5 दिन की यात्रा करके कैलाश पर्वत के दर्शन किए जा सकते हैं। श्रद्धालुओं को सड़क मार्ग से धारचूला और बूढ़ी के रास्ते नाभीढांग तक पहुंचना होगा। इसके बाद दो किलोमीटर की चढ़ाई को पैदल तय करना होगा। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि पीएम मोदी के आदि कैलाश के दर्शन करने से कुमाऊं मंडल में टूरिज्म जरूर बढ़ेगा।

कैलाश व्यू प्वाइंट और पर्यटन सुविधाओं का किया जा रहा विकास
इस नए दर्शन मार्ग को स्थानीय ग्रामीणों ने तलाशा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जब इसकी जानकारी दी गई तो उन्होंने विशेष रुचि लेकर कैलाश व्यू प्वाइंट बनाने और इलाके में पर्यटन से जुड़ी जरूरी सुविधाएं विकसित करने का निर्देश दिया। इसके बाद अफसरों और विशेषज्ञों की टीम ने रोड मैप, लोगों के ठहरने की व्यवस्था, दर्शन के प्वाइंट तक जाने का रूट सहित अन्य व्यवस्थाओं के लिए सर्वे किया और इसे पर्यटन के अनुकूल विकसित करने की योजना बनाई। उत्तराखंड सरकार इस पूरे इलाके का विकास करने का काम कर रही है। धारचूला से 70 किमी दूर और 14000 फीट ऊपर बसा छोटा सा वीरान गांव गुंजी अगले दो साल में बड़े धर्म नगर शिव धाम के रूप में विकसित हो जाएगा। कैलाश व्यू प्वाइंट, ओम पर्वत और आदि कैलाश के दर्शन के लिए आने वाले श्रद्धालुओं का धारचूला के बाद यही सबसे बड़ा और अहम पड़ाव होगा। यहां बड़े यात्री निवास, होटल बनेंगे। भारतीय टेलीकॉम कंपनियों का नेटवर्क भी मिलेगा। गांव में होम स्टे बढ़ाए जाएंगे।

2 किलोमीटर की चढ़ाई के लिए रास्ता बनाना पड़ेगा
पर्यटन विभाग का कहना है कि ओल्ड लिपुलेख पहुंचने के लिए 2 किलोमीटर की चढ़ाई चढ़नी पड़ती है, जो आसान नहीं है। यहां तक पहुंचने के लिए भी रास्ता बनाया जा सकता है। स्नो स्कूटर की मदद से भी श्रद्धालुओं को दर्शन के लिए पहाड़ी की चोटी तक पहुंचाया जा सकता है। पिथौरागढ़ के ही ज्योलिंगकांग से 25 किलोमीटर ऊपर लिंपियाधूरा चोटी से भी कैलाश पर्वत के दर्शन हो सकते हैं। लिंपियाधूरा चोटी के पास ओम पर्वत, आदि कैलाश और पार्वती सरोवर हैं। यहां से कैलाश पर्वत के दर्शन होने से इस क्षेत्र में धार्मिक पर्यटन का स्कोप बढ़ेगा।

पिथौरागढ़ जिले की व्यास घाटी फिर होने जा रही है गुलजार
मोदी सरकार ने पिछले नौ साल के कार्यकाल में ऐसे कई तीर्थक्षेत्रों का विकास किया है जिससे न केवल देश में पर्यटन को नई ताकत मिली है बल्कि सनातन संस्कृति के उत्थान से अर्थव्यवस्था को भी गति मिल रही है। अब उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले की व्यास घाटी के फिर गुलजार होने की बारी है। इस दुर्गम स्थल पर मोदी सरकार ने युद्धस्तर पर काम शुरू कराया हुआ है। बॉर्डर रोड ऑर्गनाइजेशन (बीआरओ) ने धारचूला से 70 किमी दूर गुंजी और गुंजी से नाभीढांग तक का 19 किमी लंबा रास्ता पहाड़ों को काटकर बना दिया है। नाभीढांग से 7 किमी दूर ओल्ड लिपुलेख पास तक भी कच्ची सड़क बिछ गई है। ओल्ड लिपुलेख से 1800 फीट ऊपर कैलाश व्यू पॉइंट तक 10 से 12 फीट चौड़ा रास्ता भी 70% बन गया है। इस सुरम्य और दुर्गम स्थल पर अगले साल बाद पर्यटक कार से सीधे पहुंच सकेंगे। पूरे रास्ते पर पत्थर बिछा दिए गए हैं। बीआरओ की देखरेख धारचूला से नाभीढांग तक का रास्ता बन रहा है। इसके शुरू होने के बाद चीन बॉर्डर तक भारतीयों की सीधी पहुंच होगी।

अदम्य जज्बे से दुर्गम स्थल पर भी जनता के लिए बनाए जा रहे राहत के रास्ते
यह पीएम मोदी सरकार का ही अदम्य जज्बा है कि ऐसे दुर्गम स्थल पर भी जनता-जनार्दन के लिए राहत के रास्ते बनाए जा रहे हैं। धारचूला से पिथौरागढ़ मुख्यालय से 92 किमी दूर है। यहां से गुंजी गांव तक का रास्ता बेहद कठिन है। गुंजी से आगे 14372 फीट ऊपर नाभीढांग और 15000 फीट ऊपर जौलीकॉन्ग तक 27 किमी का रास्ता उससे भी जटिल है। इन्हीं हालातों के चलते दोनों स्थलों के बेहद सुरम्य और अलौकिक होने के बाजवूद यहां सालभर में चार-पांच सौ पर्यटक ही पहुंच पाते हैं। इस बार अब तक 290 लोग आए हैं। धारचूला के बाद से रास्तेभर में आईटीबीपी, एसएसबी और सेना के जवानों की तैनाती है। नाभीढांग से ओल्ड लिपुलेख पास से कैलाश व्यू पॉइंट मात्र 6.5 किमी दूर है।

नाभीढांग में पवित्र ओम पर्वत जौलीकॉन्ग में आदि कैलाश के होंगे सुगम दर्शन
नाभीढांग में पवित्र ओम पर्वत, नाग पर्वत के दर्शन पर्यटक करते हैं। जौलीकॉन्ग गुंजी से 19 किमी दूर है। यहां पवित्र आदि कैलाश पर्वत और पार्वती कुंड है। नाभीढांग में पवित्र ओम पर्वत है, जबकि जौलीकॉन्ग में आदि कैलाश पर्वत। पिथौरागढ़ जिला प्रशासन यहां के निर्माण कार्यों की निगरानी की नोडल एजेंसी है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक यहां की कलेक्टर का दावा है कि जुलाई 2024 के बाद दोनों रास्ते लगभग पक्के मिलेंगे। फिलहाल नाभीढांग में कुमाऊं मंडल विकास निगम (केएमवीएन) के हट्स हैं, इनकी बुकिंग धारचूला या पिथौरागढ़ से रही है। तीर्थयात्रियों के बढ़ने के चलते कुछ नए हट्स बढ़ाए जा रहे हैं।

कैलाश मानसरोवर यात्रा में अभी लगते हैं 14 से 21 दिन
कैलाश मानसरोवर यात्रा साल 2019 में हुई थी। उसके बाद पहले कोरोना के कारण, फिर भारी बर्फबारी की वजह से यात्रा रोक दी गई। कैलाश यात्रा 3 अलग-अलग राजमार्ग से होती है। पहला- लिपुलेख दर्रा (उत्तराखंड), दूसरा- नाथू दर्रा (सिक्किम) और तीसरा- काठमांडू। इन तीनों रास्तों पर कम से कम 14 और अधिकतम 21 दिन का समय लगता है। 2019 में 31 हजार भारतीय यात्रा पर गए थे। चीन के साथ युद्ध से पहले तिब्बत में स्थित कैलाश मानसरोवर पर भारत का ही अधिकार था। 1962 में जब भारत और चीन के बीच युद्ध हुआ तो चीन ने तिब्बत पर कब्जा करने के साथ ही कैलाश मानसरोवर पर कब्जा कर लिया। अब यहां पहुंचने के लिए चीनी पर्यटक वीजा प्राप्त करना होता है। इसके चलते अब कैलाश जाना आसान नहीं रहा। ITBP के जवान और चीनी सैनिकों के पचासों तरह की चेकिंग के बाद मानसरोवर पहुंचा जाता है।

कैलाश पर्वत की परिक्रमा 52 किलोमीटर
कैलाश पर्वत श्रेणी कश्मीर से भूटान तक फैली हुई है। इसमें ल्हा चू और झोंग चू के बीच यह पर्वत स्थित है। यहां दो जुड़े हुए शिखर हैं। इसमें से उत्तरी शिखर को कैलाश के नाम से जाना जाता है। इस शिखर का आकार एक विशाल शिवलिंग जैसा है। हिंदू धर्म में इसकी परिक्रमा का बड़ा महत्व है। परिक्रमा 52 किमी की होती है। तिब्बत के लोगों का मानना ​​है कि उन्हें इस पर्वत की 3 या फिर 13 परिक्रमा करनी चाहिए। वहीं, तिब्बत के कई तीर्थ यात्री तो दंडवत प्रणाम करते हुए इसकी परिक्रमा पूरी करते हैं। उनका मानना ​​है कि एक परिक्रमा से एक जन्म के पाप दूर हो जाते हैं, जबकि दस परिक्रमा से कई अवतारों के पाप मिट जाते हैं। जो 108 परिक्रमा पूरी कर लेता है उसे जन्म और मृत्यु से मुक्ति मिल जाती है।

मोदी सरकार ने कैलाश पर्वत श्रृंखला के बड़े हिस्से को कब्जे में लिया
29-30 अगस्त 2020 की रात को पैंगोंग-त्सो झील के दक्षिण में भारतीय सेना की प्रीम्टिव-कार्रवाई से भारत को चीन पर सामरिक-बढ़त तो मिली ही साथ ही पहली बार ’62 के युद्ध के बाद भारत को कैलाश पर्वत-श्रृंखला को भी अपने अधिकार-क्षेत्र में करने का बड़ा मौका मिला। भारत के सबसे बड़े और पवित्र तीर्थ-स्थल में से एक कैलाश मानसरोवर की कैलाश-रेंज। 29-30 अगस्त की रात को भारतीय सेना ने पैंगोंग-त्सो झील के दक्षिण में करीब 60-70 किलोमीटर तक का पूरा क्षेत्र अपने अधिकार में कर लिया। चुशुल सेक्टर के अंतर्गत आने वाले इस क्षेत्र की गुरंग हिल, मगर हिल, मुखपरी और रेचिन-ला दर्रा सभी कैलाश रेंज का हिस्सा है। 1962 के युद्ध से पहले ये पूरा इलाका भारत के अधिकार-क्षेत्र में था। लेकिन ’62 के युद्ध में रेजांगला और चुशुल की लड़ाई के बाद दोनों देश की सेनाएं इसके पीछे चली गई थीं और इस इलाके को पूरी तरह खाली कर दिया गया था।

पीएम मोदी के विजन से निखर रहा है प्राचीन भारत का गौरवशाली वैभव
पीएम मोदी के विजन पर चलते हुए सरकार तीर्थयात्रा पर्यटन के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर में सुधार पर जोर दे रही है। सालों से ऐसे स्थल बुनियादी सुविधाओं की कमी का सामना कर रहे थे। अब पीएम मोदी के नेतृत्व में सरकार इन स्थलों का पुरोद्धार कर रही है। लोग यहां धार्मिक भावनाओं की वजह से जाते रहे हैं। अब जब सुविधाओं का विस्तार किया जा रहा है तो यहां पर्यटन बढ़ने के साथ-साथ रोजगार के अवसर भी बढ़ रहे हैं। पीएम मोदी न सिर्फ भारत में बल्कि दुनिया के दूसरे देशों में भी मंदिरों को भव्य बनाने पर जोर दे रहे हैं। पिछले कुछ सालों में तीर्थ क्षेत्रों में विस्तार और सुविधाओं में बढ़ोतरी से भक्तों की संख्या यहां इतनी अधिक हो गई है कि अब पर्यटन से इतर हिंदू तीर्थ क्षेत्र देश की अर्थव्यवस्था में एक अलग आर्थिक क्षेत्र भी बनता दिख रहा है। यह सब पीएम मोदी के विजन से संभव हो पाया है। भारत की यह अनोखी अर्थव्यवस्था सैकड़ों सालों से चली आ रही है और अब 2014 के बाद पीएम मोदी भारत को प्राचीन वैभव दिला रहे हैं।

पीएम मोदी ने जी-20 में सनातन मंत्र से विश्व कल्याण का मार्ग दिखाया
आजादी के बाद पहली बार देश में जी-20 शिखर सम्मेलन जैसा बड़ा आयोजन हुआ। इस महासम्मेलन में चारों तरफ सनातन संस्कृति की छाया रही, जिसे देखकर हर भारतवासी का दिल गौरव से भर उठा। यह सब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कुशल नेतृत्व में संभव हुआ। पीएम मोदी ने जी-20 जैसे बड़े आयोजन में सनातन संस्कृति का झंडा बुलंद करके भारत माता का मान बढ़ाया। जी-20 में भारत की प्राचीनता और आधुनिकता का अद्भुत संगम दुनिया ने देखा। भारत के सांस्कृतिक दूत और सनातन के सच्चे सेवक पीएम मोदी के विजन से जी-20 आयोजन स्थल सनातन संस्कृति से रचा-बसा नजर आया। नटराज की प्रतिमा, कोणार्क चक्र, रामायण, महाभारत, विष्णु अवतार के दर्शन, गीता ऐप के जरिये जीवन दर्शन आदि सनातन प्रतीक देखकर विदेशी मेहमान भी मोहित हुए बिना नहीं रह सके। 

पीएम मोदी ने कोणार्क चक्र के सामने किया विश्व वर्ल्ड लीडर्स का स्वागत
देश की राजधानी दिल्‍ली में 9 सितंबर 2023 को जी-20 शिखर सम्‍मेलन का आगाज हुआ। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रगति मैदान के भारत मंडपम में सभी जी-20 नेताओं और प्रतिनिधियों का जिस स्‍थान पर हाथ मिलाकर स्‍वागत किया, वहां पीछे एक बड़ा-सा चक्र बना हुआ था। ये बेहद खास चक्र है, जिसका नाम ‘कोणार्क चक्र’ है। ओडिशा के कोणार्क चक्र को 13वीं शताब्दी के दौरान राजा नरसिम्हादेव-प्रथम के शासनकाल में बनाया गया था। कोणार्क चक्र वही चक्र है, जो भारत के राष्‍ट्रीय ध्‍वज में नजर आता है। 24 तीलियों वाले कोणार्क चक्र को भारत के राष्ट्रीय ध्वज में रूपांतरित किया गया, जो भारत के प्राचीन ज्ञान, उन्नत सभ्यता और वास्तुशिल्प उत्कृष्टता का प्रतीक है। समय हमेशा एक सा नहीं रहता, ये बदलता रहता है। कोणार्क चक्र इस समय का ही प्रतीक है, जो कालचक्र के साथ-साथ प्रगति और परिवर्तन को दर्शाता है।

भारत ने ढाई हजार साल पहले मानव कल्याण का संदेश दिया था: मोदी
दिल्ली के भारत मंडपम में जी-20 शिखर सम्मेलन के पहले सत्र को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब अपनी बात शुरू की वह भी सनातन संस्कृति का जयघोष ही था। पीएम मोदी ने कहा कि ढाई हजार साल पहले भारत की धरती ने मानवता के कल्याण का संदेश पूरी दुनिया को दिया था। 21वीं सदी का यह समय पूरी दुनिया को नई दिशा देने वाला है। पीएम मोदी ने भारतीय संस्कृति पर कहा- इस समय जिस स्थान पर हम एकत्रित हैं, यहां से कुछ ही किलोमीटर के फासले पर लगभग ढाई हजार साल पुराना एक स्तंभ लगा हुआ है। इस स्तंभ पर प्राकृत भाषा में लिखा है- “हेवम लोकसा हितमुखे ति, अथ इयम नातिसु हेवम”। अर्थात, मानवता का कल्याण और सुख सदैव सुनिश्चित किया जाए। ढाई हजार साल पहले, भारत की भूमि ने, यह संदेश पूरे विश्व को दिया था। आइए, इस सन्देश को याद कर, इस G-20 समिट का हम आरम्भ करें।

विदेशी मेहमान सनातन संस्कृति के दर्शन कर हुए मोहित 
दिल्ली में जी-20 शिखर सम्मेलन इस बार सनातन संस्कृति की छाया में हो रहा है। आजादी के बाद पहली बार देश में इतना बड़ा आयोजन हो रहा है। इसी भाव को दृष्टिगत रखते हुए शिखर सम्मेलन स्थल पर भगवान शिव की 28 फीट ऊंची ‘नटराज‘ प्रतिमा को प्रतीक रूप में स्थापित किया गया है। इस प्रतिमा में शिव के तीन प्रतीक-रूप परिलक्षित हैं। ये उनकी सृजन यानी कल्याण और संहार अर्थात विनाश की ब्रह्मांडीय शक्ति का प्रतीक हैं। अष्टधातु की यह प्रतिमा प्रगति मैदान में ‘भारत मंडपम्’ के द्वार पर लगाई गई है। इस प्रतिमा की आत्मा में सार्वभौमिक स्तर पर सर्व-कल्याण का संदेश अंतर्निहित है। इसे देखकर विदेशी मेहमान भी मोहित हो गए। 

मेहमान कर रहे रामायण, महाभारत, विष्णु अवतार के दर्शन
जी-20 सम्मेलन में शामिल होने के लिए आए मेहमानों के स्वागत के लिए समूचे नयी दिल्ली क्षेत्र को विशेष रूप से सजाया-संवारा गया है। दिल्ली की सड़कों पर हर तरफ वॉल पेंटिंग्स बनाई गई है, जहां से डेलीगेट्स के काफिलों को गुजरना है। ये कलाकृतियां भैरो मार्ग रेलवे ब्रिज के नीचे दीवारों पर बनाई गई है। इसमें रामायण, महाभारत और विष्णु अवतार के भव्य रूप को दर्शाया गया है। विभिन्न राज्यों के पारंपरिक नृत्य कला, चित्रकारी की झलक भी इसमें है।

जी-20 के लोगो में सनातन शब्द ‘वसुधैव कुटुंबकम्’
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इसी शाश्वत दर्शन से भारतीय संस्कृति के दो सनातन शब्द लेकर ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ के विचार को सम्मेलन शुरू होने के पूर्व प्रचारित करते हुए कहा कि ‘पूरी दुनिया एक परिवार है।’ यह ऐसा सर्वव्यापी और सर्वकालिक दृष्टिकोण है, जो हमें एक सार्वभौमिक परिवार के रूप में प्रगति करने के लिए प्रोत्साहित करता है। एक ऐसा परिवार जिसमें सीमा, भाषा और विचारधारा का कोई बंधन नहीं है।

विश्व कल्याण का मंत्र आज तक किसी राष्ट्र प्रमुख ने नहीं दिया
पीएम मोदी के दिए ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ का मंत्र जी-20 की भारत की अध्यक्षता के दौरान यह विचार मानव केंद्रित प्रगति के आह्वान के रूप में प्रकट हुआ है। हम एक धरती के रूप में मानव जीवन को बेहतर बनाने के लिए एक साथ आ रहे हैं। जिससे सब एक-दूसरे के सहयोगी बने रहें और समान एवं उज्ज्वल भविष्य के लिए एक साथ आगे बढ़ते रहें। विश्व कल्याण का यह विचार आज तक किसी अन्य देश के राष्ट्र प्रमुख ने नहीं दिया। क्योंकि ये देश असमानता के संदर्भ में ही अपने पूंजीवादी, बाजारवादी और उपभोक्तावादी एजेंडे को आगे बढ़ाते रहे हैं। पश्चिमी देशों द्वारा हथियारों का उत्पादन और फिर उनके खपाने का प्रबंध कई देशों की प्रत्यक्ष लड़ाई और देशों के भीतर ही धर्म और संस्कृति के अंतर्कलह देखने में आते रहे हैं। अतएव विश्वव्यापी भाईचारे के लिए वसुधैव कुटुंबकम् से उत्तम कोई दूसरा विचार हो ही नहीं सकता।

‘आस्क गीता’ ऐप से जीवन की शिक्षाओं एवं दर्शन को समझने का मौका
जी-20 सम्मेलन के दौरान भारत मंडपम में यूपीआई जैसे प्रौद्योगिकी मंचों को दर्शाने के साथ ‘गीता’ ऐप के जरिये जीवन को समझने का मौका भी मिलेगा। यहां पर विदेशी मेहमानों को पवित्र ग्रंथ गीता की शिक्षाओं एवं उसके दर्शन को समझने का मौका एक विशेष ऐप के जरिये मिलेगा। ‘आस्क गीता’ एक ऐसा माध्यम है जिसके माध्यम से विदेशी मेहमान इस पवित्र ग्रंथ में उल्लिखित शिक्षाओं के अनुरूप जीवन से जुड़े विविध पहलुओं को समझ सकेंगे।

देश-विदेश से आए मेहमान देखेंगे ऋग्वेद की सबसे पुरानी पांडुलिपि
G20 के कल्चर कॉरिडोर में ऋग्वेद की सबसे पुरानी पांडुलिपि रखने के लिए मंगवाई गई है, ताकि देश-विदेश से आए मेहमान इसे देख और समझ सकें। साल 2007 में यूनेस्को ने ऋग्वेद को वर्ल्ड रजिस्टर में शामिल किया था। ऋग्वेद को दुनिया की पहली पुस्तक और पहला धर्मग्रंथ माना जाता है। ऋग्‍वेद के बारे में कहा जाता है कि ये खुद ईश्‍वर ने ऋषियों को सुनाया था। इसमें कुल 1028 सूक्तियां हैं, जो वेद मंत्रों का समूह हैं। ज्यादातर सूक्तियां देवताओं की स्तुति से जुड़ी हैं। हालांकि कुछ में मानव जीवन के दूसरे पहलुओं पर भी बात की गई है। इसमें करीब 125 औषधियों का जिक्र है, जो शरीर और मन की स्थिति को बेहतर बनाए रखने में मददगार हैं। ऋग्वेद की सबसे पुरानी प्रति भोजपत्र पर लिखी हुई है, जिसे पुणे के भंडारकर ओरिएंटल रिसर्च इंस्टीट्यूट में रखा गया। इनमें से एक पांडुलिपि शारदा स्क्रिप्ट में लिखी हुई है, जबकि बाकी 29 मेनुस्क्रिप्ट देवनागरी में हैं।

प्रधानमंत्री मोदी-शी जिनपिंग मुलाकात के बाद महाबलीपुरम में उमड़ रही है पर्यटकों की भीड़
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मुलाकात के बाद तमिलनाडु के महाबलीपुरम में पर्यटकों की भीड़ उमड़ रही है। दोनों नेताओं के मुलाकात ने इस प्राचीन शहर को एक बार फिर से दुनिया भर में फेमस कर दिया। दुनिया भर के लोग यहां आकर महाबलीपुरम के सौंदर्य को निहार रहे हैं। पर्यटकों के आने से यहां के लोगों की कमाई में भी वृद्धि हुई है। स्थानीय लोग इससे काफी खुश है। प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति जिनपिंग ने 11-12 अक्तूबर ,2019 को हुई अपनी ऐतिहासिक अनौपचारिक वार्ता में हेरिटेज वॉक, सांस्कृतिक विविधता, संगीतमय शाम के बीच प्राचीन संबंधों को नई ऊर्जा देने की कोशिश की। दक्षिण भारत के परम्‍परागत पोशाक पहने प्रधानमंत्री मोदी ने खुद राष्ट्रपति को यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थलों की सैर कराई थी।

 

अतिथि देवो भव के मूल्‍यों के अनुरूप प्रधानमंत्री मोदी ने राष्‍ट्रपति जिनपिंग को अर्जुन तपस्‍या स्‍थल के ऐतिहासिक महत्‍व से अवगत कराया। उन्होंने चीनी राष्‍ट्रपति को स्‍मारकों में अंकित चि‍त्रों के अर्थ को भी समझाया। प्रधानमंत्री और चीनी राष्‍ट्रपति ने पांडवों के प्रसिद्ध पंच रथ के सामने तनावमुक्‍त वातावरण में बैठकर बातचीत की। प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति जिनपिंग ने पंच रथ परिसर का दौरा करते हुए ताजे नारियल का आनंद लिया। प्रधानमंत्री मोदी ने राष्ट्रपति जिनपिंग को स्मारकों की वास्तुकला और महत्व के बारे में विस्तार से बताया।

प्रधानमंत्री मोदी ने शी जिनपिंग को समुद्र तट पर स्थित प्रसिद्ध शोर मंदिर भी ले गये जो भगवान शिव और विष्‍णु को समर्पित है।

जिस गुफा में PM मोदी ने लगाया था ध्यान, उसकी बढ़ी मांग 

न्यू इंडिया के निर्माता और राष्ट्र नायक प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का व्यक्तित्व ऐसा है कि वो जहां भी अपने कदम उठाते हैं, दुनिया उसी तरफ चल पड़ती है। लोकसभा चुनाव के आखिरी चरण का प्रचार खत्म होने के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने केदारनाथ धाम में स्थित रुद्र गुफा में एकांतवास किया था। प्रधानमंत्री मोदी ने रुद्र गुफा में पूरा दिन गुजारा था और वहां ध्यान साधना की थी। उस दौरान नेशनल और इंटरनेशनल मीडिया में पीएम मोदी की ध्यान साधना की खबर को प्रमुखता से दिखाया गया था। देश को दुनिया को पहली बार पता चला था कि केदारनाथ में सभी सुविधाओं से लैस एक ऐसी गुफा भी बनाई गई है, जहां कोई भी एकांतवास कर सकता है। अब अगले सीजन के लिए जैसे ही गुफा की प्री बुकिंग खोली गई तो देश-दुनिया के लोग रुद्र गुफा में एकांतवास करने के लिए उमड़ पड़े हैं।

साधना में बैठे थे PM मोदी

प्रधानमंत्री मोदी 18 मई 2019 को केदारनाथ मंदिर में दर्शन करने के बाद एक गुफा में ध्यान लगाने गए थे। प्रधानमंत्री ने पूरी रात इस गुफा में गुजारी थी। इसी के बाद इस गुफा में जाने वाले लोगों की संख्या बढ़ गई है। आपके बता दें कि वर्ष 2018 में यह गुफा आम लोगों के लिए खोली गई थी। केदारनाथ में जिस रुद्र गुफा में कभी सन्नाटा पसरा रहता था, वह प्रधानमंत्री मोदी के ध्यान लगाने के बाद गुलजार हो गई है। इस गुफा का प्रबंधन गढ़वाल मंडल विकास निगम के जिम्मे है। रुद्र गुफा को रात्रि के लिए 1500 रुपये में और दिन में सुबह छह बजे से शाम छह बजे तक के लिए 999 रुपये में बुक कराया जा सकता है। चूंकि यह गुफा सुदूर क्षेत्र में है और ध्यान लगाने के लिए है इसलिए एक बार में केवल एक व्यक्ति को यहां जाने की अनुमति होती है। वैसे यह गुफा नितांत एकांत स्थान है, लेकिन उसमें एक फोन लगाया गया है जिसे आपात स्थिति में इस्तेमाल किया जा सकता है। इस गुफा में बिजली-पानी की व्यवस्था है और इसके भीतर बाथरूम और हीटर भी है। यहां पर्यटकों को सुबह की चाय, नाश्ता, लंच, शाम की चाय और डिनर परोसा जाता है।

 

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