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PTI Interview: भारत ने बदला सबका नजरिया, सबका साथ-सबका विकास विश्व कल्याण का मॉडल- प्रधानमंत्री मोदी

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जी-20 शिखर सम्मेलन से पहले कहा है कि भारत ने दुनिया का दृष्टिकोण बदल दिया है। सबका साथ- सबका विकास विश्व के कल्याण के लिए मॉडल हो सकता है। प्रधानमंत्री मोदी ने अपने लोक कल्याण मार्ग स्थित आवास पर समाचार एजेंसी पीटीआई के प्रधान संपादक विजय जोशी और वरिष्ठ संपादकों के साथ एक खास इंटरव्यू में कहा कि भारत की जी-20 की अध्यक्षता से कई सकारात्मक परिणाम सामने आ रहे हैं। उनमें से कुछ मेरे दिल के बहुत करीब हैं। उन्होंने कहा कि हालांकि यह सच है कि जी-20 अपनी संयुक्त आर्थिक ताकत के मामले में एक प्रभावशाली समूह है, पर दुनिया का जीडीपी-केंद्रित दृष्टिकोण अब मानव-केंद्रित में बदल रहा है और ठीक उसी तरह जैसे द्वितीय विश्व युद्ध के बाद एक नई विश्व व्यवस्था बनी, उसी तरह कोविड महामारी के बाद एक नई विश्व व्यवस्था आकार ले रही है। पीटीआई के साथ इस विशेष इंटरव्यू में प्रधानमंत्री मोदी में तमाम विषयों पर बात की। इस दौरान उन्होंने 2047 तक भारत के तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने से लेकर कश्मीर और अरुणाचल प्रदेश में जी20 बैठक आयोजित करने पर चीन की आपत्ति जैसे कई विषयों पर अपनी बात रखी।

पढ़िए पूरा इंटरव्यू-

पीटीआई: जी-20 की अध्यक्षता ने भारत को एक स्थायी, समावेशी और न्यायसंगत दुनिया के लिए अपने दृष्टिकोण को बढ़ावा देने और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में एक नेता के रूप में अपना प्रोफ़ाइल बढ़ाने का अवसर दिया है। शिखर सम्मेलन में अब कुछ ही दिन बचे हैं, कृपया भारत की अध्यक्षता की उपलब्धियों के बारे में अपने विचार साझा करें?
प्रधानमंत्री मोदी: इस प्रश्न का उत्तर देने के लिए, हमें दो पहलुओं पर ध्यान देने की आवश्यकता है। पहला जी-20 के गठन पर है। दूसरा वह संदर्भ है जिसमें भारत को जी-20 की अध्यक्षता मिली। जी-20 की उत्पत्ति पिछली शताब्दी के अंत में हुई थी। दुनिया की प्रमुख अर्थव्यवस्थाएं आर्थिक संकटों के लिए एक सामूहिक और समन्वित प्रतिक्रिया की दृष्टि को लेकर एक साथ मिलीं। 21 वीं सदी के पहले दशक में वैश्विक आर्थिक संकट के दौरान इसका महत्व और भी बढ़ गया। लेकिन जब महामारी ने दस्तक दी, तो दुनिया ने समझा कि आर्थिक चुनौतियों के अलावा, मानवता को प्रभावित करने वाली अन्य महत्वपूर्ण और तात्कालिक चुनौतियां भी हैं।

इस समय तक, दुनिया पहले से ही भारत के मानव-केंद्रित विकास मॉडल पर ध्यान दे रही थी। चाहे वह आर्थिक विकास हो, तकनीकी प्रगति हो, संस्थागत वितरण हो या सामाजिक बुनियादी ढांचा हो, इन सभी को अंतिम छोर तक ले जाया जा रहा था ताकि यह सुनिश्चित हो कि कोई भी पीछे न छूटे। भारत द्वारा उठाए जा रहे इन बड़े कदमों के बारे में अधिक जागरूकता थी। यह स्वीकार किया गया कि जिस देश को सिर्फ एक बड़े बाजार के रूप में देखा जाता था, वह वैश्विक चुनौतियों के समाधान का एक हिस्सा बन गया है।

भारत के अनुभव को देखते हुए, यह माना गया कि संकट के दौरान भी मानव-केंद्रित दृष्टिकोण काम करता है। एक स्पष्ट और समन्वित दृष्टिकोण के माध्यम से महामारी के प्रति भारत की प्रतिक्रिया, प्रौद्योगिकी का उपयोग करके सबसे कमजोर लोगों को प्रत्यक्ष सहायता, टीकों का विकास और दुनिया का सबसे बड़ा टीका अभियान चलाना और लगभग 150 देशों के साथ दवाओं और टीकों को साझा करना। इन सभी को दुनिया ने महसूस किया और अच्छी तरह से इसकी सराहना भी की गई।

जब भारत जी-20 का अध्यक्ष बना, तब दुनिया के लिए हमारे शब्दों और दृष्टिकोण को केवल विचारों के रूप में नहीं लिया जा रहा था, बल्कि भविष्य के लिए एक ‘रोडमैप’ के रूप में लिया जा रहा था।

जी-20 की अध्यक्षता पूरी करने से पहले एक लाख से अधिक प्रतिनिधि भारत का दौरा कर चुके होंगे। वे विभिन्न क्षेत्रों में जा रहे हैं, हमारी जनसांख्यिकी, लोकतंत्र और विविधता देख रहे हैं। वे यह भी देख रहे हैं कि पिछले एक दशक में चौतरफा विकास किस तरह लोगों को सशक्त बना रहा है। यह समझ बढ़ रही है कि दुनिया को जिन समाधानों की आवश्यकता है, उनमें से कई पहले से ही हमारे देश में गति और पैमाने के साथ सफलतापूर्वक लागू किए जा रहे हैं।

भारत की जी-20 अध्यक्षता से कई सकारात्मक प्रभाव सामने आ रहे हैं। उनमें से कुछ मेरे दिल के बहुत करीब हैं।

मानव-केंद्रित दृष्टिकोण की ओर बदलाव विश्व स्तर पर शुरू हो गया है और हम एक उत्प्रेरक की भूमिका निभा रहे हैं।

वैश्विक मामलों में ‘ग्लोबल साउथ’, विशेष रूप से अफ्रीका के लिए अधिक समावेश की दिशा में प्रयास ने गति प्राप्त की है।

भारत की जी-20 अध्यक्षता ने तथाकथित ‘तीसरी दुनिया’ के देशों में भी विश्वास के बीज बोए हैं। वे जलवायु परिवर्तन और वैश्विक संस्थागत सुधारों जैसे कई मुद्दों पर आने वाले वर्षों में दुनिया की दिशा को आकार देने के लिए अधिक आत्मविश्वास हासिल कर रहे हैं। हम एक अधिक प्रतिनिधित्व और समावेशी व्यवस्था की ओर तेजी से बढ़ेंगे जहां हर आवाज सुनी जाएगी।

इसके अलावा, यह सब विकसित देशों के सहयोग से होगा, क्योंकि आज वे पहले से कहीं अधिक ‘ग्लोबल साउथ’ की क्षमता को स्वीकार कर रहे हैं और वैश्विक भलाई के लिए एक शक्ति के रूप में इन देशों की आकांक्षाओं को पहचान रहे हैं।

फाइल फोटो

प्रश्न: जी-20 दुनिया के सबसे प्रभावशाली समूह के रूप में उभरा है, जिसमें वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का 85 प्रतिशत हिस्सा है। अब जबकि आप ब्राजील को इसकी अध्यक्षता सौंपने वाले हैं तो जी-20 के सामने सबसे बड़ी चुनौती के रूप में क्या देखते हैं? आप राष्ट्रपति लूला (लुइज इनासियो लूला डी सिल्वा) को क्या सलाह देंगे?
उत्तर: यह निश्चित रूप से सच है कि जी 20 एक प्रभावशाली समूह है। तथापि, मैं आपके प्रश्न के उस भाग का समाधान करना चाहता हूं जो विश्व के 85 प्रतिशत सकल घरेलू उत्पाद का उल्लेख करता है। जैसा कि मैंने पहले ही कहा है, दुनिया का जीडीपी-केंद्रित दृष्टिकोण अब मानव-केंद्रित दृष्टिकोण में बदल रहा है। जैसे द्वितीय विश्व युद्ध के बाद एक नई विश्व व्यवस्था देखी गई थी, कोविड के बाद एक नई विश्व व्यवस्था आकार ले रही है। प्रभाव और असर के मापदंड बदल रहे हैं और इसे पहचानने की आवश्यकता है।

‘सबका साथ -सबका विकास’ मॉडल जिसने भारत में रास्ता दिखाया है, वह विश्व के कल्याण के लिए भी मार्गदर्शक सिद्धांत हो सकता है। जीडीपी का आकार कुछ भी हो, हर आवाज मायने रखती है।

इसके अलावा, मेरे लिए किसी भी देश को कोई सलाह देना सही नहीं होगा कि उनकी जी 20 अध्यक्षता के दौरान क्या करना है। हर किसी की अपनी अनूठी ताकत होती है और वह उसी के अनुरूप आगे बढ़ता है।

मुझे अपने मित्र राष्ट्रपति लूला के साथ बातचीत करने का सौभाग्य मिला है और मैं उनकी क्षमताओं और दृष्टिकोण का सम्मान करता हूं। मैं उन्हें और ब्राजील के लोगों को जी-20 की अध्यक्षता के दौरान उनकी सभी पहलों में बड़ी सफलता की कामना करता हूं।

हम अभी भी अगले वर्ष ‘ट्रोइका’ (जी-20 के भीतर एक शीर्ष समूह) का हिस्सा होंगे जो हमारी अध्यक्षता से परे जी-20 में हमारे निरंतर रचनात्मक योगदान को सुनिश्चित करेगा।

मैं इस अवसर का लाभ उठाकर जी-20 की अध्यक्षता में अपने पूर्ववर्ती इंडोनेशिया और राष्ट्रपति (जोको) विडोडो से प्राप्त समर्थन को स्वीकार करता हूं। हम उसी भावना को अपने उत्तराधिकारी ब्राजील की अध्यक्षता में आगे बढ़ाएंगे।

प्रश्न: भारत ने अफ्रीका संघ को जी-20 का स्थायी सदस्य बनाने का प्रस्ताव दिया है। यह ‘ग्लोबल साउथ’ को एक आवाज देने में कैसे मदद करेगा। यह आवाज अंतरराष्ट्रीय मंचों पर सुनी जानी क्यों महत्वपूर्ण है?
उत्तर: इससे पहले कि मैं आपके प्रश्न का उत्तर दूं, मैं आपका ध्यान हमारे जी-20 की अध्यक्षता के विषय – ‘वसुधैव कुटुम्बकम- एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य’ की ओर दिलाना चाहता हूं। यह सिर्फ एक नारा नहीं है बल्कि एक व्यापक दर्शन है जो हमारे सांस्कृतिक लोकाचार से लिया गया है। यह भारत के भीतर और दुनिया के प्रति हमारे दृष्टिकोण का मार्गदर्शन करता है।

भारत में हमारे ‘ट्रैक रिकॉर्ड’ (पुराने प्रदर्शन) को देखें। हमने उन जिलों की पहचान की जिन्हें पहले ‘पिछड़ा’ और उपेक्षित करार दिया गया था। हम एक नया दृष्टिकोण लाये और वहां के लोगों की आकांक्षाओं को सशक्त बनाया। आकांक्षी जिला कार्यक्रम शुरू किया गया। इनमें से कई जिलों में महत्वपूर्ण प्रगति के साथ इसके अद्भुत परिणाम सामने आ रहे हैं।

हमने बिना बिजली वाले गांवों और घरों की पहचान की और उनका विद्युतीकरण किया। हमने ऐसे घरों की पहचान की जहां पीने का पानी उपलब्ध नहीं था और नल के पानी के 10 करोड़ कनेक्शन उपलब्ध कराए गए। इसी तरह, हम उन लोगों तक पहुंचे जिनके पास शौचालय और बैंक खाते जैसी सुविधाएं नहीं थीं। उन्हें सक्षम और सशक्त किया गया।

यह वह दृष्टिकोण है जो वैश्विक स्तर पर भी हमारा मार्गदर्शन करता है। हम उन लोगों को जोड़ने के लिए काम करते हैं जिन्हें लगता है कि उनकी आवाज नहीं सुनी जा रही है।

स्वास्थ्य का उदाहरण लें। हम ‘एक पृथ्वी, एक स्वास्थ्य’ के दृष्टिकोण में विश्वास करते हैं। यह खुद को अलग-अलग तरीकों से प्रकट कर रहा है।

भारत की योग और आयुर्वेद की प्राचीन प्रणालियां दुनिया को स्वास्थ्य और कल्याण की दिशा में ध्यान केंद्रित करने में एक महत्वपूर्ण बदलाव लाने में मदद कर रही हैं।

कोविड-19 के दौरान हम केवल अपने लिए नहीं बल्कि सभी के लिए सोच रहे थे। हमारी बाधाओं के बावजूद, हमने दुनिया के लगभग 150 देशों को दवाओं और टीकों के साथ सहायता प्रदान की। इनमें से कई देश ‘ग्लोबल साउथ’ से थे।

विगत दशकों में जलवायु संबंधी कई बैठकें हुई हैं। ये चर्चाएं, सर्वोत्तम इरादों के बावजूद, इस बात के इर्द-गिर्द घूमती रहीं कि किसे दोषी ठहराया जाए। लेकिन हमने ‘कर सकते हैं’ की भावना के साथ एक सकारात्मक और स्वीकारोक्ति वाला दृष्टिकोण अपनाया। हमने अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन की स्थापना की और ‘वन वर्ल्ड, वन सन, वन ग्रिड’ के दृष्टिकोण के तहत देशों को एक साथ लाने की पहल की।

इसी तरह, हमने ‘कोएलिशन फॉर डिजास्टर रिज़िल्यन्स’ शुरू किया ताकि दुनिया भर के देश, विशेष रूप से विकासशील देश, एक-दूसरे से सीखें और बुनियादी ढांचे का निर्माण करें जो आपदाओं के दौरान भी लचीला हो।

हमने हिंद-प्रशांत द्वीप समूह सहयोग मंच सहित दुनिया के छोटे द्वीप राष्ट्रों के साथ भी काम किया है ताकि उनके हितों को आगे बढ़ाया जा सके।

जब हम कहते हैं कि हम दुनिया को एक परिवार के रूप में देखते हैं, तो हम वास्तव में इसका अनुसरण भी करते हैं। हर देश की आवाज मायने रखती है, चाहे उसका आकार, उसकी अर्थव्यवस्था या क्षेत्र कुछ भी हो।

इसमें हम महात्मा गांधी, डॉ। मार्टिन लूथर किंग जूनियर, नेल्सन मंडेला और क्वामे नक्रुमा (घाना के दिवंगत प्रख्यात नेता) की मानवीय दृष्टि और आदर्शों से भी प्रेरित हैं।

अफ्रीका के प्रति हमारा लगाव स्वाभाविक है। अफ्रीका के साथ हमारे सदियों पुराने सांस्कृतिक और वाणिज्यिक संबंध रहे हैं। उपनिवेशवाद के खिलाफ आंदोलनों का हमारा साझा इतिहास रहा है। एक युवा और आकांक्षी राष्ट्र के रूप में, हम अफ्रीका के लोगों और उनकी आकांक्षाओं से भी खुद को जोड़ते हैं। पिछले कुछ सालों में यह रिश्ता और भी मजबूत हुआ है।

प्रधानमंत्री बनने के बाद मैंने जो शुरुआती शिखर सम्मेलन आयोजित किए, उनमें से एक 2015 में भारत-अफ्रीका मंच शिखर सम्मेलन था। अफ्रीका के 50 से अधिक देशों ने भाग लिया और इसने हमारी साझेदारी को बहुत मजबूत किया।

बाद में, 2017 में, पहली बार, अफ्रीकी विकास बैंक का एक शिखर सम्मेलन अफ्रीका के बाहर, अहमदाबाद में आयोजित किया गया था।

जी-20 में भी अफ्रीका हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता है। जी-20 की अध्यक्षता के दौरान हमने जो पहली चीजें कीं, उनमें से एक ‘वॉयस ऑफ द ग्लोबल साउथ समिट’ का आयोजन करना था, जिसमें अफ्रीका की उत्साहपूर्ण भागीदारी थी।

हम मानते हैं कि ग्रह के भविष्य के लिए कोई भी योजना सभी आवाजों के प्रतिनिधित्व और मान्यता के बिना सफल नहीं हो सकती है। विशुद्ध रूप से उपयोगितावादी विश्व दृष्टि से बाहर आने और ‘सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय’ मॉडल को अपनाने की आवश्यकता है।

सवाल: आपने कुछ साल पहले सौर गठबंधन शुरू किया था। अब आप जैव-ईंधन गठबंधन का प्रस्ताव कर रहे हैं, जिसका हमें विश्वास है कि आप जी-20 में अनावरण करेंगे। इसका उद्देश्य क्या है और यह ऊर्जा सुरक्षा पर भारत जैसे आयात पर निर्भर देशों की मदद कैसे करेगा?
जवाब: 20वीं सदी और 21वीं सदी की दुनिया में बड़ा अंतर है। दुनिया अधिक परस्पर जुड़ी हुई और एक-दूसरे पर आश्रित है, और यह सही भी है। लेकिन हमें यह समझना चाहिए कि एक-दूसरे से जुड़े और एक-दूसरे पर आश्रित दुनिया में, दुनिया भर के देशों की क्षमता और क्षमताएं जितनी अधिक होंगी, वैश्विक लचीलापन उतना ही अधिक होगा। जब एक श्रृंखला में कड़ी कमजोर होती है, तो प्रत्येक संकट पूरी श्रृंखला को और कमजोर कर देता है। लेकिन जब कड़ी मजबूत होती हैं, तो वैश्विक श्रृंखला एक-दूसरे की ताकत का उपयोग करके किसी भी संकट को संभाल सकती है।

एक तरह से यह विचार महात्मा गांधी के आत्मनिर्भरता के दृष्टिकोण में भी देखा जा सकता है, जो वैश्विक स्तर पर भी प्रासंगिक बना हुआ है। इसके अलावा, हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए हमारे ग्रह की सुरक्षा और संरक्षण एक साझा जिम्मेदारी है जिसे सर्वोच्च प्राथमिकता दी जानी चाहिए।

हम भारत के भीतर जलवायु केंद्रित पहलों में बड़ी प्रगति कर रहे हैं। भारत ने कुछ ही वर्षों में अपनी सौर ऊर्जा क्षमता को 20 गुना बढ़ा दिया है। पवन ऊर्जा के मामले में भारत दुनिया के शीर्ष चार देशों में शामिल है। इलेक्ट्रिक वाहन क्रांति में, भारत नवाचार और चीजों को अपनाने, दोनों में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।

हम शायद जी-20 देशों में से पहले हैं जिन्होंने निर्धारित तिथि से नौ साल पहले अपने जलवायु लक्ष्यों को प्राप्त किया है। ‘सिंगल यूज प्लास्टिक’ (एकल उपयोग वाले प्लास्टिक) के खिलाफ हमारी कार्रवाई को दुनिया भर में मान्यता मिली है।

हमने आरोग्य और स्वच्छता के क्षेत्रों में भी काफी प्रगति की है। स्वाभाविक रूप से, हम वैश्विक प्रयासों में सिर्फ शामिल नहीं हैं बल्कि कई ऐसे पहल हैं जिनमें हम अग्रणी भूमिका निभा रहे हैं।

अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन और आपदा प्रतिरोधी बुनियादी ढांचे के लिए गठबंधन जैसी पहल देशों को ग्रह के लिए एक साथ ला रही हैं। अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन को 100 से अधिक देशों के शामिल होने से एक शानदार प्रतिक्रिया मिली है! हमारी मिशन ‘लाइफ’ (पर्यावरण के अनुकूल जीवनशैली) पहल पर्यावरण के लिए जीवन शैली पर केंद्रित है। आज, प्रत्येक समाज में हमारे पास ऐसे लोग हैं जो स्वास्थ्य के प्रति जागरूक हैं। वे क्या खरीदते हैं, वे क्या खाते हैं, वे क्या करते हैं – प्रत्येक निर्णय इस बात पर आधारित होता है कि यह उनके स्वास्थ्य की देखभाल कैसे करता है। उनकी पसंद न केवल इस बात से निर्देशित होती है कि यह आज उन्हें कैसे प्रभावित करेगा, बल्कि इस बात से निर्देशित होती है कि इसका दीर्घकालिक प्रभाव क्या होगा। इसी तरह, दुनिया भर के लोग ग्रह के प्रति जागरूक बनने के लिए एक साथ आ सकते हैं। प्रत्येक जीवन शैली का निर्णय इस आधार पर किया जा सकता है कि लंबी अवधि में ग्रह पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा।

अब, जैव ईंधन गठबंधन इस दिशा में एक और कदम है। इस तरह के गठबंधनों का उद्देश्य विकासशील देशों के लिए अपने ऊर्जा संक्रमण को आगे बढ़ाने के लिए विकल्प बनाना है। जैव ईंधन चक्रीय अर्थव्यवस्था के दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण हैं। बाजार, व्यापार, प्रौद्योगिकी और नीति – अंतरराष्ट्रीय सहयोग के सभी पहलू ऐसे अवसर पैदा करने में महत्वपूर्ण हैं।

इस तरह के विकल्प ऊर्जा सुरक्षा को बढ़ा सकते हैं, घरेलू उद्योग के लिए अवसर पैदा कर सकते हैं, और हरित रोजगार पैदा कर सकते हैं। एक ऐसा बदलाव सुनिश्चित करने में ये सभी महत्वपूर्ण तत्व हैं, जो किसी को पीछे नहीं छोड़ते हैं।

प्रश्न: भारत की अध्यक्षता के दौरान आपने जिस तरह से जी-20 को चर्चा का विषय बनाया और देश भर में उच्च-स्तरीय बैठकों के एक साल के कैलेंडर की योजना बनाई, उसकी आपके आलोचकों ने भी प्रशंसा की है। यह अभूतपूर्व था। आपने पूरे भारत में जी-20 बैठकों के प्रसार की इस अवधारणा की परिकल्पना कैसे की? इस रणनीति के पीछे तर्क क्या था?
उत्तर: हमने अतीत में ऐसे कई उदाहरण देखे हैं, जहां कुछ देशों ने, भले ही आकार में छोटे हों, ओलंपिक जैसे उच्च-स्तरीय वैश्विक आयोजन की जिम्मेदारी ली। इन विशाल आयोजनों का सकारात्मक और परिवर्तनकारी प्रभाव पड़ा। इसने विकास को प्रेरित किया और खुद के प्रति अपने दृष्टिकोण को बदल दिया और जिस तरह से दुनिया ने उनकी क्षमताओं को पहचानना शुरू किया, वास्तव में यह उनकी विकास यात्रा में एक महत्वपूर्ण मोड़ बन गया।

भारत में अपने विभिन्न राज्यों, केंद्र शासित प्रदेशों और शहरों में दुनिया का स्वागत करने, मेजबानी करने और जुड़ने की बहुत क्षमता है। दुर्भाग्य से अतीत में दिल्ली में विज्ञान भवन और उसके आसपास चीजों को ठीक करने का रवैया हुआ करता था। शायद इसलिए कि यह एक आसान तरीका था। या शायद इसलिए कि सत्ता में बैठे लोगों को देश के विभिन्न हिस्सों के लोगों में इस तरह की योजनाओं को सफलतापूर्वक निष्पादित करने के लिए विश्वास की कमी थी।

मुझे अपने लोगों की क्षमताओं पर बहुत भरोसा है। मैं एक संगठनात्मक पृष्ठभूमि से आता हूं और जीवन के उस चरण के दौरान कई अनुभव हुए हैं, जिनसे मैंने बहुत कुछ सीखा है। मुझे उन चीजों को प्रत्यक्ष रूप से देखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ कि मंच और अवसर मिलने पर आम नागरिक भी कुछ कर गुजरने की ताकत रखता है। इसलिए, हमने दृष्टिकोण में सुधार किए।

यदि आप ध्यान से देखें तो वर्षों से हमने हर क्षेत्र के लोगों पर भरोसा किया है। यहां कुछ उदाहरण हैं। आठवां ब्रिक्स शिखर सम्मेलन गोवा में हुआ। कई प्रशांत द्वीप देशों को शामिल करते हुए दूसरा एफआईपीआईसी (फोरम फॉर इंडिया-पैसिफिक आइलैंड्स कोऑपरेशन) शिखर सम्मेलन जयपुर में हुआ। वैश्विक उद्यमिता शिखर सम्मेलन हैदराबाद में हुआ।

इसी तरह, हमने यह सुनिश्चित किया कि हमारे देश का दौरा करने वाले कई विदेशी नेताओं की मेजबानी केवल दिल्ली के बजाय देश भर में विभिन्न स्थानों पर की जाए। यही दृष्टिकोण जी-20 में भी बड़े पैमाने पर जारी है।

जब तक हमारा जी-20 की अध्यक्षता का कार्यकाल समाप्त होगा, तब तक सभी 28 राज्यों और 8 केंद्र शासित प्रदेशों के 60 शहरों में 220 से अधिक बैठकें हो चुकी होंगी। लगभग 125 राष्ट्रों के एक लाख से अधिक प्रतिभागियों ने भारतीयों के कौशल को देख लिया होगा। हमारे देश में 1।5 करोड़ से अधिक लोग इन कार्यक्रमों में शामिल हुए हैं या इनके कुछ पहलुओं के संपर्क में आए हैं। इस तरह के प्रत्येक वैश्विक स्तर के कार्यक्रमों ने लॉजिस्टिक्स, आतिथ्य, पर्यटन, सॉफ्ट स्किल्स और परियोजनाओं के निष्पादन जैसे कई क्षेत्रों में क्षमता निर्माण को बढ़ावा दिया है। यह प्रत्येक क्षेत्र के लोगों के आत्मविश्वास को बढ़ाने वाला है। अब, वे जानते हैं कि वे कुछ विश्व स्तरीय कर सकते हैं। इस क्षमता और आत्मविश्वास को विभिन्न अन्य रचनात्मक प्रयासों में भी लगाया जाएगा जो प्रगति और समृद्धि को आगे बढ़ाएंगे।

इसके अलावा, हम न केवल सभी राज्यों में बैठकें आयोजित कर रहे हैं, बल्कि प्रत्येक राज्य यह भी सुनिश्चित कर रहा है कि वे प्रतिनिधियों के दिमाग पर अपनी अनूठी सांस्कृतिक छाप छोड़ें। इससे दुनिया को भारत की अविश्वसनीय विविधता का अंदाजा भी हो रहा है। मैंने मुख्यमंत्रियों की बैठक के दौरान विभिन्न राज्यों से भी अपील की है कि वे यह सुनिश्चित करें कि प्रत्येक राज्य जी-20 के दौरान वहां की यात्रा करने वाले प्रतिनिधियों और उनके देशों के साथ अपने संबंधों को मजबूत करना जारी रखें। इससे भविष्य में लोगों के लिए बहुत सारे अवसर भी खुलेंगे। इसलिए, जी-20 से संबंधित गतिविधियों के विकेन्द्रीकरण के पीछे एक गहरी योजना है। हम अपने लोगों, अपने संस्थानों और अपने शहरों में क्षमता निर्माण में निवेश कर रहे हैं।

प्रश्न: 2023 के दौरान भारत में पर्यटन से लेकर सेहत, जलवायु परिवर्तन से लेकर स्वास्थ्य, महिला सशक्तिकरण से लेकर ऊर्जा पारगमन तक जैसे मुद्दों पर 200 से अधिक बैठकें हुईं। इनमें से कितनी ने आपकी संतुष्टि के अनुरूप ठोस परिणाम दिए हैं। क्या कुछ ऐसे क्षेत्र हैं जहां आप देखते हैं कि हम और अधिक कर सकते थे?
उत्तर: इस जवाब के दो पहलू हैं। पहला यह है कि आपको हमारी अध्यक्षता समाप्त होने के बाद दिसंबर में परिणामों के बारे में मुझसे सवाल पूछना चाहिए। इसके अलावा, आगामी शिखर सम्मेलन की महत्ता को ध्यान में रखते हुए, अभी विवरण बताना मेरे लिए सही नहीं होगा। लेकिन एक और पहलू है जिसके बारे में, मैं निश्चित रूप से बात करना चाहूंगा। पिछले एक वर्ष में कई महत्वपूर्ण मुद्दे उठाए गए हैं। संपूर्ण पृथ्वी को एक परिवार के रूप में एक भविष्य की ओर ले जाने की भावना के अनुरूप काम किया गया जो टिकाऊ और न्यायसंगत हो। ऐसे कई मुद्दों पर चर्चा की गई है और उन्हें आगे बढ़ाया गया है।

जी-20 में विभिन्न स्तरों पर बैठकें हुई हैं। इनमें एक महत्वपूर्ण प्रकार की मंत्रिस्तरीय बैठक भी शामिल है। यह उच्च-स्तरीय है इसलिए इसमें तत्काल नीतिगत प्रभाव की एक बड़ी संभावना है। मैं आपको मंत्रिस्तरीय बैठकों के कुछ उदाहरण देता हूं। 13 से अधिक मंत्रिस्तरीय बैठकें आयोजित की गई हैं और इनमें कई सफल नतीजों को अंगीकार भी किया गया है।

हमारी अध्यक्षता की प्राथमिकताओं में से एक जलवायु कार्रवाई को लोकतांत्रिक बनाकर इसमें तेजी लाना था। मिशन लाइफ के माध्यम से जलवायु पर जीवन शैली के प्रभाव पर ध्यान केंद्रित करना, इस मुद्दे को वास्तव में लोकतांत्रिक बनाने का एक तरीका है, क्योंकि ग्रह पर सकारात्मक प्रभाव डालने की शक्ति हर व्यक्ति के पास है। विकास मंत्रियों की बैठक में, जी-20 ने सतत विकास के लक्ष्यों और जीवन शैली पर प्रगति में तेजी लाने के लिए कार्ययोजना को अपनाया।

इसी प्रकार, कृषि मंत्रियों ने खाद्य सुरक्षा और पोषण पर ‘डेक्कन’ के उच्च स्तरीय सिद्धांतों को सफलतापूर्वक अपनाया। ये वैश्विक भूख और कुपोषण को कम करने में मदद करेंगे। हमारे टिकाऊ सुपरफूड ‘श्री अन्न’ के लिए हमारे जुनून को देखते हुए, कृषि मंत्रियों ने कृषि के लिए जलवायु-स्मार्ट और डिजिटल दृष्टिकोण के महत्व पर ध्यान केंद्रित करते हुए मोटे और अन्य प्राचीन अनाजों पर अनुसंधान के लिए अंतरराष्ट्रीय पहल भी शुरू की।

महिला सशक्तिकरण पर मंत्रिस्तरीय सम्मेलन ने लिंग आधारित डिजिटल विभाजन को पाटने, श्रम बल की भागीदारी में खामियों को कम करने और नेतृत्व व निर्णय लेने वाले पदों पर महिलाओं के लिए एक बड़ी भूमिका सुनिश्चित करने पर आम सहमति बनाई।

ऊर्जा मंत्रियों ने हाइड्रोजन के लिए उच्च स्तरीय सिद्धांतों पर भी आम सहमति दी है और कई अन्य परिणामों के बीच वैश्विक जैव ईंधन गठबंधन की स्थापना के लिए नींव रखी है।

पर्यावरण और जलवायु मंत्रियों ने 2040 तक भूमि क्षरण में 50 प्रतिशत की कमी लाने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित करते हुए उद्योग के नेतृत्व वाले संसाधन दक्षता और चक्रीय अर्थव्यवस्था उद्योग गठबंधन की शुरुआत की दिशा में प्रगति की है।

श्रम और रोजगार मंत्रियों ने सीमाओं के पार कौशल की पारस्परिक मान्यता देने को लेकर व्यवसायों के वर्गीकरण के लिए एक अंतरराष्ट्रीय संदर्भ विकसित करने पर आम सहमति भी बनाई। यह मांग व आपूर्ति को पूरा करने में मदद करेगा और उद्योगों को मानव पूंजी खोजने में मदद करेगा।

व्यापार और निवेश मंत्रियों ने व्यापार दस्तावेज के डिजिटलीकरण के लिए उच्च स्तरीय सिद्धांतों को भी अपनाया है, जिससे व्यापार को बढ़ावा मिलेगा और व्यापार करने में आसानी होगी।

ये केवल कुछ महत्वपूर्ण घटनाक्रम हैं। अन्य क्षेत्रों में भी ऐसी कई और भी उपलब्धियां हैं। आने वाले वर्षों में, ये उस दिशा के लिए निर्णायक साबित होंगे जिस ओर दुनिया जाएगी।

प्रश्न: हमारे कुछ पड़ोसियों ने कुछ बैठकों के आयोजन स्थलों पर आपत्ति जताई। पाकिस्तान और चीन की आपत्ति के बावजूद हमने कश्मीर और अरुणाचल प्रदेश में जी-20 में विदेशी नेताओं की मेजबानी करके क्या संदेश दिया?
उत्तर : मैं हैरान हूं कि पीटीआई-भाषा इस तरह का सवाल पूछ रही है। यदि हमने उन स्थानों पर बैठकें आयोजित करने से परहेज किया होता, तब इस तरह का सवाल वैध होता। हमारा देश इतना विशाल, सुंदर और विविधतापूर्ण है। जब जी-20 की बैठकें हो रही हैं, तो क्या यह स्वाभाविक नहीं है कि हमारे देश के हर हिस्से में बैठकें हों?

प्रश्न: भारत ने जी-20 की अध्यक्षता तब संभाली जब अधिकांश सदस्य राष्ट्र मंदी के खतरे का सामना कर रहे थे, जबकि भारत एकमात्र उभरता हुआ देश था। भारत ने ऋण प्रवाह, मुद्रास्फीति नियंत्रण और वैश्विक कर सौदों पर आम सहमति बनाने के लिए सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के रूप में अपनी स्थिति का लाभ कैसे उठाया है?
उत्तर : 2014 से पहले के तीन दशकों में, हमारे देश ने कई सरकारें देखीं जो अस्थिर थीं और इसलिए बहुत कुछ करने में असमर्थ थीं। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में लोगों ने एक निर्णायक जनादेश दिया है जिसकी वजह से एक स्थिर सरकार, अनुमानित नीतियां और समग्र दिशा में स्पष्टता आई है।
यही कारण है कि पिछले नौ वर्षों में कई सुधार किए गए। अर्थव्यवस्था, शिक्षा, वित्तीय क्षेत्र, बैंक, डिजिटलीकरण, कल्याण, समावेशन और सामाजिक क्षेत्र से संबंधित इन सुधारों ने एक मजबूत नींव रखी है और विकास इसका स्वभाविक प्रतिफल है।

भारत द्वारा की गई तीव्र और निरंतर प्रगति ने स्वाभाविक रूप से दुनिया भर में रुचि पैदा की और कई देश हमारी विकास कहानी को बहुत करीब से देख रहे हैं। वे आश्वस्त हैं कि यह प्रगति आकस्मिक नहीं है, बल्कि ‘सुधार, प्रदर्शन, परिवर्तन’ के स्पष्ट, कार्य-उन्मुख रोडमैप के परिणामस्वरूप हो रही है।

लंबे समय तक, भारत को एक अरब से अधिक भूखे पेट वाले लोगों के राष्ट्र के रूप में जाना जाता था। लेकिन अब, भारत को एक अरब से अधिक आकांक्षी प्रतिभाओं, दो अरब से अधिक कुशल हाथों और लाखों युवाओं के राष्ट्र के रूप में देखा जा रहा है। हम न केवल दुनिया में सबसे अधिक आबादी वाले देश हैं, बल्कि सबसे बड़ी युवा आबादी वाला देश भी हैं। इसलिए, भारत के बारे में दृष्टिकोण बदल गया है।

इसके अलावा, महामारी के प्रति भारत की जांची-परखी राजकोषीय और मौद्रिक प्रतिक्रिया ने लोगों की जरूरतों को पूरा करते हुए व्यापक आर्थिक स्थिरता सुनिश्चित की। साथ ही, गरीबों के लिए निर्धारित एक-एक रुपया हमारे प्रभावशाली डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढांचे के कारण, बिना किसी ‘लीकेज’ या देरी के तुरंत उन तक पहुंच गया। ऐसे कई कारकों ने एक मजबूत विश्वसनीय आधार प्रदान किया जिस पर हम अपने जी-20 की अध्यक्षता के एजेंडे को आगे बढ़ा सकते हैं। यही कारण है कि हम विभिन्न मुद्दों पर चर्चा, विचार-विमर्श और वितरण के लिए दुनिया के देशों को एक साथ लाने में सक्षम हुए हैं।

मुद्रास्फीति एक प्रमुख मुद्दा है जिसका सामना दुनिया कर रही है। हमारी जी-20 अध्यक्षता में जी-20 के वित्त मंत्रियों और केन्द्रीय बैंकों के गवर्नरों ने भाग लिया। यह स्वीकार किया गया कि केंद्रीय बैंकों द्वारा नीतिगत रुख का समयबद्ध और स्पष्ट संदेश महत्वपूर्ण है। यह सुनिश्चित कर सकता है कि मुद्रास्फीति का मुकाबला करने के लिए प्रत्येक देश द्वारा अपनाई गई नीतियों से अन्य देशों में नकारात्मक नतीजे न हों।

खाद्य और ऊर्जा मूल्य अस्थिरता से जुड़ी चुनौतियों से निपटने के लिए देशों को नीतिगत अनुभवों को साझा करने में सक्षम बनाने पर भी महत्वपूर्ण जोर दिया गया, खासकर जब खाद्य और ऊर्जा बाजार निकटता से जुड़े हुए हैं। जहां तक अंतरराष्ट्रीय कराधान का संबंध है, भारत ने जी-20 मंच का उपयोग ‘पिलर वन’ पर महत्वपूर्ण प्रगति प्राप्त करने के लिए एक मजबूत प्रोत्साहन प्रदान करने के लिए किया, जिसमें बहुपक्षीय समझौते (कन्वेंशन) के पाठ का वितरण भी शामिल है। यह कन्वेंशन देशों और न्यायालयों को अंतरराष्ट्रीय कर प्रणाली के ऐतिहासिक, प्रमुख सुधार के साथ आगे बढ़ने की अनुमति देगा। जैसा कि आप देख सकते हैं, कई मुद्दों पर पर्याप्त प्रगति हुई है। यह उस विश्वास का भी परिणाम है जो अन्य साझेदार देशों ने भारत की अध्यक्षता में दिखाया है।

प्रश्न: क्या हम ऋण पुनर्गठन की चुनौती पर जी -20 शिखर सम्मेलन में किसी आम सहमति की उम्मीद कर सकते हैं, जो ‘ग्लोबल साउथ’ के लिए एक समस्या बन गई है। क्या भारत चीन के कर्ज के जाल में फंसे देशों जैसे श्रीलंका, सूडान आदि की मदद कर रहा है? भारत ने इन देशों को सहायता के आवंटन में कितनी वृद्धि की है?
उत्तर: मुझे खुशी है कि आपने मुझसे इस विषय पर एक सवाल पूछा। ऋण संकट वास्तव में दुनिया के लिए, विशेष रूप से विकासशील देशों के लिए बड़ी चिंता का विषय है। विभिन्न देशों के नागरिक इस संबंध में सरकारों द्वारा लिए जा रहे निर्णयों पर उत्सुकता से नजर रख रहे हैं। कुछ सराहनीय परिणाम भी हैं। सबसे पहले, जो देश ऋण संकट से गुजर रहे हैं या इससे गुजर चुके हैं, उन्होंने वित्तीय अनुशासन को अधिक महत्व देना शुरू कर दिया है। दूसरा, जिन अन्य देशों ने कुछ देशों को ऋण संकट के कारण कठिन समय का सामना करते देखा है, वे उन्हीं गलत कदमों से बचने के प्रति सचेत हैं।

आप अच्छी तरह से जानते हैं कि मैंने अपनी राज्य सरकारों से वित्तीय अनुशासन के बारे में भी सचेत रहने का आग्रह किया है। चाहे वह मुख्य सचिवों के राष्ट्रीय सम्मेलन में हो या ऐसे किसी भी मंच पर, मैंने कहा है कि वित्तीय रूप से गैर-जिम्मेदार नीतियां और लोकलुभावनवाद अल्पावधि में राजनीतिक परिणाम दे सकते हैं, लेकिन लंबी अवधि में एक बड़ी सामाजिक और आर्थिक चुनौती लेकर आएंगे। इसके दुष्परिणामों का सबसे अधिक असर सबसे गरीब व सबसे कमजोर लोगों पर पड़ता है।

हमारी जी-20 अध्यक्षता ने ऋण संबंधी जटिलताओं से उत्पन्न वैश्विक चुनौतियों से निपटने पर जोर दिया है, विशेष रूप से ‘ग्लोबल साउथ’ के देशों के लिए। जी-20 देशों के वित्त मंत्रियों और केंद्रीय बैंक के गवर्नरों ने साझा रूपरेखा वाले देशों और साझा ढांचे से परे भी ऋण व्यवहार में अच्छी प्रगति को स्वीकार किया है। हम अपने मूल्यवान पड़ोसी श्रीलंका की जरूरतों के प्रति भी बहुत संवेदनशील रहे हैं।

वैश्विक ऋण पुनर्गठन प्रयासों में तेजी लाने के लिए अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ), विश्व बैंक और जी-20 अध्यक्षता की एक संयुक्त पहल के रूप में ‘वैश्विक संप्रभु ऋण गोलमेज’ (ग्लोबल सोवरेन डेब्ट राउंडटेबल) की इस साल के आरंभ में शुरुआत की गई थी। यह प्रमुख हितधारकों के बीच संवाद को मजबूत करेगा और प्रभावी ऋण उपचार की सुविधा प्रदान करेगा। जैसा कि मैंने पहले कहा था इन मुद्दों को हल करने के लिए बहुत कुछ किया जा रहा है। मैं, सकारात्मक हूं कि विभिन्न देशों के लोगों के बीच बढ़ती जागरुकता यह सुनिश्चित करेगी कि ऐसी स्थितियों की अक्सर पुनरावृत्ति न हों।

प्रश्न: समरकंद में राष्ट्रपति पुतिन को दिए गए आपके संदेश कि यह युद्ध का युग नहीं है, ने दुनिया भर में समर्थन हासिल किया है। जी-7 और चीन-रूस गठबंधन के बीच मतभेदों को देखते हुए, समूह के लिए इस संदेश को अपनाना मुश्किल होगा। उस संदर्भ में आम सहमति बनाने में मदद करने के लिए भारत अध्यक्ष के रूप में क्या कर सकता है और उस आम सहमति को बनाने में नेताओं के लिए आपका व्यक्तिगत संदेश क्या होगा?
उत्तर : विभिन्न क्षेत्रों में कई अलग-अलग संघर्ष हैं। इन सभी को बातचीत और कूटनीति के माध्यम से हल करने की आवश्यकता है। कहीं भी किसी भी संघर्ष पर हमारा यही रुख है। चाहे जी-20 अध्यक्ष के रूप में हो या न हो, हम दुनिया भर में शांति सुनिश्चित करने के हर प्रयास का समर्थन करेंगे।
हम मानते हैं कि विभिन्न वैश्विक मुद्दों पर हम सभी की अपनी-अपनी स्थिति और अपने-अपने दृष्टिकोण हैं। साथ ही, हमने बार-बार इस बात पर जोर दिया है कि विभाजित दुनिया के लिए साझा चुनौतियों से लड़ना मुश्किल होगा। प्रगति, विकास, जलवायु परिवर्तन, महामारी और आपदा से जुड़ी चुनौतियां दुनिया के हर हिस्से को प्रभावित करती हैं और ऐसे कई मुद्दों पर परिणाम देने के लिए दुनिया जी-20 की ओर देख रही है। अगर हम एकजुट हों तो हम सभी इन चुनौतियों का बेहतर तरीके से सामना कर सकते हैं। हम शांति, स्थिरता और प्रगति के समर्थन में हमेशा खड़े रहे हैं और रहेंगे।

प्रश्न: भारत द्वारा विश्वसनीय प्रौद्योगिकियों के समान वितरण और प्रौद्योगिकियों के लोकतंत्रीकरण पर बड़ा जोर दिया गया है। हमने इस लक्ष्य को कहां तक हासिल किया है?
उत्तर: जब प्रौद्योगिकी के लोकतंत्रीकरण की बात आती है तो भारत की वैश्विक विश्वसनीयता है। हमने पिछले कुछ वर्षों में कई पहल की हैं जिन पर दुनिया ने ध्यान दिया है। और ये पहल एक बड़े वैश्विक आंदोलन का जरिया भी बन रहे हैं। दुनिया का सबसे बड़ा (कोविड) टीकाकरण अभियान भी सबसे समावेशी था। हमने 200 करोड़ से अधिक खुराक मुफ्त प्रदान की। यह एक तकनीकी मंच कोविन पर आधारित था। इसके अलावा, इस मंच का लाभ भी दुनिया को दिया गया ताकि अन्य देश भी इसे अपना सकें और लाभान्वित हो सकें। आज डिजिटल लेन-देन हमारे व्यावसायिक जीवन के हर वर्ग को सशक्त बना रहा है, रेहड़ी-पटरी वालों से लेकर बड़े बैंकों तक।
हमारा ‘डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर’ विश्व स्तर पर कई लोगों के लिए आश्चर्य का विषय था, खासकर जिस तरह से इसका उपयोग महामारी के दौरान सार्वजनिक सेवा वितरण के लिए किया गया था। दुनिया भर के कई देशों ने कल्याणकारी पैकेजों की घोषणा की थी, लेकिन उनमें से कुछ को इसे लोगों तक पहुंचाना मुश्किल हो गया था। लेकिन भारत में, जन धन-आधार-मोबाइल (जेएएम) की तिकड़ी ने एक क्लिक के साथ लाभार्थियों को सीधे वित्तीय समावेशन, प्रमाणीकरण और लाभ का हस्तांतरण सुनिश्चित किया। इसके अलावा, ओपन नेटवर्क फॉर डिजिटल कॉमर्स (ओएनडीसी) एक ऐसी पहल है जिसका नागरिकों और विशेषज्ञों द्वारा डिजिटल मंचों पर एक समान अवसर उपलब्ध कराने और उसका लोकतांत्रिकरण करने में एक महत्वपूर्ण बिंदु के रूप में स्वागत किया जा रहा है।

डिजिटल अर्थव्यवस्था मंत्रियों की बैठक में जी-20, डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढांचे को विकसित करने, तैनात करने और नियंत्रित करने के लिए एक रूपरेखा अपनाने में सक्षम हुआ। उन्होंने डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना (डीपीआई) पारिस्थितिकी तंत्र के लिए वैश्विक प्रयासों को समन्वित करने के लिए ‘वन फ्यूचर अलायंस’ की नींव रखते हुए डिजिटल अर्थव्यवस्था को सुरक्षित रखने के लिए सिद्धांतों को सफलतापूर्वक अपनाया है।

यह सर्वविदित है कि प्रौद्योगिकी स्वास्थ्य सेवा वितरण पर बहुत प्रभाव डाल सकती है। आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन भारत में इस क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है। ‘वन अर्थ वन हेल्थ’ के हमारे मंत्र के कारण लोगों के स्वास्थ्य के लिए हमारी चिंता हमारी सीमाओं से समाप्त नहीं होती है। हमारी जी-20 अध्यक्षता के दौरान, समूह के स्वास्थ्य मंत्रियों ने वैश्विक डिजिटल स्वास्थ्य पहल पर सफलतापूर्वक आम सहमति बनाई है जो विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) वैश्विक डिजिटल स्वास्थ्य रणनीति को लागू करने में मदद करेगी।

प्रौद्योगिकी का लाभ उठाने की दिशा में हमारा दृष्टिकोण समावेशी, अंतिम व्यक्ति तक वितरण और किसी को पीछे नहीं छोड़ने की भावना से प्रेरित है। ऐसे समय में जब प्रौद्योगिकी को असमानता और गैर-समावेशी वाहक के रूप में माना जाता था, हम इसे समानता और समावेश का वाहक बना रहे हैं।

प्रश्न: जब आपने 2070 का लक्ष्य निर्धारित किया तो आपने देखा कि जीवाश्म ईंधन भारत जैसे देशों में एक प्रमुख भूमिका निभा रहा है, जिस पर पश्चिम द्वारा नाराजगी जताई गई थी। लेकिन दुनिया के अधिकांश देशों ने यूक्रेन संघर्ष के बाद जीवाश्म ईंधन के महत्व को महसूस किया, यूरोप में कुछ ने कोयला और गैस की ओर वापस रुख किया। आप यूक्रेन युद्ध के बाद के युग में जलवायु परिवर्तन लक्ष्यों को कैसे प्रगति करते हुए देखते हैं?
उत्तर: हमारा सिद्धांत सरल है – विविधता हमारी सबसे बड़ी पूंजी है। वह चाहे समाज में हो या हमारे ऊर्जा मिश्रण के संदर्भ में। ऐसा नहीं होता है कि कोई एक चीज हर जगह लागू हो। देशों के विभिन्न मार्गों को देखते हुए, ऊर्जा पारगमन के लिए हमारे रास्ते अलग-अलग होंगे। दुनिया की आबादी का 17 प्रतिशत होने के बावजूद, संचयी उत्सर्जन में भारत की ऐतिहासिक हिस्सेदारी 5 प्रतिशत से कम रही है। फिर भी, हमने अपने जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। मैं पहले ही एक प्रश्न के उत्तर में इस क्षेत्र में हमारी विभिन्न उपलब्धियों के बारे में बात कर चुका हूं। इसलिए, हम निश्चित रूप से सही रास्ते पर हैं और विकास सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक विभिन्न कारकों को भी ध्यान में रख रहे हैं।

जहां तक जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई के भविष्य के बारे में बात है तो मैं इसके बारे में बेहद सकारात्मक हूं। हम अन्य देशों के साथ काम कर रहे हैं, ताकि दृष्टिकोण को प्रतिबंधात्मक से रचनात्मक दृष्टिकोण में बदला जा सके। विशुद्ध रूप से यह या वह न करने के दृष्टिकोण पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय, हम एक ऐसा दृष्टिकोण लाना चाहते हैं जो लोगों और राष्ट्रों को जागरूक करे कि वे वित्त प्रौद्योगिकी और अन्य संसाधनों के संदर्भ में क्या कर सकते हैं और कैसे मदद कर सकते हैं।

प्रश्न: साइबर अपराधों ने धन शोधन और आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में एक नया आयाम जोड़ा है। 1 से 10 के पैमाने पर जी-20 को इसे कहां रखना चाहिए और वर्तमान में यह कहां है?
उत्तर: साइबर खतरों को बहुत गंभीरता से लिया जाना चाहिए। उनके प्रतिकूल प्रभाव का एक कोण उनके कारण होने वाले वित्तीय नुकसान हैं। विश्व बैंक का अनुमान है कि साइबर हमलों से 2019-2023 के दौरान दुनिया को लगभग 5।2 ट्रिलियन डॉलर का नुकसान हो सकता है। लेकिन उनका प्रभाव सिर्फ वित्तीय पहलुओं से परे उन गतिविधियों में चला जाता है जो गहरी चिंता का विषय हैं। इनके सामाजिक और भू-राजनीतिक प्रभाव हो सकते हैं। साइबर आतंकवाद, ऑनलाइन कट्टरता, धन शोधन से मादक पदार्थ और आतंकवाद की ओर ले जाने के लिए नेटवर्क प्लेटफार्मों का उपयोग महज झलक है।

‘साइबर स्पेस’ ने अवैध वित्तीय गतिविधियों और आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में एक पूरी तरह से नया आयाम पेश किया है। आतंकवादी संगठन कट्टरपंथ के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग कर रहे हैं, धन शोधन और मादक पदार्थों से आतंक के वित्त पोषण में पैसा ले जा रहे हैं, और अपने नापाक उद्देश्यों को पूरा करने के लिए ‘डार्क नेट’, ‘मेटावर्स’ और ‘क्रिप्टोकरेंसी’ जैसे उभरते डिजिटल रास्तों का फायदा उठा रहे हैं।

इसके अलावा, वे राष्ट्रों के सामाजिक ताने-बाने पर असर डालने वाले हो सकते हैं। ‘डीप फेक’ के प्रसार से अराजकता और समाचार स्रोतों की विश्वसनीयता को नुकसान हो सकता है। सामाजिक अशांति को बढ़ावा देने के लिए फर्जी समाचार का इस्तेमाल किया जा सकता है। इसलिए, यह हर समूह, हर राष्ट्र और हर परिवार के लिए चिंता का विषय है। यही कारण है कि हमने इसे प्राथमिकता के रूप में लिया है।

हमने नॉन-फंजिबल टोकन (एनएफटी), आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (कृत्रिम मेधा) और मेटावर्स के युग में अपराध और सुरक्षा पर जी-20 सम्मेलन की मेजबानी की। इस सम्मेलन के दौरान, साइबर स्पेस और अंतरराष्ट्रीय कानून के स्थापित मानदंडों, सिद्धांतों और नियमों के विपरीत दुर्भावनापूर्ण साइबर गतिविधियों पर चिंता व्यक्त की गई थी। इस बात पर जोर दिया गया कि रोकथाम और शमन रणनीतियों पर समन्वय की आवश्यकता है। आपराधिक उद्देश्यों के लिए सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (आईसीटी) के इस्तेमाल का मुकाबला करने के लिए एक व्यापक अंतरराष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता पर जोर दिया गया।

ऐसे कई क्षेत्र हो सकते हैं, जिनमें वैश्विक सहयोग वांछनीय है। लेकिन ‘साइबर सुरक्षा’ के क्षेत्र में, वैश्विक सहयोग न केवल वांछनीय है, बल्कि अपरिहार्य है। क्योंकि खतरे की गतिशीलता बढ़ जाती है – हैंडलर कहीं हैं, संपत्ति कहीं दूसरी जगह है और वे तीसरे स्थान पर स्थापित सर्वरों के माध्यम से संवाद कर रहे होते हैं और उनका वित्त पोषण पूरी तरह से अलग क्षेत्र से आ सकता है। जब तक इस श्रृंखला के सभी राष्ट्र सहयोग नहीं करते हैं, तब तक बहुत रोकथाम संभव नहीं है।

प्रश्न: संयुक्त राष्ट्र को ‘वार्ता की एक दुकान’ के रूप में देखा जा रहा है, जो दुनिया के सामने आने वाले अधिकांश दबाव वाले मुद्दों को हल करने में विफल रहा है। क्या जी-20 बहुपक्षीय संस्थानों को आज की चुनौतियों के लिए अधिक प्रासंगिक बनाने और वैश्विक व्यवस्था में भारत को उसका उचित स्थान दिलाने के लिए एक मंच बन सकता है? इसे रेखांकित करने में मीडिया की भूमिका कितनी महत्वपूर्ण है?
उत्तर: आज की दुनिया एक बहुध्रुवीय दुनिया है, जहां सभी चिंताओं के प्रति निष्पक्ष और संवेदनशील संस्थान एक नियम-आधारित व्यवस्था के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं। हालांकि, संस्थान तभी प्रासंगिकता बनाए रख सकते हैं जब वे समय के साथ बदलते हैं। 20वीं सदी के मध्य का दृष्टिकोण 21वीं सदी में दुनिया के लिए काम नहीं कर सकता है। इसलिए, हमारे अंतरराष्ट्रीय संस्थानों को बदलती वास्तविकताओं को पहचानने, अपने निर्णय लेने वाले मंचों का विस्तार करने, अपनी प्राथमिकताओं पर फिर से विचार करने और महत्वपूर्ण आवाजों का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने की आवश्यकता है। जब यह समय पर नहीं किया जाता है, तो छोटे या क्षेत्रीय मंच अधिक महत्व प्राप्त करने लगते हैं।

जी-20 निश्चित रूप से उन संस्थानों में से एक है जिसे कई देशों द्वारा आशा की दृष्टि से देखा जा रहा है। क्योंकि दुनिया कार्यों और परिणामों की तलाश में है, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वे कहां से आते हैं।

जी-20 की भारत की अध्यक्षता ऐसे मोड़ पर आई है। इस संदर्भ में, वैश्विक ढांचे के भीतर भारत की स्थिति विशेष रूप से प्रासंगिक हो जाती है। एक विविधतापूर्ण राष्ट्र, लोकतंत्र की जननी, दुनिया में युवाओं की सर्वाधिक आबादी वाले देशों में से एक और विश्व के विकास इंजन के रूप में, भारत के पास दुनिया के भविष्य को आकार देने में योगदान देने के लिए बहुत कुछ है।

जी-20 ने भारत को अपने मानव-केंद्रित दृष्टिकोण को आगे बढ़ाने के लिए एक मंच प्रदान किया है और समग्र रूप से मानवता के सामने आने वाली समस्याओं के अभिनव समाधान की दिशा में भी काम किया है। इस यात्रा में मीडिया, बदली हुई वैश्विक वास्तविकताओं, भारत की प्रगति और हमारे अंतरराष्ट्रीय संस्थानों में सुधार की आवश्यकता के बारे में जागरूकता और समझ विकसित करने के लिए एक कड़ी के रूप में कार्य करता है।

प्रश्न: आपने कहा है कि भारत 2030 तक तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होगा। 2047 के अमृतकाल वर्ष में आप भारत को कहां देखते हैं?
उत्तर : विश्व इतिहास में लंबे समय तक, भारत दुनिया की शीर्ष अर्थव्यवस्थाओं में से एक था। बाद में, विभिन्न प्रकार के उपनिवेशीकरण के प्रभाव के कारण, हमारी वैश्विक स्थिति कमजोर हुई, लेकिन अब भारत फिर से आगे बढ़ रहा है। जिस तेजी से हमने एक दशक से भी कम समय में 10वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था से पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था तक पांच स्थानों की छलांग लगाई है, उसने इस तथ्य को व्यक्त किया है कि भारत का मतलब व्यापार है। हमारे साथ लोकतंत्र, जनसांख्यिकी और विविधता है। जैसा कि मैंने कहा, अब इसमें एक चौथा डी जोड़ा जा रहा है – विकास (डेवलपमेंट)।

मैंने पहले भी कहा है कि 2047 तक की अवधि एक बड़ा अवसर है। जो भारतीय इस युग में हैं, उनके पास विकास की नींव रखने का एक शानदार मौका है जिसे अगले 1,000 वर्षों तक याद किया जाएगा!

राष्ट्र भी इस समय की महत्ता को महसूस कर रहा है। यही कारण है कि, आप कई क्षेत्रों में अभूतपूर्व वृद्धि देखते हैं। हमारे पास सैंकड़ों ‘यूनिकॉर्न’ हैं और हम तीसरा सबसे बड़ा ‘स्टार्टअप’ केंद्र हैं।

हमारे अंतरिक्ष क्षेत्र की उपलब्धियों का दुनिया भर में जश्न मनाया जा रहा है। लगभग हर वैश्विक खेल आयोजन में, भारत पिछले सभी रिकॉर्ड तोड़ रहा है। अधिक विश्वविद्यालय साल-दर-साल दुनिया की शीर्ष रैंकिंग में प्रवेश कर रहे हैं। इस गति के साथ, मैं सकारात्मक हूं कि हम निकट भविष्य में शीर्ष तीन अर्थव्यवस्थाओं में होंगे। मुझे विश्वास है कि 2047 तक हमारा देश विकसित देशों में शामिल हो जाएगा।

हमारी अर्थव्यवस्था और भी समावेशी और नवोन्मेषी होगी। हमारे गरीब लोग गरीबी के खिलाफ लड़ाई को व्यापक रूप से जीतेंगे। स्वास्थ्य, शिक्षा और सामाजिक क्षेत्र के परिणाम दुनिया में सर्वश्रेष्ठ होंगे। भ्रष्टाचार, जातिवाद और सांप्रदायिकता का हमारे राष्ट्रीय जीवन में कोई स्थान नहीं होगा। हमारे लोगों के जीवन की गुणवत्ता दुनिया के सर्वश्रेष्ठ देशों के बराबर होगी। सबसे महत्वपूर्ण बात, हम प्रकृति और संस्कृति दोनों की देखभाल करते हुए यह सब हासिल करेंगे।

सौजन्य- न्यूज 18

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