प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के विजन, ब्रह्मास्त्र और मास्टर स्ट्रोक ने आम आदमी पार्टी की केजरी’वाल’ पूरी तरह चकनाचूर कर दी है। ऐतिहासिक घटनाक्रम में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने 27 साल के बाद दिल्ली विधानसभा चुनावों में जीत हासिल की है। इससे राष्ट्रीय राजधानी में सत्ता में भाजपा की शानदार वापसी के साथ ही आप की शर्मनाक विदाई भी सुनिश्चति हुई। अहंकार और दंभ में डूबे खुद केजरीवाल समेत मनीष सिसोदिया और सौरभ भारद्वाज समेत कई बड़े नेताओं को हार का मुंह देखना पड़ा। भाजपा ने 70 में से 48 सीटें हासिल की, जिसने राजधानी के राजनीतिक परिदृश्य में एक निर्णायक और ऐतिहासिक बदलाव हुआ, जबकि AAP 2020 के चुनाव में हासिल अपनी पिछली 62 सीटों में से 40 सीटें खो दी। इस जीत का श्रेय निश्चित रूप से प्रधानमंत्री मोदी के गतिशील और चुंबतीय नेतृत्व को दिया जा सकता है, जिनका बेजोड़ करिश्मा दिल्ली के लोगों दिल में गहराई से उतरा। विशेष रूप से दिल्ली चुनाव से ऐन पहले आए आम बजट में 12 लाख रूपये पर आयकर में छूट के मास्टर स्ट्रोक ने मध्यम वर्ग के दिलों को छू लिया।
रणनीतिक जीत का सूत्रधार प्रधानमंत्री मोदी का विजन बना
इस रणनीतिक जीत का सूत्रधार प्रधानमंत्री मोदी का विजन बना। इसी पर चलते हुए उनके महारथी अमित शाह और अन्य नेताओं ने जीत को अंजाम तक पहुंचाया। स्थानीय चिंताओं पर ध्यान केंद्रित करने से लेकर पार्टी के व्यापक राष्ट्रीय संदेश को आगे बढ़ाने तक शाह ने सुनिश्चित किया कि भाजपा के सबका साथ, सबका विकास और नारीशक्ति की सुरक्षा का विजन हर मतदाता के दरवाजे तक पहुंचे। जमीनी स्तर पर भाजपा की चतुर चालों ने प्रमुख निर्वाचन क्षेत्रों में जातिगत समीकरणों को भी साधा और हर मोड़ पर विपक्ष को मात दी। भाजपा के अध्यक्ष जेपी नड्डा ने यह सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई कि पार्टी की विशाल मशीनरी निर्वाध रूप से काम करे। भाजपा के कार्यकर्ताओं का विशाल नेटवर्क सक्रिय रहे और प्रभावी ढंग से संगठित हो। पार्टी मतदाताओं की नब्ज की समझने में सक्षम रहे। इस जीत कर एक मुख्य आवर्षण यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ, आंध्र प्रदेश के सीएम चंद्रबाबू नायडू, एमपी के सीएम मोहन यादव, हरियाणा के सीएम नायब सैनी, असम के सीएम हिमंत बिस्वा सरमा और राजस्थान के मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा सहित कुछ मुख्यमंत्रियों की भूमिका रही।
केजरीवाल की इमेज हुई दागदार, सिसोदिया और सौरभ जैसे दिग्गज हारे
करीब-करीब तीन दशक के बाद भाजपा की सत्ता में वापसी ने राजधानी में एक नए युग की शुरुआत की है। दिल्ली विधानसभा चुनाव के परिणाम ने ये साबित कर दिया है कि इस बार जनता ने बदलाव के लिए मतदान किया। यही वजह थी कि इस चुनाव में आम आदमी पार्टी पार्टी के संयोजक और दिल्ली के पूर्व सीएम अरविंद केजरीवाल भी अपनी नई दिल्ली सीट तक नहीं बचा पाए। यही हाल सोमनाथ भारती, सौरभ भारद्वाज और मनीष सिसोदिया जैसे नेताओं का भी हुआ है। दरअसल, केजरीवाल अपने वादों पर टिके ही नहीं और झूठ-फरेब की राजनीति करते रहे। इसे जनता ने बर्दाश्त नहीं किया।
बीजेपी की जीत के पांच प्रमुख कारण
• पीएम मोदी का आकर्षण, विजन का चला जादू
• 8वां वेतन आयोग और आयकर में बंपर छूट
• AAP सरकार के भ्रष्टाचार की पोल खोली
• महिलाओं का भरोसा जीतने में हुए सफल
• गरीबों और झुग्गी वालों के लिए कई योजनाएं
AAP की हार के पांच बड़ा प्रमुख कारण
• केजरीवाल का अहंकार, झूठ और भ्रष्टाचार
• 10 साल की सरकार की एंटी इनकम्बेंसी
• शराब घोटाले और भ्रष्टाचार के दाग
• दो चुनावों के कई वादे अब तक अधूरे
• आंतरिक कलह और नेताओं के इस्तीफे
अहंकारी केजरीवाल जनता के लिए अपने सारे वादे भूलते रहे
जानकार मानते हैं कि 2020 की जीत ने केजरीवाल को अहंकारी और अराजक बना दिया। यमुना की सफाई का वादा, वायु प्रदूषण को हटाने का वादा, कच्ची नौकरियों को पक्की करने का वादा, दिल्ली की सड़कों को विदेशों की तर्ज पर बनाने का वादा सब 2025 आते-आते भी वादे ही बनकर रह गए। पानी को लेकर दिल्ली में इस गर्मी कोहराम मचा। पानी जहां आ भी रहा था, वहां भी गंदा पानी पहुंचने की शिकायतें आम थीं। दिल्ली की जनता को लगने लगा कि केजरीवाल वादे पूरे नहीं कर रहे। रही-सही कसर केजरीवाल की इमेज पर लगे दागों ने पूरी कर दी। शराब घोटाले और भ्रष्टाचार के आरोप में जेल जाने के बाद से केजरीवाल की चमक तेजी से फीकी पड़ने लगी थी।
पीएम मोदी के विजन पर दो साल पहले ही दिल्ली विजय की तैयारी
दिल्ली नगर निगम चुनाव हारने के बाद ही BJP ने विधानसभा चुनाव के लिए तैयारी शुरू कर दी थी। पीएम मोदी के विजन पर ही BJP ने अपनी रणनीति और काम करने के तरीके में बदलाव किया। पार्टी ने विधानसभा चुनाव में कोई सांप्रदायिक मुद्दा नहीं उठाया, बल्कि प्रकोष्ठ और मोर्चा बनाए। ताकि वोट शेयर 40% के पार ले जा सकें। इसके वो कामयाब भी रहे। उन्होंने जाट, गुर्जर, त्यागी, ठाकुर, ब्राह्मण और दलित सभी तक पहुंच बनाई। BJP ने चुनाव में जाति, रीजन और धार्मिक समूहों को टारगेट करने के लिए 27 प्रकोष्ठ या सेल और 7 मोर्चा बनाए। इनमें पूर्वांचल मोर्चा और मंदिर प्रकोष्ठ प्रमुख रहे।
हर वर्ग को जोड़ने के लिए गुरबानी, जागरण और हनुमान चालीसा का पाठ
निगम चुनाव से पहले सिर्फ 19 प्रकोष्ठ काम कर रहे थे। इन्हें जिम्मेदारी दी गई कि वे जमीनी स्तर पर लोगों से बात करें और पार्टी की विचारधारा से जोड़ें। पिछले दो साल में उत्तर प्रदेश और राजस्थान के लोगों को साथ जोड़ने के लिए प्रकोष्ठ बनाए। पहली बार बंजारा और सिंधी समुदाय के लिए अलग सेल बनाई गई। मंदिर प्रकोष्ठ ने हर विधानसभा के मंदिरों और RWA को जोड़ा। उन्होंने हर मंगलवार मंदिरों में हनुमान चालीसा का पाठ कराया। पूरी दिल्ली में 100 से ज्यादा गुरबानी, शिवरात्रि और जागरण कराए गए। इनका मकसद आम लोगों, खासकर युवा और महिलाओं को एक जगह जोड़ना था। इनके जरिए लोगों से मेलजोल बढ़ाया गया।
जातिगत वोटर पर फोकस, राज्य-रीजन के हिसाब से बांटे
BJP ने चुनाव से पहले न सिर्फ जातिगत वोटर पर फोकस किया, बल्कि दिल्ली और अन्य राज्यों से आए इन वोटरों को अलग-अलग हिस्सों में बांटा गया। पूर्वांचली और उत्तराखंडी वोटर अलग किए। पूर्वांचल मोर्चा दिल्ली में 2013 से काम कर रहा है। दिल्ली में 25% वोटर पूर्वांचली हैं। आम आदमी पार्टी के बड़े पूर्वांचली लीडर संजय सिंह, दुर्गेश पाठक, अनिल झा और गोपाल राय पार्टी के लिए वोट नहीं जुटा पाए। वहीं, BJP ने 2024 के लोकसभा चुनाव में सभी सीटों पर अपना कैंडिडेट बदला, लेकिन मनोज तिवारी को बनाए रखा। इसके पीछे वजह पूर्वांचली वोटर्स थे। यूपी के CM योगी आदित्यनाथ से रैलियां कराईं। BJP ने बुराड़ी सीट जनता दल (यूनाइटेड) और देवली सीट लोक जनशक्ति पार्टी को दे दी। पूर्वांचली वोटर वाले इलाकों में योगी आदित्यनाथ, मनोज तिवारी और नीतीश कुमार के पोस्टर लगाए गए। BJP ने सालभर लिट्टी-चोखा सम्मेलन कराए। छठ पूजा पर यमुना की सफाई का मुद्दा उठाया। पूर्वांचलियों ही नहीं, BJP का इस बार उत्तराखंडी वोटर पर भी फोकस रहा। इन्हें ध्यान में रखते हुए पार्टी ने मोहन सिंह बिष्ट और रविंद्र सिंह नेगी को दोबारा टिकट दिया। उत्तराखंड के CM पुष्कर सिंह धामी की रैलियां कराई गईं।
जाट और गुर्जर वोटर्स BJP के साथ, केजरीवाल से नाराज
दिल्ली के मंगोलपुरी में जाट-गुर्जरों की महापंचायत 22 दिसंबर 2024 को हुई। इसमें मूलनिवासी को दिल्ली का मुख्यमंत्री बनाने का ऐलान किया गया। दिल्ली में वोटिंग से ठीक दो दिन पहले जाट और गुर्जर नेताओं ने गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की। इसके बाद 360 गांव और 36 बिरादरी के लोगों ने चुनाव में BJP को समर्थन देने का ऐलान किया। जाटों में AAP से इस बात को लेकर नाराजगी है कि उन्होंने कैलाश गहलोत का सम्मान नहीं किया। BJP को इसका फायदा मिला। चुनाव में BJP ने 14% टिकट जाट और 11% गुर्जर उम्मीदवारों को दिए। वहीं AAP ने 11% जाट और उतने ही टिकट गुर्जर उम्मीदवारों को दिए। BJP ने गुर्जरों के बीच रमेश बिधूड़ी और जाटों के बीच प्रवेश वर्मा को एक्टिव किया। रमेश बिधूड़ी और प्रवेश वर्मा ने चुनाव BJP के पक्ष में कर दिया। इसका 22 से 25 सीटों पर सीधा असर देखने को मिला।
BJP-RSS ने मिलकर बनाया था दिल्ली विजय का सुनियोजित प्लान
महाराष्ट्र और उससे पहले हरियाणा विधानसभा चुनाव में शानदार सफलता के बाद भारतीय जनता पार्टी और आरएसएस ने मिलकर ‘दिल्ली विजय’ का सुनियोजित प्लान बनाया। भाजपा के साथ ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भी दिल्ली चुनाव में अहम भूमिका निभा रहा है और आरएसएस के आनुषांगिक संगठनों ने जमीनी स्तर पर तेजी से काम किया। भाजपा-आरएसएस ने जहां एक ओर आप संयोजक अरविंद केजरीवाल का एंटी हिंदू चेहरा घर-घर तक पहुंचाया, वहीं आप सरकार के दौरान हुए भ्रष्टाचार, शराब घोटाले और वादे पूरे ना करने के भी जनता का अदालत में रखी। उन्होंने मिलकर अरविंद केजरीवाल की उस छवि को उजागर किया, जिसे मुफ्त की योजनाओं के नाम पर ढंक रखा था। राम मंदिर और सनातन के विरोधी, चुनावी हिंदू और तुष्टिकरण करने वाले केजरीवाल ऐसे कई मुद्दों की लिस्ट भाजपा में थे। इसके साथ ही भाजपा अपने संकल्पपत्र में गारंटियों की सौगात देकर चुनाव से पहले सबसे आगे निकल गई।घर-घर जाकर फैमिली डिस्कशन से BJP के लिए वोट निकाले
हरियाणा और महाराष्ट्र के बाद दिल्ली में चुनाव के लिए BJP-RSS ने काम करना किया। आरएसएस का प्लान केजरीवाल की हिंदू विरोधी छवि जनता के सामने लाना था। सेवा भारती समेत आरएसएस के संगठन झुग्गी-बस्तियों और मौहल्ला-चौपाल तक एक्टिव हो गए। उन्होंने तय किया और घर-घर जाकर फैमिली डिस्कशन से BJP के लिए वोट निकाले। आरएसएस के लोगों ने दिल्ली की घनी बस्तियों में अलग-अलग शाखाओं के स्वयंसेवक बैक टु बैक बैठकें कीं। ये बैठकें 10-12 लोगों के छोटे-छोटे ग्रुप्स के बीच हुईं। भाजपा-आरएसएस के प्लान के केंद्र में केजरीवाल की ‘हिंदू विरोधी छवि’ को भी हाइलाइट करना रहा।
भाजपा और आरएसएस थिंक टैंक ने अरविंद केजरीवाल को इन पांच प्वांइट पर घेरने की पुख्ता रणनीति बनाई थी…
1.अरविंद केजरीवाल और आप सरकार के झूठे वादे
भारतीय जनता पार्टी और आरएसएस की प्लानिंग अरविंद केजरीवाल के सारे झूठे वादों को जनता के बीच लाने की तैयारी है। केजरीवाल ने कहा था कि गाड़ी, बंगला और सुरक्षा नहीं लेंगे। वे अपने आपको कट्टर ईमानदार की छवि वाला नेता बताते थे, लेकिन करोड़ों के शराब घोटाले में जेल जा आए हैं। जनता से पूछकर ठेका खोलेंगे, लेकिन आप सरकार ने स्कूलों की जगह पर शराब के ठेके खोल दिए। इसकी चर्चा उनके शीशमहल के खर्च और गाड़ियों की कीमत के साथ करेंगे। इसमें हवाला और शराब घोटाले में बंद हुए CM, डिप्टी CM और मंत्रियों की भी चर्चा होगी।
नानी के नाम पर विरोध करने वाले केजरीवाल राम मंदिर पहुंचे!
दिल्ली CM अरविन्द केजरीवाल का पुराना बयान, “जब बाबरी मस्जिद का विध्वंस हुआ तब मैंने नानी से पुछा नानी अब तो आप बड़े खुश होंगे, अब तो आपके भगवान राम का मंदिर बनेगा कहती है ना बेटा मेरा राम किसी की मस्जिद तोड़ के ऐसे मंदिर… pic.twitter.com/RVQbfWFCF2
— AajTak (@aajtak) February 12, 2024
2. केजरीवाल की राम मंदिर और हिंदू विरोधी छवि
केजरीवाल ने राम मंदिर का कई बार विरोध किया था। अपनी नानी की आड़ लेकर वे करते रहे कि ऐसे राम मंदिर में कैसे पूजा करेंगे, जो किसी और धार्मिक स्थल को तोड़कर बनाया हो। इतना ही नहीं दिल्ली के स्कूलों में इकोनॉमिक वीकर सेक्शन कोटे के तहत दलित हिंदुओं की संख्या ना के बराबर है, जबकि मुसलमानों की संख्या काफी है। यूपी के दादरी में अखलाक की मौत हुई, तो अरविंद केजरीवाल ने ट्वीट किया- मैं आ रहा हूं। वहीं, बजरंग दल के रिंकू शर्मा की हत्या पर शोक तक नहीं जताया। अयोध्या में राम मंदिर बना, तो केजरीवाल ने अस्पताल बनाने का सुझाव दिया।
3. तुष्टिकरण की सीमाएं ‘चुनावी हिंदू’ केजरीवाल ने पार कीं
केजरीवाल ने तुष्टिकरण की तो सारी सीमाएं ही लांघ दीं। वो सिर्फ ‘चुनावी हिंदू’ हैं और वोट लेने के लिए सनातन का बाना ओढ़ लेते हैं। हकीकत तो यह है कि केजरीवाल सरकार ने दिल्ली के द्वारका सेक्टर-22 में सरकारी खर्च पर 100 करोड़ का हज हाउस बनवाया। मौलवियों की सैलरी तय कर दी है। केजरीवाल को पुजारियों और ग्रंथियों की याद 12 साल बाद चुनाव से पहले आई। उन्होंने क्या किसी मंदिर आंदोलन में हिस्सा लिया। वो मौकों के हिसाब से कभी हनुमान चालीसा पढ़ते, तो कभी कृष्ण बन जाते थे।
4. आप और केजरीवाल का अर्बन नक्सल कनेक्शन
भाजपा और आरएसएस का प्लान केजरीवाल के उस चेहरे को भी उजागर करना रहा, जिसका कनेक्शन अर्बन नक्सल से है। सोर्स के मुताबिक, अरविंद केजरीवाल उस गैंग का हिस्सा हैं, जिसने नक्सल मूवमेंट खड़ा किया। नक्सली, जो देश विरोधी ताकतों के हाथों की कठपुतली हैं। ये भी जनता के सामने लाएंगे कि केजरीवाल ने पंजाब में खालिस्तान मूवमेंट को भी अपरोक्ष समर्थन दिया हुआ है। उन्होंने तो कुमार विश्वास से आजाद पंजाब का प्रधानमंत्री तक बनने की बात कही थी।
5. बांग्लादेशियों-घुसपैठियों के अभियान चलाकर बनाए वोट
इस बात का भी खुलासा होगा कि दिल्ली की आप सरकार पिछले एक दशक के घुसपैठियों का समर्थन करने में लगी हुई थी। बताते हैं कि बांग्लादेशियों और घुसपैठियों के आधार कार्ड अभियान चलाकर बनवाए गए। बिना ये सोचे कि इससे देश की राजधानी के दरवाजे उन लोगों के लिए खुल सकते हैं, जो दिल्ली को असुरक्षित कर सकते हैं। आम आदमी पार्टी ने सिर्फ वोटों के लालच में इस खतरनाक साजिश को अंजाम दिया। भाजपा और आरएसएस केजरीवाल का ये सच भी सबके सामने लाए।
आरएसएस के इन संगठनों ने जमीनी स्तर पर दिल्ली विधानसभा चुनाव में भाजपा की जीत की रणनीति को अंजाम तक बखूबी पहुंचाया….
1. सेवा भारती: झुग्गियों में लगातार काम कर रही है। ये जिन बस्तियों में काम करती है, उसे सेवा बस्ती का नाम दिया जाता है। ये संगठन बस्तियों को आर्थिक तौर पर आत्मनिर्भर बनाने के लिए छोटे छोटे काम सिखाते हैं। जैसे- सिलाई-बुनाई सेंटर। इस चुनाव में इनकी भूमिका अहम रही। सेवाभारती को 20 हजार से ज्यादा बैठकें कराने का टारगेट दिया गया था।
2. लघु उद्योग भारती: ये संगठन छोटे स्तर के व्यापारियों के साथ काम करेगा, जिनकी फैक्ट्रियों में गरीब तबका काम करता है। इनके साथ बैठकों के जरिए RSS मुफ्त की योजनाओं का इस्तेमाल करने वाले तबके तक पहुंचेगा। इस संगठन ने भी 15-20 हजार बैठकें कराईं।
3. राष्ट्र सेविका समिति: इस संगठन को टारगेट नहीं दिया गया, बल्कि इस संगठन की महिलाओं ने दूसरे संगठनों के साथ जुड़कर काम किया। इन्होंने हर परिवार की महिलाओं के बीच RSS के चुनावी मुद्दों पर बात की।
4. भारतीय मजदूर संघ: मजदूर संघ दिल्ली में उस तबके के बीच पहुंचा, जिस तक केजरीवाल की रेवड़ियां पहुंचती हैं। आम आदमी पार्टी सरकारी स्कीम का फायदा ले रहे लोगों तक रेवड़ी के पैकेट पहुंचा रही थी। मजदूर संघ ने उनके साथ कई बैठकें करके उन्हें भाजपा की ओर मोड़ा।5. विद्या भारती: ये संगठन सरकारी स्कूलों के बच्चों के पेरेंट्स तक पहुंच। RSS ने इस तबके तक पहुंचने के लिए हर शाखा के स्वयंसेवकों को 50 बैठकें करने का टारगेट दिया था।
6. त्रिदेव संगठन: जमीन पर एक्टिव आरएसएस के त्रिदेव संगठन की हर विंग के पास बूथ लेवल पर 3 त्रिदेव उतारे। यानी बूथ लेवल पर आरएसएस के 3 पदाधिकारी एक्टिव रहे। इसके ऊपर अध्यक्ष, सह-अध्यक्ष, प्रांत अध्यक्ष जैसे पदाधिकारी थे। हर त्रिदेव ने अपने नीचे कम से कम 10 आम लोगों को जोड़ा। दिल्ली में 13,000 बूथ हैं। इस हिसाब से 39,000 त्रिदेव हैं और वे करीब 3 लाख 90 हजार लोगों को अपने साथ जोड़ने में कामयाब रहे।
7. भारत विकास परिषद: इस टोली की जिम्मेदारी बुद्धिजीवियों तक पहुंचना थी। इस संगठन के लोगों ने डॉक्टर, CA, इंजीनियर, साइंटिस्ट, वकील और प्रोफेसर्स के बीच जाकर बैठकें कीं और भाजपा के पक्ष में माहौल बनाया।