दुनियाभर के प्रमुख देशों की इकोनॉमी जब अनिश्चितता, दबाव और भू-राजनीतिक तनाव के संकट से गुजर रही है। उसी दौर में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की विजनरी और दूरगामी आर्थिक नीतियों के चलते भारत का निर्यात दस वर्षों के उच्चतम स्तर पर पहुंचा है। अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप काल की आक्रामक टैरिफ नीति, जिसमें भारतीय उत्पादों पर कई क्षेत्रों में 50 प्रतिशत तक शुल्क लगाया गया, उसे भी भारत की अर्थव्यवस्था ने झेल लिया है। यह किसी संयोग का परिणाम नहीं है, बल्कि यह मजबूती पीएम मोदी के नेतृत्व में पिछले एक दशक में अपनाई गई आर्थिक नीतियों का प्रतिफल है। पिछले नवंबर माह की ही बात करें तो भारत का माल निर्यात 19.37 प्रतिशत की तेज बढ़त के साथ 38.13 अरब डॉलर पर पहुंच गया है, जो पिछले दस वर्षों का सबसे ऊंचा मासिक स्तर वाला है। भारत ने पारंपरिक बाजारों के साथ-साथ अफ्रीका, लैटिन अमेरिका, मध्य एशिया और दक्षिण-पूर्व एशिया में अपने व्यापारिक संबंध मजबूत किए। नतीजा यह हुआ कि अगर किसी एक देश में टैरिफ बढ़ा, तो भारतीय निर्यातकों के पास विकल्प मौजूद रहे। यही कारण है कि अमेरिका में शुल्क बढ़ने के बावजूद कुल निर्यात ग्राफ ऊपर जाता रहा।
बढ़ते आर्थिक आंकड़ों और आत्मविश्वास में ‘अच्छे दिन’ परिलक्षित
आज ‘अच्छे दिन’ केवल एक नारा नहीं, बल्कि आर्थिक आंकड़ों में झलकता आत्मविश्वास है। प्रधानमंत्री मोदी की नीतियों ने देश को ऐसी स्थिति में ला खड़ा किया है, जहाँ वैश्विक टैरिफ युद्ध भी उसकी प्रगति को रोक नहीं पा रहा। निर्यात का रिकॉर्ड स्तर इस बात का प्रमाण है कि भारत अब नीतियों से नहीं, नतीजों से बोल रहा है और यही एक सशक्त, आत्मनिर्भर और वैश्विक भारत की पहचान बनता जा रहा है। नवंबर माहा के दौरान आयात 1.88 प्रतिशत गिरकर 62.66 अरब डॉलर रहा, जिससे व्यापार घाटा घटकर 24.53 अरब डॉलर पर आ गया, जो पांच महीने का न्यूनतम है और इससे अक्टूबर के रिकॉर्ड 41.68 अरब डॉलर के घाटे से बड़ा सुधार हुआ है।

इकोनिमिक ग्रोथ वाली नीतियों ने व्यापार घाटा सीमित किया
भारत की इकोनिमिक ग्रोथ वाली नीतियों का ही परिणाम है कि नवंबर में व्यापार घाटा सीमित रहा। विश्लेषकों के मुताबिक इसकी बड़ी वजह कच्चे तेल, सोना और कोयले का आयात घटना और सेवाओं तथा स्मार्ट फोन जैसे चुनिंदा इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों का निर्यात बढ़ना है। कच्चे तेल की कीमतों में वैश्विक नरमी और कुछ कमोडिटी खरीद में कमी ने भी आयात सीमित रखा है। नवंबर में पेट्रोलियम उत्पादों का निर्यात 11.65 प्रतिशत बढ़कर 3.93 अरब डॉलर (35.65 हजार करोड़ रुपये) हो गया। चाय, कॉफी, लोह अयस्क, काजू, तेल खली, डेयरी उत्पाद और चमड़े के सामान के निर्यात में भी वृद्धि हुई। 50 प्रतिशत ट्रम्प टैरिफ के बावजूद नवंबर में भारत के निर्यात में अमेरिका ही सबसे बड़ा बाजार रहा। वहां 6.98 अरब डॉलर का माल भेजा गया। 3.38 अरब डॉलर के साथ यूएई दूसरे नंबर पर रहा। चीन को निर्यात में सबसे तेज उछाल आया। नवंबर में यह 2.20 अरब डॉलर पहुंचा, जो पिछले साल से 90 प्रतिशत ज्यादा है।

50 प्रतिशत ट्रम्प टैरिफ के बीच भारत को मिला बढ़त का मौका
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा भारतीय सामानों पर कुल 50 प्रतिशत तक आयात शुल्क लगाने के बावजूद स्मार्टफोन, लैपटॉप, टैबलेट और कुछ सेमीकंडक्टर कंपोनेंट्स जैसे उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स को बड़े पैमाने पर छूट दी गई है। इस छूट के कारण भारत से अमेरिका को भेजे जाने वाले इन उत्पादों की कीमत चीन के समान उत्पादों की तुलना में लगभग 20 प्रतिशत तक सस्ती पड़ रही है, जिससे भारत और वियतनाम को अमेरिकी बाजार में महत्वपूर्ण प्रतिस्पर्धी बढ़त मिली है। भारत से निर्यात की बात करें तो नवंबर की उछाल में सबसे बड़ी भूमिका इंजीनियरिंग गुड्स और इलेक्ट्रॉनिक्स सेक्टर की रही, जिनकी शिपमेंट में डबल‑डिजिट ग्रोथ दर्ज की गई। सरकार के वाणिज्य मंत्रालय के अनुसार इलेक्ट्रॉनिक्स, खासकर मोबाइल फोन, लैपटॉप और अन्य हाई‑वैल्यू डिवाइसों का योगदान इतना रहा कि अक्टूबर की गिरावट लगभग पूरी तरह भरपाई हो गई।
व्यापार घाटा घटने से Macro Indicators पर सुधार
नवंबर में तेज निर्यात वृद्धि और सीमित आयात के संयोजन ने ना सिर्फ मासिक व्यापार घाटा घटाया, बल्कि चालू खाते पर दबाव भी कम किया है, जो रुपये की स्थिरता और विदेशी मुद्रा भंडार की सेहत के लिहाज़ से सकारात्मक संकेत है। विश्लेषकों का मानना है कि अगर आने वाले महीनों में यह रुझान जारी रहता है, तो नेट एक्सपोर्ट्स जीडीपी ग्रोथ में योगदान दे सकते हैं और वैश्विक मांग सुस्ती के बावजूद भारत की अर्थव्यवस्था को और मजबूती मिलेगी। विशेषज्ञ मानते हैं कि अगर यह तेज़ी बनी रही और निर्यात‑उन्मुख प्रोडक्शन को सरकार की प्रोत्साहन योजनाओं तथा श्रम सुधारों का समर्थन मिलता रहा, तो इलेक्ट्रॉनिक्स क्लस्टर और इंजीनियरिंग इकाइयों में रोज़गार सृजन तेज़ होगा और दीर्घकाल में भारत की उत्पादकता तथा प्रति व्यक्ति आय दोनों में स्थायी सुधार देखने को मिल सकता है।

पीएम मोदी की रणनीति ने इस झटके को अवसर में बदला
प्रधानमंत्री मोदी की आर्थिक सोच का एक बड़ा आधार रहा है- निर्यात का विविधीकरण। भारत ने पारंपरिक बाजारों के साथ-साथ अफ्रीका, लैटिन अमेरिका, मध्य एशिया और दक्षिण-पूर्व एशिया में अपने व्यापारिक संबंध मजबूत किए। नतीजा यह हुआ कि अगर किसी एक देश में टैरिफ बढ़ा, तो भारतीय निर्यातकों के पास विकल्प मौजूद रहे। यही कारण है कि अमेरिका में शुल्क बढ़ने के बावजूद कुल निर्यात ग्राफ ऊपर जाता रहा। ट्रंप प्रशासन की “अमेरिका फर्स्ट” नीति ने वैश्विक व्यापार व्यवस्था को झकझोर दिया था। स्टील, एल्युमिनियम, टेक्सटाइल और इंजीनियरिंग उत्पादों पर भारी टैरिफ लगाए गए, जिससे कई उभरती अर्थव्यवस्थाएं निर्यात मोर्चे पर लड़खड़ा गईं। लेकिन पीएम मोदी की रणनीति पर चलते हुए भारत ने इस झटके को अवसर में बदला। पीएम मोदी पहले भी आपदा को अवसर में बदलते रहे हैं। सरकार ने एक ही बाजार पर निर्भरता कम करने और नए गंतव्यों की तलाश की नीति अपनाई, जिससे अमेरिकी टैरिफ का असर सीमित हो गया।

‘मेक इन इंडिया’ की नीति भारत की निर्यात शक्ति बनी
‘मेक इन इंडिया’ को लंबे समय तक विपक्ष सिर्फ एक नारा कहता रहा। आज वही नीति भारत की निर्यात शक्ति बन चुकी है। मोबाइल फोन, इलेक्ट्रॉनिक्स, ऑटो पार्ट्स, फार्मास्यूटिकल्स और रक्षा उपकरण जैसे क्षेत्रों में भारत अब सिर्फ घरेलू मांग ही नहीं, बल्कि वैश्विक जरूरतें भी पूरी कर रहा है। उत्पादन बढ़ने से लागत घटी और प्रतिस्पर्धा बढ़ी, जिसने टैरिफ जैसी बाधाओं को भी निष्प्रभावी किया। प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (PLI) योजना ने भारतीय उद्योग को वैश्विक सप्लाई चेन से जोड़ा। कंपनियों को उत्पादन बढ़ाने पर सीधी प्रोत्साहन राशि दी गई, जिससे भारत से निर्यात होने वाले उत्पादों की मात्रा और गुणवत्ता दोनों में वृद्धि हुई। खासकर इलेक्ट्रॉनिक्स और फार्मा सेक्टर में भारत ने उन देशों की जगह ली, जो टैरिफ और राजनीतिक अस्थिरता के कारण पीछे हट रहे थे।

पीएम मोदी की विदेश नीति और आर्थिक कूटनीति काम आई
इसके साथ ही प्रधानमंत्री मोदी की विदेश नीति ने आर्थिक कूटनीति को केंद्र में रखा। मुक्त व्यापार समझौते, रणनीतिक साझेदारियां और उच्च स्तरीय संवाद के जरिए भारत ने अपने निर्यातकों के लिए नए रास्ते खोले। यूरोप, ऑस्ट्रेलिया और खाड़ी देशों के साथ हुए समझौतों ने भारतीय उत्पादों को तरजीह दिलाई, जिससे अमेरिकी टैरिफ का प्रभाव और कमजोर हुआ। भा रत का निर्यात अब केवल बड़े उद्योगों तक सीमित नहीं रहा। एमएसएमई और स्टार्टअप्स ने टेक्सटाइल, इंजीनियरिंग गुड्स, आईटी सर्विसेज और हैंडीक्राफ्ट जैसे क्षेत्रों में नई जान फूंकी। सरकार की क्रेडिट गारंटी, डिजिटल प्लेटफॉर्म और ई-कॉमर्स निर्यात नीतियों ने छोटे उद्यमियों को वैश्विक बाजार से जोड़ा, जिससे कुल निर्यात में व्यापक आधार तैयार हुआ। आत्मनिर्भर भारत अभियान का एक बड़ा प्रभाव यह रहा कि आयात पर निर्भरता कम हुई और घरेलू उत्पादन मजबूत हुआ। रक्षा, ऊर्जा और तकनीक जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में स्वदेशी क्षमता बढ़ी, जिससे व्यापार संतुलन सुधरा। जब देश अपनी जरूरतें खुद पूरी करता है, तब निर्यात के लिए अतिरिक्त क्षमता स्वतः तैयार होती है।
पीएम मोदी का इंफ्रास्ट्रक्चर पर जोर, लॉजिस्टिक्स में क्रांतिकारी सुधार
किसी भी देश का निर्यात केवल फैक्ट्री में उत्पादन से नहीं बढ़ता, बल्कि बंदरगाहों, सड़कों, रेल और कस्टम प्रक्रियाओं से जुड़ा होता है। पीएम मोदी का हमेशा से फोकस इंफ्रास्ट्रक्चर के विस्तार पर रहा है। पिछले दस वर्षों में बंदरगाहों की क्षमता बढ़ाई गई, लॉजिस्टिक्स लागत घटाई गई और डिजिटल क्लीयरेंस सिस्टम लागू किया गया। ‘गति शक्ति’ और ‘नेशनल लॉजिस्टिक्स पॉलिसी’ जैसी पहलों ने भारतीय माल को समय पर और कम लागत में वैश्विक बाजार तक पहुंचाने में अहम भूमिका निभाई। वैश्विक निवेशकों और खरीदारों के लिए नीति-स्थिरता सबसे बड़ा भरोसा है। मोदी सरकार ने टैक्स व्यवस्था को सरल बनाया, जीएसटी लागू कर एक राष्ट्र-एक बाजार की अवधारणा को मजबूत किया और कॉरपोरेट टैक्स में कटौती कर उत्पादन को आकर्षक बनाया। यही कारण है कि विदेशी कंपनियां भारत को केवल बाजार नहीं, बल्कि निर्यात हब के रूप में देखने लगीं हैं।










