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पीएम मोदी आदिवासी कल्याण के लिए प्रतिबद्ध, मानगढ़ धाम से दिया नया संदेश, तीन राज्यों की 99 विधानसभा और 40 लोकसभा सीट पर दिखेगा असर

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हर वर्ग के उत्थान के साथ ही देश के सबसे पिछड़े जनजातीय समाज यानी आदिवासियों के उत्थान और कल्याण के लिए प्रतिबद्ध हैं। केंद्र सरकार आदिवासियों के उत्थान के लिए लगातार काम कर रही है। पीएम मोदी के नेतृत्व में आदिवासी मामलों का मंत्रालय नई-नई योजनाएं लाकर और उनका क्रियान्वयन कर उन्हें समाज की मुख्यधारा से जोड़ने का काम कर रहा है। मोदी सरकार में आदिवासियों के लिए इतने कार्य हुए हैं जो कि पहले कभी नहीं हुए। केंद्र सरकार ने जनजातीय लोगों के विकास के साथ ही उनकी सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक स्वायत्तता की सुरक्षा के लिए भी कई कदम उठाए हैं। मोदी सरकार की तत्परता के कारण सरकारी योजनाओं का लाभ तमाम राज्यों के दूर-दराज के इलाकों में बसे जनजातीय लोगों को मिलने लगा है। इसके साथ ही पीएम मोदी ने आदिवासी समाज को सम्मान देकर खोया गौरव लौटा रहे हैं। इसी क्रम में उन्होंने राष्ट्रपति पद के लिए एक आदिवासी महिला द्रौपदी मुर्मू को चुना और देश को पहला आदिवासी राष्ट्रपति मिला। इसी तरह 2020 में भारतीय प्रशासनिक सेवा के वरिष्ठ अधिकारी गिरीश चंद्र मुर्मू देश के नए नियंत्रक व महालेखा परीक्षक यानी सीएजी बनाए गए। देश में पहली बार किसी आदिवासी समुदाय के व्यक्ति को सीएजी बनाया गया था। यह पीएम मोदी के विजन से ही संभव हो पा रहा है। आदिवासी समाज के लिए इस तरह के अनेक कार्य किए गए हैं। अब पीएम मोदी ने मानगढ़ धाम पहुंचकर वहां आदिवासी संत गोविंद गुरु को श्रद्धांजलि अर्पित की। इसके साथ ही उन्होंने वर्ष 1913 में ब्रिटिश सेना की गोलीबारी में जान गंवाने वाले आदिवासियों को भी श्रद्धांजलि दी।

राजस्थान के जिला बांसवाड़ा के मानगढ़ धाम पहुंचे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रता संग्राम के गुमनाम जनजातीय नायकों और शहीदों को उनके बलिदान के लिए नमन किया। उन्होंने कहा कि मानगढ़ राजस्थान, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और गुजरात के लोगों की साझी विरासत है। राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र को मानगढ़ के संपूर्ण विकास के रोडमैप के लिए साथ मिलकर काम करने की आवश्यकता है। गोविन्द गुरु जैसे महान स्वतंत्रता सेनानी भारत की परंपरा और आदर्शों के प्रतिनिधि थे। उन्होंने कहा कि भारत का अतीत, इतिहास, वर्तमान और भारत का भविष्य जनजातीय समुदाय के बिना कभी पूरा नहीं होता।

मानगढ़ की पवित्र भूमि बहादुरी और बलिदान का प्रतीकः पीएम मोदी

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ‘मानगढ़ धाम की गौरव गाथा’ में हिस्सा लिया और स्वतंत्रता संग्राम के गुमनाम जनजातीय नायकों और शहीदों को उनके बलिदान के लिए नमन किया। कार्यक्रम स्थल पर पहुंचने के बाद प्रधानमंत्री ने धूनी दर्शन किए और गोविंद गुरु की प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित की। यहां सभा को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि मानगढ़ की पवित्र भूमि में आना हमेशा प्रेरक होता है जो हमारे जनजातीय वीरों की तपस्या, त्याग, बहादुरी और बलिदान का प्रतीक है। उन्होंने कहा, “मानगढ़ राजस्थान, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और गुजरात के लोगों की साझी विरासत है।” प्रधानमंत्री ने गोविंद गुरु को श्रद्धांजलि अर्पित की, जिनकी पुण्यतिथि 30 अक्टूबर को थी।

महान स्वतंत्रता सेनानी गोविंद गुरु भारत की परंपरा और आदर्शों के प्रतिनिधि थे

गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में, प्रधानमंत्री ने मानगढ़ के क्षेत्र के प्रति अपनी सेवा को याद किया जो गुजरात का हिस्सा है और बताया कि गोविंद गुरु ने अपने जीवन के अंतिम वर्ष यहां बिताए, और उनकी ऊर्जा व उनकी शिक्षाएं अभी भी इस भूमि की मिट्टी में महसूस की जा सकती हैं। प्रधानमंत्री ने याद किया कि वन महोत्सव के मंच के माध्यम से सभी से आग्रह करने के बाद पूरा क्षेत्र हरा-भरा हो गया, जो पहले वीरान भूमि था। प्रधानमंत्री ने अभियान के लिए निस्वार्थ भाव से काम करने के लिए आदिवासी समुदाय को धन्यवाद दिया। प्रधानमंत्री ने कहा कि विकास से न केवल स्थानीय लोगों के जीवन स्तर में सुधार हुआ है, बल्कि गोविंद गुरु की शिक्षाओं का प्रचार-प्रसार भी हुआ है। प्रधानमंत्री ने कहा, “गोविंद गुरु जैसे महान स्वतंत्रता सेनानी भारत की परंपरा और आदर्शों के प्रतिनिधि थे।” उन्होंने कहा, “गोविंद गुरु ने अपना परिवार खो दिया लेकिन कभी अपना हौसल नहीं खोया और हर आदिवासी को अपना परिवार बनाया।” प्रधानमंत्री ने कहा कि एक और यदि गोविंद गुरु ने जनजातीय समुदाय के अधिकारों के लिए अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी, तो दूसरी ओर, उन्होंने अपने समुदाय की बुराइयों के खिलाफ भी अभियान चलाया, क्योंकि वे एक समाज सुधारक, आध्यात्मिक गुरु, एक संत और एक लोक-नेता थे। प्रधानमंत्री ने कहा कि उनका बौद्धिक व दार्शनिक पहलू उनके साहस और सामाजिक सक्रियता की तरह ही जीवंत था।

स्वतंत्रता संग्राम की महत्वपूर्ण घटना को इतिहास की किताबों में जगह नहीं मिली

मानगढ़ में 17 नवंबर, 1913 के नरसंहार को याद करते हुए, प्रधानमंत्री ने कहा कि यह भारत में ब्रिटिश शासन द्वारा अत्यधिक क्रूरता का एक उदाहरण था। मोदी ने कहा, “एक तरफ हमारे पास निर्दोष आदिवासी थे जो आजादी की मांग कर रहे थे, वहीं दूसरी तरफ ब्रिटिश औपनिवेशिक शासकों ने मानगढ़ की पहाड़ियों को घेरकर दिन-दहाड़े एक हजार पांच सौ से अधिक निर्दोष युवाओं, महिलाओं, बुजुर्गों और बच्चों का नरसंहार किया।” प्रधानमंत्री ने कहा कि दुर्भाग्यपूर्ण परिस्थितियों के कारण स्वतंत्रता संग्राम की इतनी महत्वपूर्ण और प्रभावशाली घटना को इतिहास की किताबों में जगह नहीं मिल पाई। प्रधानमंत्री ने कहा, “इस आजादी का अमृत महोत्सव में, भारत उस कमी को पूरा कर रहा है और दशकों पहले की गई गलतियों को सुधार रहा है।”

भारत का भविष्य जनजातीय समुदाय के बिना पूरा नहीं होता

प्रधानमंत्री ने जोर देकर कहा कि “भारत का अतीत, इतिहास, वर्तमान और भारत का भविष्य जनजातीय समुदाय के बिना कभी भी पूरा नहीं होता। हमारे स्वतंत्रता संग्राम की कहानी का हर पन्ना आदिवासी समुदाय की वीरता से भरा है।” प्रधानमंत्री ने 1780 के दशक के उस गौरवशाली संघर्ष को याद किया जब तिलका मांझी के नेतृत्व में संथाल संग्राम लड़ा गया था। उन्होंने 1830-32 के बारे में बताया जब देश ने बुधु भगत के नेतृत्व में लरका आंदोलन देखा। 1855 में सिद्धू-कान्हू क्रांति ने देश को ऊर्जा से भर दिया। भगवान बिरसा मुंडा ने अपनी ऊर्जा और देशभक्ति से सभी को प्रेरित किया। प्रधानमंत्री ने कहा, “आपको सदियों पहले गुलामी की शुरुआत से लेकर 20वीं सदी तक का कोई समय नहीं मिलेगा, जब जनजातीय समुदाय ने आजादी की लौ नहीं जलाई थी।” उन्होंने आंध्र प्रदेश में अल्लूरी सीताराम राजू का जिक्र किया। राजस्थान में इससे पहले भी आदिवासी समाज महाराणा प्रताप के साथ खड़ा था। प्रधानमंत्री ने कहा, “हम जनजातीय समुदाय के बलिदान के लिए उनके ऋणी हैं। इस समाज ने प्रकृति, पर्यावरण, संस्कृति और परंपराओं में भारत के चरित्र को संरक्षित किया है। आज देश के लिए उनकी सेवा करके उन्हें धन्यवाद देने का समय है।”

आदिवासी स्वतंत्रता सेनानियों को समर्पित विशेष संग्रहालय बनाया जा रहा

प्रधानमंत्री ने बताया कि 15 नवंबर को देश भगवान बिरसा मुंडा की जयंती पर जनजातीय गौरव दिवस मनाने जा रहा है। उन्होंने कहा, “जनजातीय गौरव दिवस स्वतंत्रता संग्राम में आदिवासियों के इतिहास के बारे में जनता को शिक्षित करने का एक प्रयास है।” मोदी ने कहा कि जनजातीय समाज के इतिहास को जन-जन तक पहुंचाने के लिए देश भर में आदिवासी स्वतंत्रता सेनानियों को समर्पित विशेष संग्रहालय बनाए जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि यह शानदार विरासत अब विचार प्रक्रिया का हिस्सा बनेगी और युवा पीढ़ी को प्रेरणा प्रदान करेगी।

वनबंधु कल्याण योजना से जनजातीय आबादी को पानी और बिजली कनेक्शन, शिक्षा एवं स्वास्थ्य सेवाएं मिल रहीं

प्रधानमंत्री ने देश में जनजातीय समाज की भूमिका का विस्तार करने के लिए समर्पित भावना के साथ काम करने की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि देश राजस्थान व गुजरात से लेकर पूर्वोत्तर और उड़ीसा तक देश के सभी हिस्सों में विविध जनजातीय समाज की सेवा के लिए स्पष्ट नीतियों के साथ काम कर रहा है। प्रधानमंत्री ने कहा कि वनबंधु कल्याण योजना के माध्यम से जनजातीय आबादी को पानी और बिजली कनेक्शन, शिक्षा एवं स्वास्थ्य सेवाएं और रोजगार के अवसर प्रदान किए जा रहे हैं। उन्होंने कहा, “आज देश में वन आवरण-क्षेत्र भी बढ़ रहा है और संसाधनों का संरक्षण किया जा रहा है। साथ ही, जनजातीय क्षेत्रों को भी डिजिटल इंडिया से जोड़ा जा रहा है।” प्रधानमंत्री ने एकलव्य आवासीय विद्यालयों के बारे में भी चर्चा की, जो पारंपरिक कौशल के साथ जनजातीय युवाओं को आधुनिक शिक्षा के अवसर प्रदान करते हैं। प्रधानमंत्री ने यह भी बताया कि वे गोविंद गुरु जी के नाम पर विश्वविद्यालय के भव्य प्रशासनिक परिसर का उद्घाटन करने के लिए जांबूघोडा जा रहे हैं।

मानगढ़ धाम के संपूर्ण विकास का संकल्प

प्रधानमंत्री ने अहमदाबाद-उदयपुर ब्रॉड गेज लाइन चालू होने की चर्चा की। उन्होंने राजस्थान के लोगों के लिए 300 किलोमीटर की लाइन के महत्व के बारे में बताया क्योंकि यह गुजरात के कई जनजातीय क्षेत्रों को राजस्थान के जनजातीय क्षेत्रों से जोड़ेगी और इन क्षेत्रों में औद्योगिक विकास एवं रोजगार को बढ़ावा देगी। मानगढ़ धाम के संपूर्ण विकास की चर्चा पर प्रकाश डालते हुए प्रधानमंत्री ने मानगढ़ धाम के भव्य विस्तार की प्रबल इच्छा व्यक्त की। प्रधानमंत्री ने चार राज्यों- राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र की सरकारों से एक साथ मिलकर काम करने और एक रोडमैप तैयार करने के बारे में विस्तृत चर्चा करने का अनुरोध किया ताकि गोविंद गुरु जी के इस स्मारक स्थल को दुनिया के नक्शे पर जगह मिल सके। अंत में प्रधानमंत्री ने कहा, “मुझे विश्वास है कि मानगढ़ धाम का विकास इस क्षेत्र को नई पीढ़ी के लिए प्रेरणा का एक जागृत स्थल बना देगा।”

15 नवंबर को ‘जनजातीय गौरव दिवस’

आजादी का अमृत महोत्सव के हिस्से के रूप में, सरकार ने स्वतंत्रता संग्राम के गुमनाम जनजातीय नायकों को याद करने के लिए कई कदम उठाए हैं। इनमें 15 नवंबर (जनजातीय स्वतंत्रता सेनानी बिरसा मुंडा की जयंती) को ‘जनजातीय गौरव दिवस’ के रूप में घोषित करना, समाज में जनजातीय लोगों के योगदान को मान्यता देने और स्वतंत्रता संग्राम में उनके बलिदान के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए देश भर में जनजातीय संग्रहालयों की स्थापना करना आदि शामिल हैं। इस दिशा में एक और कदम उठाते हुए, प्रधानमंत्री ने स्वतंत्रता संग्राम के गुमनाम जनजातीय नायकों और शहीदों के बलिदान के लिए उन्हें नमन करने के लिए राजस्थान के बांसवाड़ा स्थित मानगढ़ हिल में एक सार्वजनिक कार्यक्रम – ‘मानगढ़ धाम की गौरव गाथा’ में भाग लिया। इस कार्यक्रम के दौरान, प्रधानमंत्री ने भील स्वतंत्रता सेनानी श्री गोविंद गुरु को नमन किया तथा भील आदिवासियों और क्षेत्र के अन्य जनजातीय आबादी की एक सभा को भी संबोधित किया।

गोविंद गुरु ने भीलों के बीच सामाजिक सुधारों की भी अलख जलाई

गांव-गांव में शिक्षा के लिए पाठशाला का निर्माण करना, बच्चों में संस्कृति की समझ को प्रोत्साहित करना, बड़ों को सनातन धर्म के अनुसरण की प्रेरणा देना, स्वदेशी वस्तुओं के उपयोग पर जोर देना और शराब और मांस के सेवन को बंद करना था। महात्मा गांधी द्वारा स्वतंत्रता की लड़ाई में संत सभा के आदर्शों से भी प्रेरणा ली गई। गोविंद गुरु ने भीलों के बीच सामाजिक सुधारों की अलख तो जलाई ही साथ ही स्वराज के बीज भी उनके अंदर बोए। इस बीच अंग्रेजों को ये खबर लगी कि गोविंद गुरु अपने अनुयायियों के साथ भारी संख्या में एक सभा में एकत्रित होने वाले हैं। और इस सभा में भील ब्रिटिश अधिकारियों के खिलाफ आंदोलन भी कर सकते हैं। तारीख 17 नवंबर और साल 1913 उस दिन पूर्णिमा थी। मानगढ़ पहाड़ी पर वार्षिक मेला आयोजित किया जाना था। भीड़ बड़ी संख्या में मानगढ़ और अन्य जगहों पर इकट्ठा होने लगे थे। उस बढ़ती भीड़ ने ब्रिटिश हुकूमत की रातों की नींद उड़ा दी। पुलिस ने निर्दोष भीलों को घेरकर उन पर गोलियों की बारिश शुरू कर दी। यह भयावह त्रासदी दो घंटों तक चली और 1500 से अधिक भीलों के लहू से ये पहाड़ी रंग गई। गोविंद गुरु को गिरफ्तार कर लिया गया। उन्हें फांसी की सजा हुई। जिसे बाद में आजीवन कारावास में बदल दिया गया। गोविंद गुरु जी ने जेल से रिहा होने के बाद अपना शेष जीवन भील सेवा सदन के माध्यम से लोगों की सेवा में लगा दिया। उन्होंने गीतों के माध्यम से भीलों को जागरूक किया। जब पूरा भारत अंग्रेजों के खिलाफ छेड़ी लड़ाई में अपने-अपने तरीके से योगदान दे रहा था। उस समय गोविंद गुरु अशिक्षा और अज्ञानता के जाल में फंसे आदिवासियों को जगा रहे थे और जला रहे थे उनके अंदर देशभक्ति की मशाल।

मानगढ़ धाम का प्रभाव तीन राज्यों की 99 विधानसभा व 40 लोकसभा सीटों पर

मानगढ़ धाम का प्रभाव तीन राज्यों की 99 विधानसभा सीटों पर माना जाता है। इसमें गुजरात की 27, राजस्थान की 25 और मध्यप्रदेश की 47 सीटें हैं। यह सभी सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं। इन 3 राज्यों की करीब 40 लोकसभा सीटों पर भी आदिवासी समुदाय का असर माना जाता है। गुजरात में इसी साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने हैं। जबकि मध्य प्रदेश और राजस्थान में ठीक एक साल बाद चुनाव होंगे। मिशन 2023 को देखते हुए भी पीएम का बांसवाड़ा दौरा बेहद अहम माना जा रहा है। इस धार्मिक आयोजन के जरिए बीजेपी इन तीनों राज्यों के आदिवासियों को यह संदेश देने की कोशिश कर रही है कि उनकी पार्टी आदिवासियों का कितना ख्याल रखती है। पीएम की इस सभा का असर सबसे ज्यादा दक्षिणी राजस्थान के आदिवासी बेल्ट पर देखने को मिलेगा। आदिवासी बाहुल्य जिले बांसवाड़ा की 5 में से 2 ही सीटों पर बीजेपी विधायक हैं। डूंगरपुर की 4 में से 1 ही सीट बीजेपी के पास है। प्रतापगढ़ में 2 में से एक भी सीट बीजेपी के पास नहीं है। हालांकि उदयपुर, चित्तौड़गढ़, पाली, सिरोही में बीजेपी मजबूत है। जानकारों का कहना है कि राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र समेत आसपास के इलाकों के आदिवासी लंबे समय से कई मुद्दों पर सरकार से मांग कर रहे हैं। इनमें जनगणना में आदिवासियों का अलग कॉलम रखने और ट्राइबल कोड की मांग प्रमुख है। आदिवासी क्षेत्रों से जुड़े लोगों के रिजर्वेशन को लेकर कॉमन पॉलिसी बनाने, मानगढ़ धाम को राष्ट्रीय महत्व का स्मारक घोषित करने, वन क्षेत्रों में रहने वाले आदिवासियों के भूमि अधिकार सुरक्षित रखने, उनकी संस्कृति को संजोकर रखने, आदिवासी क्षेत्र को केंद्र से विशेष बजट, रोजगार जैसी मांगें महत्वपूर्ण हैं।

आइए नजर डालते हैं मोदी सरकार की ओर से जनजातीय लोगों के लिए किए जा रहे कार्यों पर-

927 करोड़ बढ़ा जनजातीय मंत्रालय का बजट

केंद्रीय बजट में जनजातीय मंत्रालय के बजट आकार में पिछले वर्ष के सापेक्ष 927 करोड़ की वृद्धि की गई है। जिसका झारखंड जैसे आदिवासी राज्यों को लाभ मिलेगा। वित्तीय वर्ष 2021-22 में जनजातीय मंत्रालय का बजट आकार 7524.87 करोड़ था, जिसका आकार वित्तीय वर्ष 2022-23 के लिए बढ़ाकर 8451.92 करोड़ किया गया है। जनजातीय मामलों के केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा ने जनजातीय मामलों के केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा ने 2022-23 के लिए एक उत्कृष्ट बजट पेश करने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को बधाई दी है। उन्होंने कहा कि यह बजट समावेशी एवं हर वर्ग को सशक्त बनाने की दृष्‍ट‍ि से बनाया गया बजट है। हमारी सरकार ने अगले 25 वर्षों में समृद्ध अर्थव्यवस्था को चलाने का खाका तैयार किया है। यह एक ऐसा बजट है जो ‘मेक इन इंडिया’ को बढ़ावा देगा, मांग को बढ़ावा देगा और एक मजबूत, समृद्ध और आत्मविश्वास से भरे भारत के लिए क्षमता का निर्माण करेगा।

भारत की पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति बनीं द्रौपदी मुर्मू

द्रौपदी मुर्मू ने सोमवार, 25 जुलाई 2022 को भारत के 15वें राष्ट्रपति के रूप में शपथ ग्रहण किया। इसके साथ ही वह देश की पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति बन गई हैं। राष्ट्रपति मुर्मू, जो राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) की उम्मीदवार थी, उन्होंने राष्ट्रपति चुनाव में यशवंत सिन्हा के खिलाफ भारी अंतर से जीत हासिल की। निर्वाचक मंडल वाले सांसदों और विधायकों के 64 प्रतिशत से अधिक वैध वोट प्राप्त करने के बाद, राम नाथ कोविंद के बाद देश की 15 वीं राष्ट्रपति बन गईं। सिन्हा के 3,80,177 मतों के मुकाबले उन्हें 6,76,803 मत मिले। 20 जून, 1958 को स्वर्गीय बिरंची नारायण टुडू के घर जन्मीं द्रौपदी मुर्मू ओडिशा के सबसे दूरस्थ और अविकसित जिलों में से एक से हैं। अपने बचपन में आने वाली प्रतिकूलताओं के बावजूद, मुर्मू ने अपनी शिक्षा पूरी की और 1994-1997 तक बिना वेतन के श्री अरबिंदो इंटीग्रल एजुकेशन सेंटर, रायरंगपुर में मानद सहायक शिक्षक के रूप में सेवा करके अपने पेशेवर करियर की शुरुआत की। 1997 में, राजनीतिक क्षेत्र में मुर्मू का कार्यकाल पार्षद के रूप में उनकी जीत के साथ शुरू हुआ। उन्हें रायरंगपु राष्ट्रीय सलाहकार परिषद का उपाध्यक्ष नियुक्त किया गया था। बाद के वर्षों में, द्रौपदी मुर्मू को 2000 और 200 9 में दो बार रायरंगपुर निर्वाचन क्षेत्र से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के टिकट पर विधान सभा के सदस्य के रूप में चुना गया था। उन्हें वर्ष 2007 में ओडिशा की विधान सभा द्वारा ‘सर्वश्रेष्ठ विधायक के लिए नीलकंठ पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया था। ओडिशा में बीजू जनता दल (बीजद) और भाजपा गठबंधन सरकार के दौरान, मुर्मू ने 2000 और 2004 के बीच वाणिज्य और परिवहन विभाग और बाद में मत्स्य पालन और पशु संसाधन विभाग में मंत्री के रूप में कार्य किया। द्रौपदी मुर्मू ने वर्ष 2015 में झारखंड के राज्यपाल के रूप में शपथ ली और 2021 तक इस पद पर रहे। झारखंड के राज्यपाल के रूप में अपने कार्यकाल में भी, मुर्मू का नाम पहली महिला राज्यपाल के साथ-साथ पहली ओडिया महिला और आदिवासी नेता के रूप में भी जाता है।

देश में पहला आदिवासी सीएजी बनाया गया

भारतीय प्रशासनिक सेवा के वरिष्ठ अधिकारी गिरीश चंद्र मुर्मू 2020 में देश के नए नियंत्रक व महालेखा परीक्षक यानी सीएजी बनाए गए। देश में पहली बार किसी आदिवासी समुदाय के व्यक्ति को सीएजी बनाया गया है। आदिवासी कल्याण पर बड़ी-बड़ी बातें करने वाली तमाम पार्टियों ने आजादी के बाद से अब तक किसी आदिवासी को इस पद पर नहीं बिठाया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पहली बार किसी आदिवासी को सीएजी की कुर्सी पर बिठाया है। आजादी के बाद सीएजी बनने वाले मुर्मू चौदहवें भारतीय हैं। मूर्मू इस पद पर बैठने वाले पहले आदिवासी समुदाय के व्यक्ति के साथ इस पद पर आसीन होने वाले गुजरात कैडर के पहले आइएएस अधिकारी भी हैं। पुर्नगठन के बाद जम्मू-कश्मीर के पहले उपराज्यपाल रहे गिरीश चंद्र मुर्मू 1985 बैच के गुजरात कैडर के तेजतर्रार आईएएस अधिकारी हैं। ओडिशा के मयूरभंज में 21 नवंबर 1959 में जन्मे मुर्मू उत्कल यूनिवर्सिटी से पॉलिटिकल साइंस में एमए हैं। उन्होंने बर्मिंगम यूनिवर्सिटी (ब्रिटेन) से एमबीए किया है। इसके बाद सिविल सर्विसेज में आए। 1985 में आईएएस बनने के पहले मुर्मू स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में पीओ भी रह चुके हैं। कभी बैंक में काम कर चुके मुर्मू अब सभी बैंकों के परिचालन को देखने वाले डिपार्टमेंट ऑफ फाइनेंशियल सर्विसेज की अगुआई करेंगे। मुर्मू प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के डायरेक्टर भी रह चुके हैं। मुर्मू वित्त मंत्रालय में कई अहम पदों पर अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके हैं।

जनजातीय समुदायों का कौशल विकास

प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में जनजातीय समुदाय के आर्थिक विकास के लिए काफी काम किया जा रहा है। आदिवासी समुदाय के युवाओं को केंद्र सरकार के कौशल विकास कार्यक्रम से जोड़ा गया है। जनजातीय लोगों को आधुनिक तकनीकि से प्रशिक्षित कर कृषि, बागवानी, मछलीपालन, पशुपालन जैसे पारंपरिक पेशों के अलावा उन्हें फ्रिज-एसी, मोबाइल की मरम्मत, ब्यूटीशियन, डाटा एंट्री ऑपरेटर, सुरक्षा गार्ड, घरेलू नर्स जैसे क्षेत्रों में पारंगत किया जा रहा है। इसके साथ ही चित्रकारी, हथकरघा, हस्तशिल्प, राजमिस्त्री, इलेक्ट्रीशियन जैसे क्षेत्रों में जनजातीय लोगों को कौशल विकास के तहत प्रशिक्षित करने का कार्यक्रम चलाया जा रहा है।

जल, जंगल, जमीन पर आदिवासियों का अधिकार

देश के तमाम राज्यों में रहने वाले लाखों आदिवासियों के मौलक अधिकारों की रक्षा और जल, जंगल, जमीन पर उनके हक को बरकरार रखने के लिए प्रधानमंत्री मोदी की सरकार लगातार काम कर रही है। तमाम आदिवासी समूहों द्वारा इस संबंध में शिकायत की जाती रही है, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद जनजातीय समूहों को भरोसा दिलाया है कि उनके अधिकारों की पूरी रक्षा की जाएगी। प्रधानमंत्री ने कहा है कि विकास के लिए प्राकृतिक संसाधनों का इस्तेमाल जरूरी है, लेकिन प्राकृतिक संसाधनों का दोहन आदिवासियों की कीमत पर नहीं होगा। प्रधानमंत्री मोदी ने यह भी कहा है कि जल, जंगल, जमीन पर आदिवासियों का अधिकार रहेगा क्योंकि वे उसकी उपासना करते हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने जनजातियों के विकास को गति देने के लिए पिछले वर्ष जनजातीय बहुल इलाकों में एक सौ से ज्यादा विकास केंद्र खोलने की घोषणा भी की थी। इस योजना पर काम चल रहा है, इन विकास केंद्रों में शिक्षा, अस्पताल जैसी आधुनिक सुविधाएं भी उपलब्ध रहेंगी।

जनजातीय छात्र-छात्राओं के लिए आश्रम स्कूल

मोदी सरकार ने अनुसूचित जनजाति के छात्रों के लिए देशभर में 1205 आश्रम स्कूलों के निर्माण के लिए धनराशि उपलब्ध कराई है। इन स्कूलों में करीब 1,15,500 सीटों की व्यवस्था की गई है। इन स्कूलों के अतिरिक्त विभिन्न राज्य सरकारों ने भी जनजातीय छात्रों और छात्राओं के लिए 3272 आश्रम स्कूल खोले हैं।

राष्ट्रीय जनजातीय कार्निवाल, 2016

पीएम मोदी के नेतृत्व में 2014 में केंद्र सरकार बनने के साथ ही आदिवासी समुदाय के लिए काम शुरू कर दिया गया था। इसी के तहत जनजातीय कार्य मंत्रालय ने 25-28 अक्‍टूबर, 2016 को प्रथम राष्ट्रीय जनजातीय कार्निवाल का सफल आयोजन किया। प्रधानमंत्री ने मुख्‍य अतिथि के रूप में इस अवसर की शोभा में चार चांद लगाए और 25 अक्‍टूबर, 2016 को इंदिरा गांधी इनडोर स्‍टेडियम, नई दिल्‍ली में कार्निवाल का उद्घाटन किया। उद्घाटन समारोह के दौरान देश भर से आई सैंकड़ों जनजातीय कलाकारों की मंडलियों ने परंपरागत वेशभूषा में कार्निवाल परेड में भाग लिया। देश भर के लगभग 20,000 प्रतिनिधियों ने भी इस समारोह में शिरकत की।

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