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पीएम केयर फंड को मिल रहा चौतरफा समर्थन, मदद के लिए आगे आए मंदिर

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कोरोना वायरस महामारी से निपटने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अपील पर देशवासी बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं। देशभर से प्रधानमंत्री मोदी के पीएम केयर फंड को चौतरफा समर्थन मिल रहा है। एक हजार हो या फिर 1500 करोड़ हर कोई अपनी क्षमता के अनुसार मदद के लिए आगे आ रहा है। इसमें धार्मिक संस्थान भी पीछे नहीं हैं। 

आइए एक नजर डालते हैं उन मंदिरों और ट्रस्टों पर जिन्होंने कोरोना वायरस के खिलाफ लड़ाई में सहयोग दिया है।

  साईंबाबा संस्थान ट्रस्ट, शिरडी ने महाराष्ट्र मुख्यमंत्री राहत कोष में  51 करोड़ का दान किया है। 

 देवस्थान प्रबंधन समिति, कोल्हापुर ने महालक्ष्मी मंदिर के माध्यम से 1.5 करोड़ रुपये मुख्यमंत्री राहत कोष में दान देने की घोषणा की है।

  श्रीमहावीर हनुमान मंदिर, पटना  ने मुख्यमंत्री राहत कोष में 1 करोड़ रुपये का दान दिया है।

इनके अलावा सोशल मीडिया पर कई मंदिरों और ट्रस्टों के बार में दान दिए जाने का दावा किया जा रहा है, लेकिन परफॉर्म इंडिया इसकी पुष्टि नहीं करता है।  

इस तरह देश के कई मंदिरों और धार्मिक ट्रस्टों ने पीएम केयर फंड और मुख्यमंत्री राहत कोष में करोड़ों रुपये दान देकर संकट के समय अपनी सामाजिक जिम्मेदारी को बखूबी निभाया है।

जहां कोरोना के खिलाफ लड़ाई में मंदिर देश के साथ खड़े नजर आ रहे हैं, वहीं मुस्लिम धार्मिक संस्थान और मस्जिद कहीं दिखाई नहीं दे रहे हैं। मुस्लिम धार्मिक ट्रस्ट भी संकट के समय नजर नहीं आ रहा है। इस समय भी मुस्लिमों को केंद्र और राज्य सरकारों का ही भरोसा है। दिल्ली सहित कई राज्यों में इमामों को सरकारी खजाने से वेतन दिया जा रहा है। दिल्ली के मस्जिदों के इमामों को 18 हजार रुपये, सहायकों को 16 हजार रुपये और रख-रखाव के लिए 9 हजार रुपये दिए जा रहे हैं।

दिल्ली और अन्य राज्यों में मौलवियों को तो वेतन दिया जाता है, लेकिन मंदिरों के पुजारियों के साथ भेदभाव किया जाता है। उन्हें वेतन देने की जगह राज्य सरकारें मंदिरों के संसाधनों का ही दोहन करती हैं। सरकार ट्रस्ट बनाकर मंदिरों के प्रबंधन का जिम्मा सौप देती है। लेकिन इस ट्रस्ट के माध्यम से मंदिरों में प्रशासनिक हस्तक्षेप के रास्ते भी खुल जाते हैं। कई बार इसके खिलाफ आवाजें भी उठीं। मंदिरों में धर्मार्थ दान पर सरकारी नियंत्रण के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की गई। हिंदू धार्मिक संस्थानों के साथ भेदभाव के आरोप भी लगाए गए। कई हिन्दू संगठनों ने कहा कि अन्य धार्मिक संस्थानों को इससे परे रखा गया है। सरकार अपने चुने हुए प्रतिनिधि को मंदिरों के ऊपर बिठा देती है और फिर प्रतिनिधि कभी निर्माण के नाम पर तो कभी दूसरी तरह से दान में आए हुए धन का दुरुपयोग करते हैं। 

 

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