Home समाचार पीएम मोदी के विजन से बदल गई खिलौना उद्योग की तस्वीर, दुनिया...

पीएम मोदी के विजन से बदल गई खिलौना उद्योग की तस्वीर, दुनिया में छा रहे भारतीय खिलौने, निर्यात 6 गुना बढ़कर 1000 हजार करोड़ रुपये से ऊपर पहुंचा

SHARE

आजादी के बाद 50 से अधिक सालों तक देश पर शासन करने वाली कांग्रेस ने भारत को आत्मनिर्भर बनाने के लिए कोई प्रयास नहीं किया, उलटे जो उद्योग या फैक्टरी चल रही थी उसे भी बंद कर भारत के विकास पर ब्रेक लगाने के काम किया। वर्ष 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने केंद्र की सत्ता में आने के बाद भारत के विकास की तस्वीर बदल दी। बंद पड़े खाद कारखानों से लेकर कई उद्योगों एवं फैक्टरी को फिर से शुरू किया गया। इन्हीं उद्योगों में एक था खिलौना उद्योग जिसे कांग्रेस ने मरने के लिए अपने हाल पर छोड़ दिया था। लेकिन पीएम मोदी के विजन से खिलौना उद्योग सफलता के नए कीर्तिमान रच रहा है। वित्त वर्ष 2022-23 की अप्रैल-दिसंबर अवधि के दौरान देश का खिलौनों का निर्यात छह गुना बढ़कर 1,017 करोड़ रुपये तक पहुंच गया है। जबकि इसी अवधि में 2013 में यह 167 करोड़ रुपये था। वर्ष 2021-22 में निर्यात 2,601 करोड़ रुपये रहा था।

पीएम मोदी ने मृतप्राय खिलौना उद्योग को फिर से जिंदा कर दिया

कांग्रेस के शासनकाल में 2013 में खिलौना का निर्यात 167 करोड़ रुपये था। वहीं पीएम मोदी के सत्ता में आने के नौ साल के भीतर 2022-23 की अप्रैल-दिसंबर में निर्यात बढ़कर 1,017 करोड़ रुपये तक पहुंच गया है। यह पीएम मोदी के विजन से ही संभव हो पाया। उनकी पहल से खिलौना उद्योग को सरकारी प्रोत्साहन मिला, कई नए स्टार्टअप्स सामने आए और भारतीय युवा प्रतिभाओं के जोश से खिलौना उद्योग जी उठा।

पीएम मोदी की भारतीय खिलौना की रीब्रांडिंग की अपील से बदला माहौल

अगस्त 2020 में ‘मन की बात’ के अपने संबोधन में पीएम मोदी ने ‘भारतीय खिलौना स्टोरी की रीब्रांडिंग’ की अपील की थी और घरेलू डिजाइनिंग को सुदृढ़ बनाने तथा भारत को खिलौनों के लिए एक वैश्विक विनिर्माण हब के रूप में बनाने के लिए बच्चों के लिए सही प्रकार के खिलौनों की उपलब्धता, खिलौनों का उपयोग सीखने के संसाधन के रूप में करने, भारतीय मूल्य प्रणाली, भारतीय इतिहास और संस्कृति पर आधारित खिलौनों की डिजाइनिंग करने पर जोर दिया था। इसके बाद भारतीय खिलौना उद्योग को सरकार की कई सारी प्रोत्साहन नीतियों से लाभ पहुंचा है और इसके परिणाम ‘मेक इन इंडिया’ प्रोग्राम की सफलता प्रदर्शित करती है।

दो साल में भारत का खिलौना निर्यात 2600 करोड़ रुपये पर पहुंच गया

वर्ष 2014 से पहले भारत के बाजार चीन के खिलौने से अटा पड़ा रहता था। जो चीन कल तक वैश्विक खिलौना निर्माण का पावरहाउस था आज बहुराष्ट्रीय कंपनियां भी अपनी खिलौना निर्माण ईकाई भारत में खोलना चाह रही है। यह सब पीएम मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार के प्रयासों से ही यह करिश्मा संभव हुआ है। यही वजह है कि सिर्फ 2 साल में भारत का खिलौना निर्यात 300 करोड़ से 2600 करोड़ रुपये पर पहुंच गया। आज भारत का खिलौना उद्योग चीन पर आयात निर्भरता को कम करने के लिए देश के अभियान में एक उम्मीद की किरण बन गया है। इसके चलते एक ओर भारत में खिलौनों का निर्यात बढ़ा तो वहीं खिलौनों का आयात भी घट गया। इससे न केवल भारतीय अर्थव्यवस्था को मजबूती मिली बल्कि खिलौना उद्योग के फलने-फूलने से लोगों को रोजगार भी मिला है।

चीन से आयात किए जाने वाले 67 प्रतिशत खिलौने असुरक्षित थे

2014 से पहले हमारा खिलौना उद्योग बहुत असंगठित था, इसलिए अधिक केंद्रीकृत संचालन की आवश्यकता थी। 2019 में एक सरकारी सर्वेक्षण में पाया गया कि चीन से 67 प्रतिशत खिलौना आयात असुरक्षित था। चीनी खिलौने, जो भारत में बच्चों के बीच अत्यधिक लोकप्रिय थे उनमें सीसा, कैडमियम और बेरियम के असुरक्षित तत्व पाए गए। इसके बाद, असुरक्षित खिलौनों को देश में प्रवेश करने से रोकने और बढ़ावा देने के लिए सरकार द्वारा कई कदम उठाए गए हैं।

कांग्रेस की नाकामी से भारतीय खिलौना उद्योग उभर नहीं सका

कांग्रेस शासनकाल में कई कमियों ने भारतीय खिलौना उद्योग को वैश्विक परिघटना में उभरने की अपनी वास्तविक क्षमता को प्राप्त करने से रोक दिया था। जैसे कि अनुसंधान एवं विकास, डिजाइन, नवाचार, वित्तीय सहायता, कुशल श्रमिक, विपणन का घोर आभाव था। उदाहरण के लिए, भारत इलेक्ट्रिक टॉय सेगमेंट से पूरी तरह से गायब हो गया था। जो कि टॉय मार्केट में सबसे तेजी से बढ़ने वाले सेगमेंट में से एक है, और चीन इस पर बिल्कुल हावी है। लेकिन 2014 के बाद सरकारी प्रोत्साहन, भारतीय युवाओं की प्रतिभा और स्टार्टअप की पहल से खिलौना उद्योग ने पूरे परिदृश्य बदल दिया है।

पिछले तीन साल में खिलौनों का आयात 70 प्रतिशत कम हुआ

सरकारी हस्तक्षेपों के परिणामस्वरूप, पिछले तीन वर्षों में खिलौनों का आयात 70% कम हो गया है। FY19 में 371 मिलियन USD से FY22 में 110 मिलियन USD हो गया है। चीन से खिलौनों का आयात 80% गिरकर 59 मिलियन अमरीकी डालर हो गया है और वित्त वर्ष 2022 तक खिलौना निर्यात 61.4% बढ़कर 326 मिलियन अमरीकी डालर हो गया है।

भारत में निर्माण से खिलौने हुए सस्ते

अब खिलौने अधिक सुलभ हो गए हैं क्योंकि उनकी कीमतें काफी कम हो गई हैं। खिलौनों पर जीएसटी की दर 12-18% के बीच है, लेकिन फिर भी कर में कटौती की गुंजाइश है, जिससे खिलौनों की कीमत में और कमी आएगी। साथ ही, अभी अधिकांश भारतीय खिलौने ई-कॉमर्स वेबसाइटों पर उपलब्ध नहीं हैं जहां आज अधिकांश व्यापार होता है और इसके परिणामस्वरूप बिक्री कम होती है। ये दोनों सुधार बिक्री को और बढ़ा सकते हैं।

बहुराष्ट्रीय कंपनियां भी खिलौना निर्माण के लिए भारत की ओर देख रही

यहां तक ​​कि खिलौना बनाने वाली बहुराष्ट्रीय कंपनियां, Hasbro, Lego, Beetle, and Ikea अपने स्थानीय सोर्सिंग को चीन से भारत ले जाने पर विचार कर रही हैं। इसके अलावा, निर्माता कई सरकारी योजनाओं के बारे में उत्साहित हैं, जिन्होंने उद्योग के लिए लंबी छलांग लगाई है। उदाहरण के लिए खिलौना कंपनी फनस्कूल इंडिया अब 33 से अधिक देशों को निर्यात कर रही है। यहां तक ​​कि आने वाले खिलौना निर्माता जैसे माइक्रो प्लास्टिक और ऐक्यूस भी काफी अच्छा कर रहे हैं। हालांकि अभी भारत को खिलौना उद्योग में एक प्रमुख वैश्विक आपूर्तिकर्ता बनने के लिए एक लंबा रास्ता तय करना है। भारतीय खिलौना उद्योग के विकास को आगे बढ़ाने के लिए सामर्थ्य, गुणवत्ता और नवाचार महत्वपूर्ण हैं।

खिलौना आयात कम करने और उद्योग को प्रोत्साहित करने के लिए सरकार द्वारा उठाए गए कदम –

बेसिक कस्टम ड्यूटी (बीसीडी)

सरकार ने फरवरी 2020 में खिलौनों पर सीमा शुल्क 20% से बढ़ाकर 60% कर दिया। यह स्थानीय निर्माताओं को प्रेरित करने के लिए किया गया। जिससे वे वैश्विक अवसरों को भुनाने के लिए नवाचार करने और अधिक जोखिम लेने के लिए के सक्षम बन सकें और आयात को कम करने में मदद कर सकें।

गुणवत्ता नियंत्रण आदेश (QUALITY CONTROL ORDER)

जनवरी 2021 में गुणवत्ता नियंत्रण आदेश लागू हुआ, जिसके अनुसार 14 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए खिलौने को 7 भारतीय मानकों के अनुरूप होना चाहिए, और BIS के लाइसेंस के तहत मानक चिह्न (ISI) होना चाहिए। यह QCO घरेलू निर्माताओं के साथ-साथ उन विदेशी निर्माताओं पर भी लागू होता है जो भारत में अपने खिलौने निर्यात करना चाहते हैं।

टॉयकाथन (TOYCATHON)

सरकार ने 2021 में टॉयकैथॉन और टॉय फेयर की शुरुआत की। जो भारत के खिलौना निर्माताओं को अपने खिलौने प्रदर्शित करने का अवसर प्रदान करते हैं और भारतीय खिलौना निर्माण उद्योग की क्षमता का प्रदर्शन करते हैं। पीएम मोदी ने लोगों से स्थानीय खिलौनों के लिए मुखर होने का आह्वान किया ताकि आयात पर हमारी निर्भरता को कम किया जा सके और युवाओं और स्टार्ट-अप्स को देश की खिलौना अर्थव्यवस्था में सुधार के लिए आगे आने के लिए प्रेरित किया।

TOY CLUSTER PROGRAM (खिलौना क्लस्टर कार्यक्रम)

भारत में अधिकांश खिलौना उद्योग एमएसएमई क्षेत्र के अंतर्गत आता है और मुख्य रूप से दिल्ली, महाराष्ट्र और तमिलनाडु के बाहरी इलाकों में स्थित है। यह काफी बिखरा हुआ है, इसलिए इस कार्यक्रम की मदद से, सरकार इस क्षेत्र को एक विशिष्ट क्षेत्र में ले जाकर सुव्यवस्थित करने की योजना बना रही है, उदाहरण के लिए, SEZ (विशेष आर्थिक क्षेत्र)। इससे विनिर्माताओं को आसानी से विदेशों में निर्यात करने में भी मदद मिलेगी।

PLI SCHEME (पीएलआई योजना)

सरकार ₹3,500 करोड़ मूल्य के पारंपरिक और यांत्रिक खिलौनों दोनों के लिए उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना शुरू कर रही है। इससे घरेलू विनिर्माण को विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाने और चीन से आयात में कटौती करने में मदद मिलेगी। यह योजना 5 साल तक चलेगी, केवल बीआईएस-अनुरूप खिलौनों पर लागू होगी और स्थानीय निर्माताओं द्वारा खिलौनों की बिक्री पर सब्सिडी देगी। हालांकि, प्रोत्साहन खिलौना बनाने के लिए होगा न कि खिलौना घटकों (इलेक्ट्रॉनिक, फैब्रिक) पर, जो स्थानीय रूप से उपलब्ध नहीं हैं। यह न केवल निर्माताओं को उत्पादन क्षमता और निर्यात बढ़ाने की अनुमति देगा, बल्कि यह अधिक रोजगार भी पैदा करेगा।

सरकार के प्रोत्साहन और नीतियों से आज भारत का खिलौना उद्योग तेजी से फल-फूल रहा है। इस पर एक नजर-

भारत का खिलौना उद्योग तेजी से फल-फूल रहा

तीन-चार वर्षों पहले तक भारत खिलौने के लिए दूसरे देशों पर निर्भर था। खासतौर पर देश के खिलौना क्षेत्र पर चीन का बड़ा कब्जा था। भारत में 80 फीसदी से अधिक खिलौने चीन से आया करते थे। परंतु अब इसमें बहुत ही बड़ा बदलाव देखने को मिला है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ‘वोकल फॉर लोकल’ का आह्वान भारत के खिलौना क्षेत्र को बदल रहा है। देश में खिलौना उद्योग तेजी से फलने-फूलने लगा है। भारत में खिलौने के आयात में 70 फीसदी की कमी आई है। वहीं अब दूसरे देशों को भी अपने बनाए गए खिलौने निर्यात कर रहा है। खिलौने के निर्यात में 61 फीसदी की वृद्धि देखने को मिली है।

वैश्विक बाजार में भारतीय खिलौना उद्योग की हिस्सेदारी

भारतीय खिलौना उद्योग का कारोबार करीब 1.5 अरब डॉलर का है जो वैश्विक बाजार हिस्सेदारी का 0.5% है। भारत में खिलौना निर्माता ज्यादातर एनसीआर, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु और मध्य भारतीय राज्यों के समूहों में स्थित हैं। बाजार का 90% हिस्सा असंगठित है। वहीं MSME क्षेत्र से करीब 4,000 खिलौना उद्योग इकाइयां हैं। माना जाता है कि भारत में खिलौना उद्योग में 2024 तक 2-3 अरब डॉलर तक बढ़ने की क्षमता है। भारतीय खिलौना उद्योग वैश्विक उद्योग के आकार का केवल 0.5% है जो एक बड़े संभावित विकास अवसर का संकेत देता है। वैश्विक औसत 5% के मुकाबले घरेलू खिलौनों की मांग 10-15% बढ़ने का अनुमान है। इस दिशा में भारत उम्मीद से भी ज्यादा तेजी से काम कर रहा है।

‘वोकल फॉर लोकल’ को मिला बढ़ावा

नई दिल्ली के प्रगति मैदान में 2-5 जुलाई 2022 तक टॉय बिज बी2बी (बिजनेस टू बिजनेस) अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शनी आयोजित की गई। प्रदर्शनी में भारतीय लोकाचार पर आधारित खिलौनों का प्रदर्शन किया गया जो ‘वोकल फॉर लोकल’ थीम का विधिवत समर्थन करते हैं। प्रत्येक खिलौना वर्ग के पास किफायती और हाई-एंड संस्करण थे। यह 2019 में आयोजित प्रदर्शनी के 12वें संस्करण की तुलना में एक महत्वपूर्ण बदलाव है जिसमें 116 स्टॉल थे और 90 स्टॉल केवल आयातित खिलौनों का प्रदर्शन कर रहे थे। इस प्रदर्शनी में भारत के 3,000 से अधिक आगंतुकों तथा सऊदी अरब, यूएई, भूटान, अमेरिका आदि से अंतरराष्ट्रीय खरीदार शिष्टमंडल ने भाग लिया। कुछ इस प्रकार भारत सरकार लगातार भारतीय खिलौना बाजार के विस्तार के लिए महत्वपूर्ण कदम उठा रही है और इसके नतीजे महज तीन साल के भीतर ही हमें देखने को भी मिल रहे हैं।

खिलौना उद्योग को देश के 24 प्रमुख सेक्टर में स्थान मिला

सरकार ने खिलौना उद्योग को देश के 24 प्रमुख सेक्टर में स्थान दिया है। भारतीय खिलौनों को वैश्विक खिलौना बाजार में बड़ी भूमिका निभाने हेतु खिलौना उद्यमियों को प्रेरित किया जा रहा है। सरकार भारतीय खिलौनों को प्रोत्साहित करते हुए विदेशी खिलौनों की निर्भरता कम करने और भारतीय क्षेत्र को आत्मनिर्भर बनाने और भारतीय खिलौने के ज्यादा से ज्यादा निर्यात के प्रयासों में जुट गई है। सरकार की रणनीति है कि सिर्फ घरेलू ही नहीं, बल्कि वैश्विक खिलौना बाजार में भी भारतीय खिलौनों की छाप दिखाई दे। खिलौना उत्पादकों से कहा गया है कि वे ऐसे खिलौने बनाएं, जिनमें एक भारत, श्रेष्ठ भारत की झलक हो और उन खिलौनों को देख दुनिया वाले भारतीय संस्कृति और पर्यावरण के प्रति गंभीरता जताएं और भारतीय मूल्यों को समझ सकें।

मोदी सरकार भारतीय अर्थव्यवस्था को बढ़ाने के लिए हर सेक्टर को मजबूत करने पर जोर दे रही है। यही वजह है कि आज सेक्टर में निर्यात बढ़ रहा है। निर्यात के आंकड़ों पर एक नजर-

दवाओं का निर्यात एक लाख करोड़ रुपये से ऊपर पहुंचा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत ‘विश्व की फार्मेसी’ बनने की ओर अग्रसर है। अप्रैल-दिसंबर 2022 में दवाओं एवं फार्मास्युटिकल उत्पादों का निर्यात 2013 की इसी अवधि की तुलना में लगभग 2.4 गुना बढ़ गया। अप्रैल-दिसंबर 2013-14 में भारत से दवाओं का निर्यात जहां 49,200 करोड़ रुपये का था वहीं अप्रैल-दिसंबर 2022-23 में यह बढ़कर 1,17,740 करोड़ रुपये हो गया। विशेषज्ञों का अनुमान है कि भारत से दवा का निर्यात वित्त वर्ष 2023 में 27 अरब डॉलर के रिकॉर्ड स्तर को छू सकता है। फार्मास्युटिकल्स एक्सपोर्ट्स प्रमोशन काउंसिल (Pharmexcil) के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि यह अब तक का सबसे अधिक मूल्यांकन वाला निर्यात होगा।

मेड इन इंडिया का कमाल, 2.5 बिलियन डॉलर से अधिक के आईफोन का एक्सपोर्ट

पहले भारत में चीन में निर्मित सस्ते स्मार्ट फोन की बड़ी मांग थी, लेकिन अब भारत में बने आईफोन की मांग पूरी दुनिया में बढ़ गई हैं। एप्पल ने 2022-23 के पहले नौ महीने यानी पिछले साल अप्रैल-दिसंबर माह में भारत से 2.5 बिलियन डॉलर से अधिक के आईफोन का एक्सपोर्ट किया, जो पूरे वित्त वर्ष 2021-22 (FY22) में किए गए निर्यात का लगभग दोगुना है। तेजी से बढ़ती संख्या इस बात की ओर इशारा करती है कि कैसे एप्पल अपने उत्पादन को चीन के बाहर स्थानांतरित कर रही है। इस क्षेत्र के जानकारों मुताबिक भारत में आईफोन बनाने वाले फॉक्सकॉन टेक्नोलॉजी समूह और विस्ट्रॉन कॉर्प ने साल 2022-23 के पहले नौ महीने में एक-एक अरब डॉलर से ज्यादा के एप्पल के साजो-सामानों का निर्यात किया है। एप्पल के लिए प्रोडक्शन करने वाली एक और कंपनी पेगाट्रॉन कॉर्प भी इस महीने के अंत तक करीब 50 करोड़ डॉलर के Gadgets निर्यात करने वाली है।

भारतीय रक्षा उत्पादों का निर्यात 8 गुना बढ़ा : मोदी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 19 अक्टूबर 2022 को डिफेंस एक्सपो-2022 का उद्घाटन करने के बाद कहा कि भारतीय रक्षा बलों का देश में बने अधिकतर उपकरणों को खरीदने का निर्णय ‘आत्मनिर्भर भारत’ की क्षमता को दर्शाता है। उन्होंने कहा कि विश्व स्तर पर रक्षा क्षेत्र में कुछ निर्माण कंपनियों के एकाधिकार के बावजूद भारत ने अपना स्थान बनाया है। उन्होंने कहा कि भारत से रक्षा निर्यात 2021-22 में लगभग 13,000 करोड़ रुपये तक पहुंच गया और आने वाले समय में हमने इसे 40,000 करोड़ रुपये तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा है। भारतीय रक्षा उत्पादों का निर्यात पिछले कुछ वर्षों में आठ गुना बढ़ा है। उन्होंने कहा, ‘देश बहुत आगे निकल गया है, क्योंकि पहले हम कबूतर छोड़ते थे और अब हम चीतों को छोड़ते हैं।’ प्रधानमंत्री ने समुद्री सुरक्षा और अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के महत्व पर भी जोर दिया। मोदी ने कहा कि पहली बार डिफेंस एक्सपो में केवल भारतीय कंपनियां भाग ले रही हैं। इसमें 1,300 से अधिक प्रदर्शकों ने शिरकत की है, जिनमें भारतीय रक्षा उद्योग, इससे जुड़े कुछ संयुक्त उद्यम, 100 से अधिक स्टार्ट-अप हैं।

भारत ने 7,034 करोड़ रुपये की रक्षा सामग्री का निर्यात किया

भारत ने 1 नवंबर 2022 तक 7000 करोड़ का रक्षा निर्यात किया है। इस तरह चालू वित्त वर्ष में 15000 करोड़ रुपये रक्षा निर्यात किए जाने की उम्मीद है। आधिकारिक आंकड़े के अनुसार, भारत ने इस साल 1 नवंबर तक 7,034 करोड़ रुपये की रक्षा सामग्री का निर्यात किया है। वर्ष 2021-22 में भारत ने 12,814 करोड़ रुपये का के रक्षा निर्यात किया था। 2014-15 के बाद से इसमें उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की गई है, उस दौरान यह आंकड़ा मात्र 1940.64 करोड़ था।

अनाज के निर्यात में 53.78 प्रतिशत की बढ़ोतरी

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार में जहां अनाजों का भरपूर उत्पादन हो रहा है, वहीं भारत को निर्यात के मोर्चे पर लगातार सफलता मिल रही है। कृषि व खाद्य वस्तुओं के निर्यात में लगातार तेज बढ़ोतरी देखी जा रही है। चावल के अलावा विभिन्न प्रकार के अनाज के निर्यात में तो नवंबर 2022 में 53.78 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई। वाणिज्य व उद्योग मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, नवंबर माह में चाय, चावल, विभिन्न अनाज, तंबाकू, ऑयल मिल्स, तिलहन, फल व सब्जी, विभिन्न प्रकार के तैयार अनाज व प्रोसेस्ड आइटम के निर्यात में पिछले साल नवंबर के मुकाबले दहाई अंक में बढ़ोतरी रही। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, चाय 27.03 प्रतिशत, चावल 19.16 प्रतिशत, ऑयल मिल्स 17.55 प्रतिशत, तिलहन 38.83 प्रतिशत, फल व सब्जी 25.01 प्रतिशत, प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थों के एक्सपोर्ट करने में 22.75 प्रतिशत की ग्रोथ हुई है। निर्यातकों के मुताबिक आगामी वर्ष को संयुक्त राष्ट्र ने मिलेट्स वर्ष घोषित किया है और इससे मोटे अनाज के निर्यात को प्रोत्साहन मिलेगा।

40 हजार करोड़ रुपये से अधिक के मोबाइल फोन का निर्यात

नीति आयोग के अनुसार चालू वर्ष के दौरान नवंबर 2022 तक, मोबाइल फोन का निर्यात 40 हजार करोड़ रुपये से अधिक का हो चुका है। यह पिछले वर्ष की इसी अवधि के दौरान हुए निर्यात के दोगुने से भी अधिक है। मोबाइल फोन का उत्पादन जो 2014-15 में लगभग छह करोड़ का था वह 2021-22 में बढ़कर लगभग 31 करोड़ हो गया। जिस रफ्तार से मोबाइल फोन का निर्यात हो रहा है, उससे यह उम्मीद की जा रही है कि पूरे वित्त वर्ष 2022 के आंकड़े को दिसंबर की शुरुआत में ही पार कर लिया जाएगा और वित्तीय वर्ष 2023 को यह 8.5-9 बिलियन डॉलर की सीमा को भी पार कर लेगा। वहीं भारत ने वित्त वर्ष 2022 में 5.8 बिलियन डॉलर के मोबाइल फोन का निर्यात किया है।

मोबाइल आयात पर निर्भरता लगभग 5 प्रतिशत हुआ

उद्योग निकाय इंडिया सेल्युलर एंड इलेक्ट्रॉनिक्स एसोसिएशन के मुताबिक, जैसे-जैसे निर्यात बढ़ रहा है, भारत ने वित्त वर्ष 2022 में मोबाइल आयात पर निर्भरता को भी लगभग 5 प्रतिशत तक कम कर दिया है, जो 2014-15 में 78 प्रतिशत के उच्च स्तर पर था। वहीं अब भारत का लक्ष्य 2025-26 तक 60 बिलियन डॉलर के सेल फोन का निर्यात करना है। शुरुआत में भारत से मुख्य तौर पर साउथ एशिया,अफ्रीका, मिडिल ईस्ट और ईस्टर्न यूरोप के देशों को मोबाइल फोन निर्यात किया जाता था। लेकिन अब कंपनियों का ध्यान यूरोप और एशिया के कॉम्पिटिटिव मार्केट पर है। पहले मोबाइल फोन निर्यात के मामले में काफी पीछे हुआ करता था। वर्ष 2016-17 में देश से केवल 1 प्रतिशत से अधिक ही मोबाइल फोन उत्पादन का निर्यात हुआ करता था, लेकिन आईसीईए के आंकड़ों के अनुसार यह प्रतिशत 2021-22 में बढ़कर लगभग 16 प्रतिशत तक पहुंच गया। वहीं ऐसी संभावनाएं जतायी जा रही हैं कि साल 2022-2023 में उत्पादन का लगभग 22 प्रतिशत तक बढ़ जाएगा।

पीएम मोदी के विजन से फलों का निर्यात तीन गुना बढ़ा

भारत विश्वभर में आम, केला, आलू तथा प्याज जैसे फलों और सब्जियों का प्रमुख उत्पादक है। सब्जियों की बात करें तो अदरक और भिंडी के उत्पादन में भारत पहले स्थान पर है। आलू, प्याज, फूलगोभी, बैगन तथा पत्ता गोभी आदि के उत्पादन में विश्व में दूसरा स्थान रखता है। लेकिन जब बात निर्यात या वैश्विक बाजार में हिस्सेदारी की आती है तो इसमें भारत बहुत पीछे रह गया। वर्ष 2014 में देश की बागडोर संभालने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने समूचे भारत के विकास पर जोर दिया और उन्होंने हर उस सेक्टर की पहचान की जिसमें भारत बेहतर कर सकता है। पिछले आठ साल में भारतीय फल पपीता और खरबूजे के निर्यात में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की गई है। वर्ष 2013-2014 के अप्रैल-सितंबर में इन दोनों फलों का निर्यात जहां 21 करोड़ रुपये का होता था वहीं अब अप्रैल-सितंबर वर्ष 2022-2023 में यह तीन गुना बढ़कर 63 करोड़ रुपये का हो गया है।

आदिवासी हैंडीक्राफ्ट ने विदेशों में की 12 करोड़ डॉलर से अधिक की कमाई

देश के निर्यात में हैंडीक्राफ्ट का हिस्सा बढ़ता जा रहा है। हैंडीक्राफ्ट का करीब 30 फीसदी की दर से निर्यात बढ़ रहा है। हाल ही के आंकड़ों के मुताबिक आदिवासी हस्तशिल्प ने विदेशी बाजारों में 12 करोड़ डॉलर से अधिक की कमाई की है। केंद्रीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने हाल ही में बताया कि भारत अब सबसे बड़े हस्तशिल्प निर्यातक देशों में से एक है, जिसमें आदिवासी हस्तशिल्प विदेशी बाजारों में 120 मिलियन डॉलर से अधिक की कमाई करते हैं। आज दुनिया के 90 से अधिक देश भारत के हस्तशिल्प उत्पादों को खरीदते हैं।

भारत ने 2 लाख टन चीनी निर्यात किया

भारत ने चालू वर्ष 2022-23 में अबतक लगभग 35 लाख टन चीनी के निर्यात के लिए अनुबंध किए हैं। इसमें से 2,00,000 टन चीनी का पिछले महीने निर्यात किया गया है। पांच नवंबर को घोषित 2022-23 की चीनी निर्यात नीति में 31 मई तक कोटा के आधार पर 60 लाख टन चीनी के निर्यात की अनुमति दी गई थी। घरेलू उत्पादन का आकलन करने के बाद निर्यात के लिए आगे की मात्रा के लिए अनुमति दी जाएगी। इसमें से लगभग 2,00,000 टन चीनी का भौतिक रूप से अक्टूबर में देश के बाहर निर्यात किया गया है, जबकि पिछले साल इसी महीने में लगभग 4,00,000 टन चीनी का निर्यात किया गया था। पिछले 2021-22 सत्र में भारत ने 1.1 करोड़ टन चीनी का निर्यात किया था।

लद्दाख से 35 एमटी ताजा खुबानी का निर्यात किया गया

लद्दाख से कृषि और खाद्य उत्पादों के निर्यात को प्रोत्साहन देने के उद्देश्य से वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय निर्यात को बढ़ावा देने वाली अपनी संस्था एपीडा के माध्यम से ‘लद्दाख एप्रिकोट’ यानी लद्दाख खुबानी ब्रांड के तहत लद्दाख से निर्यात बढ़ाने के लिए खुबानी मूल्य श्रृंखला के हितधारकों को सहायता देने की प्रक्रिया में है। खुबानी लद्दाख के महत्वपूर्ण फलों में से एक है और स्थानीय स्तर पर ‘चुली’ के नाम से जानी जाती है। एपीडा ने वर्ष 2021 के दौरान केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख से ताजा खुबानी फलों के निर्यात की पहचान की थी और खुबानी सीजन 2021 के अंत में परीक्षण के तहत इसकी दुबई को आपूर्ति की गई थी। इसके अनूठे स्वाद और सुगंध के कारण उत्पाद की स्वीकार्यता के साथ ही अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उत्पाद की खासी मांग थी। एपीडा ने 14 जून, 2022 को लेह में एक अंतर्राष्ट्रीय क्रेता-विक्रेता बैठक का भी आयोजन किया था, जो खुबानी की खेती का सीजन शुरू होने से ठीक पहले हुई थी। केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख से खुबानी और अन्य कृषि उत्पादों के उत्पादकों और आपूर्तिकर्ताओं के साथ संवाद के लिए भारत, अमेरिका, बांग्लादेश, ओमान, दुबई, मॉरिशस आदि देशों के 30 से ज्यादा खरीदार एकजुट हुए थे। इसके परिणामस्वरूप 2022 सीजन के दौरान पहली बार लद्दाख से 35 एमटी ताजी खुबानी का विभिन्न देशों को निर्यात किया गया। परीक्षण के तहत 2022 सीजन के दौरान सिंगापुर, मॉरिशस, वियतनाम जैसे देशों को भी शिपमेंट भेजी गई। 15,789 टन के कुल उत्पादन के साथ लद्दाख देश का सबसे बड़ा खुबानी उत्पादक है जो कुल उत्पादन का लगभग 62 प्रतिशत है। इस क्षेत्र में लगभग 1,999 टन सूखी खुबानी का उत्पादन किया, जिससे यह देश में सूखी खुबानी का सबसे बड़ा उत्पादक बन गया है। लद्दाख में खुबानी की खेती का कुल क्षेत्रफल 2,303 हेक्टेयर है।

बासमती और गैर बासमती चावल का निर्यात 10 फीसदी बढ़ा

चालू वित्त वर्ष 2022-23 की पहली छमाही अप्रैल से सितंबर के दौरान जहां बासमती चावल के निर्यात में 10.67 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई, वहीं गैर बासमती चावल का निर्यात इस दौरान 9.28 फीसदी ज्यादा हुआ। वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के अनुसार चालू वित्त वर्ष 2022-23 की पहली छमाही अप्रैल से सितंबर के दौरान बासमती चावल का निर्यात बढ़कर 21.57 लाख टन का हुआ है, जबकि इसके पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में इसका निर्यात 19.49 लाख टन का ही हुआ था। मूल्य के हिसाब से चालू वित्त वर्ष की पहली छमाही में बासमती चावल का निर्यात 17,896 करोड़ रुपये का हुआ है जबकि इसके पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में केवल 12,294 करोड़ रुपये का ही निर्यात हुआ था। गैर बासमती चावल का निर्यात चालू वित्त वर्ष 2022-23 की पहली छमाही अप्रैल से सितंबर के दौरान बढ़कर 89.56 लाख टन का हुआ है, जबकि इसके पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में इसका निर्यात 81.95 लाख टन का ही हुआ था। मूल्य के हिसाब से चालू वित्त वर्ष की पहली छमाही में में गैर बासमती चावल का निर्यात 25,191 करोड़ रुपये का हुआ है, जबकि इसके पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में केवल 21,853 करोड़ रुपये का ही निर्यात हुआ था।

मांस, डेयरी और पोल्ट्री उत्पादों का निर्यात 10.29 प्रतिशत बढ़ा

चालू वित्त वर्ष के छह महीनों में मांस, डेयरी और पोल्ट्री उत्पादों के निर्यात में 10.29 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। अकेले पोल्ट्री निर्यात में 83 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई। इन रिकॉर्ड निर्यातों से देश को 57 मिलियन अमरीकी डॉलर का लाभ हुआ है। डेयरी उत्पादों की बात करें तो यहां भी 58 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है, जहां अप्रैल-सितंबर 2021-22 में क्षेत्र से 216 मिलियन अमेरिकी डॉलर की कमाई हुई थी वहीं अप्रैल-सितंबर 2022-23 में यह कमाई 342 मिलियन अमेरिकी डॉलर रही।

कृषि उत्पादों के निर्यात में 25 प्रतिशत की बढ़ोतरी

कृषि एवं प्रसंस्कृत खाद्य उत्पादों के निर्यात में पिछले वित्तीय वर्ष 2021-22 की समान अवधि के मुकाबले चालू वित्तीय वर्ष 2022-23 के 6 महीनों के दौरान 25% की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि के दौरान 11,056 मिलियन डॉलर के कृषि एवं प्रशंसक खाद्य उत्पाद निर्यात किए गए थे जबकि इस वर्ष 13,771 मिलीयन डॉलर दर्ज किया गया है। निर्यात किए गए उत्पादों में फल, सब्जियां और अनाज मुख्य रूप से शामिल है।

148 करोड़ डॉलर के गेहूं का निर्यात

वित्त वर्ष की पहली छमाही के दौरान देश के गेहूं निर्यात में जबरदस्त उछाल आया है। अप्रैल से सितंबर 2022 के दौरान देश से कुल 148 करोड़ डॉलर का गेहूं एक्सपोर्ट किया गया, जो पिछले वित्त वर्ष की पहली छमाही के मुकाबले दोगुने से भी ज्यादा है। अप्रैल से सितंबर 2021 के दौरान देश से कुल 63 करोड़ रुपये के गेहूं का निर्यात किया गया था।

मसाला निर्यात में 22 फीसदी वृद्धि, बढ़कर 42,860 टन हुआ

नवंबर 2022 में भारत से मसाला निर्यात बढ़कर 42,860 टन हो गया। मसाला बोर्ड की ओर से जारी आंकड़ों के अनुसार नवंबर में निर्यात 0.56 प्रतिशत बढ़कर 42,860 टन रहा। पिछले वर्ष इसी महीने में 42,620 टन मसालों का निर्यात हुआ था। इस दौरान मसाला निर्यात 22 प्रतिशत बढ़कर 62,162.78 करोड़ रुपये का रहा, जो पिछले वर्ष नवंबर में 50,969.37 करोड़ रुपये का था। नवंबर में भारत ने 25,000 टन मिर्च का निर्यात किया जो पिछले वर्ष की समान अवधि में 19,500 टन का हुआ था। मसाला बोर्ड के बयान के अनुसार अप्रैल-नवंबर 2010 के दौरान 4,320.8 करोड़ रुपये के 3.6 लाख टन मसालों का निर्यात किया गया। अप्रैल-नवंबर 2009 में 3,770.1 करोड़ रुपये मूल्य के 3,41,950 टन मसालों का निर्यात हुआ था। यह मात्रा में 6 प्रतिशत और मूल्य के हिसाब से 15 प्रतिशत की वृद्धि दर्शाता है। बोर्ड ने कहा कि चालू वित्तवर्ष में 4,65,000 टन/5,100 करोड़ रुपये के मसाला निर्यात कर लक्ष्य रखा गया है।

Leave a Reply