प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता से घबराए विपक्ष को समझ नहीं आ रहा है कि 2024 में भारतीय जनता पार्टी का मुकाबला कैसे किया जाए। इसके लिए उन्होंने विदेशी साजिश का हिस्सा बनने से भी गुरेज नहीं किया। अडानी समूह के खिलाफ हिंडनबर्ग रिपोर्ट और गोधरा दंगे पर बीबीसी डॉक्यूमेंट्री विदेश में तैयार की गई और इस बैसाखी के सहारे विपक्ष ने किस कदर हंगामा किया, यह सबने देखा। लेकिन जब इससे दाल नहीं गली तो एक-एक के बाद एक आंदोलन तैयार किए जा रहे हैं। फिलहाल चार आंदोलन जोर-शोर से किया जा रहा है। इनमें अहीर आंदोलन, जाट आंदोलन, किसान आंदोलन और एससी-एसटी आंदोलन को भड़काकर देश में अराजकता पैदा करने की कोशिश की जा रही है। यह सब बीजेपी के खिलाफ एक साजिश के तहत की जा रही है। सत्ता के लिए विपक्ष देश को कमजोर करने से भी बाज नहीं आ रहा जो कि चिंता की बात है।
भारतीय समाज को जातियों और वर्गों में बांटने की साजिश
इन आंदोलनों के जरिये विपक्ष भारतीय समाज को जातियों और वर्गों में बांटने की साजिश रच रहा है। इसका एकमात्र एजेंडा यादवों, जाटों, एससी-एसटी, किसानों को बीजेपी के खिलाफ भड़काना है और इन जातियों के वोट बीजेपी को न मिले इसका तिकड़म करना है।
1- अहीर रेजीमेंट आंदोलनः यादव वोटों को भड़काने की साजिश
अहीर रेजीमेंट आंदोलन पिछले दो साल से चल रहा है। अब यह धीरे-धीरे हरियाणा और राजस्थान के विभिन्न हिस्सों में फैल चुका है और इससे बड़ी तादाद में अहीर (यादव) जुड़ चुके हैं। 18 जून 2023 को बड़े पैमाने पर रैलियां की गईं। आंदोलन की वजह से राष्ट्रीय राजमार्ग 8 पर यातायात को वैकल्पिक मार्गों पर मोड़ना पड़ा। कई बार पुलिस को उन पर लाठीचार्ज भी करना पड़ा। उन पर कई प्राथमिकी दर्ज की गईं, जिनमें से अधिकांश बाद में वापस ले ली गईं। जैसे ही लोकसभा चुनाव करीब आता है, हरियाणा के इन प्रदर्शनकारियों द्वारा दिल्ली में प्रवेश के रास्तों को अवरुद्ध करना शुरू कर दिया जाता है। वे चाहते हैं कि मोदी सरकार उन्हें बलपूर्वक हटाए जिससे उसे बदनाम किया जा सके।
2- पहलवानों की आड़ में जाट आंदोलन : राजपूत बनाम जाट रंग देने की साजिश
यह ध्यान देने की बात है कि जनवरी में जब पहलवानों का आंदोलन हुआ था तो पहलवानों ने किसी भी राजनीतिक पार्टी को अपने मंच पर जगह नहीं दी थी। यह भी योजना के तहत किया गया जिससे शुरू में आंदोलन को पहलवानों का बताया जाए और चूंकि पहलवान जाट थे तो फिर बाद में इसे जाट बनाम राजपूत का रंग दिया जा सके। कुछ ही दिन बाद सोशल मीडिया पर ऐसी खबरें चलने लगीं कि ये आंदोलन जाति विशेष के पहलवानों का है। इसके बाद सोशल मीडिया पर राजपूत बनाम जाट की बहस छिड़ गई है। आंदोलन को जाति विशेष का नाम दे दिया गया। उसके बाद तमाम विपक्षी दल के नेता भी उस मंच पर पहुंचने लगे। इससे इसके पीछे की साजिश समझी जा सकती है।
3- एमएसपी को लेकर किसानों का धरना : मोदी राज में सबसे ज्यादा MSP फिर भी आंदोलन
मोदी सरकार में पिछली सभी सरकारों से फसलों की MSP सबसे ज्यादा बढ़ाई गई लेकिन उसके बावजूद विपक्ष एक नॉन इश्यू को मुद्दा बनाकर किसानों को भड़काने के जुगत में लगी हुई है। हरियाणा में फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य की मांग को लेकर किसान आंदोलन कर रहे हैं। किसानों ने कुरुक्षेत्र में 12 जून 2023 को महापंचायत बुलाई, जिसमें भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता राकेश टिकैत भी शामिल हुए। राकेश टिकैत ने कहा कि एमएसपी की गारंटी के लिए पूरे देश में आंदोलन होगा। राकेश टिकैत ने कहा कि इस मीटिंग पर सभी की नजरें हैं। ये सवाल पूरे देश की फसलों की एमएसपी का है। इससे समझा जा सकता है कि इस आंदोलन 2024 से पहले देशभर में ले जाने की तैयारी है।
4-एससी/एसटी आंदोलन : एससी/एसटी वोटों में बिखराव से कांग्रेस टेंशन में
कांग्रेस पिछले 19 वर्षों से मध्य प्रदेश की सत्ता में काबिज बीजेपी को हटाना चाहती है। मध्यप्रदेश में अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति वोटों पर कांग्रेस का एकाधिकार माना जाता है। अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति वोटों के बिखराव ने कांग्रेस को टेंशन में ला दिया है। इसी को ध्यान में रखते हुए अब एससी/एसटी आंदोलन को हवा दी जा रही है। भीम आर्मी के चंद्रशेखर आजाद एससी/एसटी आंदोलन शुरू करेंगे और सपा, रालोद, आप और कांग्रेस जैसे राजनीतिक दल फंड करेंगे और इस विरोध को हवा देंगे। इसके तहत वे निजी नौकरियों में और भारत में सभी खेलों में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षण जैसी मांग करेंगे। मकसद सिर्फ एक है कि एससी/एसटी को मोदी सरकार के खिलाफ भड़काना। कुछ इसी तरह का दलित आंदोलन 2019 लोकसभा चुनाव से पूर्व 2018 में किया गया था जबकि उस समय सुप्रीम कोर्ट ने SC/ST एक्ट के तहत तुरंत गिरफ्तारी पर रोक लगा दी थी और गिरफ्तारी के लिए डीएसपी स्तर के अधिकारी की मंजूरी ज़रूरी कर दी थी। उस वक्त आंदोलन को इस कदर हिंसक रूप दिया गया कि कई लोगों की मौत भी हो गई थी।
सीएए और किसान आंदोलन जैसा प्रदर्शन खड़ा करने की साजिश
विपक्ष की कुटिल चाल यह है कि अब एक बार फिर से भारतीय समाज को आपस में लड़ाया जाएगा जैसे सीएए और किसान विरोध के दौरान हुआ था। दोनों विरोध प्रदर्शन भारत को अस्थिर करने के उद्देश्य से आयोजित किए गए थे। बाहरी ताकतों ने सोशल मीडिया पोस्ट के माध्यम से लोगों को विभाजित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और इसके लिए रिहाना, ग्रेटा और मिया खलीफा जैसी अंतर्राष्ट्रीय हस्तियों को इससे जोड़ा गया और उन्हें पैसे दिए गए। इस बार नए सेलेब्रिटी चुने जाएंगे। इससे सभी लोगों को सावधान रहने की जरूरत है।