केंद्र सरकार ने 9 सालों में देश में आधारभूत संरचनाओं के विकास पर विशेष जोर दिया गया है। वो बात चाहे रोड, रेल कनेक्टिविटी की हो या फिर देश के स्वास्थ्य क्षेत्र में बदलाव की, इन वर्षों में आम लोगों ने देश में अभूतपूर्व बदलाव देखे हैं। पीएम मोदी के कार्यकाल में एम्स की संख्या सात से बढ़कर 22 हो गई है। आठ साल पहले देश में एम्स की संख्या सिर्फ सात थी। पीएम मोदी के नेतृत्व में स्वास्थ्य सुविधाओं का तेजी से विकास हुआ है। वहीं कांग्रेस के 60 साल के शासन की बात करें तो देश में केवल एक एम्स था। देश में 2003 तक सिर्फ एक ही एम्स था और तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने पांच नए एम्स स्थापित करने की योजना बनायी थी। वर्ष 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हर राज्य में एम्स स्थापित करने की नीति बनायी और उसके तहत एम्स की संख्या अब बढ़कर 22 हो गई है।
मोदी जी का जमाना… pic.twitter.com/bmGo6wdjh8
— Dr Mansukh Mandaviya (@mansukhmandviya) March 14, 2023
16 एम्स परिचालन के विभिन्न चरणों में
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री डा. मनसुख मांडविया ने लोकसभा में बताया कि मंजूर किये गए 22 एम्स में से भोपाल (मध्य प्रदेश), भुवनेश्वर (ओडिशा), जोधपुर (राजस्थान), पटना (बिहार), रायपुर (छत्तीसगढ़) और ऋषिकेश (उत्तराखंड) स्थित छह एम्स पूर्णत: कार्य कर रहे हैं। मांडविया ने कहा कि शेष 16 एम्स परिचालन के विभिन्न चरणों में हैं।
एमबीबीएस की 2475 सीट और अस्पताल में 18250 बेड बढ़ जाएंगे
मांडविया ने बताया कि इन 22 एम्स से देश की स्वास्थ्य देखरेख प्रणाली में एमबीबीएस की 2475 सीट और 18250 बिस्तरों की संख्या बढ़ जाएगी। मंत्री ने कहा कि 22 एम्स में से अवन्तीपोरा (कश्मीर), रेवाड़ी (हरियाणा) और दरभंगा (बिहार) को छोड़कर शेष 19 में अभी एमबीबीएस पाठ्यक्रम चलाया जा रहा है।
चिकित्सा में भविष्य की चुनौती से निपटने में सक्षम बनेगा भारत
भारत को स्वास्थ्य के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने के पीएम मोदी के विजन के तहत केंद्र सरकार ने आने वाले वर्षों में चिकित्सा क्षेत्र को बेहतर करने के लिए कई स्तरों पर काम कर रही है। इससे देश के हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर को वह मजबूती मिलेगी जिसमें वह अपनी सर्वोत्तम क्षमता तक पहुंच जाएगा। इसके लिए केंद्र सरकार देश के हर जिले में एम्स और मेडिकल कॉलेज की स्थापना करेगी। यह बात पीएम मोदी ने 7 मार्च 2022 को जनऔषधि दिवस के मौके पर कही थी। कोविड महामारी में उपजे हालातों ने बहुत कुछ बदलकर जरूरत रख दिया। इसलिए आज यह आने वाले समय की मांग बन गया है। तभी तो केंद्र सरकार का मेडिकल क्षेत्र पर मुख्य फोकस है। केंद्र सरकार अब भविष्य में सामने आने वाली ऐसी किसी भी चुनौती से निपटने के लिए युद्ध स्तर पर तैयारी कर रही है।
देश में 562 मेडिकल कॉलेज, 175 मेडिकल कॉलेज विकास की प्रक्रिया में
आजादी के इतने दशकों के बाद भी देश में केवल एक एम्स था, लेकिन आज देश में 22 एम्स काम कर रहे है। यानि अब देश में गरीबों को आसानी से इलाज मुहैया होगा। केवल इतना ही नहीं केंद्र सरकार का लक्ष्य देश के हर जिले में कम से कम एक मेडिकल कॉलेज स्थापित करने का है। वर्तमान में देश में 562 मेडिकल कॉलेज हैं, जिनमें से 286 सरकारी क्षेत्र में हैं, जबकि 276 निजी क्षेत्र में हैं। अन्य 175 मेडिकल कॉलेज भी विकास की प्रक्रिया में हैं। 2013-14 में 52,000 एमबीबीएस सीटों के मुकाबले अब 84,000 यूजी सीटें हैं। कई चिकित्सा आयोग भी स्थापित किए जा रहे हैं। देश में लगभग 1,50,000 स्वास्थ्य और कल्याण केंद्र स्थापित किए जा चुके हैं।
प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों में आधी सीटों पर सरकारी फीस
प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों में आधी सीटों पर सरकारी मेडिकल कॉलेज के बराबर ही फीस लगेगी। उससे ज्यादा पैसे फीस के नहीं लिए जा सकते हैं। इससे गरीबों और मध्यम वर्ग के बच्चों के करीब-करीब ढाई हजार करोड़ रुपए बचेंगे।
अब मातृभाषा में मिलेगी मेडिकल एजुकेशन
अब स्टूडेंट अपनी मातृभाषा में मेडिकल एजुकेशन प्राप्त कर सकेंगे, टेक्निकल एजुकेशन ले सकेंगे। यानि जिस कारण से गरीब का बच्चा भी, मध्यम वर्ग का बच्चा भी, निम्न-मध्यम वर्ग का बच्चा भी, स्कूल में अंग्रेजी में नहीं पढ़े हैं, अब वे बच्चे भी अब डॉक्टर बन सकेंगे। यानि मेडिकल के क्षेत्र में एक नई क्रांति को जन्म देगा। इस प्रकार केंद्र सरकार के फैसले जनमामान्य के लिए फायदेमंद साबित होंगे। स्वाभाविक है कि जब गरीब व्यक्ति गरीबी से निकलकर इस मुकाम तक पहुंचेंगे तो वह अपनों की मदद के लिए सदैव खड़ा रहेगा। ऐसे में देश के गरीबों का सबसे अधिक कल्याण सुनिश्चित होगा।
16,000 अंडरग्रेजुएट मेडिकल सीटें जोड़ी जाएंगी
भारत सरकार ने 2014 से देश भर में 157 नए मेडिकल कॉलेजों को स्वीकृति दी है और इन परियोजनाओं पर कुल 17,691.08 करोड़ रुपए का निवेश किया गया है। कार्य पूर्ण होने पर इन मेडिकल कॉलेजों में लगभग 16,000 अंडरग्रेजुएट मेडिकल सीटें जोड़ी जाएंगी। 2021 तक इनमें से 64 नए मेडिकल कॉलेजों के संचालित होने के साथ 6500 सीटें पहले ही सृजित की जा चुकी हैं।
मेडिकल कॉलेजों के अपग्रेडेशन के लिए 2,451.1 करोड़ रुपए
केंद्र प्रायोजित योजनाओं (सीएसएस) के तहत, केंद्र सरकार ने देश में एमबीबीएस सीटें बढ़ाने के लिए मौजूदा राज्य सरकार या केंद्र सरकार के मेडिकल कॉलेजों के उन्नयन के लिए लगभग 2,451.1 करोड़ रुपए भी प्रदान किए हैं।
157 नए मेडिकल कॉलेजों को स्वीकृति
योजना के तहत उन जिलों में मेडिकल कॉलेज स्थापित किए जाते हैं, सरकारी या निजी मेडिकल कॉलेज नहीं हैं। इस मामले में वंचित, पिछड़े, आकांक्षी जिलों को वरीयता दी जाती है। योजना के तीन चरणों के तहत 157 नए मेडिकल कॉलेज स्वीकृत किए गए हैं, जिनमें से 63 मेडिकल कॉलेज पहले से ही काम कर रहे हैं। केंद्र प्रायोजित योजना के तहत स्थापित किए जा रहे 157 नए कॉलेजों में से 39 आकांक्षी जिलों में स्थापित किए जा रहे हैं।
सरकारी कॉलेजों में 10,000 एमबीबीएस सीटें सृजित होंगी
देश के सरकारी कॉलेजों में 10,000 एमबीबीएस सीटें सृजित करने के उद्देश्य से स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय एमबीबीएस सीटों को बढ़ाने के लिए मौजूदा राज्य सरकार व केंद्र सरकार के मेडिकल कॉलेजों के अपग्रेडेशन (उन्नयन) के लिए केंद्र प्रायोजित योजना लागू की।
15 राज्यों में 48 कॉलेजों को मंजूरी दी गई
पूर्वोत्तर राज्यों और विशेष श्रेणी के राज्यों के लिए केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा वित्त पोषण प्रणाली क्रमशः 90:10 और अन्य राज्यों के लिए 60:40 है, जिसकी ऊपरी सीमा लागत 1.20 करोड़ रुपये प्रति सीट है। 15 राज्यों में 48 कॉलेजों को मंजूरी दी गई है। इन कॉलेजों में 3325 सीटों की वृद्धि के लिए केंद्रीय शेयर के रूप में 6719.11 करोड़ रुपये जारी किए गए हैं।
मेडिकल उपकरणों का चौथा बड़ा बाजार बनकर उभरा भारत
देश में एम्स की संख्या बढ़ने से देश में हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूती मिलेगी। पिछले 8 वर्षों में केंद्र सरकार की नीतियों की वजह से भारत आज स्वास्थ्य के क्षेत्र में अपना परचम लहरा रहा है। भारत आज एशिया में मेडिकल उपकरणों का चौथा बड़ा बाजार बनकर उभरा है। इसके अलावा फार्मास्यूटिकल के क्षेत्र में भारत विश्व का पावर हाउस है। दुनिया की करीब 70 प्रतिशत दवाओं की मैन्युफैक्चरिंग भारत में ही होती है।
चिकित्सा उपकरण उद्योग 2025 तक 50 अरब डॉलर तक पहुंचेगा
स्वास्थ्य क्षेत्र में केंद्र सरकार की विभिन्न पहलों से देश चिकित्सा और स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में अग्रणी बनकर उभर रहा है। स्वास्थ्य के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता के कई बड़े कदमों का परिणाम है कि आज करोड़ों भारतीयों का इलाज नि:शुल्क किया जा रहा है और सस्ते दामों में सस्ती जेनेरिक दवाएं उपलब्ध कारवाई जा रही है। आज हमारा भारत चिकित्सा के क्षेत्र में ही नहीं, बल्कि चिकित्सा उपकरणों के मामले में भी न सिर्फ आत्मनिर्भर बना है, बल्कि अब वह स्वास्थ्य से जुड़ी कई दवा-उपकरण का निर्यात भी करने लगा है। भारत में चिकित्सा उपकरण उद्योग में 2025 तक 50 अरब डॉलर तक पहुंचने की क्षमता है। इसके अलावा भारत जापान, चीन और दक्षिण कोरिया के बाद चौथा सबसे बड़ा एशियाई चिकित्सा उपकरणों का बाजार है और शीर्ष 20 वैश्विक में भी शामिल है।
आयुष्मान भारत योजना के तहत लोगों को मिलने वाली सुविधाओं पर एक नजर-
25 करोड़ लोगों के स्वास्थ्य रिकॉर्ड आयुष्मान भारत स्वास्थ्य खाता से लिंक
राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण (एनएचए) ने अपनी प्रमुख योजना आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन (एबीडीएम) के तहत डिजिटल रूप से जुड़ी स्वास्थ्य इकोसिस्टम के निर्माण में एक और बड़ी उपलब्धि अर्जित कर ली है। 25 करोड से अधिक लोगों के स्वास्थ्य रिकॉर्ड उनके आभा (आयुष्मान भारत स्वास्थ्य खाता) से लिंक कर दिए गए हैं। इन रिकॉर्ड को एबीडीएम सक्षम किसी भी स्वास्थ्य ऐप्स का उपयोग करते हुए लोग आसानी से ऐक्सेस और प्रबंधित कर सकते हैं। डिजिटल रूप से उपलब्ध, स्वास्थ्य रिकॉर्ड एबीएचए (आभा) धारकों को पूरे एबीडीएम नेटवर्क के तहत कागज रहित स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ उठाने में सक्षम बनाएंगे।
कागज रहित मरीजों का रिकार्ड, पुराने रिकॉर्ड खोने की चिंता खत्म
व्यक्ति अस्पतालों, क्लिनिक्स, डायगनोस्टिक लैब्स आदि जैसी विभिन्न स्वास्थ्य सुविधा केंद्रों में अपने रिकॉर्ड को एक्सेस करने के लिए अपने व्यक्तिगत स्वास्थ्य रिकॉर्ड ऐप्स का उपयोग कर सकते हैं और उन्हें ऐप में स्टोर कर सकते हैं। वे एबीडीएम नेटवर्क पर सत्यापित स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं के साथ अपने संबंधित रिकॉर्ड को साझा कर सकते हैं। यह सुरक्षित तरीके से रिकॉर्ड को पूरी तरह कागज रहित आदान प्रदान में सक्षम बनाता है और चिकित्सा दस्तावेजों को खोजने की पेरशानियों या पुराने रिकॉर्ड के खो जाने की चिंता को समाप्त कर देता है।
ओपीडी पंजीकरण के लिए स्कैन और शेयर सेवा शुरू
आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन (एबीडीएम) के तहत अक्टूबर 2022 में त्वरित ओपीडी पंजीकरण के लिए स्कैन और शेयर सेवा का शुभारंभ किया गया। इस सेवा के शुभारंभ के पांच महीनों में ही, इस सेवा को 365 अस्पतालों द्वारा अपनाया गया। क्यूआर कोड आधारित तत्काल पंजीकरण सेवा ने इस सेवा में शामिल अस्पतालों के (बाह्य रोगी विभाग) ओपीडी पंजीकरण क्षेत्र में प्रतीक्षा समय को काफी कम करके 5 लाख से अधिक रोगियों को समय की बचत करने में मदद की है।
हेल्थ एप से करा सकते हैं पंजीकरण
अस्पताल (सरकारी व निजी) रोगी पंजीकरण के लिए अनूठे क्यूआर कोड्स पेश करते हैं। रोगी अपनी पसंद के किसी भी हेल्थ एप्लिकेशन (जैसे आभा ऐप, आरोग्य सेतु ऐप, एकाकेयर, ड्रिफकेस, बजाज हेल्थ, पेटीएम) का उपयोग करके क्यूआर कोड को स्कैन कर सकते हैं और अपनी आभा प्रोफाइल (जनसांख्यिकीय जानकारी जैसे नाम, आयु, लिंग और आभा संख्या) को अस्पताल की स्वास्थ्य प्रबंधन सूचना प्रणाली (एचएमआईएस) के साथ साझा कर सकते हैं। यह पेपरलेस पंजीकरण को संभव बनाता है और इस तरह तत्काल टोकन उपलब्ध कराता है। इससे रोगी के समय की बचत होती है।
आयुष्मान भारत के तहत 4.30 करोड़ रोगियों का उपचार
आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (एबी-पीएम-जेएवाई) के अंतर्गत 4 जनवरी 2023 तक 21.90 करोड़ लाभार्थियों का सत्यापन किया गया है। इसमें राज्यों की सूचना प्रौद्योगिकी प्रणाली के अंतर्गत सत्यापित 3 करोड़ लाभार्थी शामिल हैं। आर्थिक समीक्षा 2022-23 के अंतर्गत 50,409 करोड़ रुपये के व्यय से अस्पतालों में लगभग चार करोड़ तीस लाख रोगियों का उपचार किया जाना उल्लेखित है।
10 करोड़ से अधिक परिवारों को पांच लाख रुपये का स्वास्थ्य बीमा
यह योजना 10 करोड़ 70 लाख से अधिक निर्धन एवं कमजोर वर्गों के उन परिवारों (लगभग 50 करोड़ लाभार्थी) को दूसरे और तीसरे चरण के चिकित्सा व्यय के लिए प्रति परिवार पांच लाख रुपये वार्षिक का स्वास्थ्य बीमा उपलब्ध कराती है, सामाजिक, आर्थिक, जातिगत गणना 2011 (एसईसीसी 2011) तथा राज्यों की अन्य योजनाओं के अंतर्गत निर्धनता और व्यवसायजनित मानदंडों के आधार पर पहचानी गई भारत की सबसे निचले स्तर की 40 प्रतिशत जनसंख्या होती है।
ई-संजीवनी के माध्यम से हर दिन 4 लाख टेली-परामर्श
1,50,000 आयुष्मान भारत स्वास्थ्य और कल्याण केंद्र व्यापक प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल सेवाएं प्रदान कर रहा है। यह सभी के लिए नि:शुल्क है। विभिन्न पहलों के माध्यम से देश के अंदरूनी क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच सुनिश्चित करते हुए ई-संजीवनी के जरिए 8.5 करोड़ से अधिक टेली-परामर्श किए हैं। ई-संजीवनी के माध्यम से हर दिन लगभग 4 लाख टेली-परामर्श किए जाते हैं।
गैर-संक्रमणकारी रोगों के लिए कुल 86.90 करोड़ लोगों की जांच
गैर-संक्रमणकारी रोगों के लिए कुल 86.90 करोड़ से अधिक लाभार्थियों की जांच की गई है। इनमें उच्च रक्तचाप के लिए 29.95 करोड़, मधुमेह के लिए 25.56 करोड़, मुंह के कैंसर के लिए 17.44 करोड़, स्तन कैंसर के लिए 8.27 करोड़ और सर्वाइकल कैंसर के लिए 5.66 करोड़ परीक्षण शामिल हैं।
योजना का लाभ लेने वालों में 46.7 प्रतिशत महिलाएं
आयुष्मान भारत योजना ने लिंग समानता को बढ़ावा देने में भी बड़ी कामयाबी हासिल की है। एक अध्ययन के अनुसार इस योजना का लाभ पाने वालों में 46.7 प्रतिशत महिलाएं हैं। अध्ययन के मुताबिक, मणिपुर, नगालैंड, मिजोरम, बिहार, छत्तीसगढ़, गोवा, पुडुचेरी, लक्षद्वीप, केरल और मेघालय में आयुष्मान कार्डधारक महिलाओं की संख्या पुरुष कार्डधारकों से अधिक है। इस योजना से करीब 27,300 निजी एवं सरकारी अस्पताल जुड़े हुए हैं। साथ ही इस योजना के तहत 141 ऐसे medical procedures शामिल किए गए हैं, जो सिर्फ महिलाओं के लिए हैं। महिलाएं सिर्फ इस योजना की लाभार्थी ही नहीं हैं बल्कि इस योजना के क्रियान्वयन में भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। ग्रामीण भारत में आशा वर्कर और अस्पतालों में आरोग्य मित्र से लेकर राज्य की कई हेल्थ एजेंसियों की प्रमुख के तौर पर भी महिलाएं इस योजना के क्रियान्वयन में अहम भूमिका निभा रही हैं।
मोदी राज में खोले गए 9 हजार जन औषधि केंद्र, सस्ती दवाओं से गरीब-मिडिल क्लास परिवारों के 20 हजार करोड़ रुपये बचे। इस पर एक नजर-
देश में 9 हजार जन औषधि केंद्र खुले
केंद्र सरकार देश के गरीब और मध्य वर्ग के लोगों के लिए स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर करने और और इलाज के खर्च को कम करने की लगातार कोशिश कर रही है। इस परियोजना ने भारत के आम जनमानस के जीवन पर सीधा सकारात्मक प्रभाव डाला है। एक मृत योजना को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पुनः जीवित कर देशवासियों की सेवा में समर्पित किया है। जब पीएम मोदी की सरकार बनी तो पूरे देश में केवल 80 केंद्र संचालित थे और इसपर कोई भी कार्य नहीं हो रहा था। आज इस योजना के अन्तर्गत देश में 9000 से अधिक केंद्र शुरू किए जा चुके हैं। जो जनता को सस्ती व अच्छी दवाई उपलब्ध करवा रहे हैं। केंद्रों पर 2039 दवाइयां व सर्जिकल उपकरण उपलब्ध हैं।
गरीब परिवारों के 20 हजार करोड़ रुपये बचे
पिछले नौ सालों में 9 हजार जन औषधि केंद्र खोले जा चुके हैं। जन औषधि की बिक्री में 100 गुना बढ़ोतरी हुई है और इससे गरीब परिवारों के 20 हजार करोड़ रुपये बचे हैं। 2014-15 से लेकर अब तक इन सस्ती दवाइयों की बिक्री का ग्राफ तेजी से बढ़ा है। पिछले नौ सालों में आयुष्मान भारत और जन औषधि से गरीब परिवार 1 लाख करोड़ रुपये की बचत करने में सफल हुए हैं।
आयुष्मान भारत और जन औषधि से गरीबों के बचे 1 लाख करोड़ रुपये
पिछले नौ सालों में आयुष्मान भारत और जन औषधि से गरीब परिवारों ने 1 लाख करोड़ रुपये की बचत की है। स्वास्थ्य और चिकित्सा अनुसंधान वेबिनार में 6 मार्च को पीएम मोदी ने कहा कि दोनों योजनाओं से लाभार्थी 1 लाख करोड़ रुपये की बचत करने में सफल हुए हैं। आयुष्मान भारत योजना के जरिए लाभार्थियों को 5 लाख रुपये का स्वास्थ्य बीमा दिया जा रहा है, जबकि बाजार भाव से 50 से 90 फीसदी सस्ती कीमत में दवाएं उपलब्ध कराने के लिए देश में 9 हजार जन औषधि केंद्र खोले जा चुके हैं।
देश के 12 लाख से अधिक नागरिक रोज़ाना खरीदते हैं दवाएं
देश के 12 लाख से अधिक नागरिक रोज़ाना इन केंद्रों से दवाई खरीद रहे हैं। यहां मिलने वाली दवाइयां बाज़ार दाम से 50 से 90 फीसदी सस्ती हैं। इससे देशवासियों का 20,000 करोड़ से अधिक रुपया बचा है। यह परियोजना देश के गरीब व मध्यम वर्ग के लिए संजीवनी बनकर उभरी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सोच हमेशा से अंतिम पंक्ति में खड़े व्यक्ति तक लाभ पहुंचे उसकी रही है। आज कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक जन औषधि केंद्र कार्यरत हैं। यह परियोजना जन-जन की है और जन-जन को लाभ दे रही है।
देश के 127 रेलवे हॉस्पिटलों में खोले जाएंगे जन औषधि केंद्र
जन औषधि योजना को पांच साल हो गए हैं और इस बार देश भर में इसके प्रति लोगों को जागरूक बनाने के लिए जन औषधि सप्ताह भी मनाया जा रहा है। भारत में इसके 9 हजार केंद्र हैं, जिसे इस साल बढ़ा कर 10 हजार करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है. इसमें 127 रेलवे हॉस्पिटलों सहित कई बड़े रेलवे स्टेशनों पर जन औषधि केंद्र खोले जाएंगे। इन जन औषधि केंद्रों पर न केवल अच्छी बल्कि सस्ती कीमत पर लोगों को दवाईयां मिल सकेंगी।
दिल्ली सहित एक हजार रेलवे स्टेशनों पर खुलेंगे जन औषधि केंद्र
देश भर में एक हजार से ज्यादा रेलवे स्टेशनों पर जन औषधि केंद्र खोले जाने की योजना बनाई गई है। अब चरणबद्ध तरीके से इसे खोले जाने की योजना के तहत शुरुआत में इसे दिल्ली जैसे बड़े स्टेशनों पर खोला जाएगा और फिर बाद में चिन्हित किए गए स्टेशनों पर भी इसे खोला जाएगा।
ट्रेनों को सजा कर किया जा रहा प्रचार
जन औषधि के प्रचार के लिए भी रेलवे ने हजरत निजामुद्दीन से दुर्ग के बीच चलने वाली छत्तीसगढ़ संपर्क क्रांति को विशेष तौर पर सजाया है। इससे लाखों यात्रियों को जन औषधि केंद्र पर कम मूल्य पर मिलने वाली दवाओं के बारे में जानकारी मिल सकेगी। इसके अलावा पुणे से दानापुर के बीच चलने वाली एक ट्रेन को भी इसी तरह तैयार किया गया है।
जन औषधि के प्रति जागरूक करने के लिए हेरिटेज वॉक
जन औषधि के प्रति जागरूकता लाने के लिए दो विशेष ट्रेन भी चलाई जा रही है। इसके अलावा 10 शहरों में हेरिटेज वॉक का भी आयोजन किया जाएगा। यह ट्रेन देश के 9000 से अधिक औषधि केन्द्रों में उपलब्ध सस्ती और कारगर जेनरिक दवाओं के बारे में लोगों को जागरुकता फैला रही है।
रेलवे स्टेशन पर मिलेंगी सर्दी, खांसी, बुखार की दवाएं
स्टेशन पर खुलने वाली जन औषधि केंद्रों में सर्दी, खांसी, बुखार, सांस, रक्तचाप, मधुमेह सहित अन्य जरूरी दवाएं उपलब्ध होंगी। प्रधानमंत्री भारतीय जन औषधि उत्पाद में 1759 दवा और 280 सर्जिकल उपकरण शामिल हैं। सस्ती दवा के साथ ही जन औषधि केंद्र में महिलाओं को एक रुपये में सैनिटरी पैड भी उपलब्ध होगा। प्रोटीन पाउडर, पोषाहार, प्रोटीन बार, इम्युनिटी बार, सेनिटाइजर, मास्क, ग्लूकोमीटर आक्सीमीटर भी यहां से खरीद सकेंगे।
देश के 743 जिलों में जन औषधि केंद्र
प्रधानमंत्री भारतीय जनऔषधि परियोजना का मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि नागरिकों को गुणवत्तापूर्ण दवाओं तक अच्छी पहुंच हो। इसका मकसद जेनेरिक दवाओं के बारे में जागरूकता पैदा करना है। भारत में डॉक्टरों के बीच जेनेरिक दवाओं की सिफारिश नहीं करने का सदियों पुराना रिवाज है। वर्तमान सत्तारूढ़ सरकार इसे बदलना चाहती थी। वर्तमान में देश के 743 जिलों में लगभग 9 हजार से अधिक जनऔषधि केन्द्र कार्यरत है।
दवाएं 50 से 90 प्रतिशत तक सस्ती
जनऔषधि केंद्रों पर दवाएं औसत बाजार मूल्य की तुलना में 50 से 90 प्रतिशत सस्ती मिलती हैं। रसायन और उर्वरक मंत्रालय ने प्रधानमंत्री भारतीय जनऔषधि परियोजना के माध्यम से देश के लोगों को सस्ती दवाओं की निर्बाध उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है।
जन औषधि केंद्र से बिकी 1000 करोड़ रुपये से ज्यादा की जेनरिक दवाएं
भारत की जेनेरिक दवाइयां दुनियाभर में मशहूर हैं और दुनिया के हर 5 में से एक व्यक्ति भारत में बनी दवा खाता है। जनऔषधि केंद्र पर देश के हर कोने में आम जन को सस्ती और अच्छी दवाईयां मिल रही है। 2014 से पहले जन औषधि केंद्रों के शेयर 2 फीसद था जो अब बढ़कर 8 फीसद से ज्यादा हो गया है। बीते सालों में 9000 से ज्यादा जन औषधि केंद्र से 1000 करोड़ रुपये से ज्यादा की जेनरिक दवाएं बेची जा चुकी है।
जन औषधि केंद्रों पर 1616 दवाएं और 250 सर्जिकल उपकरण
पीएमबीजेपी के उपलब्ध औषध समूह में 1616 दवाएं और 250 सर्जिकल उपकरण शामिल हैं, जो देश भर में संचालित 8600 से अधिक प्रधानमंत्री भारतीय जनऔषधि केंद्रों (पीएमबीजेके) के माध्यम से बिक्री के लिए सुलभ हैं। इसके अलावा, कुछ आयुष उत्पादों जैसे आयुष किट, बलरक्षा किट और आयुष- 64 टैबलेट को प्रतिरोधक क्षमता बूस्टर के रूप में इस परियोजना से जोड़ा गया है, जिसे चयनित केंद्रों के माध्यम से उपलब्ध कराया जा रहा है। औषधियों की विस्तृत श्रृंखला में सभी प्रमुख चिकित्सीय समूहों जैसे कार्डियोवास्कुलर, एंटी-कैंसर, एंटीडायबिटिक, एंटी-इंफेक्टिव, एंटी-एलर्जी, गैस्ट्रो-इंटेस्टाइनल दवाएं, न्यूट्रास्यूटिकल्स आदि को शामिल किया गया है। इसके अलावा, पीएमबीआई एफएसएसएआई के तहत फास्ट-मूविंग कंज्यूमर गुड्स (एफएमसीजी) वस्तुओं एवं खाद्य उत्पादों के लॉन्च पर कार्य किया जा रहा है और अत्यधिक मांग वाले आयुर्वेदिक उत्पादों को अपनी विस्तृत श्रृंखला में विस्तार देने के लिए भी काम हो रहा है। पीएमबीआई ने गुरुग्राम, चेन्नई, गुवाहाटी और सूरत में चार भंडार गृह स्थापित करके आपूर्ति श्रृंखला प्रणाली को मजबूत किया है। इसके अलावा, देश के हर हिस्से में समय पर आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए पूरे भारत में 39 वितरकों का एक मजबूत वितरक नेटवर्क भी उपलब्ध है।
भारत ने अंग प्रत्यारोपण में बनाया रिकॉर्ड
देश की बागडोर संभालने के साथ ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्वास्थ्य क्षेत्र में सुधार के लिए जो प्रयास शुरू किए, उसके अब बेहतर परिणाम दिखाई देने लगे हैं। भारत चिकित्सा के क्षेत्र में एक के बाद एक बड़ी उपलब्धि हासिल कर रहा है। इसी क्रम में भारत ने साल 2022 में 15 हजार अंग प्रत्यारोपण का नया रिकॉर्ड बनाया। केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव राजेश भूषण ने रविवार (19 फरवरी, 2023) को स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा आयोजित ‘राष्ट्रीय अंग एवं ऊतक प्रतिरोपण संगठन (एनओटीटीओ) वैज्ञानिक संवाद 2023’ में कहा कि देश में कोविड-19 के बाद अंग प्रत्यारोपण के मामलों में भारी वृद्धि देखी गई है। इनमें सालाना 27 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है।
चिकित्सकों और नर्सों की संख्या में भारी वृद्धि
मोदी सरकार आने के बाद देश में चिकित्सकों और नर्सों की संख्या में भारी वृद्धि हुई हैं। पीआईबी रिसर्च यूनिट के ताजा आंकड़ों के अनुसार आजादी के 60 साल बाद तक सन 2012 तक देश में चिकित्सकों की संख्या सिर्फ 8,83,812 थी, जो मोदी सरकार आने के बाद करीब 50 प्रतिशत बढ़कर सन 2021 में 13,01,319 हो गई। इसी तरह नर्सों की संख्या में भी अभूतपूर्व वृद्धि देखने को मिल रही है। साल 2012 तक देश में नर्सों की संख्या सिर्फ 21,24,667 थी। वो मोदी राज में करीब 50 प्रतिशत बढ़कर साल 2021 में 33.41 लाख से ज्यादा हो गई।