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कांग्रेस की देन है कश्मीर समस्या !

कश्मीर समस्या के कारणों की पड़ताल करती विशेष रिपोर्ट

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”न गाली से न गोली से, कश्मीर समस्या का समाधान होगा गले लगाने से।” 15 अगस्त, 2017 को लाल किले के प्राचीर से जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ये बात कही तो देश-दुनिया ने इसकी सराहना की। लेकिन कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी को इसमें भी सियासत सूझने लगी। स्वतंत्रता दिवस के एक दिन बाद राहुल ने कहा कि मोदी सरकार की नीति के चलते कश्मीर में पाकिस्तान को गड़बड़ी करने का मौका मिला। लेकिन क्या यही सच है? क्या मोदी सरकार की देन है कश्मीर समस्या? क्या कांग्रेस अपनी नाकामियों से मुंह छिपा पाएगी? 

नेहरू इंदिरा और कश्मीर के लिए चित्र परिणाम

जवाहर लाल नेहरू-इंदिरा गांधी ने की बड़ी गलती
दरअसल आज जो कश्मीर समस्या है वो सिर्फ कांग्रेस की देन है। भारत के विभाजन के समय इसका हल निकाल पाने में जवाहरलाल नेहरू की असफलता की देश भारी कीमत चुका रहा है। तब न तो दिल्ली में नेहरू सरकार और न ही श्रीनगर में शेख अब्दुल्ला सरकार कभी इस बात को मान सका कि जम्मू-कश्मीर का भारत में पूरी तरह एकीकरण करने की जरूरत है। इस मामले में नेहरू में न तो साहस था न ही दूरदर्शिता थी। अनुच्छेद 370 एक अस्थायी प्रावधान है जिसे अब तक क्यों कायम रखा गया है यह भी एक सवाल है। 1971 में भी भारत ने कश्मीर मुद्दे को हल करने का मौका गंवा दिया था। 1990 में हिंदुओं के नरसंहार के बाद की चुप्पी ने तो कट्टरपंथियों के हौसले को नये उत्साह से भर दिया था।

 

कांग्रेस के नाकाम नेतृत्व के कारण मुद्दा बना रहा कश्मीर
भले ही कांग्रेस और इसके साथी दलों के नेता धर्मनिरपेक्षता का राग अलापते रहें लेकिन कश्मीर में इन्हीं के शासन काल में धर्मनिरपेक्षता की बलि चढ़ाई जा चुकी है। दरअसल बढ़ते कट्टरपंथ की वजह से ही 1990 में कश्मीर में हजारों कश्मीरी पंडितों को मौत के घाट उतार दिया गया था और हिंदू औरतों के साथ बलात्कार किया गया था। धर्मनिरपेक्ष भारत के एक हिस्से में धर्म को लेकर ही अधर्म का नंगा नाच हो रहा था, लेकिन कांग्रेस की सरकार तब तमाशा देख रही थी। कश्मीर अगर आज सुलग रहा है तो कांग्रेस की अदूरदर्शिता और नाकाम नेतृत्व इसका कारण है।

नेहरू की छवि के लिए चित्र परिणाम

नेहरू को अपनी छवि की चिंता थी देश की नहीं
कश्मीर मुद्दे पर कांग्रेस की भूल की फेहरिस्त लंबी है। कश्मीर में जब भारतीय फौज कबाइली हमलावारों को खदेड़ रहे थे तो नेहरू ने संघर्ष विराम की घोषणा कर दी। यह फैसला अचानक क्यों की गई इसका को पुख्ता प्रमाण अब तक उपलब्ध नहीं है। ऐसा माना जाता है कि ऐसा न किया गया होता तो आज कश्मीर का मुद्दा नहीं होता। जानकारों के अनुसार नेहरू ने अपनी अंतरराष्ट्रीय छवि की चिंता की जिसके कारण यह फैसला लिया।

nehru and pok के लिए चित्र परिणाम

नेहरू के कारण पाक अधिकृत कश्मीर बना
1947 के 21 और 22 अक्टूबर को जब पांच हजार पठान आदिवासियों (पाकिस्तान आर्मी की तरफ से) ने कश्मीर के एक हिस्से पर कब्जा कर लिया तो महाराजा हरि सिंह ने IQA (इंस्ट्रूमेंट ऑफ एसेसन) पर साइन कर दिया था। इसके बाद इंडियन आर्मी बड़े ऑपरेशन के लिए तैयार थी और बारामुला के हिस्सों को वापस भी ले लिया था। इससे श्रीनगर सुरक्षित हो गया, लेकिन इससे आगे बढ़ने के लिए नेहरू जी के आदेश चाहिए थे, जो उन्होंने नहीं दी। 26 अक्टूबर 1947 को कश्मीर के महाराजा हरि सिंह के दस्तखत वाला Instrument of accession यानि विलय पत्र स्वीकार करने के साथ ही जनमत संग्रह के प्रस्ताव को संयुक्त राष्ट्र में भेज दिया।

नेहरू और महाराजा हरि सिंह के लिए चित्र परिणाम

शेख अब्दुल्ला-नेहरू की दोस्ती से उलझा कश्मीर
दरअसल यह शेख अब्दुल्ला से नेहरू की दोस्ती के कारण ही उन्होंने अपनी सेना को आदेश नहीं दिया। जब जम्मू कश्मीर में शेख अब्दुल्ला का प्रभाव था तो वह पाकिस्तान की मदद को खड़ा हो गया। इसी कारण नेहरू के कार्यकाल में ही 1953 में शेख अब्दुल्ला को पाकिस्तान की मदद करने के आरोप में गिरफ्तार भी करना पड़ा। लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी थी और नेहरू की गलती के कारण कश्मीर का मुद्दा उलझ गया।

नेहरू धारा 370 के लिए चित्र परिणाम

धारा 370 पर नेहरू ने की गलती
महाराजा हरि सिंह के विलय पत्र पर हस्ताक्षर के साथ ही कश्मीर का भारत में विलय हो गया। लेकिन नेहरू ने शेख अब्दुल्ला की खुशी के लिए धारा 370 का प्रावधान स्वीकार कर लिया। दरअसल शेख अब्दुल्ला को कश्मीर में नेहरू का आदमी माना जाता था। नेहरू ने कश्मीर को लेकर सभी नीतियां शेख अब्दुल्ला को ध्यान में रखकर बनाईं। शायद इसी वजह से महाराजा हरि सिंह को कश्मीर की बागडोर शेख अब्दुल्ला को सौंपनी पड़ी।

नेहरू और कश्मीर के लिए चित्र परिणाम

सरदार पटेल के हाथ बांध दिये गए
धारा 370 को स्वीकार तो कर लिया गया लेकिन जम्मू और लद्दाख में हिंदू आबादी ज्यादा थी। जम्मू में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और प्रजा परिषद ने 370 का विरोध शुरू किया। बाद में पंडित नेहरू की कैबिनेट छोड़कर 1951 में जनसंघ की स्थापना करने वाले डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने धारा 370 के विरोध की मुहिम को और तेज किया। सरदार पटेल ने भी इस मसले को गृह मंत्रालय के अधिकार क्षेत्र में लाकर सुलझाने की योजना बनाई। लेकिन बाद में नेहरू के दखल के चलते मामला एक बार फिर लटक गया। जिसका नतीजा आज पूरे देश के अलावा पूरी दुनिया भी देख रही है।

नेहरू और महाराजा हरि सिंह के लिए चित्र परिणाम

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