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स्वतंत्र भारत में जिहाद का जनक है मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB), इंदिरा गांधी ने मुस्लिम तुष्टिकरण के लिए बनाया था इसे

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स्वतंत्र भारत में जिहाद का जनक है ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB)। इस बोर्ड को पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने मुस्लिम तुष्टिकरण के लिए बनाया था। बोर्ड अपनी स्थापना के बाद से हिंदू हित के कार्य में बाधा खड़ी करता रहा है। वर्ष 2019 में जब राममंदिर मामले में निर्णय आया तो सभी ने एक स्वर में इसे स्वीकार किया लेकिन निर्णय के विरुद्ध AIMPLB कोर्ट पहुंच गया और हिंदू हित में बाधा खड़ी करने की कोशिश की, हालांकि उसकी पुनर्विचार खारिज हो गयी। इसी तरह वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा की शाही ईदगाह मस्जिद को लेकर कोर्ट में चल रहे विवाद में भी ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की एंट्री हो गई। वह हमेशा की तरह निष्पक्ष की बजाए मुसलमानों को भड़काने का काम ही करता रहा है। इसी तरह समान नागरिक संहिता (यूसीसी) का भी ये जोरदार विरोध कर रहा है, भले ही यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 44 में लिखा गया हो।

इंदिरा गांधी ने मुसलमानों के तुष्टिकरण के लिए 1973 में बनाया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड

इंदिरा गांधी समझती थी कि ये देश जैसे विरासत में उनको अपने पिता जवाहर लाल नेहरू से मिला। इंदिरा भारत को अपनी जागीर समझती थी, घटती लोकप्रियता और विपक्ष की बढ़ती लोकप्रियता से परेशान होकर, इंदिरा गांधी ने सेक्युलर भारत में मुसलमानों के तुष्टिकरण के लिए मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की 1973 में स्थापना की। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के लिए इंदिरा गांधी ने विशेष नियम भी बनाया।

मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड कभी ऑडिट नहीं हुआ

मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड संस्था का आज तक कभी ऑडिट नहीं हुआ है। जबकि अन्य NGO का होता है पर इसे विशेष छूट मिली हुई है। ये अरब के देशों से कितना पैसा पाती है, उस पैसे का क्या करती है, किसी को कुछ नहीं पता। 91 प्रतिशत मुस्लिम महिलाएं ट्रिपल तलाक के खिलाफ थी फिर भी मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड इसके पक्ष में अपनी आवाज उठाता रहा। यह भी आश्चर्य की बात है कि 95 प्रतिशत मुसलमान महिलाओं को तो ये भी नहीं पता कि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड असल में है क्या?

बोर्ड की मनमानी पर लग रहा लगाम, इसीलिए गढ़ रहे डरा हुआ मुसलमान

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) के रहनुमाओं को लगता है कि देश के मुसलमान अपने धार्मिक रीति-रिवाजों के मामले में वर्ष 1857 और 1947 से भी ज्यादा मुश्किल हालात से गुजर रहे हैं। वे इस नैरेटिव को गढने का काम कर रहे हैं कि मुसलमान डरा हुआ है। ऐसा इसलिए है क्योंकि बोर्ड की मनमानी पर अब लगाम लगाई जा रही है। मोदी सरकार इस बात का हिसाब रख रही है कि किसको विदेश से कितना पैसा मिल रहा है और यह पैसा किस मद में आता है और कहां खर्च होता है।

पीएम मोदी पर फतवा देने वाला इमाम भी इसी बोर्ड का सदस्य

मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड में केवल कट्टरपंथी मुस्लिम ही हैं। पीएम नरेंद्र मोदी पर फतवा देने वाला इमाम बरकाती भी इसी बोर्ड का सदस्य है। कोलकाता की टीपू सुल्तान मस्जिद के शाही इमाम सैयद मोहम्मद नूरुर रहमान बरकती ने जनवरी 2017 में पीएम मोदी के खिलाफ एक ‘फतवा’ जारी किया, जिसमें उन पर नोटबंदी के जरिए लोगों को ‘धोखा’ देने का आरोप लगाया गया। इससे जाहिर होता है कि जिहादी किस्म के ही लोग इस संस्था में हैं।

1973 में हुई थी मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की स्थापना

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की स्थापना 1973 में हुई थी। यह एक गैर सरकारी संगठन है, जो भारतीय मुस्लिमों के लिए शरीयत में बने कानूनों को लागू करने और मुस्लिमों की देखभाल करने के साथ ही उनका प्रतिनिधित्व करता है।

मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड अपने आप में सरकार

मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड अपने आप सरकार है, यह सिद्ध करने में लगे हुए हैं। शरिया इस का सबसे बड़ा उदाहरण है। संविधान के विरुद्ध शरिया लागू करने का असफल प्रयास किया जा रहा है।

मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की वर्किंग कमिटी में 51 उलमा

इस ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की एक वर्किंग कमिटी होती है। इसका कार्यकाल तीन साल का होता है। इसमें 51 उलमा होते हैं जो इस्लाम के अलग अलग स्कूलों से ताल्लुक रखते हैं। इसके अलावा ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की एक जनरल बॉडी भी होती है, जिसमें 201 लोग होते है। इन 201 लोगों में उलमा के अलावा सामान्य लोग भी होते हैं।

शरिया कानून में चोरी के लिए हाथ काटने की सजा

नवभारत टाइम्स के मुताबिक, मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड जिस शरिया कानून का पक्ष लेता रहा है उस कानून के तहत अपराधी के हाथों को काटकर सजा दी जा सकती है। वहीं व्यभिचार के लिए अपराधी को पत्थरों से मारकर मौत की सजा दी जा सकती है। कुछ अपराधों में सजा सुनाने के लिए ढेर सारे सबूत चाहिए होते हैं। कुछ देश हद अपराधों के लिए इस तरह की क्रूर सजाओं का समर्थन नहीं करते हैं। संयुक्त राष्ट्र भी शरिया कानून की पत्थरों से मारकर मौत की सजा का विरोध करता है।

मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड मुसलमानों को सच्चाई नहीं बताता

देश में मुसलमानों का प्रमुख संगठन समझे जाने वाले ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने देश में मुसलमानों की इबादतगाहों को कथित रूप से निशाना बनाए जाने पर अपना विरोध दर्ज करता ही रहता है। लेकिन वह इतिहास पढ़ने और मुसलमानों को यह बताने को तैयार नहीं है कि जिन विवादित धार्मिक स्थलों को वह मुसलमानों के पवित्र इबादतगाह बता रहे हैं, दरअसल उसे मुगल शासकों ने हिन्दुओं के प्रमुख मंदिरों को तोड़कर इबादतगाह में बदला था, जो पूरी तरह से गैर इस्लामी कदम था। कायदे से बोर्ड को मुसलमानों को इस बात को लेकर शिक्षित करना चाहिए।

बोर्ड समान नागरिक संहिता का विरोध क्यों करता है ?

राम मंदिर बनने को बोर्ड के नुमांइदे बता रहे हैं कि वर्ष 1991 में संसद में सबकी सहमति से बनाए गए पूजा स्थल अधिनियम की खुलेआम धज्जियां उड़ाई जा रही हैं तो इस हिसाब से तो सीएए/ एनआरसी, तत्काल तीन तलाक पर बनाए गए कानून का भी विरोध नहीं होना चाहिए, क्योंकि यह कानून भी तो संसद में ही बने हैं, लेकिन ऐसा होता नहीं है। इसी प्रकार से इस्लाम में मुल्ला-मौलवियों, यहां तक कि इबादत के लिए मस्जिद की भी जरूरत नहीं है। क्यों बोर्ड समान नागरिक संहिता का विरोध करता है ? क्यों वह मुसलमानों को यह नहीं बताता है कि काफिर किसे कहा जाता है? क्योंकि अधिकांश मुस्लिम अहमदियों को मुस्लिम नहीं मानते हैं।

बोर्ड कौम की तरक्की और बच्चों की शिक्षा की फिक्र क्यों नहीं करता

यह बोर्ड कभी इस बात को लेकर चिंतित नहीं होता है कि उसकी कौम कैसे आगे तरक्की करे, बच्चे पढ़ें-लिखें, मुस्लिम महिलाओं को उनका अधिकार मिले, बच्चियां स्कूल जाएं? बोर्ड कभी नहीं कहता है कि अजान से होने वाले शोर जिससे लोगों को तकलीफ होती है उसको बंद किया जाए या मदरसों की शिक्षा में सुधार हो ?

मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के प्रमुख मकसद…

1. भारत में मुस्लिम पर्सनल लॉ की रक्षा करना और शरीयत को लागू करना।

2. राज्य या केंद्र की विधायिका की ओर से पारित ऐसे कानून जो सीधे तौर पर या किसी और भी तरह से मुस्लिम पर्सनल लॉ में दखल देते हों, उनका विरोध करना।

3. ये देखना कि भारतीय मुस्लिमों को इन कानूनों के दायरे से बाहर रखा जाए।

4. शरीयत में बनाए गए कानूनों के बारे में बताना और अपने परिवार के साथ ही समाज में उन कानूनों को लागू करने के लिए निर्देश देना। इससे जुड़ा साहित्य प्रकाशित करना।

5. पर्सनल लॉ को प्रकाशित करना और उसे मुस्लिमों में और ज्यादा लोकप्रिय करना।

6. शरीयत के हिसाब से एक तयशुदा फ्रेमवर्क तैयार करना और मुस्लिमों को उसे पालन करने के लिए राजी करना।

7. बोर्ड के बनाए कानूनों को लागू करने के लिए और मुस्लिम पर्सनल लॉ की रक्षा करने के लिए एक एक्शन कमिटी बनाना।

8. उलमा और कानूनों के जानकारों की मदद से राज्य या केंद्र के द्वारा बनाए गए कानूनों पर नजर रखना।

9. सरकारी या अर्धसरकारी किसी संस्था की ओर से बनाए गए कानूनों पर नजर रखना और देखना कि क्या ये कानून किसी तरह से मुस्लिम पर्सनल लॉ में दखल देते हैं।

10. मुस्लिम पर्सनल लॉ की रक्षा के लिए अलग अलग नजरिए वाले और अलग अलग मतों में बंटे मुस्लिमों और उनकी संस्थाओं को एक करने की कोशिश करना और उनमें एकता और आपसी सामंजस्य की भावना को विकसित करना ताकि उनका एक ही मकसद हो सके, मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की सुरक्षा।

11. शरीयत के नजरिए से भारत में इस्तेमाल में लाए जा रहे मुस्लिम लॉ की समीक्षा करना, अलग- अलग मतों को मानने वाले इस्लामिक स्कूलों में मतभेद होने पर कुरआन आधारित निष्कर्ष पेश करना, जो शरीयत पर आधारित हो।

12. कॉन्फ्रेंस आयोजित करने, सेमिनार, सिम्पोजिया, पब्लिक मीटिंग और संबंधित किताबों को छापने के लिए एक प्रतिनिधिमंडल बनाना।

13. जरूरत पड़ने पर अखबारों, पत्र-पत्रिकाओं और जनरल के जरिए सारी बातों को रखना।

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने अपने काम को सही तरीके से अंजाम देने के लिए चार कमिटियां बनाई हैं।

1. सोशल वेलफेयर: इसका काम देश-दुनिया में मुस्लिमों के सामाजिक उत्थान के लिए किए जाने वाले कामों की निगरानी करना है।

इस कमिटी के जरिए ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ज़रूरतमंदों की पढ़ाई लिखाई से लेकर उनके गुजर बसर करने तक की गतिविधियों को देखता है और उसपर अमल करता है।

2. बाबरी मस्जिद: इस समिति का काम देश दुनिया में चल रहे मुकदमों की पैरवी करना है।

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के वकील डॉ. जफरयाब जिलानी बताते हैं कि बाबरी मस्जिद कमिटी के जरिए हम मुकदमों की पैरवी और उनकी निगरानी करते हैं।

चाहे तीन तलाक के मसले की पैरवी हो या फिर बाबरी मस्जिद की, बाबरी मस्जिद ही इसकी देखभाल करती है और उसपर अमल करती थी।

3. दारुल-क़जा: दारुल-कज़ा एक ऐसी संस्था है, जो मुस्लिमों के आपसी और पारिवारिक झगड़े का निपटारा करती है।

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की कमिटी के रूप में जो दारुल-क़जा काम करती है, उसका काम पूरे देश में चल रहे दारुल-कज़ा की निगरानी करना और वहां आने वाले लोगों की मदद करना है।

दारुल-क़जा की कोशिश होती है कि मियां-बीबी के झगड़े सुलझ जाएं।

सारे रास्ते बंद होने की स्थिति में तलाक भी दिलवाने का काम दारुल-कज़ा के पास है।

4. तफहीम-ए-शरीयत: यह ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की चौथी और आखिरी कमिटी है।

इस कमिटी का काम पूरे देश के मुस्लिमों को शरीयत के बारे में बताना और उसे ठीक से लागू करवाना है।

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