– हरीश चन्द्र बर्णवाल
करीब दो दशक तक प्रधानमंत्री मोदी की कार्यशैली और उस पर विरोधियों की प्रतिक्रिया को देखकर जो बात मुझे समझ में आई है, उसका लब्बोलुआब यह है कि मोदी जो नहीं करते हैं वो लोग तुरंत समझ लेते हैं और जो वे करते हैं, उसे समझने में अधिकतर लोगों को कई वर्ष लग जाते हैं। अब इसको जरा अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य में समझने की कोशिश कीजिए।
भारत-तिब्बत भाई-भाई, चीनियों की शामत आई
7 सितंबर, 2020 को भारत-चीन रिश्ते का एक ऐतिहासिक पड़ाव सामने आया। लेह से आए चंद मिनट के एक वीडियो ने भारत-चीन रिश्तों के समीकरण को पूरी तरह से हमेशा-हमेशा के लिए बदल कर रख दिया। इस वीडियो को पूरी दुनिया ने देखा। चीन खून के आंसू पीकर रह गया। वो न तो कुछ कर सका और न ही कुछ कह पाया। इस वीडियो में स्पेशल फ्रंटियर फोर्स के एक अधिकारी नइमा तेनजिन का अंतिम संस्कार हो रहा था। नइमा लद्दाख की पैंगोंग झील के दक्षिणी तट पर एक सैन्य अभियान के दौरान शहीद हो गए थे। अंतिम संस्कार के दौरान जो नारे लग रहे थे, वो अब भी चीन के भीतर खंजर की तरह चुभ रहे होंगे। ये नारे थे – ‘तिब्बत देश की जय’, ‘भारत माता की जय’, ‘We salute Indian army’. इसके साथ ही तिब्बतियों के जो गाने सोशल मीडिया में सुनाई पड़े, उसके बोल थे –
“हम हैं विकासी तिब्बतवासी, देश की शान बढ़ाएंगे
जब-जब हमको मिलेगा मौका, जान पे खेल दिखाएंगे
चीन ने हमसे छीन के तिब्बत, घर से हमें निकाला है
फिर भी भारत ने हमको, अपनों की तरह संभाला है
एक न एक दिन चीन को भी, हम नाकों चने चबवाएंगे
जब-जब हमको मिलेगा मौका, जान पे खेल दिखाएंगे।”
अब जरा समझिए कि किस प्रकार इस वीडियो के कई मायने हैं,
* पहला, जिस तिब्बती स्पेशल फोर्स को अब तक भारत ने पूरी दुनिया से छिपाकर रखा, अब उसे चीन ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के सामने उजागर कर दिया गया है।
* दूसरा, तिब्बत के लोग अब भी अपनी आजादी के लिए चीन के खिलाफ अपना दमखम दिखाने को तैयार हैं।
* तीसरा, तिब्बत के मामले में भारत की पॉलिसी में यह आमूलचूल परिवर्तन है। तिब्बत पर चीन के अधिकार को सबसे पहले भारत ने ही मान्यता दी थी, जबकि अमेरिका समेत विश्व के कई देशों ने इसे मान्यता नहीं दी। अब भारत भी इस पॉलिसी में बदलाव कर रहा है।
* चौथा, मोदी के इस कदम से पूरी दुनिया में एक नया नैरेटिव सेट होगा, जो कई सालों बाद पता चलेगा। वह यह है कि भारत और तिब्बत तो हमेशा से दोस्त रहे हैं और चीन जबरन घुस आया है। लद्दाख में भारत की चीन से तो कोई लड़ाई ही नहीं है, बल्कि तिब्बत पर चीन ने जबरदस्ती कब्जा कर रखा है और अब भारत की सीमा पर भी नजरें गड़ा रहा है। नइमा तेनजिन के अंतिम संस्कार में भारत-तिब्बत की दोस्ती के नारे और दोनों देशों के झंडे, इसी की गवाही दे रहे थे।
भारत-चीन के बदलते रणनीतिक समीकरण को अब जरा एक उदाहरण के जरिए समझिए। नेहरू के समय से ही भारत ने चीन के साथ ऐसे अजीब संबंध बना लिए कि अरुणाचल प्रदेश में अपने ही देश का कोई बड़ा अधिकारी जाता है तो चीन इसका कड़ा विरोध करता है। तीन साल पहले ही 19 नवंबर, 2017 को जब राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद अरुणाचल प्रदेश पहुंचे तो चीन ने इस पर कड़ी प्रतिक्रिया जताई थी। पहले की तरह भारत ने भी इसे सख्ती से खारिज करते हुए कहा कि अरुणाचल प्रदेश हमारा एक अभिन्न अंग है। यानि जो अरुणाचल प्रदेश भारत का अहम हिस्सा है, उस पर चीन इतनी कड़ी प्रतिक्रिया देता है, लेकिन तिब्बत मामले में भारत के बदले हुए रुख को देखकर चीन सन्न रह गया है। पहली बार अलग देश तिब्बत के नारे लगे, उसके सैनिकों का आधिकारिक रूप से सैन्य सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया, जिससे चीन को मानो सांप सूंघ गया।
भारत-चीन संबंध कभी विश्वास भरे नहीं रहे। चीन की हरकतों ने कभी भारतवासियों के दिल में विश्वास पैदा नहीं होने दिया। ड्रैगन भारत की इंच-इंच जमीन हमेशा कुतरने को बेताब रहा। परंतु 1988 में भारत-चीन के बीच जो समझौता हुआ, वो एक प्रकार से रिश्तों का दोगलापन था। नेहरू के बाद 34 साल में पहली बार राजीव गांधी के रूप में भारत का कोई प्रधानमंत्री चीन पहुंचा। खास बात यह है कि उस समय तक भारत-चीन सीमा विवाद दोनों देशों के बीच रिश्तों का मुख्य बिन्दु था, जिसको सुलझाने के लिए कई दौर की बातचीत हो चुकी थी। लेकिन फिर भी सीमा विवाद बना ही रहा। इसके बाद भी चीन भारत के साथ आर्थिक और सांस्कृतिक संबंध बनाने के लिए आतुर था। 1988 के समझौते में चीन को इसमें सफलता मिल गई। उसने भारत-चीन रिश्तों में सीमा विवाद और आर्थिक-सांस्कृतिक पहलू को अलग कर दिया, जिसका फायदा वो 32 साल तक उठाता रहा। चीन एक तरफ जहां सीमा पर भारत को धमकाता रहा, वहीं उसने भारतीय बाजार पर भी कब्जा जमा लिया। यहां तक कि भारतीय संप्रभुता को धता बताते हुए 2008 में भारत की सत्ता पर काबिज कांग्रेस पार्टी से एक अलग ही प्रकार का समझौता कर लिया। राजीव गांधी फाउंडेशन को करोड़ों रुपये का लालच देकर एक प्रकार से चीन ने कांग्रेसी मन-मस्तिष्क पर भी कब्जा जमा लिया। इसका असर सरकार के भीतर भी देखने को मिलता रहा।
लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने न केवल चीन के इस छल-कपट के सामने घुटने टेकने से इनकार कर दिया, बल्कि भारत की नीति को पूरी तरह से बदल दिया। उन्होंने साफ कर दिया कि रिश्तों का यह दोगलापन नहीं चलेगा। अगर सीमा पर संघर्ष होगा तो बाकी संबंध बहाल नहीं हो सकते। यह नहीं हो सकता कि जो चीन सीमा पर धमकियां देता हो, नए-नए विवाद खड़ा करता हो, उस चीन के साथ व्यापारिक संबंध बने रहें। इसीलिए पहली बार भारत सरकार ने 29 जून को 59 चीनी एप्स पर पाबंदी लगाई। फिर 27 जुलाई को 47 एप्स और 2 सितंबर को 118 एप्स पर प्रतिबंध लगा दिया। यही नहीं, भारत सरकार ने चीन के खिलाफ आर्थिक रूप से कई प्रतिबंध लगाए हैं, जिससे चीन तिलमिला गया है।
नए भारत का आक्रामक डिफेंस
29-30 अगस्त की रात को भारतीय जवानों ने पैंगोंग झील के दक्षिणी तट पर जो कुछ किया, वो नए भारत की नई कहानी बयान कर रहा है। इतिहास में पहली बार भारत ने सेल्फ डिफेंस के लिए चीन के खिलाफ आक्रामक रवैया अपनाया है। कई दौर की बातचीत होने के बाद भी जब चीन गोगरा पोस्ट, हॉट स्प्रिंग्स और पैंगोंग के उत्तरी तट पर फिंगर एरियाज से पीछे नहीं हटा तो फिर भारत ने अपनी एक नई रणनीति तैयार की। प्रधानमंत्री मोदी की संकल्प शक्ति को भांपते हुए पूरी तैयारी के साथ भारतीय सेना ने पैंगोंग झील के दक्षिणी हिस्से में अधिकतर चोटियों पर कब्जा जमा लिया। गौरतलब है कि चीनी सैनिकों ने भी यही रणनीति तैयार की थी, लेकिन भारतीय सेना की मुस्तैदी के आगे वे पस्त हो गए। 15 सितंबर, 2020 को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने लोकसभा में बताया कि किस प्रकार भारतीय सेना चीनी मंशा को भांप गई। चीन एलएसी में बदलाव के इरादे से पहुंचा था, लेकिन चोटियों पर मौजूद भारतीय सैनिकों ने चीनी सैनिकों को वहां से खदेड़ दिया। आज रेजांग ला और रेचिन ला के आसपास सभी चोटियों पर भारत महत्वपूर्ण स्थिति में है। इन पोजिशंस से चीनी सेना पर पूरी तरह से नजर रखी जा सकती है।
चीन इससे इतना बौखला गया है कि हर दूसरे दिन भारत को धमकी दे रहा है। इस समय सीमा पर दोनों तरफ न केवल सैनिकों का जमावड़ा है, तोप-गोले-बारूद भी जमा किए जा रहे हैं। इस बात की जानकारी खुद रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने लोकसभा में दी। इन परिस्थितियों में यह कहना गलत नहीं होगा कि 1962 में युद्ध से पहले जिस प्रकार के हालात बन रहे थे, कुछ वैसे ही अब भी नजर आ रहे हैं। 1962 में 20 अक्टूबर को ही चीन ने भारत पर हमला किया था। अगर इस बार भी उसके आसपास भारत-चीन सीमा पर एक हल्की जंग छिड़ जाए तो कोई बड़ी बात नहीं होगी। हालांकि पिछली बार भारत युद्ध से डरा हुआ था, इस समय भारत और भारतीय सैनिकों का मनोबल हाई है। इसी बात से चीन डरा हुआ है।
एलएसी पर 45 साल बाद गोलियां चलीं, वो भी एक नहीं, दो-दो बार। पहले 30 अगस्त की रात को और फिर 7 सितंबर को। एलओसी पर होने वाली घटनाओं को देखते हुए कहने को तो यह सामान्य घटना हो सकती है, लेकिन इसका बहुत बड़ा महत्त्व है। यह इस अर्थ में बहुत महत्वपूर्ण है कि अब भारत सरकार ने अपने सैनिकों के हाथ खोल दिए हैं। चीन की किसी भी आक्रामक कार्रवाई का जवाब देने के लिए भारतीय सेना पूरी तरह से तैयार है। चीन इस बात को बहुत अच्छे से न केवल समझ रहा है, बल्कि महसूस भी कर रहा है। यही वजह है कि अरुणाचल प्रदेश में भारत-चीन सीमा पर चीनी सेना ने जिन पांच भारतीयों को अगवा किया, उन्हें उसे कुछ ही दिनों में छोड़ना पड़ गया। ये सभी भारतीय 4 सितंबर को शिकार के लिए गए थे, जिन्हें चीनी सेना ने अगवा कर लिया था। जिस अरुणाचल प्रदेश पर चीन दावा करता रहा है, उसने भारतीय रुख को देखते हुए और फजीहत से बचने के लिए इन पर जासूसी का आरोप लगाते हुए 12 सितंबर, 2020 को छोड़ दिया।
मोदी की रणनीति और चीनी मिशन की करारी हार
अब ये घटनाएं ऊपरी तौर पर जितनी गंभीरता दिखा रही हैं, अंदरूनी तौर पर इसका निहितार्थ और गंभीर है। इसे समझने के लिए आपको चीन के तीन मिशन की जानकारी होना जरूरी है। इसके बरअक्स में ही आप प्रधानमंत्री मोदी की कूटनीति और चीन की करारी हार का अंदाजा लगा सकते हैं।
चीन का पहला मिशन – 2035-2040 तक लद्दाख पर कब्जा
चीन ने दुनिया के बाकी देशों के ऊपर अपना प्रभुत्व जमाने की एक लंबी योजना तैयार की थी। इस योजना का खुलासा 8 जुलाई, 2013 को हुआ था, जब चीनी भाषा के समाचार पत्र Wenweipo ने एक लेख प्रकाशित किया। इसमें बताया गया था कि अगले 50 साल में चीन को छह युद्ध करने हैं और उसकी तैयारी करनी होगी। इन युद्धों के जरिए चीन उन भूभागों को वापस पाना चाहता है, जो उसकी नजर में वह 1840-42 के युद्ध के दौरान ब्रिटेन के हाथों गंवा चुका है। इसमें पहला युद्ध 2020-2025 के बीच ताइवान के एकीकरण के लिए होगा। इसके बाद 2025-2030 के दौरान उसे स्पार्टली द्वीप समूह पर कब्जा करना है। फिर पांच साल का वक्त लेकर 2035-2040 के बीच उसे भारत को परास्त कर दक्षिणी तिब्बत पर कब्जा करना है। 2040-2045 के दौरान उसकी मंशा सेंकाऊ और रकाऊ द्वीप समूहों को जापान से छीनने की होगी। 2045-2050 के दौरान चीन की रणनीति मंगोलिया के एकीकरण की होगी। और फिर आखिर में चीन 2055-2060 के दौरान रूस पर हमला करके बहुत सारे भूभाग छीन लेगा।
इस रणनीति के तहत तीसरा युद्ध भारत के खिलाफ है, जिसे चीन को 2035-2040 के बीच लड़ना है। रणनीति के तहत भारत के खिलाफ युद्ध करने के लिए चीन को पहले दो युद्ध के बाद तैयारी करने के लिए अच्छा खासा समय मिलेगा। चीन भारत को हराने के लिए दो रणनीति पर काम करेगा। पहली रणनीति ये होगी कि भारत के भीतर अलगाववाद को हवा दे। चीन की योजना के मुतबिक इससे असम और सिक्किम समेत देश के कई हिस्से भारत से अलग हो जाएंगे और भारत कई देशों में बंट जाएगा। इससे चीन की जीत सुनिश्चित हो जाएगी। चीन की दूसरी रणनीति यह होगी कि वो पाकिस्तान को भारत के खिलाफ न केवल भड़काएगा, बल्कि अत्याधुनिक हथियार देकर युद्ध के लिए उकसाएगा। 2035 में जब भारत पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध कर रहा होगा, उस समय चीन भारत पर हमला कर देगा। इससे पाकिस्तान को पूरा कश्मीर मिल जाएगा और चीन को तिब्बत का इलाका। यही नहीं, चीन की अगर ये दोनों रणनीति भी फेल हो जाए तो फिर खुलकर युद्ध करना होगा, जिसमें चीन को भी हानि होगी, लेकिन भारत इस युद्ध को हार जाएगा।
चीन ने यह मिशन बनाया है कि साल 2035 तक दुनियाभर के डाटा बाजार में चीन की बादशाहत कायम की जाए। इस मिशन में चीन को बड़ी सफलता मिली और देखते ही देखते हुवावे कंपनी ने दुनियाभर के बाजारों में अपना वर्चस्व स्थापित कर लिया। हुवावे नेटवर्क उपकरण और स्मार्ट फोन बनाने वाली विश्व की सबसे बड़ी कंपनी बन गई। हुवावे के जरिए चीन की मंशा पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था पर कब्जा जमाने की थी। अमेरिका हो या यूरोप या फिर ऑस्ट्रेलिया, किसी भी देश की कंपनी हुवावे को टक्कर देने की स्थिति में नहीं रही। दरअसल चीन की इस सफल रणनीति के पीछे जहां एक तरफ भारत है, वहीं दूसरी तरफ अमेरिका की एक गलत विदेश नीति का भी योगदान है। 1971 में अमेरिकी राष्ट्रपति निक्सन और विदेश मंत्री हेनरी किसिंजर भारत से नाराज थे और भारत को सबक सिखाने के लिए बेमेल विचारधारा वाले चीन के साथ रिश्ते बनाए। इस धोखे का चीन ने जमकर फायदा उठाया। वह अमेरिका की लिबरल आर्थिक नीतियों का लाभ लेकर पूरे पश्चिम और विश्व के आर्थिक तंत्र पर कब्जा करने के प्रयास में जुट गया। हुवावे के जरिए चीन दुनियाभर के कई देशों के आंतरिक मामले में घुसपैठ करने की फिराक में था। काफी हद तक वो सफल भी होता रहा।
चीन का तीसरा मिशन – Made In China 2025
चीन ने अपने लिए एक और लक्ष्य तय किया – “Made In China 2025″ यानि चीन 2025 तक पूरी दुनिया का मैन्युफैक्चरिंग हब बनना चाहता है। इसके जरिए उसने विश्वभर के बाजार पर कब्जा करने की मंशा बनाई। इस पर वो पिछले चार दशकों से काम कर रहा है। इसके लिए चीन ने बदलती हुई तकनीक के क्षेत्र में लगातार काम किया। मोबाइल हो या इंटरनेट, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस हो या 5जी, हर क्षेत्र में मैन्युफैक्चरिंग हब बनने की दिशा में जुट गया।
इसके साथ ही चीन ने खुद के लिए एक और वैश्विक मिशन तय किया- “China Standards 2035” यानि 2035 तक दुनिया में हर सामान के स्टैंडर्ड चीन के हिसाब से तय हों और उनकी मैन्युफैक्चरिंग पर भी कब्जा चीन का हो। इस लक्ष्य के साथ चीन ने अप्रैल 2020 से अपने देश में हर क्षेत्र में स्टैंटर्ड तय करने की प्रक्रिया शुरू कर दी। इसके लिए उसने-“The Main Points of National Standardization Work in 2020” की अप्रैल में घोषणा की थी। यही नहीं, डाटा की सुरक्षा और विश्वसनीयता को लेकर भी चीन ने एक पहल की, जिससे दुनिया के देशों को भरोसा हो सके कि किसी देश के डाटा से किसी देश की संप्रभुता पर कोई असर नहीं हो।
मोदी की रणनीति ने ध्वस्त किए चीन के तीनों मिशन
अब आप समझ गए होंगे कि पूरी दुनिया पर कब्जे के लिए चीन ने न केवल रणनीति अपनाई, बल्कि उस दिशा में वह काफी हद तक सफल भी हो रहा था। लेकिन कोरोना संकट के दौरान प्रधानमंत्री मोदी की रणनीति में चीन फंस गया। कहां चीन कोरोना संकट को अपने लिए एक अवसर में बदलने की फिराक में था, और कहां प्रधानमंत्री मोदी ने इसे न केवल भारत के लिए अवसर में बदल दिया, बल्कि चीन के मिशन को भी झटका दे दिया। भारत में अलगाववाद की भावना पैदा करने की चीन की साजिश फेल हो चुकी है। आज पूरा भारत प्रधानमंत्री मोदी के पीछे एकजुट है। कांग्रेस को लालच देने और भारत के भीतर ही चीन के पक्ष में इको सिस्टम खड़ा करने की उसकी पोल पट्टी भी खुल चुकी है। चीन जो युद्ध 2035-2040 में भारत के खिलाफ करना चाहता था, उसकी परिस्थिति भी अभी ही पैदा हो गई। लेकिन इस युद्ध में भारत और चीन कहां खड़ा है, ये 15 जून को गलवान में ही दिख गया था। गलवान की खूनी भिड़ंत के बाद बाद भारत ने जहां अपने 20 शहीदों का सम्मानपूर्वक अंतिम संस्कार किया, वहां चीन ने शर्म से अपने सैनिकों का सम्मान तक नहीं किया। अमेरिकी अखबार न्यूज वीक ने 11 सितंबर को अपने आर्टिकल में इससे जुड़ी चौंकाने वाली बातें लिखी हैं। इसके मुताबिक 15 जून को गलवान में चीन के 60 से ज्यादा सैनिक मारे गए थे। यही नहीं पैंगोंग के दक्षिणी इलाके में भी चीन भारत के आगे मात खा चुका है। अब सीमा पर युद्ध जैसे हालात पैदा किए जा रहे हैं। लेकिन सच्चाई यह है कि चीन पूरे विश्व का सिरमौर बनने का जो सपना पाले बैठा है, युद्ध की स्थिति में उसे ही सबसे ज्यादा नुकसान होगा।
ठीक इसी प्रकार मैन्यूफैक्चरिंग हब बनने के चीन के तीसरे मिशन को भी भारत में तगड़ा झटका लगा है। प्रधानमंत्री मोदी के आत्मनिर्भर भारत अभियान और वोकल फॉर लोकल नारे को देश में जबरदस्त समर्थन मिला है। इसका असर यह हुआ है कि लोग सस्ते चीनी सामान की जगह स्थानीय चीजों को तरजीह दे रहे हैं। यही भावना पूरी दुनिया में हावी होती जा रही है।
चीन की एक बड़ी विशेषता यह है कि वो एक ही साथ युद्ध भी करता है और व्यापार भी करता है, एक ही समय में वो धमकी भी देता है और सांस्कृतिक संबंध भी स्थापित करना चाहता है। लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने इस दोगलेपन की नीति को खत्म कर दिया है। उन्होंने साफ कर दिया है कि जब तक सीमा विवाद नहीं सुलझता, तब तक चीन की साम्राज्यवादी अर्थव्यवस्था को भी जगह नहीं मिलेगी। इसीलिए भारत अब चीन को सैन्य मोर्चे पर ही नहीं, बल्कि आर्थिक रूप से भी सीधी चुनौती दे रहा है।
वैश्विक पटल पर चीन की परेशानी वही है, जो भारत के अंदर मोदी के विरोधियों की है। विकास की लहर पर सवार होकर जिस प्रकार प्रधानमंत्री मोदी ने विपक्ष को अर्थहीन बना दिया है, ठीक उसी प्रकार चीन की जो नीतियां भारत के खिलाफ पहले हमेशा सफल रहीं, वो सिर्फ मोदी नाम के आगे ध्वस्त होती जा रही हैं। कहां चीन ने भारत के अंदर न केवल अलगाववाद पैदा करने की साजिश रची, बल्कि हमें पूरी दुनिया में अलग-थलग करने का प्लान किया, लेकिन मोदी की रणनीति का प्रतिफल यह है कि खुद चीन को अपने भीतर विरोध के स्वर सुनने पड़ रहे हैं, जबकि वैश्विक पटल पर आज उसके साथ पाकिस्तान समेत छंटे हुए 2-4 बदमाश देशों के अलावा कोई भी नहीं है। आज अमेरिका समेत दुनिया की तमाम बड़ी शक्तियां न केवल चीन की मुखालफत कर रही हैं, बल्कि भारत का साथ भी दे रही हैं। इसलिए आने वाले दिनों में अगर पाकिस्तान, चीन के साथ भारत के बदले हुए नैरेटिव वैश्विक पटल पर प्रभावी होने लगे, तो इसके पीछे सिर्फ और सिर्फ प्रधानमंत्री मोदी के उठाए गए कदमों की भूमिका होगी।
– हरीश चन्द्र बर्णवाल