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मोदी सरकार ने मनरेगा का किया कायाकल्प, नसीहत देने और श्रेय लेने सामने आया गांधी परिवार

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यूपीए शासन के दौरान 2005 में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) को लागू किया गया। लेकिन गांधी परिवार के संरक्षण में चल रही केंद्र की मनमोहन सरकार में मनरेगा सफेद हाथी बन चुकी थी। योजना में भ्रष्टाचार का बोलबाला था। रोजगार के नाम पर मजदूरों के साथ धोखा किया जाता था और पैसों की बंदरबांट की जाती थी। जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने केंद्र की सत्ता संभाली तो उन्होंने इस योजना का कायाकल्प कर मजदूरों के हित में बनाने का फैसला लिया। जिसका नतीजा है कि आज योजना मजदूरों के साथ ही ग्रामीण विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। लेकिन आज इस योजना की सफलता का श्रेय लेने के लिए गांधी परिवार अचानक जाग उठा है और मोदी सरकार को नसीहत दे रहा है।  

आइए आपको बताते हैं किस तरह मोदी सरकार ने दुनिया की सबसे बड़ी ग्रामीण रोजगारपरक योजना मनरेगा पर फोकस किया और इसको मजदूरों और गांवों के लिए लाभकारी बनाया है। 

मनमोहन सरकार से तीन गुना ज्यादा बजट का इस्तेमाल

मनरेगा से संबंधित आंकड़े बताते हैं कि पूर्ववर्ती मनमोहन सिंह सरकार से तीन गुना ज्यादा बजट मोदी सरकार मनरेगा के लिए इस्तेमाल करने में जुटी है। बीते दिनों जब वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने मनरेगा के लिए 40 हजार करोड़ रुपये अतिरिक्त जारी करने की घोषणा की तो चालू वित्त वर्ष में बजट कुल एक लाख करोड़ पार कर गया। क्योंकि सरकार ने इससे पूर्व आम बजट के दौरान 61 हजार करोड़ रुपये की घोषणा की थी। इस तरह मनरेगा को अब तक की सर्वाधिक एक लाख करोड़ रुपये से अधिक की राशि आवंटित की गई है। इससे ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसर बढ़ेंगे और वापस लौट रहे प्रवासी श्रमिकों के लिए यह बड़ी राहत होगी।

आंकड़ों से नहीं होती कांग्रेस के आरोपों की पुष्टि 

मनमोहन सिंह के कार्यकाल की तुलना में मोदी सरकार हर साल कहीं ज्यादा बजट दे रही है, जिससे रोजगार भी पहले से ज्यादा मिल रहा है। हालांकि सोनिया गांधी और कांग्रेस के अन्य नेता कई बार मोदी सरकार पर मनरेगा की उपेक्षा करने का भी आरोप लगाते हैं, लेकिन आंकड़े इस बात की पुष्टि नहीं करते। 

मनरेगा के तहत बजट आवंटन में निरंतर बढ़ोतरी

2013–14 33000 करोड़ रुपये
2014-15 33000 करोड़ रुपये
2015-16 37346 करोड़ रुपये
2016-17 48220 करोड़ रुपये
2017–18 55167 करोड़ रुपये
2018-19 55,000 करोड़ रुपये
2019-20 60,000 करोड़ रुपये
2020-21 61500 करोड़ रुपए

 

मनरेगा के तहत मस्टर रोल

मनरेगा के तहत 2011 से 2014 के बीच भरे गए मस्टर रोल की संख्या में 2013 को छोड़कर कोई बढ़ोतरी नहीं हुई, जबकि 2014 में मोदी सरकार के आने के बाद से 2018 तक भरे गए मस्टर रोल की संख्या में निरंतर बढ़ोतरी दर्ज की गई है।

मनरेगा की 90 प्रतिशत से अधिक मजदूरी का भुगतान समय पर

मोदी सरकार मनरेगा मजदूरों के बैंक खातों में 100 प्रतिशत मजदूरी का भुगतान करने के सभी उपाय कर रही है। वित्त वर्ष 2018-19 के आंकड़ों के मुताबिक मनरेगा के अंतर्गत 90.4 प्रतिशत मजदूरी का भुगतान 15 दिन के भीतर हुआ। यह प्रतिशत 2014-15 में 26.85 प्रतिशत था, जो समय पर भुगतान करने की दिशा में सुधार को दर्शाता है।


लीकेज में आई कमी
2018 में मनोज पंडा की अध्यक्षता में मनरेगा पर आर्थिक विकास संस्थान, दिल्ली के अध्ययन में केवल 0.5% प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन (एनआरएम) की संपत्ति असंतोषजनक पाई गई। इससे लीकेज में तेज कमी का संकेत मिलता है।

इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से 96 प्रतिशत मजदूरी का भुगतान
बैंका या डाकघरों से मनरेगा के खातों में 96 प्रतिशत मजदूरी का भुगतान इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से किया गया गया है। वित्तीय वर्ष 2013-14 के दौरान यह केवल 37 प्रतिशत था।

जनधन, आधार और डीबीटी
जनधन खाते खुलने से मनरेगा कामगारों की मजदूरी को सीधे उनके बैंक खातों में भेजना आसान हो गया है। कामगारों के 10.85 करोड़ से अधिक आधार नंबरों को कार्यक्रम डाटाबेस (एमआईएस-नरेगासॉफ्ट) में पंजीकृत किया गया है। साथ ही 6.63 करोड़ से अधिक कामगारों को आधार आधारित भुगतान के लिए इनेबल किया गया है। वित्तीय वर्ष 2013-14 तक पंजीकृत किए गए आधार केवल 76 लाख थे।

प्रौद्योगिकी के उपयोग के साथ पूरी पारदर्शिता
लाभार्थियों के खातों को आधार से जोड़ने, 100 प्रतिशत इलेक्ट्रॉनिक फंड मैनेजमेंट सिस्टम (ईएफएमएस), 100 प्रतिशत आईटी/डीबीटी और परिसंपत्तियों की जियो टैगिंग के साथ पूरी पारदर्शिता को सर्वोच्च प्राथमिकता दी गई।

जियो टैगिंग के लिए अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का प्रयोग
वित्तीय वर्ष 2016-17 में मनरेगा की जियो टैगिंग के लिए अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का प्रयोग करते हुए प्रभावपूर्ण निगरानी एवं बेहतर पारदर्शिता के लिए लीक से हटकर एक पहल शुरू की गई। 3 करोड़ से अधिक परिसंपत्तियों की जियोटैग किया गया है और इन्हें पब्लिक डोमेन में उपलब्ध कराया गया है।

टिकाऊ परिसंपत्तियों पर बढ़ा जोर
मनरेगा में पिछले सालों के दौरान काफी बदलाव या है, जिसमें कमजोर तबकों की आबादी की आजीविका में बढ़तोरी करने के साथ-साथ टिकाऊ परिसंपत्तियों के सृजन, प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन और जल संरक्षण कार्यों पर बढ़े हुए खर्च की ओर विशेष ध्यान दिया जा रहा है।

व्यक्तिगत लाभार्थियों से जुड़ी योजनाओं की मांग बढ़ी
मनरेगा के तहत व्यक्तिगत लाभार्थी योजनाएं, जो 2014-15 में कुल कार्यों का 21.4% थीं, वे 2019 में बढ़कर 67.29% हो गई।

दक्षता में सुधार के लिए संरचनात्मक परिवर्तन
ग्राम पंचायत स्तर के बजाय जिला स्तर पर लागू सामग्री अनुपात में 60:40 मजदूरी कर कार्यक्रम में बदलाव लाया गया।

रोजगार सृजन में बढ़ोतरी
वित्तीय वर्ष 2017-18 के आंकड़ों के मुताबिक राज्यों/ संघ राज्य क्षेत्रों में 234.25 करोड़ श्रम दिवस का सृजन और 5.12 करोड़ परिवारों को 177 लाख कार्यों में रोजगार उपलब्ध कराया गया।

कृषि और सहायक क्रियाकलापों पर ध्यान
वित्तीय वर्ष 2017 -18 के दौरान कृषि तथा सहायक क्रियाकलापों पर कुल व्यय लगभग 67 प्रतिशत व्यय किया गया। वित्तीय वर्ष 2013-14 और पूर्व के दौरान यह लगभग 50 प्रतिशत तक व्यय किया जाता था।

राष्ट्रीय संसाधन प्रबंधन पर फोकस
वित्तीय वर्ष 2017-18 में कुल व्यय का लगभग 55 प्रतिशत एनआरएम संबंधी कार्यों पर व्यय किया गया, जो कि वित्तीय वर्ष 2013-14 में केवल 49 प्रतिशत था।

मजदूरों के कौशल विकास पर जोर
मनरेगा कामगारों को पहले जैसे बेयरफुट, टेक्नीशियन(बीएफटी) के अंतर्गत प्रशिक्षित किया जा रहा है, जिससे कि वे इस क्षेत्र में कुशल बन सके।

राष्ट्रीय इलेक्टॉनिक निधि प्रबंधन प्रणाली
निधि प्रवाह को सुप्रवाही बनाने के लिए ग्रामीण विकास मंत्रालय ने 01 जनवरी, 2016 की एनई-एफएमएस को लागू किया। एनई-एफएमएस को राज्यों तथा एक संघ राज्य क्षेत्र में कार्यान्वित किया गया है।

मनरेगा के तहत जल संरक्षण पर जोर
मनरेगा के तहत 261 तरह के कार्य की अनुमति है जिनमें से 164 प्रकार के कार्य कृषि और संबद्ध गतिविधियों से संबंधित हैं। सरकार ने इस योजना के तहत जल संरक्षण एवं सिंचाई के साथ-साथ बुनियादी संरचनाओं के विकास पर जोर दिया है। देश में जल की कमी से ग्रस्त 2264 ब्लॉक में राष्ट्रीय संसाधन प्रबंधन कार्यों पर बल देने के लिए मिशन जल संरक्षण की शुरुआत की गई।

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