Home विपक्ष विशेष मायावती को भी वंशवाद पसंद है!

मायावती को भी वंशवाद पसंद है!

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बीएसपी में मायावती के बाद आम तौर पर सतीश चंद्र मिश्रा का नाम लिया जाता रहा है, लेकिन लगता है तस्वीर अब बदल चुकी है। मायावती के भाई और भतीजे, सतीश चंद्र मिश्रा से ऊपर आ गए हैं। इस तस्वीर को सामने लाया रविवार को मेरठ में हुई मायावती की रैली ने, जिसमें ना सिर्फ मायावती के भाई आनंद और भतीजे आकाश मंच पर काफी सक्रिय नजर आये, बल्कि रैली में आये लोगों के सामने सतीश मिश्रा से पहले इन दोनों के ही नाम लिये गए।

मायावती को अब भाई-भतीजे से ही उम्मीद
मेरठ की रैली ने मायावती की राजनीति के अगले रंग को उभारने की कोशिश की है। ये रंग है परिवारवाद का। मायावती पर ये रंग ऐसे समय में चढ़ा है जब पार्टी सुप्रीमो के रूप में उनके रवैये से तंग आकर कई नेताओं ने बीएसपी का दामन छोड़ दिया। केंद्र में पीएम मोदी की सरकार की उपलब्धियों को देखकर जनता ने पहले से सियासी हाशिये पर गईं मायावती को और दूर धकेल दिया। शायद इसी स्थिति में उन्हें अब भाई-भतीजों में ही अपने लिए एक उम्मीद नजर आ रही है।

राहुल गांधी से प्रभावित हैं माया?
सवाल ये भी है कि कहीं मायावती हाल ही में अमेरिका जाकर दिये गए राहुल गांधी के उस बयान से तो नहीं प्रभावित हो गईं जिसमें राहुल ने परिवारवाद को जायज करार दिया था? राहुल ने कुछ उदाहरण देते हुए यहां तक कहा था कि पूरा भारत ही परिवारवाद से चलता है। इस पर देश भर में राहुल की जमकर किरकिरी हुई।

अखिलेश की काबिलियत ‘वंशवाद’
परिवारवाद की राजनीति की रोटी खाने वाले एक और नेता हैं अखिलेश यादव, जिनके पास राहुल गांधी के बयान का बचाव करने के अलावा और कोई चारा नहीं था। अखिलेश उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य के मुख्यमंत्री बने थे तो उनकी असलियत-काबिलियत यही थी कि वो मुलायम सिंह यादव के बेटे थे।

लालू यादव ने पूरे कुनबे को राजनीति में लाया 
वंशवाद में लालू यादव का परिवार भी किसी से पीछे नहीं रहना चाहता। ये और बात है कि राजनीति के अपने तरीकों से लालू का पूरा कुनबा आज खुद शिकार हुआ नजर आ रहा है। अपने इसी सियासी बदहाली के बीच लालू मायावती को बिहार से राज्यसभा भेजने का न्योता भी दे चुके थे। 

वंशवाद के समर्थक मिलाएंगे सुर में सुर!
ये देखा गया है कि केंद्र की मोदी सरकार के विरोध में मोर्चाबंदी की अपनी कोशिश में विपक्ष की पार्टियां कभी-कभी अचानक सुर में सुर मिलाने लगती हैं। तो क्या अब वंशवाद के तमाम समर्थक साथ आने की कोशिश करेंगे!   

राजनीति दलितों के नाम पर, विकास सिर्फ अपना 
बीएसपी के संस्थापक कांशीराम की विरासत संभालते हुए मायावती ने अपने समर्थकों को सुनहरे सपने दिखाये थे, लेकिन पूरा देश देख चुका है कि मायावती ने अगर किसी का विकास किया तो सिर्फ अपना और अपने परिवार वालों का। दलितों ने भी मायावती की राजनीति की असलियत देखी कि चार बार उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री रहकर भी उन्होंने जमीन पर उनके लिए क्या किया।

भाई-भतीजावाद से डूबेगी माया की सियासी नैया!
मायावती ने अगर कुछ किया था तो वो है अपनी पार्टी के प्रचार में जगह-जगह पत्थर के हाथी लगवाना, बीएसपी के पुराने नेताओं की मानें तो चुनावी टिकट के लिए अपने नेताओं से करोड़ों ऐंठना और अपने जन्मदिन पर रुपयों से मालामाल माला पहनना। उत्तर प्रदेश विधानसभा में कभी सत्ता में रही मायावती की बीएसपी पिछले चुनाव में 20 सीटें भी नहीं जीत पाईं। भाई-भतीजावाद के सहारे शायद अब उन्होंने अपनी सियासी नैया के डूबने का भी इंतजाम कर लिया है।  

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