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पश्चिम बंगाल के पूर्व IPS का खुलासा, भाजपा के बढ़ते जनाधार से बौखलाई ममता

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”पश्चिम बंगाल में भारतीय जनता पार्टी के लगातार बढ़ते जनाधार से ममता बनर्जी बौखला गई हैं।” ये खुलासा पूर्व आईपीएस अफसर भारती घोष ने किया है।

आज तक चैनल को दिए गए अपने इंटरव्यू में उन्होंने स्पष्ट कहा, ”राज्य में ममता सरकार को यदि लगता है कि भाजपा का जनाधार बढ़ रहा है तो वह अफसरों का तबादला करना शुरू देती है। राज्य के अधिकारियों पर तृणमूल कांग्रेस के मनमाफिक काम करने का दबाव है।”

उन्होंने कहा कि अगर कोई अधिकारी ऐसा नहीं करता है तो उन्हें प्रताड़ित भी किया जाता है। भारती घोष ने खुलासा किया कि मिदनापुर उपचुनाव में भाजपा का मत प्रतिशत बढ़ने के कारण उन्हें दरकिनार कर दिया गया।

बकौल भारती घोष, ”मैंने मिदनापुर में निष्पक्ष तरीके से चुनाव संपन्न कराया था जिसकी वजह से सत्ताधारी पार्टी उनसे नाराज हो गई। क्योंकि इस चुनाव में भाजपा का जनाधार बढ़ा था। मैंने उनके (तृणमूल) सियासी आदेश का पालन नहीं किया, इसीलिए उन लोगों ने मेरे खिलाफ जबरन वसूली का फर्जी केस लाद दिया।”

गौरतलब है कि भारती घोष पश्चिम बंगाल की पहली महिला आईपीएस अधिकारी हैं जिन्हें राज्य में किसी जिले का पुलिस अधीक्षक बनाया गया था। वह पांच वर्षों से अधिक समय तक नक्सल प्रभावित जिलों का प्रभार संभाल चुकी हैं।  भारती घोष संयुक्त राष्ट्र के शांति अभियानों का हिस्सा रही हैं और यूएन ने छह बार उन्हें सम्मानित भी किया है। हालांकि जब मार्च,2018 में उन्हें एसपी पद से हटाया गया तो उनके आत्मसम्मान को ठेस लगी और उन्होंने IPS की नौकरी से इस्तीफा दे दिया। जाहिर है वह कोई साधारण महिला नहीं हैं। उनकी बातों को गंभीरता से लेने की जरूरत है।

भारती घोष ने कमोबेश वही बात कही है जो सुप्रीम कोर्ट ने 03 जुलाई, 2018 को कहा था। कोर्ट ने तब कहा था, ”बंगाल में निचले स्तर पर लोकतंत्र काम नहीं कर रहा है।” स्पष्ट है कि एक पूर्व आईपीएस और सुप्रीम कोर्ट कोई बात यूं हीं नहीं कह सकता है।

भारती घोष और सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों से तीन बातें स्पष्ट हैं-

पहला, बंगाल में लोकतंत्र नाम की चीज नहीं है।

दूसरा, भाजपा का जन समर्थन बढ़ता जा रहा है।

तीसरा, ममता अपने खोते जनाधार से घबराई हुई हैं।

दरअसल भाजपा दिनों दिन पश्चिम बंगाल में अपनी पैठ बढ़ा रही है। राज्य में पिछले दो साल में कम्युनिस्ट पार्टी का जनाधार लगभग खत्म हो गया है और इस समय भाजपा का लगातार उदय हो रहा है।

2018 के पंचायत चुनावों में भाजपा दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है। आदिवासी बहुल क्षेत्रों- पुरुलिया, झारग्राम, पश्चिम मिदनापुर और बंकुरा में भाजपा को जबरदस्त समर्थन मिल रहा है। इसके अलावा उत्तर बंगाल और मालदा जिले में भी बेहतर प्रदर्शन रहा है। गौरतलब है कि ये दोनों ही क्षेत्र मुस्लिम बहुल हैं और यहां कांग्रेस का वर्चस्व रहा है।

जिला पंचायत चुनाव में जिला परिषद में भाजपा ने 23 सीटें जीतीं जबकि पंचायत समिति में पार्टी ने 764 सीटों पर कब्ज़ा जमाया और 5759 ग्राम पंचायतों में भी कमल खिला। पंचायत चुनाव में भाजपा ने शहरी क्षेत्रों में भी अपनी पहचान बनाई है।

आपको बता दें कि 2014 के लोकसभा चुनावों में पश्चिम बंगाल से भाजपा को 17.2 प्रतिशत वोट प्राप्त हुए थे। यह 2009 के लोकसभा चुनावों में मिले वोट की तुलना में 13 प्रतिशत अधिक थे।

इसके बाद 2016 में हुए विधानसभा चुनावों में भाजपा को 10.16 प्रतिशत वोट मिले। हालंकि 10 प्रतिशत वोट मिलने के बावजूद पार्टी राज्य में केवल 3 विधानसभा सीट जीत पाई। लोकसभा, विधानसभा मिलाकर राज्य में पिछले तीन साल में हुए चुनावों में भाजपा ने अपनी मज़बूत ज़मीन बनाई है।

जाहिर है भाजपा के बढ़ते जनाधार ने ममता बनर्जी के होश उड़ा दिए हैं। आए दिन लोकतंत्र का मजाक उड़ाया जा रहा है। राजनीतिक विरोध के चलते एक के बाद एक भाजपा व अन्य पार्टी के कार्यकर्ताओं की हत्या टीएमसी के गुंडे कर रहे हैं और राज्य में खुलेआम घूम रहे हैं। राज्य की पुलिस मूकदर्शक बनी हुई है। 28 जुलाई को भाजपा के कार्यकर्ता की बेरहमी से हत्या कर दी गई।

24 परगना जिले के मंदिर बाजार के पास घात लगाए कुछ लोगों ने भाजपा के मंडल सचिव शक्तिपद सरदार पर ममता की पार्टी टीएमसी को गुंडों ने धारदार हथियार से हमला कर दिया। अस्पताल ले जाते समय उनकी मौत हो गई। 

इससे पहले भी बंगला में ममता राज में भाजपा कार्यकर्ताओं की हत्या हो चुकी है। इन हत्याओं के पीछे भी टीएमसी का ही नाम आया है। ममता के गुंडे बंगाल की जनता को डरा-धमकाकर गुलाम बनाए रखना चाहते हैं। खूनी घटनाओं पर एक नजर – 

पुरुलिया में टीएमसी के गुंडों ने की पिता-पुत्र की हत्या
‘’भाजपा के ओबीसी कार्यकर्ता 27 साल के दीपक महतो और उनके पिता 52 वर्षीय लालमन महतो की टीएमसी के लोगों ने हत्या कर दी।”  ये आरोप पश्चिम बंगाल भाजपा के महासचिव सायंतन बासु ने लगाए हैं।  दरअसल मारे गए दोनों व्यक्ति पुरुलिया मंडल समिति के प्रभावी कार्यकर्ता थे और वे चावल वितरण में तृणमूल कांग्रेस के भ्रष्टाचार का विरोध कर रहे थे। आरोप है कि इसी के चलते उनकी निर्मम हत्या की गई। हालांकि पुलिस इस मामले की भी लीपापोती करने में लग गई है।

ममता और वाम दलों के शासन का खूनी इतिहास
बंगाल में राजनीतिक झड़पों का एक लंबा और रक्तरंजित इतिहास रहा है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2016 में बंगाल में राजनीतिक कारणों से झड़प की 91 घटनाएं हुईं और 205 लोग हिंसा के शिकार हुए। 2015 में राजनीतिक झड़प की कुल 131 घटनाएं दर्ज की गई थीं और 184 लोग इसके शिकार हुए थे। वर्ष 2013 में बंगाल में राजनीतिक कारणों से 26 लोगों की हत्या हुई थी, जो किसी भी राज्य से अधिक थी। 1997 में बुद्धदेब भट्टाचार्य ने विधानसभा मे जानकारी दी थी कि वर्ष 1977 से 1996 तक पश्चिम बंगाल में 28,000 लोग राजनीतिक हिंसा में मारे गये थे। 

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