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पीएम मोदी का करिश्मा और बीजेपी की प्रचंड जीत का असर, बिखरने लगा विपक्षी कुनबा, इंडी गठबंधन की बैठक से नीतीश, ममता,अखिलेश, हेमंत सोरेन ने बनाई दूरी

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पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव के नतीजे आ चुके हैं। जहां मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में बीजेपी की प्रचंड जीत ने चुनावी पंडितों को हैरान कर दिया है, वहीं तेलंगाना और मिजरोम में बीजेपी के बढ़ते जनाधार ने इंडी गठबंधन में खलबली मचा दी है। तीन राज्यों में मिली करारी शिकस्त और मिजोरम में काफी लचर प्रदर्शन से कांग्रेस को गहरा सदमा लगा है। इससे तेलंगाना में जीत की खुशी भी फीकी पड़ गई है। वहीं बीजेपी की जीत का असर इंडी गठबंधन की एकजुटता पर भी दिखाई देने लगा है। गठबंधन में भगदड़ की शुरुआत हो चुकी है। नीतीश कुमार, ममता बनर्जी, अखिलेश यादव और हेमंत सोरेन के इनकार के बाद इंडी गठबंधन की होने वाली बैठक को टालना पड़ गया है। अब कांग्रेस के सामने अपने कुनबे को बचाये रखने की चुनौती है। 

घटक दलों के इनकार के बाद टालनी पड़ी इंडी गठबंधन की बैठक   

दरअसल कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने बुधवार (6 दिसंबर, 2023) को इंडी गठबंधन की बैठक बुलाई थी। लेकिन बैठक से ठीक एक दिन पहले पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममत बनर्जी, झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरने, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने बैठक में शामिल होने से इनकार कर दिया। कांग्रेस की तरफ से सफाई दी गई है कि बारिश की वजह से चेन्नई एयरपोर्ट बंद है, ऐसे में स्टालिन भी शामिल नहीं हो पा रहे हैं। वहीं नीतीश कुमार की तबीयत ठीक नहीं हैं, जबकि ममता बनर्जी कार्यक्रम में व्यस्त है।

कांग्रेस की आपदा में अवसर तलाश रहे हैं घटक दल 

चार राज्यों में कांग्रेस के निराशाजनक प्रदर्शन से इंडी गठबंधन के घटक दलों को प्रेसर पॉलिटिक्स करने का मौका मिल गया। घटक दल अब कांग्रेस को गठबंधन धर्म पालन नहीं करने की याद दिला रहे है। साथ ही बात रहे हैं कि गठबंधन न करने का खामियाजा कांग्रेस को भुगतना पड़ा है। ऐसे में घटक दल कांग्रेस की आपदा में अपना अवसर तलाश रहे हैं। अपनी शर्तों पर कांग्रेस से समझौता करने की रणनीति पर काम कर रहे हैं। इसलिए उन्होंने बैठक से दूरी बनाकर कांग्रेस को स्पष्ट संदेश दे दिया है।

ममता बनर्जी की सफाई ने खोल दी इंडी गठबंधन की एकजुटता की पोल

इंडी गठबंधन की दूसरी बैठक के बाद ही ममता बनर्जी ने जो तेवर दिखाया था, उससे पता चल गया था कि गठबंधन में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है। इसके बाद बैठक में शामिल होने से इनकार कर ममता बनर्जी ने अपनी नाराजगी जाहिर कर दी है। हालांकि उन्होंने सफाई देते हुए कहा कि बैठक कब और कहां हो रही है इसके बारे में उन्हें कोई जनकारी नहीं थी। किसी ने मुझे बैठक के बारे में नहीं बताया था और ना ही कोई फोन आया था। अगर उन्हें पता होता तो बैठक में चली जाती है। इसके विपरीत कांग्रेस की तरफ से कहा जा रहा है कि सभी नेताओं को बैठक की सूचना दे दी गई थी। ममता बनर्जी की सफाई और कांग्रेस के बचाव ने गठबंधन की पोल खोलकर रख दी है।

कांग्रेस की हार ‘ज़मींदारी एटीट्यूड’ और ‘घमंड’ का परिणाम

इससे पहले कांग्रेस की हार पर ममता बनर्जी से सवाल किया गया तो उन्होंने दो टूक कहा कि ये जनता की नहीं कांग्रेस की हार है। कांग्रेस की हार ‘ज़मींदारी एटीट्यूड’ की वजह से हुई है। वहीं जेडीयू का कहना है कि कांग्रेस के ‘घमंड’ की वजह से हार मिली है। नीतीश कुमार के करीबी विजय कुमार चौधरी ने कहा कि हर चुनाव कुछ स्पष्ट संदेश देता है। पांच राज्यों के नतीजे ने भी स्पष्ट संदेश दिया है कि सभी घटक दलों को एकजुट होना पड़ेगा। विजय कुमार चौधरी ने भी माना कि एकजुट हुए बिना बीजेपी को परास्त नहीं किया जा सकता। आगे एक विश्वसनीय चेहरा पर चुनाव लड़ा जाए। ऐसे में उम्मीद करते हैं कि कांग्रेस अब आगे बढ़कर सभी क्षेत्रीय दलों को उचित सम्मान दें। विजय कुमार चौधरी और ममता बनर्जी के बयान ने स्पष्ट कर दिया है कि कांग्रेस घटक दलों से परामर्श किए बिना फैसले ले रही है। वहीं घटक दलों के बीच समन्वय का घोर अभाव है। 

कांग्रेस की उम्मीदों पर फिर गया पानी, पलट गई बाजी 

गौरतलब है कि पांच राज्यों में चुनाव से पहले कांग्रेस हसीन सपने देख रही थी। उसे चुनाव में बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद थी। इसके माध्यम से वो अपनी बार्गेनिंग पावर बढ़ाने और इंडी गठबंधन की ड्राइविंग सीट पर मजबूती के साथ बैठकर मनमाना फैसले लेने की सोच रही थी। लेकिन खराब प्रदर्शन ने उसके उम्मीदों पर पानी फेर दिया है। अब बाजी पूरी तरह पलट गई है। अब कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ गई हैं। इंडी गठबंधन के घटक दलों की नसीहत, शर्तें और बार्गेनिंग से जुझना पड़ रहा है। आने वाले समय में घटक दलों के दबाव और हमलों और बढ़ेंगे। मध्य प्रदेश चुनाव में गठबंधन नहीं होने से अखिलेश यादव पहले ही मोर्चा खोल चुके हैं, जबकि पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी पहले ही कांग्रेस और लेफ्ट से सीट शेयररिंग को लेकर अपना रूख साफ कर दिया है। नीतीश कुमार भी समय समय पर अनपी आंखें दिखाते रहते हैं। ऐसे में कांग्रेस अब घटक दलों के सामने पूरी तरह बेबस और लाचार हो चुकी है। 

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