मलयालम फिल्म मलिकप्पुरम ब्लॉकबस्टर साबित हुई है। मात्र 3.5 करोड़ रुपए में बनी फिल्म ने करीब 100 करोड़ रुपए की कमाई कर ली है। इस फिल्म में भगवान अय्यपा के प्रति एक 8 साल की बच्ची की श्रद्धा को दिखाया गया है। मलिकप्पुरम मलयालम भाषा में 30 दिसंबर, 2022 को बड़े पर्दे पर रिलीज हुई थी। एक तरफ दक्षिण भारत में जहां सनातन धर्म का झंडा बुलंद किया जा रहा है वहीं बॉलीवुड दिमाग में हिंदू विरोधी जहर घोल रहा है। बॉलीवुड फिल्मों में हिन्दुओं की भावनाओं को आहत करने की घटनाएं कोई नई नहीं है, यह वर्षों से चली आ रही है। बॉलीवुड में जैसे एक ये कल्चर बन चुका है। कंट्रोवर्सी के लिए और एक एजेंडे के तहत जानबूझकर फिल्मों के कंटेट को हिन्दू विरोधी बनाया जाता है।
Malikappuram a movie based on the girl who is devotee of Ayyappa swami & decides to go to Sabarimala Temple.
Director Thanked RSS Sarsaghchalak MohanBhagwat ji in the opening credits of the movie in a Left, Islamist dominated state pic.twitter.com/388IkTg0xX
— Sheetal Chopra 🇮🇳 (@SheetalPronamo) January 18, 2023
अब तो नेटफ्लिक्स पर रिलीज की गई फिल्मों में भी मंदिर की पवित्रता भंग कर दी जाती है और सनातन धर्म को नीचा दिखाया जाता है। दुख की बात यह है कि हजारों वर्षों की हमारी सनातन परंपरा के साथ ही भारत का अपमान किया जाता है और हम चुप होकर इसे देखते रहते हैं। यह हम भारतीय की जिम्मेदारी है कि हमारी परंपरा पर जब हमला हो तो हम उसके खिलाफ मुखर होकर बोलें और इसका विरोध करें।
बॉलीवुड दिमाग में भर रहा है हिंदू विरोधी जहर
नेटफ्लिक्स पर रिलीज़ हुई सुटेबल ब्वॉय में अगर एक मंदिर की मर्यादा को चोट पहुंचाने की कोशिश की गई तो वहीं नेटफ्लिक्स पर ही रिलीज़ हुई एक और फिल्म लुडो को लेकर भी सवाल उठे। इस फिल्म में चार कहानियों को एक में पिरोया गया लेकिन अनुराग बासु अपनी एंटी हिन्दू सोच यहां भी दिखा गए। हिन्दू धर्म और संस्कृति को निशाना बनाने के लिए अनुराग बसु ने पांडवों को गलत और कौरवों को सही करार दे दिया, वहीं ब्रह्म, विष्णु और महेश के स्वरूपों का भी उपहास उड़ाया गया।
कट्टरपंथियों के कब्जे में बॉलीवुड फिल्म इंडस्ट्री
बॉलीवुड में एक खास धड़ा इसी पर काम कर रहा है। उन्हें पक्का यकीन है कि वो अगर हिन्दू संस्कृति पर सवाल उठाएंगे तो ज़ाहिर है लिबरल सनातन समाज उन्हें कठघरे में नहीं खड़ा करेगा। जबकि मुस्लिम समुदाय पैगंबर मोहम्मद के एक कार्टून बनने पर ही बवाल खड़े कर देता है। यही वजह है कि कुछ फिल्मों में हिंदू धर्म के प्रति पक्षपाती रवैया देखा गया। माना जाता है कि मुंबई फिल्म इंडस्ट्री में ज्यादातर फैसा अंडरवर्ल्ड से आता है और अंडरवर्ल्ड में मुस्लिम डॉन्स का बोलबाला है, लिहाज़ा यहां की फिल्मों से हिन्दुत्व के खिलाफ धीमा ज़हर लोगों के जहन में घोला जा रहा है।
सनातन धर्म के खिलाफ प्रोपेगेंडा कब थमेगा
भारतीय दर्शन वसुधैव कुटुंबकम और सर्वधर्म समभाव की बात करता है, हिन्दुस्तान सभी धर्मों को समान भाव से देखता है लेकिन हिन्दुस्तान में रहनेवाले और हिन्दुस्तान की खाने वाले कुछ लोगों ने एक एजेंडा चला रखा है। जिसके तहत हिन्दुओं के विरुद्ध एक अभियान चलाया जा रहा है। यही वजह है कि फिल्मों में आज भी ऐसा ही प्रोपेगेंडा चल रहा है।
अपने ‘A Suitable Boy’ कार्यक्रम में @NetflixIndia ने एक ही एपिसोड में तीन बार मंदिर प्रांगण में चुंबन दृश्य फ़िल्माए। पटकथा के अनुसार मुस्लिम युवक को हिंदू महिला प्रेम करती है, पर सभी किसिंग सीन मंदिर प्रांगण में क्यूँ शूट किए गए?
मैने रीवा में इस मामले पर FIR दर्ज करा दी है। pic.twitter.com/RcwuPDDME2
— Gaurav Tiwari (@adolitics) November 21, 2020
मंदिर का प्रांगण, बैकग्राउंड में आरती और अश्लील दृश्य।
क्या मस्जिद में अजान के समय ऐसा शूट करने की ‘क्रीएटिव फ़्रीडम’ है आपको @NetflixIndia?
हिंदुओं की सहिष्णुता को उनकी कमजोरी मत समझिए, ये मध्यप्रदेश का नहीं, भगवान शिव और करोड़ों शिवभक्तों का भी अपमान है।
माफ़ी माँगनी पड़ेगी। pic.twitter.com/9TLnsQviHJ
— Gaurav Tiwari (@adolitics) November 21, 2020
अ सूटेबल बॉयः भोलेनाथ के मंदिर में किसिंग सीन क्यों
महादेव के मंदिर में किसिंग सीन का फिल्मांकन क्या हिंदू आस्था का अपमान नहीं है? दरअसल, हाल ही में रिलीज़ हुई वेब सीरीज़ “अ सूटेबल बॉय” विवाद के केन्द्र में है। वेब सीरीज़ पर हिंदू भावना को ठेस पहुंचाने और लव जेहाद को बढ़ावा देने के आरोप लग रहे हैं। डायरेक्टर मीरा नायर के निर्देशन में बनी इस सीरीज़ में फिल्माए गए कुछ आपत्तिजनक दृश्यों पर विवाद है।
लूडोः अनुराग बसु की फिल्म भी हिन्दू धर्म-संस्कृति की विरोधी
अनुराग बसु अब सीधे ही हिन्दू धर्म और संस्कृति के विरोध में खड़े नजर आ रहे हैं। फिल्म- लूडो में सीधे-सीधे हिन्दू धर्म का उपहास करने और सांकेतिक रूप से हिन्दू संस्कृति को चोट पहुंचाने की कोशिश की गई है। फिल्म में हिन्दू त्रिदेवों का बेशर्मी से मजाक बनाया गया है। और उसको बिलकुल उस ढंग से ही फिल्माया गया है जिस ढंग से आमिर खान की ‘पीके’ फिल्म में दिखाया गया था। स्वांग रचने वाले तीन लोग ब्रम्हा, विष्णु, महेश का भौंडा सा रूप धरे सड़क पर नाच-कूद कर रहे हैं, जिन्हें देख कर फिल्म का हीरो आदित्य राय कपूर वितृष्णा के भाव से मुंह बना रहा है। जान-बूझ कर इस तरह से कुछ हिन्दी फिल्मों में हिन्दुओं के देवी-देवताओं को फूहड़ स्वांग रचा कर पेश किया जा रहा है और उनको तरह तरह की घटिया हरकतें करते दिखाया जा रहा है जो भारत में हिन्दू धर्म-संस्कृति के विरुद्ध चली आ रही पुरानी फिल्मी साजिश को आगे बढ़ाने की नीच कोशिश है।
फिल्म लूडो में कौरव हो गए नायक और पांडव खलनायक
महाभारत के कौरवों के विषय में कहने की आवश्यकता नहीं, सर्वविदित है कि वे नायक नहीं खलनायक थे। इसके विपरीत हिन्दुओं की इस धार्मिक-सांस्कृतिक विरासत को झूठ बोल कर झूठा दिखाने की कोशिश की गई। इस फिल्म की शुरुआत में ही दो विदूषक लूडो का बोर्ड लेकर लूडो खेलने एक निर्जन स्थान में पहुंच जाते हैं जिसमें से एक अज्ञानी बनने का अभिनय करने वाला व्यक्ति दूसरे ज्ञानी बनने का अभिनय करने वाले व्यक्ति से पाप-पुण्य की परिभाषा पूछता है। इस तरह के प्रश्नों की हंसी उड़ाते हुए वह धूर्तता भरे उत्तर देता है जिसमें सत्य असत्य के रूप में स्थापित किये जाने की कोशिश होती है। इसी तरह उस अज्ञानी ने जब पूछा कि कौरव नायक थे या खलनायक तो उस दूसरे महा-ज्ञानी ने उनको नायक सिद्ध किया और पांडवों को खलनायक भी। अपने इस अ-धार्मिक झूठ के पांव लगाने के लिये वह एक झूठा प्रसंग भी स्वयं ही गढ़ कर सुना देता है।
दर्शक बॉलीवुड की हिन्दी फिल्मों को क्यों नकार रहा है?
आज दर्शक हिन्दी फिल्मों को नकार रहा है। क्यों ऐसा हो रहा है कि हिन्दी फिल्मों के नकारे जाने पर बीबीसी एक दुराग्रह पूर्ण स्टोरी बना रहा है। यह दोनों ही मामले आपस में जुड़े हुए हैं क्योंकि इन दोनों के ही मूल में अत्यधिक हिन्दू विरोध है। बॉलीवुड से पूछा जाना चाहिए कि आखिर एक हिन्दू बॉलीवुड की फिल्मों को क्यों देखे? जबरन सेक्युलर बनने के लिए या फिर हिन्दू विरोधी कंटेंट को देखने के लिए?
बॉलीवुड की फिल्मों पर वामपंथियों का कब्जा
बॉलीवुड की फिल्मों में वामपंथियों का इस हद तक कब्जा हो गया है कि ऐसा लगता है कि वह जैसे हिन्दू धर्म के लोगों के ठेकेदार हो गए हैं और उसे कथित रूप से सुधारने के लिए फ़िल्में बना रहे हैं। राजनीतिक कंटेंट बनाए गए, जैसे उड़ता पंजाब और साथ ही साम्प्रदायिकता को एक रंग देने का प्रयास किया गया। पीके, ओह माई गॉड जैसी कई फिल्मों के माध्यम से जमकर हिन्दू विश्वासों का उपहास उड़ाया गया।
Netflix's stock falls 22% and CEO and Co-Founder Reed Hastings says "Netflix’s lack of success in India is frustrating"
Meanwhile Netflix in India 👇 pic.twitter.com/rEbxMi8KxG
— Vertigo_Warrior (@VertigoWarrior) January 22, 2022
हिंदू विरोधी कंटेंट की वजह से नेटफ्लिक्स को हुआ नुकसान
जमकर हिन्दू विरोधी कंटेंट प्रस्तुत करने वाला नेटफ्लिक्स भी इस बात का रोना रो रहा है, कि उसे नुकसान हो रहा है। नेटफ्लिक्स के स्टॉक 22% तक गिर गए हैं और सीईइओ और उसके सहसंस्थापक का कहना है कि भारत में सफलता न मिलने से उन्हें निराशा है। लेकिन उन्हें अपना कंटेंट नहीं दिखता। नेटफ्लिक्स का जो कंटेंट है, वह हद से अधिक हिन्दू-घृणा से भरा हुआ है। बार बार हिन्दुओं के विरुद्ध शो दिखाना नेटफ्लिक्स की फितरत है। हद से अधिक वोकिज्म कंटेट ने भारतीय बाजार का उससे मोह भंग किया है। बॉम्बे बेग्म्स में किस तरह से केवल अश्लीलता को परोसा गया था, उसके साथ ही लस्ट स्टोरीज़ में भारतीय महिलाओं की जो कामुक असंतुष्ट छवि प्रस्तुत की गयी थी, वह किसी से छिपी नहीं है।
लीला नामक सीरीज में आर्यावर्त को बदनाम किया गया था। गुंजन सक्सेना पर बनी फिल्म में सेना को ही जैसे कठघरे में खड़ा कर दिया था, कहानी को तोड़ मरोड़ दिया था। पगलैट फिल्म पूरी तरह से हिन्दुओं की परम्पराओं के विरोध में थी।
Streaming Subscribers in India.
• Hotstar
• Amazon prime video
• Netflix pic.twitter.com/FiVcIm5E1p
— Marketing Maverick (@MarketingMvrick) January 30, 2022
परन्तु ऐसा क्या है कि नेटफ्लिक्स के ही सब्स्क्राइबर कम हैं तो वहीं मीडिया के अनुसार उसके प्रतिद्वंदी डिज़नी+हॉटस्टार के 46 मिलियन सब्स्क्राइबर हैं और अमेजन प्राइम के 22 मिलियन सब्स्क्राइबर हैं।
बॉलीवुड की फिल्में हिंदू और सिख धर्म के खिलाफ लोगों के दिमाग में धीमा जहर
साल 2015 में अहमदाबाद के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट यानी आईआईएम (IIM) के प्रोफेसर धीरज शर्मा ने एक अध्ययन किया और ज़ाहिर किया कि बॉलीवुड की फिल्में हिंदू और सिख धर्म के खिलाफ लोगों के दिमाग में धीमा ज़हर भर रही हैं।
रिसर्च के मुताबिक-
– बॉलीवुड की फिल्मों में 58% भ्रष्ट नेताओं को ब्राह्मण दिखाया गया है
– 62% फिल्मों में बेइमान कारोबारी को वैश्य सरनेम वाला दिखाया गया है
– फिल्मों में 74% फीसदी सिख किरदार मज़ाक का पात्र बनाया गया
– जब किसी महिला को बदचलन दिखाने की बात आती है तो 78 फीसदी बार उनके नाम ईसाई वाले होते हैं
– 84 प्रतिशत फिल्मों में मुस्लिम किरदारों को मजहब में पक्का यकीन रखने वाला, बेहद ईमानदार दिखाया गया है, यहां तक कि अगर कोई मुसलमान खलनायक हो तो वो भी उसूलों का पक्का होता है
बॉलीवुड ने हिंदू देवी पर आधारित फिल्में बनाना क्यों बंद कर दिया?
पहले बॉलीवुड में हिंदू देवी-देवताओं पर फिल्में बना करती थी, उनकी शिक्षाओं, जीवन के तरीके, प्रभावित करने, सच्चाई और झूठ के बीच अंतर और हमारे बीच उपस्थिति को दिखाते थे। किसी भी जगह उपलब्ध इस फिल्म को देखने के लिए लोग बड़ी संख्या में इकट्ठा होते थे। सवाल यह है कि इस तरह की फिल्में बननी बंद क्यों हो गई।
कुछ फिल्में हैं: –
संपूर्ण रामायण (1961)
महाभारत (1965)
महाबली हनुमान (1981)
बाल गणेश (2007)
जय सन्तोषी माया (1975)
दशावतार (2008)
घटोत्कच (2008)
हरि दरसन (1972)
The sensational devotional Malayalam blockbuster #Malikappuram in #Tamil from Jan 26! #Malikappuram pic.twitter.com/nr6pimooLY
— cinema addict (@cinemaaddict8) January 22, 2023