आज ज्येष्ठ शुक्ल तृतीया (29 मई) को वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप की जयंती है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ऑपरेशन सिन्दूर की ऐतिहासिक कामयाबी के बाद आदमपुर एयरबेस पर सैनिकों को संबोधन में चेतक के लिए लिखी गई पंक्तियों का जिक्र कर कहा था। ‘कौशल दिखलाया चालों में, उड़ गया भयानक भालों में। फिर भी गया वह ढालों में। सरपट दौड़ा करवालों में। महाराणा प्रताप के घोड़े से, पड़ गया हवा का पाला था। उन्होंने कहा कि ये पंक्तियां आज के आधुनिक भारतीय हथियारों पर भी पूरी तरह फिट बैठती है। उनका इशारा साफ था कि भारत की टेक्नोलॉजी, रणनीति और सेना सिर्फ ‘रक्षात्मक’ नहीं, बल्कि ‘आक्रामक रक्षा’ की नई परिभाषा बन गई है। इतिहासकारों ने महाराणा प्रताप को हिंदुआ सूरज के रूप में स्वीकार किया है। उन्होंने केवल तलवार-भाले की धार से नहीं, बल्कि आत्मबल, संकल्प, निष्ठा और राष्ट्रप्रेम से इतिहास में विशिष्ट स्थान बनाया। पीएम मोदी ने कहा कि ऑपरेशन सिंदूर से सेना ने भी देश का आत्मबल बढ़ाया है। नई पीढ़ी को महाराणा प्रताप के आदर्शों को आत्मसात करने की शिक्षा लेनी चाहिए। दूसरी ओर महाराणा प्रताप को सच्ची श्रद्धांजलि देने के लिए देशभर में उनकी 500 प्रतिमाएं बनाई जा रही हैं।
हिंदुआ सूरज महाराणा प्रताप की युद्ध शैली आज भी प्रासंगिक
महाराणा प्रताप महान योद्धा होने के साथ-साथ आत्मसम्मान व देशभक्ति की बेजोड़ मिसाल थे। उनका जीवन सिखाता है कि स्वाभिमान व स्वतंत्रता के लिए संघर्ष अमर रहता है। उनकी नीतियां शिवाजी महाराज के लिए प्रेरणास्रोत बनीं। वहीं वीर सावरकर, बाल गंगाधर तिलक और सुभाष चंद्र बोस जैसे नेता भी प्रभावित थे। हिंदुआ सूरज महाराणा प्रताप की युद्ध शैली को भारत-पाकिस्तान के संदर्भ में भी देखा और परखा गया है। महाराणा प्रताप का जीवनकाल भले सोलहवीं सदी में रहा हो, लेकिन उनके आदर्श, अमर और प्रासंगिक है। उन्होंने 1576 के हल्दीघाटी युद्ध के बाद मुगलों के विरुद्ध दिवेर युद्ध (1582) विजय कर दिखा दिया कि कितनी भी बड़ी शक्ति हो, सच्चे संकल्प और स्वतंत्रता के जज्बे को पराजित नहीं कर सकती। उन्होंने नेतृत्व का ऐसा आदर्श प्रस्तुत किया कि खुद भूखे रहे लेकिन प्रजा को सुरक्षित रखा। उन्होंने भले राजनीतिक रूप से मुगल सम्राट अकबर के साम्राज्य को चुनौती दी, लेकिन असली युद्ध सिद्धांतों को जिंदा रखने का था। अकबर के संधि प्रस्तावों को अस्वीकार कर दिखा दिया कि आत्मसम्मान की कीमत पर संधि मंजूर नहीं।
लोकगीतों, कहावतों और कहानियों में महाराणा प्रताप की वीरता अमर
राजस्थान के लोकगीतों, कहावतों और कहानियों में महाराणा प्रताप की वीरता अमर है। ‘हूं लड्यो घणो हूं सह्यो घणो मेवाड़ी मान बचावण नै…’ राजस्थान के लोककवि कन्हैयालाल सेठिया की इन पंक्तियों में रची बसी वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप की शौर्य गाथा अब देशभर में गूंज रही है। पाठ्यक्रमों में उनका जीवन नेतृत्व, संकल्प और नैतिकता की शिक्षा देने के लिए शामिल किया। ‘ऊंचो थारो नाम रे मेवाड़ रा राणा’ जैसे गीत सभी को राष्ट्रप्रेम के लिए प्रेरित करते हैं। भारत में महाराणा प्रताप की जयंती अंग्रेजी तिथि 9 मई को और हिन्दू कैलेंडर के अनुसार ज्येष्ठ शुक्ला तृतीया को श्रद्धापूर्वक मनाई जाती है। अभी विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी के शिक्षामंत्रित्व काल में राजस्थान में स्कूल पाठ्यक्रम में अकबर महान के स्थान पर महाराणा प्रताप महान और अन्य महापुरुषों के अध्याय शामिल किया गया था।
दो चरणों में 15 हजार किमी की ‘वीर गाथा यात्रा’ निकाली जाएगी
‘महाराणा प्रताप स्मारक अभियान’ के तहत देश के सभी 12 ज्योतिर्लिंगों समेत 500 से अधिक शहर और कस्बों में उनकी प्रतिमाएं स्थापित की जाएंगी। इस अभियान के राष्ट्रीय संरक्षक डॉ. लक्ष्यराजसिंह मेवाड़ और राष्ट्रीय अध्यक्ष चंद्रवीरसिंह नमाणा है। अभियान के तहत दो चरणों में 15 हजार किमी की ‘वीर गाथा यात्रा’ निकाली जाएगी। पहले चरण में राजस्थान में 3 हजार किमी की यात्रा पूरी हो चुकी है। दूसरा चरण 12 हजार किमी का होगा, जो कुंभलगढ़ से शुरू होकर चावंड में समाप्त होगा। यह यात्रा देश के 12 ज्योतिर्लिंगों और अन्य महत्वपूर्ण स्थलों को जोड़ेगी।
महाराणा की जन्मस्थली कुंभलगढ़ में लगेगी 151 फीट ऊंची प्रतिमा
अभियान की शुरुआत उदयपुर के चावंड में महाराणा प्रताप के समाधि स्थल से हो गई है, जहां केजड़ तालाब के मध्य एक लाख वर्गफीट भूमि पर 12 फीट ऊंची अष्टधातु की प्रतिमा स्थापित होगी। वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप की जन्मस्थली कुंभलगढ़ में 151 फीट ऊंची प्रतिमा और संग्रहालय की स्थापना प्रस्तावित है। अभियान के तहत अब तक देशभर में 28 प्रतिमाएं स्थापित हो चुकी हैं। 29 मई को महाराणा प्रताप की जयंती पर राजस्थान के देवगढ़ में 22वीं प्रतिमा का लोकार्पण होगा। हाल ही गुजरात के भरूच जिले के वालिया में 12 फीट ऊंची महाराणा की 21वीं प्रतिमा स्थापित की गई थी।
देश के सभी ज्योतिर्लिंगों के साथ ही तीर्थ और ऐतिहासिक स्थलों पर लगेंगी
देश के 12 ज्योतिर्लिंगों के अलावा बरसाना, खाटूश्यामजी, सांवलिया सेठ, मेहंदीपुर बालाजी, सालासर जैसे तीर्थ व ऐतिहासिक शहरों-कस्बों में महाराणा प्रताप की प्रतिमाएं स्थापित होंगी। साथ ही उनकी माता जयवंता बाई, सेनापति राणा पुंजा सोलंकी, हाड़ा रानी और राणा सांगा की प्रतिमाएं भी लगाने की योजना है। अभियान का लक्ष्य महाराणा के आदर्श जन-जन तक पहुंचाना है। भरूच जिले के वालिया में महाराणा की प्रतिमा का वजन 3100 किलो है। मेटल स्ट्रक्चर से निर्मित इस प्रतिमा की ऊंचाई 12 फीट है। प्रतिमा स्थापित स्थल पर 12 फीट की प्रतिमा के लिए 12 फीट चौड़ा, 18 फीट लंबा और 4 फीट ऊंचा स्थल बनाया है। प्रतिमा की 100 साल से भी अधिक समय तक रहेगी। इसके अलावा मध्य प्रदेश, बिहार, कश्मीर व अन्य राज्यों में महाराणा प्रताप की प्रतिमा लगाने की प्रक्रिया चल रही है।
राजस्थान के गौरव, शौर्य, पराक्रम एवं साहस की प्रतिमूर्ति, ‘हिंदुआ सूर्य’ वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप की जयंती के पावन अवसर पर आज भूपालसागर में आयोजित समारोह में वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप, त्याग की प्रतिमूर्ति पन्ना धाय और राणा पूंजा की भव्य प्रतिमाओं का अनावरण कर उन्हें… pic.twitter.com/bqZoPWcAic
— Bhajanlal Sharma (@BhajanlalBjp) May 29, 2025
महाराणा प्रताप की वीरता की कहानी और हल्दीघाटी का युद्ध
महाराणा प्रताप का जन्म 1540 को राजस्थान के मेवाड़ में हुआ था। राजपूत राजघराने में जन्म लेने वाले प्रताप उदय सिंह द्वितीय और महारानी जयवंता बाई के सबसे बड़े पुत्र थे। वे एक महान पराक्रमी और युद्ध रणनीति कौशल में दक्ष थे। महाराणा प्रताप ने मुगलों के बार-बार हुए हमलों से मेवाड़ की रक्षा की। उन्होंने अपनी आन, बान और शान के लिए कभी समझौता नहीं किया। विपरीत से वविपरीत परिस्थिति ही क्यों ना, कभी हार नहीं मानी। यही वजह है कि महाराणा प्रताप की वीरता के आगे किसी की भी कहानी टिकती नहीं है। 1576 में हल्दी घाटी में महाराणा प्रताप और मुगल बादशाह अकबर के बीच युद्ध हुआ। महाराणा प्रताप ने अकबर की 85 हजार सैनिकों वाली विशाल सेना के सामने अपने 20 हजार सैनिक और सीमित संसाधनों के बल पर स्वतंत्रता के लिए कई वर्षों तक संघर्ष किया। बताते हैं कि ये युद्ध तीन घंटे से अधिक समय तक चला था। इस युद्ध में जख्मी होने के बावजूद महाराणा मुगलों के हाथ नहीं आए।