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दिल्ली की जनता के स्वास्थ्य से खिलवाड़ करती केजरीवाल सरकार

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दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल उनकी सरकार द्वारा दी जा रही स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर बड़े-बड़े दावे करते रहते हैं लेकिन दिल्ली में स्वास्थ्य सुविधाओं के हालात उनके दावों से बिल्कुल भी मेल नहीं खाते हैं। केजरीवाल ने चुनाव से पहले घोषणापत्र में कहा था कि वे 900 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र बनाएँगे और दिल्ली के अस्पतालों में 30,000 अतिरिक्त बेड मुहैया कराए जाएँगे जिसमें से 4000 मैटरनिटी वार्ड में होंगे।

केजरीवाल ने प्रति 1000 लोगों पर 5 बेड देने का वादा किया था। लेकिन हकीकत इन दावों से कोसों दूर है। आम आदमी पार्टी की सरकार ने 1000 मोहल्ला क्लिनिक खोलने का वादा किया था लेकिन 2018 तक केवल 160 मोहल्ला क्लिनिक ही खुल पाए थे। दिल्ली के आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार अब तक 9,098 बेड की व्यवस्था ही हो पाई है।

केजरीवाल के मंत्रियों को नहीं अपने अस्पतालों और मोहल्ला क्लीनिक पर भरोसा

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल सरकारी अस्पतालों में सुविधाओं का दावा करते हैं, मोहल्ला क्लीनिक की तारीफ करते नहीं थकते, लेकिन एक आरटीआई के जरिये खुलासा हुआ कि केजरीवाल और उनके मंत्रियों को न सरकारी अस्पताल पर भरोसा है और न ही मोहल्ला क्लीनिक पर। बीजेपी ने एक आरटीआई के जरिए मिली जानकारी के हवाले से खुलासा किया कि पिछले 4 सालों के दौरान दिल्ली के मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री और अन्य कैबिनेट मंत्रियों के इलाज पर सरकारी खजाने से 35 लाख रुपये से ज्यादा की रकम खर्च हुई। इसमें से करीब 25 लाख रुपये अकेले सीएम और डेप्युप्टी सीएम व उनके परिजनों के इलाज पर खर्च किए गए। बीजेपी ने इस जानकारी के हवाले से पूछा है कि जब सीएम अरविंद केजरीवाल दिल्ली के सरकारी अस्पतालों में तमाम सुविधाएं देने का दावा करते हैं और मोहल्ला क्लिनिकों की तारीफ करते नहीं थकते, तो फिर उन्होंने और उनके मंत्रियों ने अपना या अपने परिजनों का इलाज महंगे प्राइवेट अस्पतालों में क्यों कराया।

आरटीआई से मिली जानकारी के मुताबिक केजरीवाल के इलाज पर सरकारी खजाने से कुल 12,18,027 रुपये खर्च किए गए। मनीष सिसोदिया ने 4 साल में 35 बार इलाज कराया, जिस पर कुल 13,25,329 रुपये खर्च हुए। इसमें डेप्युटी सीएम के खुद के इलाज का एक भी खर्च नहीं है। यह सारा खर्च उनके फैमिली मेंबर्स के इलाज पर किया गया।

मोहल्ला क्लिनिक घोटाला

मोहल्ला क्लीनिक को लेकर एबीपी न्यूज ने एक बड़ा खुलासा किया। एबीपी न्यूज के अनुसार दिल्ली में आम आदमी मोहल्ला क्लीनिक वैसे तो लोगों की सुविधाओं के लिए बनाया गया, लेकिन मोहल्ला क्लीनिक की हालत ही ठीक नहीं है। विजिलेंस विभाग इसमें धांधली की जांच कर रहा है। विजिलेंस की जांच का दायरे में दो मुख्य आरोप हैं।

मोहल्ला क्लीनिक परिसर का किराया बाजार किराए से ज्यादा क्यों है?
पार्टी कार्यकर्ताओं के परिसर किराए पर क्यों लिए गए?

एबीपी न्यूज की पड़ताल में पता चला कि कार्यकर्ता अपने मकान को बाजार दर से दो से तीन गुना ज्यादा किराये पर मोहल्ला क्लीनिक को दिए हुए हैं। इस तरह से मोहल्ला क्लीनिक खोलने में आम आदमी पार्टी के नेताओं को जमकर फायदा पहुंचाया गया है.दिल्ली कांग्रेस अध्यक्ष अजय माकन का आरोप है कि मोहल्ला क्लिनिक एक बड़ा घोटाला है। माकन ने आरोप लगाया कि ये क्लिनिक ‘आप’ कार्यकर्ताओं की बिल्डिंगों में चलाए जा रहे हैं। उन्हें फायदा पहुंचाने के लिए मार्केट से कई गुना ज्यादा किराया दिया जा रहा है।

दिल्ली में नहीं लागू की आयुष्मान भारत योजना

दिल्ली में सरकारी स्वास्थ्य सुविधाओं का हाल खराब होने के बावजूद केजरीवाल सरकार ने केंद्र सरकार की आयुष्मान भारत को लागू करने से इंकार कर दिया।
केजरीवाल सरकार ने राज्य की हेल्थ स्कीम को बेहतर बताते हुए केंद्र की आयुष्मान भारत योजना को लागू करने से इनकार कर दिया।

बता दें कि मोदी सरकार की आयुष्मान भारत योजना के तहत 71 लाख लोगों इस सेवा का लाभ उठा चुके हैं। आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य (पीएम-जेएवाई) के तहत 19.595 अस्पतालों को सूचीबद्ध किया गया है और 6.71 करोड़ से अधिक लोगों को ई-कार्ड भी जारी किए गए हैं।

दवा घोटाला

केजरीवाल सरकार ने अपनी मोहल्ला क्लीनिक का खूब ढिंढोरा पीटा है। वो दावा करते रहे हैं कि गरीब जनता के स्वास्थ्य के ख्याल से उठाया गया ये कदम बहुत फायदेमंद साबित होगा। लेकिन अब पता चल रहा है कि केजरीवाल और उनके गैंग के लोग भले ही इसका फायदा उठा रहे हों, उनकी गंदी नीयत के चलते अब गरीबों की जान पर बन आई है।

इसका खुलासा तब हुआ जब 1 जून, 2017 को एसीबी ने दवा प्रोक्योरमेंट एजेंसी के ताहिरपुर, जनकपुरी और रघुवीर नगर स्थित सेंटर के गोदामों पर छापा मारा। एसीबी को यहां से भारी मात्र में एक्सपाइरी मेडिसिन के साथ दवाओं की खरीद-फरोख्त के बिल भी मिले हैं। ये दवा घोटाला करीब 300 करोड़ रुपये का बताया जा रहा है। यहां गौर करने वाली बात ये है कि विवादित सीएम ने अपने खासम-खास और कई घोटालों के आरोपी स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन के दबाव में ही दवाई खरीदने का काम मेडिकल सुपरिन्टेंडेन्ट से छीनकर, सेन्ट्रल प्रोक्योरमेंट एजेंसी को दे दिया था। यानी लूट के लिए ऊपर से नीचे तक पूरी तैयारी की गई थी।

दिल्ली स्वास्थ्य विभाग में हजारों करोड़ रुपये की वित्तीय अनियमितता

जनसत्ता की रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली स्वास्थ्य विभाग में हजारों करोड़ रुपये की वित्तीय अनियमितता की बात सामने आई। यह अनियमितता आउटसोर्स या कांट्रेक्ट पर रखे गए कर्मचारियों से जुड़ी है। स्वास्थ्य विभाग में 15 हजार कर्मचारियों को आउटसोर्स पर रखा, लेकिन ठेकेदार ने इन कर्मचारियों को ईपीएफ (इंप्लॉई प्रोविडेंट फंड), इंश्योरेंस और बोनस का लाभ नहीं दिया।

स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी और ठेकेदारों के बीच साठ-गांठ के जरिए हजारों करोड़ रुपये का घोटाला हुआ। इतना ही नहीं कामगारों का शोषण भी किया गया।

स्वास्थ्य मंत्री का घोटाला छिपाया!

दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन के खिलाफ आयकर विभाग की जांच में कई चौंकाने वाली बातें सामने आई हैं। उनपर पर हवाला के जरिए 16.39 करोड़ रुपये मंगाने का आरोप है। इन मामलों में उनकी सघन जांच हो रही है। इसके अलावा जैन पर अपनी ही बेटी को दिल्ली सरकार के मोहल्ला क्लीनिक परियोजना में सलाहकार बनाने का भी आरोप है।

इस केस की जांच भी सीबीआई के जिम्मे है। शुंगलू कमेटी ने भी इस मामले में दिल्ली सरकार पर उंगली उठाई है। यहां ये बताना आवश्यक है कि केजरीवाल के पूर्व सहयोगी कपिल मिश्रा ने इन्हीं पर केजरीवाल को पैसे देने के आरोप लगाए हैं। मिश्रा के अनुसार जैन ने अपनी करतूतों पर पर्दा डाले रखने के लिए केजरीवाल के किसी रिश्तेदार की 50 करोड़ रुपये की डील भी कराई है।

दूसरी तरफ केजरीवाल सरकार ने दिल्ली-एनसीआर की जनता को जहरीली हवा में सांस लेने को भी मजबूर कर रखा है, जो कि दिल्लीवासियों के स्वास्थ्य पर किसी हमले से कम नहीं है- 

RTI में हुआ खुलासा

एक RTI में खुलासा हुआ है कि केजरीवाल सरकार ने पिछले कई वर्षों में ग्रीन टैक्स के तहत एकत्रित किए गए अधिकतर धन राशि को खर्च नहीं किया है। अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली सरकार ने पर्यावरणीय समस्याओं को कम करने के लिए एकत्र किए गए धन का लगभग 20 फीसदी ही खर्च किया।

टाइम्स नाउ के हवाले से ऑप इंडिया ने खबर दी है कि दिल्ली सरकार ने साल 2015 में कुल ₹1174.67 करोड़ का ग्रीन टैक्स जमा किया था, जिसमें से केवल ₹272.51 करोड़ ही खर्च किए गए। इस ₹272 करोड़ में से ₹265 करोड़ सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर खर्च किए गए।दिल्ली सरकार ने सड़कों की मरम्मत के लिए ग्रीन फंड के कुछ करोड़ रुपए ही खर्च किए।

ग्रीन टैक्स की राशि खर्च करने में नाकाम 

RTI के जवाब में कहा गया है कि दिल्ली-मेरठ रीजनल रैपिड ट्रांजिट सिस्टम पर ₹265 करोड़ खर्च किए गए। इसका मतलब यह है कि दिल्ली सरकार द्वारा ग्रीन टैक्स के रूप में एकत्र किए गए फंड में ₹902 करोड़ की बड़ी राशि का इस्तेमाल नहीं किया गया है। यह भारी भरकम रकम का 77 फीसदी है।

ग्रीन टैक्स की राशि खर्च करने में पहले भी असफल  

ऑप इंडिया की खबर के अनुसार यह पहली बार नहीं है जब RTI के जवाब से पता चला है कि दिल्ली सरकार किस तरह से इकट्ठा किए गए ग्रीन टैक्स को खर्च करने में असफल रही है। 2017 में इसी तरह की एक और RTI के जवाब से पता चला था कि ₹787 करोड़ ग्रीन टैक्ट जमा किए गए थे, जिसमें से केवल ₹93 लाख खर्च किए गए थे। यह राशि टोल प्लाजा पर रेडियो-फ्रीक्वेंसी आइडेंटिफिकेशन सिस्टम के लिए दस्तावेज तैयार करने पर खर्च की गई थी।

इलेक्ट्रिक बस सेवा का वायदा खोखला 

2017 में दिल्ली सरकार ने यह भी कहा था कि 500 इलेक्ट्रिक बसों को खरीदने के लिए अप्रयुक्त राशि का उपयोग किया जाएगा। इस साल मार्च में केजरीवाल सरकार ने 1000 इलेक्ट्रिक बसों की खरीद को मंजूरी दी थी, लेकिन अभी तक राजधानी में इलेक्ट्रिक बस सेवाएं शुरू नहीं हुई हैं। 

प्रदूषण पर पीएम मोदी ने की बैठक 

दिल्ली समेत उत्तर भारत के प्रदूषण पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को एक बैठक की। इस बैठक के दौरान पीएम मोदी ने प्रदूषण रोकने के लिए किए गए उपायों की समीक्षा की। इसके साथ ही पीएम मोदी गुजरात में आने वाले साइक्लोन ‘महा’ की तैयारियों की भी समीक्षा की। इस बैठक में प्रधानमंत्री के प्रमुख सचिव के साथ कई सीनियर अधिकारी मौजूद रहे।  प्रदूषण पर इससे पहले भी पीएमओ की नजर थी। 3 नवंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रधान सचिव पीके मिश्रा ने प्रदूषण के हालात पर दिल्ली, पंजाब, हरियाणा के संबंधित अधिकारियों के साथ बैठक की थी।


प्रदूषण पर सुप्रीम कोर्ट की फटकार 

दिल्ली और आस पास फैले प्रदूषण के मसले पर देश की सर्वोच्च अदालत ने भी सख्ती दिखाई है। सोमवार को दिल्ली में फैले प्रदूषण पर टिप्पणी करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि हर साल दिल्ली चोक हो जाती है और हम कुछ नहीं कर पा रहे हैं। इतना ही नहीं सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली में लागू ऑड-ईवन पर सवाल खड़े कर दिए हैं और दिल्ली सरकार से पूछा है कि आखिर इसका फायदा क्या है? 

 

 

 

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