Home विशेष पीएम मोदी के नेतृत्व में बदल रहा है बाबा का बनारस

पीएम मोदी के नेतृत्व में बदल रहा है बाबा का बनारस

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काशी… में मां गंगा और बाबा विश्वनाथ के संगम क्षेत्र में ‘सत्य’ का प्रत्यक्ष अनुभव करने के लिए लोग हर कालखंड में आकर्षित हुए हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बनारस में तो आने वाले लोगों की संख्या कई गुना बढ़ गई है। सभी बनारस में ‘सत्य’ के रस का स्वाद पाना चाहते हैं, लेकिन काशी का सत्य घाटों, गलियों और मंदिरों में छिपा है, जहां पहुंचने के रास्तों पर चार साल पहले गंदगी और अंधकार का आलम हुआ करता था, आज सत्य का अनुभव स्वच्छ, प्रकाशमय और प्राचीन वातावरण में होता है। आज का बनारस मन की पीड़ा पर मरहम का काम करता है।

मैं, जब भी बनारस जाता हूं मेरा सबसे पहला काम है कि भोर में बाबा विश्वनाथ और मां गंगा के दर्शन करना। हर बार की तरह इस बार भी मैं अपने जगतगंज के घर से बाबा के दर्शन करने के लिए निकला। बनारस में घूमने के लिए रिक्शे से अच्छी कोई सवारी नहीं है, क्योंकि बाबा की नगरी को सुकून से निहारने का पूरा मौका मिलता है। 

मेरा रिक्शा लहुराबीर चौराहे से चेतगंज की ओर बढ़ा तो सड़क से बनारस के दृश्य को देखकर हैरत में पड़ गया। मैं अपनी हैरानी को समझने का प्रयास करने लगा कि ऐसा पिछले कुछ महीनों में क्या हुआ है कि मुझे यह शहर इतना बदला हुआ दिख रहा है। ध्यान से देखता हूं कि सड़कों के किनारे, लटकने वाले बिजली और टेलीफोन के तार तो कहीं नजर ही नहीं आ रहे हैं, बल्कि नजर आ रहे हैं तो नक्काशीदार, मजबूत लैंपपोस्ट और इन लैंपपोस्टों के एलईडी से निकलती हुई धवल रोशनी, जिसमें प्राचीन काशी का रूप निखर कर आंखों के सामने था।

मुझे अपनी हैरानी का कारण समझ में आ चुका था, पहले जब इन सड़कों से गुजरता था तो लटके हुए बिजली के तारों और हैलोजन की पीली रोशनी में शहर की सुंदरता दिखाई नहीं पड़ती थी, लेकिन आज जब वे लटकने वाले बिजली के तार भूमिगत हो चुके हैं, तो बनारस का प्राचीन स्वरूप मोहित कर हैरत में डाल रहा है। बनारस के इस मनमोहक बदलाव की मस्ती के बाद बाबा विश्वनाथ के दरबार में पहुंचा और विधिवत दर्शन किया।

बाबा के दरबार से निकलकर मैं बांसफाटक से होते हुए जब काल भैरव मंदिर की ओर जाने के लिए आगे बढ़ा, तो देखता हूं कि सड़कों के किनारे लटकने वाले बिजली के तारों को हटा दिया गया है। शहर के हर तरफ कुछ ऐसा ही माहौल आंखो के सामने था। तुलसी मानस मंदिर के समीप स्थित दुर्गाकुंड का स्वरूप अदभुत् हो चुका है, इस पवित्रता का एहसास शब्दों से परे है। अपने पूरे प्रवास के दौरान बनारस को प्राचीन स्वरुप में आते हुए देखा।

मुझे सबसे अधिक आश्चर्य तब हुआ जब मैं अपने एक मित्र से मिलने के लिए रात में 9 बजे कमच्छा स्थित बटुक भैरव की उस गली में पहुंचा, जहां कभी अंधेरा होता रहता था और रात में वहांं जाने के लिए कई बार विचार करना पड़ा था, लेकिन आज वही गली एलईडी लाइटों की सफेद रोशनी में जगमग कर रही है। प्रकाशित स्वच्छ सड़कें और गलियां ही तो बनारस की पहली पहचान हैं।

अगले दिन, अपने रिश्तेदार को ट्रेन पर बैठाने के लिए मंडुवाडीह रेलवे स्टेशन जाना पड़ा। स्टेशन का स्वच्छ वातावरण, चमचमाती टाइल्स पर जगमग करती सफेद रोशनी को देखकर मैं भ्रम में पड़ गया कि मैं बनारस शहर में ही हूं या किसी दूसरे शहर में। यह वही मंडुवाडीह स्टेशन है जिसकी इमारत और प्लेटफार्म चार साल से गंदे और पुराने दिखाई पड़ते थे। स्टेशन के सामने के संकरे रास्ते को चौड़ा करने का काम चल रहा था। स्टेशन से कुछ दूरी पर फ्लाईओवर लगभग बन कर तैयार हो गया है, जिससे स्टेशन या इस मार्ग से डीएलडब्लू या काशी हिन्दू विश्विघालय जाने में होने वाली समस्या का अंत हो जाएगा।

बनारस में सड़कों और गलियों की साफ-सफाई पर नगर निगम विशेष ध्यान दे रहा है। रात में ही सड़कों पर झाड़ू लगाने का काम कर लिया जाता है, जगह-जगह देखने में साफ-सुथरे शौचालय बन हुए हैं। हालांकि अभी भी बनारस में सड़कों की फुटपाथ पर सब्जी और चाय-पान की दुकानें उसी तरह निर्बाध गति से चल रही हैं।

बनारस का रस तो अनादि है लेकिन इसके बाहरी स्वरुप को आकर्षक और मनोहारी बनाने के जो प्रयास पिछले चार सालों से हो रहे हैं, उससे मन प्रफुल्लित हो उठता है। सोचता हूं, कि ऐसा क्यों हुआ कि सदियों बाद मां गंगा को एक बेटा मिला, जिसके पास मां के ऋण को चुकाने का भाव और कर्म दोनों है।

संजय सिन्हा

 

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