कांग्रेस अब तक अपने मतलब के हिसाब से इतिहास बनाती और बिगाड़ती आई है। लेकिन दुर्भाग्य है कि कांग्रेस को अपना ही इतिहास याद नहीं रहता। हद तो तब हो जाती है, जब संविधान, संवैधानिक संस्थाओं और लोकतंत्र की धज्जियां उड़ाने वाली कांग्रेस संविधान और लोकतंत्र की दुहाई देने लगती है। जब उसके मन के मुताबिक कोई फैसले नहीं होते हैं, तो अपने नापाक गठजोड़ के माध्यम से जजों को बेवजह विवाद में घसीटकर उन्हें बदनाम करने की कोशिश करती है। पूर्व प्रधान न्यायाधीश और राज्यसभा सदस्य रंजन गोगोई ने बुधवार को ऐसे ही गठजोड़ पर करारा हमला किया। उन्होंने कहा कि ‘एक्टिविस्ट न्यायाधीशों’ और उन लोगों से सवाल क्यों नहीं पूछे जाते जो सेवानिवृत्ति के बाद वाणिज्यिक मध्यस्थता के कामकाज करते हैं।
एक्टिविस्ट जज किसके साथ काम कर रहे हैं?
गोगोई ने इशारों – इशारों में गठजोड़ पर हमला करते हुए एक बड़ा सवाल किया, “ये एक्टिविस्ट जज किसके साथ काम कर रहे हैं? ये सब कहने के लिए उन्हें कौन प्लेटफॉर्म दे रहा है? इस पर कोई सवाल नहीं पूछा गया।”
बाकी लोगों से सवाल क्यों नहीं पूछे जाते- गोगोई
सेवानिवृत्ति के बाद न्यायाधीशों को मिलने वाले कामकाज के बारे में पूछे गए सवाल के जवाब में गोगोई ने कहा कि उनकी तीन श्रेणियां होती हैं ”एक्टिविस्ट न्यायाधीश”, वाणिज्यिक मध्यस्थता का कामकाज लेने वाले और अन्य प्रकार के कामकाज लेने वाले। गोगोई ने कहा, ”तीसरी श्रेणी वालों को ही विवादों में क्यों घसीटा जाता है? दो अन्य श्रेणी के लोगों से सवाल क्यों नहीं पूछे जाते?” गोगोई एक कानूनी समाचार पोर्टल के सहयोग से नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी फाउंडेशन के पूर्व छात्रों के परिसंघ द्वारा आयोजित वेबिनार में बोल रहे थे।
किसी मकसद की बात न थोपें- गोगोई
पूर्व न्यायाधीश ने कहा कि न्यायपालिका आलोचना के खिलाफ नहीं है, लेकिन एक ईमानदार, बौद्धिक और सार्थक आलोचना होनी चाहिये। उन्होंने कहा, ”व्यवस्था (न्यायिक) आलोचना के खिलाफ नहीं है और इसमें सुधार के लिए गुंजाइश है, लेकिन जहां तक किसी निर्णय का संबंध है तो उसपर ईमानदार, बौद्धिक और सार्थक बहस होनी चाहिये। किसी मकसद की बात न थोपें। यह विनाशकारी है …।”
राज्यसभा मनोनयन पर विपक्ष ने उठाया था सवाल
गोगोई के इस बयान को इसलिए महत्वपूर्ण माना जा रहा है क्योंकि राज्यसभा में उनके मनोनयन की कांग्रेस सहित विभिन्न सेवानिवृत्त न्यायाधीशों ने आलोचना की थी। कांग्रेस और अन्य विरोधी दलों ने इसकी आलोचना करते हुए कहा था कि ‘सरकार के इस निर्लज्ज कृत्य ने न्यायपालिका की स्वतंत्रता को हड़प लिया है।’ पूर्व केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल के अनुसार, ‘जस्टिस गोगोई ने मुख्य न्यायाधीश रहते हुए रिटायरमेंट के बाद पद ग्रहण करने को संस्था पर धब्बे जैसा बताया था।’ माकपा ने इसे न्यायपालिका को कमजोर करने का शर्मनाक प्रयास करार दिया था।
पूर्व जज, वकील, पत्रकार और राजनीतिज्ञों के गठजोड़ पर हमला
जस्टिस रंजन गोगोई ने अपने बयाने के माध्यम से पूर्व जज, वकील, पत्रकार और राजनीतिज्ञों के उस गठजोड़ की ओर इशारा किया है, जो समय-समय पर अपनी साजिशों को अंजाम देते रहते हैं। मोदी सरकार के खिलाफ साजिशें करते रहते हैं। वर्ष 2018 में जब 5 जजों ने पहली बार तत्कालीन CJI दीपक मिश्रा के खिलाफ प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी तब कुछ एजेंडा पत्रकार जैसे शेखर गुप्ता और वकील जैसे इन्दिरा जय सिंह प्रेस कॉन्फ्रेंस होने से पहले वहां मौजूद थे। सवाल उठता है कि यह प्रेस कॉन्फ्रेंस जब अचानक से हुई तो उन्हें पहले से कैसे पता था और वे उस स्थान पर कैसे मौजूद थे? ये सभी सवाल एक ही इशारा करते हैं और वह है गठजोड़ का। पूरे प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान, शेखर गुप्ता को न्यायाधीशों के पीछे खड़े देखा गया। जब पत्रकारों ने जयसिंह से कुछ सवाल किए, तो उन्होंने कहा था कि वह देश के एक नागरिक के तौर पर आई हैं।
विपक्ष ने की राजनीतिकरण की कोशिश
रिपोर्ट के अनुसार उसी दिन बाद में, सीपीआई नेता डी राजा ने सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस चेलमेश्वर के आवास का दौरा किया था। इससे स्पष्ट था कि विपक्ष ने इस मामले का राजनीतिकरण करने की भरपूर कोशिश की थी।
गठजोड़ दीमक की तरह देश को खोखला कर रहा है
हालांकि, रंजन गोगोई भी उन जजों में शामिल थे लेकिन अब गोगोई ने ही जजों, वकीलों और पत्रकारों की मिलीभगत पर अब बोलना शुरू किया है। जस्टिस गोगोई का जजों पर सवाल उठाना दिखाता है कि किस तरह रिटायरमेंट के बाद वे इस गठजोड़ के जाल में फंस जाते हैं जो पूरे भारत में दीमक की तरह फैला हुआ है और देश को अंदर से खोखला कर रहा है।
राम मंदिर पर फैसले के खिलाफ भड़काने की कोशिश
रंजन गोगोई ने यह भी खुलासा किया कि “कुछ लोग” राम मंदिर के फैसले में भी देरी करवाना चाहते थे। यहां तक रामंदिर के पक्ष में फैसले आने के बाद कई पूर्व नौकरशाहों और राजनीतिज्ञों ने एक समुदाय विशेष को न्यायपालिका के खिलाफ खुलेआम भड़काने की कोशिश की थी।
PIL डाल कर कोर्ट का समय नष्ट किया जाता है
यह तो सभी ने देखा है कि किस तरह से बार-बार प्रशांत भूषण और हर्ष मंदर जैसे लोगों द्वारा PIL डाल कर न सिर्फ कोर्ट का समय नष्ट किया जाता है, बल्कि किसी महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट पर भी स्टे लगवाया जाता है। इसी तरह से देश में जारी गठजोड़ जजों को भी प्रभावित करते हैं और उन्हें अपना ऐक्टिविस्ट बना लेते हैं या वे स्वयं बन जाते है। रंजन गोगोई ने जिस तरह से वकीलों और जजों की किसी मामले को लेकर दोस्ती के बारे में सवाल किया है वह भी जजों के Conflict of Interest को दिखाता है।
देश विरोधी गठजोड़ से न्यायपालिका की मुक्ति का समय
जिस तरह से जस्टिस रंजन गोगोई ने आलोचकों को जवाब दिया है और अपना स्टैंड लिया है, साथ ही लगातार खुलासे कर रहे हैं, उससे स्पष्ट हो गया है कि अब मोदी सरकार को पूर्व जज, वकील, पत्रकार और राजनीतिज्ञों के इस गठजोड़ को खत्म करने के लिए कदम उठाना होगा। ताकि न्यायपालिका को इस देश विरोधी गठजोड़ से मुक्ति मिल सके।
जज और फैसला मनमाफिक ना हो तो कांग्रेस करने लगती है साजिश
जस्टिस ए के सीकरी को बेवजह विवाद में घसीटकर कांग्रेस ने अपनी उस मानसिकता को उजागर कर दिया कि वो जज भी अपने माफिक चाहती है और इंसाफ भी। दरअसल जस्टिस सीकरी उस हाई पावर्ड कमेटी में चीफ जस्टिस रंजन गोगोई के प्रतिनिधि थे जिसमें आलोक वर्मा को सीबीआई डायरेक्टर पद से हटा दिया गया था। आलोक वर्मा के खिलाफ सीवीसी जांच में कई संगीन आरोप सही पाए गए।
जस्टिस सीकरी सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस रंजन गोगोई के बाद सबसे सीनियर जज थे। उन्हें साल 2018 में केंद्र सरकार ने सी-सैट यानी कॉमनवेल्थ सचिवालय पंचाट ट्रिब्यूनल का प्रेसिडेंट/मेंबर नामित किया था। लेकिन कांग्रेस और उसके समर्थक मीडिया ने आरोप लगाया कि वर्मा को हटाने के फैसले के लिए ही जस्टिस सीकरी को ईनाम दिया गया।
When the scales of justice are tampered with, anarchy reigns.
This PM will stop at nothing, stoop to anything & destroy everything, to cover up the #RafaleScam. He’s driven by fear. It’s this fear that is making him corrupt & destroy key institutions.https://t.co/IfYHf2EMGd
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) January 13, 2019
Pic 1: When Justice Sikri gave Karnataka verdict in favor of Congress
Pic 2: When Justice Sikri gave verdict on Alok Verma against Congress’ wishes. pic.twitter.com/idTbrDCtOC
— अंकुर सिंह (@iAnkurSingh) January 13, 2019
हालांकि जस्टिस काटजू समेत कई हस्तियों ने कांग्रेस के आरोपों को बकवास बताया लेकिन जस्टिस सीकरी ने खुद ही इस पद के लिये मना कर दिया।
Has the Indian media no shame ?
Our mostly rotten and shameless media has sought to tarnish Justice Sikri in mud and ruin his reputation.
Here is the truth:https://t.co/MlPPOKEKqC pic.twitter.com/kP3GogsmRG
— Markandey Katju (@mkatju) January 14, 2019
आइए आपको बताते हैं कांग्रेस ने किस तरह उसके हित में फैसले देने वाले न्यायाधीशों को इनाम दिया था।
सिख विरोधी दंगों में क्लीनचिट देने वाले जस्टिस को भेजा राज्यसभा
जस्टिस गोगोई से पहले भी सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश राज्यसभा के सांसद रह चुके हैं। अंतर सिर्फ इतना है कि जस्टिस गोगोई जहां नामित सदस्य के तौर पर राज्यसभा सांसद बने हैं, वहीं पहले वाले जज कांग्रेस पार्टी के टिकट पर राज्यसभा पहुंचे थे। इससे पहले कांग्रेस ने पूर्व सीजेआई रंगनाथ मिश्रा को वर्ष 1998 में राज्यसभा के लिए भेजा था। जस्टिस मिश्रा वर्ष 1998 से 2004 तक राज्यसभा के सांसद थे।
हिन्दुस्तान की खबर के अनुसार जस्टिस रंगनाथ मिश्रा को कांग्रेस की ओर से राज्यसभा सांसद बनाए जाने पर सवाल उठे थे। उस समय कहा गया था कि 1984 के सिख विरोधी दंगों की जांच रिपोर्ट में कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं को क्लीनचिट देने का उन्हें इनाम दिया गया था। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद भड़के सिख विरोधी दंगों की जांच के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने 26 अप्रैल 1985 में रंगनाथ मिश्रा आयोग बनाया था। जस्टिस मिश्रा ने अपनी रिपोर्ट में कांग्रेस को क्लीनचिट दी थी। जस्टिस मिश्रा को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का चेयरमैन भी बनाया गया था।
जगन्नाथ मिश्रा को क्लीनचिट देने वाले जस्टिस को बनाया सांसद
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बहरुल इस्लाम का मामला तो काफी दिलचस्प है। शायद यह पहला मामला है कि कोई व्यक्ति राज्यसभा सांसद बनने के बाद जज बना हो। जस्टिस बहरुल इस्लाम पहले राज्यसभा सांसद बने फिर हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जज बने। बहरुल इस्लाम 1962 में असम से कांग्रेस पार्टी के टिकट पर राज्यसभा के लिए चुने गए।
कांग्रेस पार्टी ने उन्हें दूसरी बार 1968 में फिर राज्यसभा भेजा, लेकिन कार्यकाल खत्म होने से पहले ही उन्हें 1972 में तत्कालीन असम और नागालैंड हाईकोर्ट (गुवाहाटी हाईकोर्ट) का जज बना दिया गया।
विकीपीडिया के अनुसार जस्टिस इस्लाम 1980 में रिटायर होने के बाद सक्रिय राजनीति में चले गए, लेकिन इंदिरा गांधी ने हाई कोर्ट के जज के रूप में रिटायर होने के 9 महीने बाद फिर से उन्हें सुप्रीम कोर्ट का जज बना दिया। एक रिटायर जज का फिर से जज बनाने का फैसला अपनेआप में अकेला था।
ऑपइंडिया के अनुसार सुप्रीम कोर्ट के जज के रूप में उन्होंने बिहार के उस समय के कांग्रेसी मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्र के खिलाफ जालसाजी और भ्रष्टाचार के मामले में क्लीन चिट देते हुए उनके खिलाफ मुकदमा चलाने से मना कर दिया था। 1983 में सुप्रीम कोर्ट से रिटायर होने के बाद उन्हें तीसरी बार कांग्रेस पार्टी ने राज्यसभा भेज दिया।