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मोदी राज में इसरो रच रहा इतिहास! अब तक 47 लॉन्चिंग, आजादी के बाद से हुए कुल 89 मिशन लॉन्च

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद से भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने ‎पिछले दस सालों में एक से बढ़कर एक नई उपल‎ब्धियां हा‎सिल की हैं। पीएम मोदी के विजन से इस अव‎धि में इसरो ने कुल 47 लां‎चिंग करके इ‎तिहास बनाया है। साल 1969 में स्थापना के बाद से देश की अंतरिक्ष एजेंसी इसरो ने उपग्रहों को अंतरिक्ष में ले जाने वाले कुल 89 लॉन्च मिशनों को अंजाम दिया है। इन मिशनों के विश्लेषण से पता चलता है इसरो ने अपनी स्थापना के बाद 45 साल में 42 मिशन लांच किए जबकि पीएम मोदी के नौ साल के कार्यकाल में 47 लां‎चिंग करके एक रिकार्ड बनाया है। यह सब पीएम मोदी के 2047 विकसित भारत के संकल्प की सिद्धि को दर्शाता है।

पिछली सभी सरकारों की तुलना में मोदी राज में सबसे अधिक लांचिंग
देश की अंतरिक्ष एजेंसी इसरो ने साल 1969 में अपनी स्थापना के बाद से उपग्रहों को अंतरिक्ष में ले जाने वाले कुल 89 लॉन्च मिशनों को अंजाम दिया है। इन मिशनों के विश्लेषण से पता चलता है कि नरेंद्र मोदी सरकार के तहत पिछली सभी सरकारों की तुलना में अधिक 47 लॉन्चिंग हुई है। कोविड-19 महामारी के कारण इसरो के लॉन्च की गति धीमी होने के कारण 2020-21 के दौरान केवल कुछ ही मिशन शुरू किए जा सके। बावजूद इसके 2014 में मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से भारतीय अंतरीक्ष एजेंसी ने 4 अलग-अलग लॉन्च व्हिकल का उपयोग करके 47 मिशन लॉन्च किए हैं। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कार्यकाल में 24 और अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में 6 लांचिंग की गई थी।

ज्यादा लांचिंग के लिए किए गए कई बदलाव
इसरो ने हाल के वर्षों में मिशनों के बीच के समय को कम करने के लिए पीएसएलवी एकीकरण सुविधा स्थापित करने जैसे बदलाव भी किए हैं। इससे पहले पीएसएलवी वाहन के विभिन्न चरणों को लॉन्च पैड पर असेंबल किया जाता था। अब इसे नई सुविधा में एकीकृत किया गया है और फिर लॉन्च पैड पर लाया गया है। इसके साथ ही प्रक्षेपण वाहनों के निर्माण के लिए उद्योग साझेदारी बढ़ाने पर जोर दिया गया है।

मोदी काल में 389 विदेशी उपग्रह लांच किए गए
इसरो द्वारा लॉन्च किए गए 424 विदेशी उपग्रहों में वर्तमान व्यवस्था के तहत 389 शामिल हैं, जिसमें 2017 में एकल पीएसएलवी मिशन पर ले जाए गए 101 उपग्रह शामिल हैं।

पिछले 9 साल में केवल 3 मिशन असफल
पिछले 9 सालों में इसरो द्वारा लॉन्च किए गए 47 मिशनों में से केवल 3 उपग्रहों को उनकी इच्छित कक्षाओं में स्थापित करने में विफलता मिली। बाकी सभी मिशन सफल रहे हैं। तीन असफल मिशनों में लघु उपग्रह प्रक्षेपण यान की पहली उड़ान, 2017 का पीएसएलवी मिशन शामिल है। इसमें नेविगेशन तारामंडल के लिए प्रतिस्थापन किया गया था, जब उपग्रह की सुरक्षा करने वाला हीट शील्ड नहीं खुला था, और 2021 जीएसएलवी मिशन जहां हाइड्रोजन टैंक में अपर्याप्त दबाव के कारण तीसरा चरण प्रज्वलित नहीं हो सका।

मोदी सरकार ने 2020 में खोला प्राइवेट सेक्टर के लिए स्पेस के दरवाजे
पीएम मोदी के विजन से भारत में अंतरिक्ष सेक्टर को प्राइवेट सेक्टर के लिए खोला गया था। देश में 2020 में प्राइवेट सेक्टर के लिए स्पेस के दरवाजे खोले गए थे। मोदी सरकार चाहती है कि छोटे मिशन का भार जो इसरो पर है, वह प्राइवेट सेक्टर के साथ भागीदारी में उन्हें दिया जाए। इससे इसरो बड़े मिशन पर फोकस कर सके। इससे भारत में कमर्शल मार्केट भी बढ़ेगा। विक्रम मिशन को भी कमर्शल स्पेस मिशन को बढ़ावा देने वाली भारत की नोडल एजेंसी इन-स्पेस ने मंजूरी दी थी। इसके नतीजे अब देखने को भी मिल रहे हैं और इसरो पहले के मुकाबले ज्यादा लांच करने में सक्षम हुआ है।

स्पेस इंडस्ट्री में प्राइवेट सेक्टर की एंट्री, पहला प्राइवेट रॉकेट विक्रम-S लॉन्च
भारत के लिए 18 नवंबर, 2022 का दिन ऐतिहासिक रहा। इस दिन भारत ने अंतरिक्ष में ऊंची छलांग लगाते हुए एक नए युग की शुरुआत की। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने देश का पहला प्राइवेट रॉकेट ‘विक्रम-एस’ को लॉन्च किया। इस रॉकेट ने तीन सैटलाइट्स को उनकी कक्षा में स्थापित किया। इसमें दो घरेलू और एक विदेशी ग्राहक के पेलोड शामिल हैं। भारत इस लॉन्च के बाद अमेरिका, रूस, ईयू, जापान, चीन और फ्रांस जैसे देशों के क्लब में शामिल हो गया, जो प्राइवेट कंपनियों के रॉकेट को स्पेस में भेजते हैं।

प्राइवेट कंपनियों के आने से इसरो पर भार होगा कम
रॉकेट का नाम ‘विक्रम-एस’ भारत के महान वैज्ञानिक और इसरो के संस्थापक डॉ. विक्रम साराभाई के नाम पर रखा गया है। इस रॉकेट के लॉन्च के साथ ही देश के अंतरिक्ष कार्यक्रमों में निजी क्षेत्र के प्रवेश का प्रारंभ हुआ। यही कारण है, इस मिशन का नाम ‘प्रारंभ’ रखा गया है। इससे अलग-अलग ताकत और वजन ढोने वाले रॉकेटों के निजी कंपनियों में बनने की राह खुलेगी। कमर्शल लॉन्च में प्राइवेट कंपनियों के आने से इसरो पर भार कम होगा।

100 स्टार्ट-अप ने इसरो के साथ किया समझौता
भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्द्धन और प्राधिकरण केंद्र (इन-स्पेस) के अध्यक्ष पवन गोयनका ने कहा कि यह भारत में निजी क्षेत्र के लिए बड़ी छलांग है। उन्होंने स्काईरूट को रॉकेट के प्रक्षेपण के लिए अधिकृत की जाने वाली पहली भारतीय कंपनी बनने पर बधाई दी। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के अध्यक्ष एस सोमनाथ ने बंगलुरू टेक समिट-2022 में बताया था कि अंतरिक्ष तकनीक और नवोन्मेष के क्षेत्र में इसरो के साथ काम करने के लिए 100 स्टार्ट-अप समझौता कर चुके हैं। इस दौरान उन्होंने बताया कि 100 में से करीब 10 ऐसी कंपनियां हैं, जो सैटेलाइट और रॉकेट विकसित करने में जुटी हैं।

देश का स्पेस सेक्टर 130 करोड़ देशवासियों की प्रगति का माध्यमः पीएम मोदी
पीएम मोदी ने 11 अक्टूबर, 2021 को इंडियन स्पेस एसोसिएशन (ISpA) का शुभारंभ किया था। इस मौके पर पीएम मोदी ने कहा था कि देश को इनोवेशन सेंटर बनाने के लिए सरकार पूरी कोशिश कर रही है और इसके लिए प्राइवेट सेक्टर का योगदान बेहद अहम है, ‘पहले Space Sector का मतलब होता था- सरकार! लेकिन हमने इस Mindset को बदला और फिर इस सेक्टर में इनोवेशन के लिए सरकार, स्टार्टअप, आपस में सहयोग और स्पेस का मंत्र दिया। आज ISRO की Facilities को प्राइवेट सेक्टर के लिए Open किया जा रहा है। पीएम मोदी ने कहा है कि देश का स्पेस सेक्टर 130 करोड़ देशवासियों की प्रगति का एक बड़ा माध्यम है। गरीबों के घरों, सड़कों और दूसरे इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट में सैटेलाइट से ट्रैकिंग हो या नाविक टेक्नोलॉजी, गवर्नेंस को पारदर्शी बनाने में ये बहुत मददगार साबित हो रही हैं।

देश की कई दिग्गज कंपनियों के सहयोग से बना है ISpA
ISpA के संस्थापक सदस्यों में लार्सन एंड टुब्रो, ग्रुप का नेल्को, वनवेब, भारती एयरटेल, मैपमायइंडिया, वालचंदनागर इंडस्ट्री, अनंत टेक्नॉलजी लिमिटेड जैसी निजी क्षेत्र की कंपनियां शामिल हैं। गोदरेज, अजिस्टा-बीएसटी एरोस्पेस प्राइवेट लिमिटेड, BEL, सेंटम इलेक्ट्रानिक्स एंड मैक्सर इंडिया ने भी ISpA को बनाने में पूरा सहयोग दिया है।

इनोवेशन पर मोदी सरकार का जोर
मोदी सरकार इसरो जैसे संस्थानों में जो सुविधाएं मौजूद हैं, उन्हें प्राइवेट सेक्टर के लिए खोलने का मन बना चुकी है। ताकि इस क्षेत्र में आने वाले युवा कारोबारियों को मशीनों की खरीद के लिए अधिक संसाधन खर्च ना करने पड़ें और उनका सारा फोकस इनोवेशन पर हो। मोदी सरकार इस बात को भली-भांति समझती है कि स्पेस सेक्टर के विकास से आम लोगों की जिंदगी में तेजी से बदलाव लाए जा सकते हैं। बेहतर मैपिंग, इमेजिंग और कवेक्टिविटी की सुविधा से किसानों और मछुआरों को मौसम की बेहतर जानकारी मिल सकती है, सामनों की शिपमेंट और डिलीवरी में तेजी आ सकती है। पर्यावरण की बेहतर सुरक्षा हो सकती है। साथ ही आपदा की पहले जानकारी मिलने से लाखों लोगों की जिंदगी के खतरे में पड़ने से बचाया जा सकता है। पीएम मोदी ने उम्मीद जताई कि देश के इन्हीं लक्ष्यों के लिए इंडियन स्पेस एसोसिएशन भी काम करेगा।

अंतरिक्ष क्षेत्र में ऐतिहासिक सुधारों की शुरुआत
सरकार ने नेशनल स्पेस प्रमोशन एंड ऑथराइजेशन सेंटर के गठन का फैसला किया। आत्मनिर्भर भारत अभियान को गति देने के लिए इसमें निजी क्षेत्र को मंजूरी दी गई है। इससे उद्योग जगत न केवल अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में भागीदारी निभाएगा, बल्कि हमारी स्पेस टेक्नोलॉजी को भी नई ऊर्जा मिलेगी। यह निर्णय भारत को बदलने तथा देश को आत्मनिर्भर और तकनीकी रूप से आधुनिक बनाने के प्रधानमंत्री के दीर्घकालिक दृष्टिकोण के अनुरूप है। इससे न केवल इस क्षेत्र में तेजी आएगी बल्कि भारतीय उद्योग विश्व की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकेगा। इसके साथ ही प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में बड़े पैमान पर रोजगार की संभावनाएं हैं और भारत एक ग्लोबल टेक्नोलॉजी पावरहाउस बन रहा है।

LVM-3 रॉकेट का करीब 85 फीसदी हिस्सा निजी क्षेत्र से आया
चंद्रयान-3 मिशन से भी अंतरिक्ष में निजी क्षेत्र की बढ़ती रुचि का पता चलता है। LVM-3 रॉकेट का करीब 85 फीसदी हिस्सा निजी क्षेत्र से आया था। इसकी कई महत्त्वपूर्ण प्रणालियां जीओसीओ (सरकारी स्वामित्व एवं कंपनियों द्वारा संचालित) मॉडल के तहत बनाई गई थीं।

अंतरिक्ष क्षेत्र की निजी कंपनियों में 25.8 करोड़ डॉलर का निवेश आया
उद्योग का अनुमान है कि अंतरिक्ष क्षेत्र में 146 स्टार्टअप के अलावा 1,500 से अधिक सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उद्यम (MSME) काम करते हैं। इस क्षेत्र को जून 2020 में निजी क्षेत्र के लिए खोला गया था। तब से इस क्षेत्र में करीब 17.5 करोड़ डॉलर का निवेश हुआ है। अभी तक यहां कुल 25.8 करोड़ डॉलर का निवेश आया है। जिन कंपनियों को विदेशी निवेश मिला है, उनमें अग्निकुल, स्काईरूट, ध्रुव और पिक्सेल शामिल हैं। प्रौद्योगिकी हस्तांतरण से इसमें और तेजी आने की उम्मीद है।

अंतरिक्ष कार्यक्रम में रुचि जगाने के लिए बनी व्यूइंग गैलरी
अंतरिक्ष ने विभिन्न प्रकार के अनुप्रयोगों को हर आम आदमी के दरवाजे तक पहुंचाकर मानव जीवन में क्रांति ला दी है। इसने प्रत्येक व्यक्ति में भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के प्रति स्वाभाविक जिज्ञासा और बढ़ती रुचि जगाई है। अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के लाभों के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए इसरो कई आउटरीच गतिविधियां चला रहा है। ये गतिविधियां समाज के हर वर्ग के लोगों के लिए डिज़ाइन की गई हैं। इसके अलावा, इसरो भारत के अंतरिक्ष प्रक्षेपण देखने के लिए सीमित संख्या में आगंतुकों को भी समायोजित करता है, जो आज की मांग की तुलना में नगण्य है। रॉकेट प्रक्षेपणों को देखने की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए, इसरो ने श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र में एक आगंतुक गैलरी बनाई है। पहले चरण में, 5,000 क्षमता वाली लॉन्च व्यूइंग गैलरी का निर्माण एक स्टेडियम के रूप में किया गया है। आगंतुक इस गैलरी से वास्तविक समय में अपनी आंखों से लॉन्च देख सकते हैं। लॉन्चर और उपग्रहों की विभिन्न जटिलताओं को स्पष्ट रूप से समझाने के लिए बड़ी स्क्रीन भी लगाई गई हैं। इसके अलावा, लॉन्च से पहले और बाद की गतिविधियों को इन स्क्रीन के माध्यम से दर्शकों को प्रसारित और समझाया जाएगा।

अंतरिक्ष व विज्ञान को समर्पित अंतरिक्ष विज्ञान चैनल 
इसरो ने 2019 में अंतरिक्ष व विज्ञान को समर्पित टेलीविजन चैनल लॉन्च की घोषणा की, जिसका मकसद देश भर के लोगों तक विज्ञान-प्रौद्योगिकी के फायदों को पहुंचाना है। इसकी घोषणा करते हुए इसरो ने कहा था, “इस चैनल के माध्यम से हमारा उद्देश्य अंतरिक्ष कार्यक्रम कैसे आम जनता को फायदा पहुंचा सकता है, इसकी जानकारी देना है।”

मोदी सरकार में भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम की जितनी प्रगति हुई है, उतनी पहले कभी नहीं हुई। एक नजर डालते हैं इसरो की कुछ अहम उपलब्धियों पर-

चंद्रयान-3 लॉन्च, अंतरिक्ष महाशक्ति बनने की ओर भारत
भारत ने एक नया कीर्तिमान रचते हुए तीसरा मून मिशन चंद्रयान-3 14 जुलाई 2023 को दोपहर 2 बजकर 35 मिनट पर लॉन्च किया। इसे आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन स्पेस सेंटर से छोड़ा गया। चंद्रयान-3 मिशन सबसे अलग और खास है क्योंकि अब तक जितने भी देशों ने अपने यान चंद्रमा पर भेजे हैं उनकी लैंडिग उत्तरी ध्रुव पर हुई है जबकि चंद्रयान-3 चांद के दक्षिणी ध्रुव पर उतरने वाला पहला यान होगा। चंद्रयान-3 मिशन साल 2019 में किए गए चंद्रयान-2 मिशन का फॉलोअप मिशन है। भारत ही नहीं पूरी दुनिया की नजर इस मिशन पर टिकी है। चंद्रयान-3 मिशन के अंतर्गत इसका रोबोटिक उपकरण 24 अगस्त तक चांद के उस हिस्से (शेकलटन क्रेटर) पर उतर सकता है जहां अभी तक किसी भी देश का कोई अभियान नहीं पहुंचा है। इसी वजह से पूरी दुनिया की निगाहें भारत के इस मिशन पर हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि चंद्रयान-3 हमारे देश की आशाओं और सपनों को साकार करेगा।

36 वनवेब सैटेलाइट लॉन्च, LVM-3 रॉकेट के जरिए पहली बार लॉन्चिंग
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने कहा कि वनवेब द्वारा विकसित 36 ब्रॉडबैंड सैटेलाइट का एक ग्रुप 23 अक्टूबर 2022 को लो अर्थ ऑर्बिट में सफलतापूर्वक लॉन्च किया गया है। इस लॉन्चिंग को सबसे भारी LVM3 रॉकेट के जरिए किया गया है। हालांकि अब रॉकेट का नाम बदलकर LVM3-M2 किया गया है। इन सभी सैटेलाइट्स को सफलतापूर्वक पृथ्वी की निचली कक्षा में स्थापित किया गया है। इसरो और वाणिज्यिक इकाई न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड (NSIL) द्वारा श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से इन सैटेलाइट की लॉन्चिंग की गई है। LVM3 रॉकेट के जरिये हुआ पहला लॉन्चिंग अभियान है। वनवेब ने कहा कि यह इस साल का दूसरा और अब तक का 14वां लॉन्च है। इसरो के अध्यक्ष और अंतरिक्ष विभाग सचिव सोमनाथ एस ने इस लॉन्चिंग को देश और भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिए ऐतिहासिक घटना बताया है।

Satellite EOS-04 सफलतापूर्वक प्रक्षेपित, धरती पर नज़र रखेगा यह उपग्रह
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने 2022 के अपने पहले प्रक्षेपण अभियान के तहत पीएसएलवी-सी 52 के जरिए धरती पर नजर रखने वाले उपग्रह ईओएस-04 और दो छोटे उपग्रहों को 14 फ़रवरी 2022 को सफलतापूर्वक अंतरिक्ष की कक्षा में स्थापित कर दिया। इसरो ने इसे ‘‘अद्भुत उपलब्धि’’ बताया है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित ‘सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र’ से पीएसएलवी-सी (PSLV-C52) के ज़रिए Satellite EOS-04 को सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किया था। इसके साथ ही दो अन्य छोटे राइडशेयर सैटेलाइट्स ‘INS-2TD’ और ‘INSPIRESat-1’ को भी अंतरिक्ष भेजा गया। सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र का ये 80वां प्रक्षेपण यान मिशन था, जबकि पीएसएलवी की ये 54वीं उड़ान थी। ईओएस-04 एक ‘रडार इमेजिंग सैटेलाइट’ है जिसे कृषि, वानिकी और वृक्षारोपण, मिट्टी की नमी और जल विज्ञान तथा बाढ़ मानचित्रण जैसे अनुप्रयोगों एवं सभी मौसम स्थितियों में उच्च गुणवत्ता वाली तस्वीरें प्रदान करने के लिए डिजाइन किया गया है। इसका वजन 1,710 किलोग्राम हे। पीएसएलवी अपने साथ में इन्सपायर सैट-1 उपग्रह भी लेकर गया, जिसे भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान और प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईएसटी) ने कोलोराडो विश्वविद्यालय, बोल्डर की वायुमंडलीय और अंतरिक्ष भौतिकी प्रयोगशाला के सहयोग से तैयार किया है जबकि दूसरा उपग्रह आईएनएस-2टीडी एक प्रौद्योगिकी प्रदर्शक उपग्रह है।

साउंडिंग रॉकेट RH200 रॉकेट का सफल परीक्षण
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (ISRO) ने 24 नवंबर, 2022 को तिरुवनंतपुरम के थुंबा तट से RH200 रॉकेट के तौर पर अपना लगातार 200वां सफल प्रक्षेपण किया। RH200 ने थुंबा इक्वेटोरियल रॉकेट लॉन्चिंग स्टेशन (TERLS) से उड़ान भरी थी। इसरो के लिए ये परीक्षण ऐतिहासिक पल था। इस दौरान पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, ISRO के अध्यक्ष एस. सोमनाथ समेत कई लोग इसके गवाह बने। इस साउंडिंग रॉकेट का इस्तेमाल मौसम विज्ञान, खगोल विज्ञान और अंतरिक्ष भौतिकी की इसी तरह की शाखाओं पर प्रयोग करने के लिए किया जाता है। रोहिणी साउंडिंग रॉकेट शृंखला इसरो के भारी और अधिक जटिल लॉन्च वाहनों की अगुवा रही है।

रीसैट-2बीआर1 के साथ चार देशों के 9 और सैटेलाइट लॉन्च
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अगुवाई में भारत ने अंतरिक्ष में एक कामयाब उड़ान भरी। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन- इसरो ने 11 दिसंबर, 2019 को 3:25 बजे भारतीय उपग्रह रीसैट-2बीआर1 के साथ चार देशों के 9 सैटेलाइट अंतरिक्ष में भेजे। यह प्रक्षेपण पीएसएलवी-सी48 रॉकेट के जरिए आंध्र प्रदेश स्थित श्रीहरिकोटा से किया गया। यह पीएसएलवी की 50वीं उड़ान और श्रीहरिकोटा से प्रक्षेपित किया जाने वाला 75वां रॉकेट है। रीसैट-2बीआर1 रडार इमेजिंग अर्थ ऑब्जर्वेशन सैटेलाइट है। यह बादलों और अंधेरे में भी साफ तस्वीरें ले सकता है। यह 35 सेंटीमीटर की दूरी पर स्थित दो चीजों की अलग-अलग और साफ पहचान कर सकता है। यह उपग्रह सीमा की सुरक्षा के लिहाज से बेहद खास है। इससे भारत की राडार इमेजिंग ताकत कई गुना बढ़ जाएगी। इसकी मदद से सीमा की निगरानी और सुरक्षा काफी आसान हो जाएगी। भारत के साथ जापान, इटली, इजराइल का एक-एक और अमेरिका के छह सैटेलाइट लॉन्च किए गए। भारत के लिए गर्व की बात है कि इसरो ने अब तक 319 विदेशी उपग्रहों को कक्षा में स्थापित किए हैं।

जासूसी उपग्रह कार्टोसेट-3 सहित 13 अमेरिकी सैटेलाइट लॉन्च
इसके पहले 27 नवंबर 2019 को पीएसएलवी-सी47 के जरिए कार्टोसैट-3 और अमेरिका के 13 नैनो सैटेलाइट एक साथ अंतरिक्ष में भेजे गए। कार्टोसैट-3 एक सैन्य जासूसी उपग्रह है। यह सबसे ताकतवर कैमरे वाला उपग्रह है। कार्टोसैट-3 का इस्तेमाल देश की सीमाओं की निगरानी के लिए होगा। यह प्राकृतिक आपदाओं में भी मदद करेगा। कार्टोसैट उपग्रह से किसी भी मौसम में धरती की तस्वीरें ली जा सकती हैं। इसके जरिए आसमान से दिन और रात दोनों समय जमीन से एक फीट की ऊंचाई तक की साफ तस्वीरें ली जा सकती हैं।

जासूसी सैटेलाइट RISAT-2B लॉन्च
भारत ने 22 मई 2019 को स्पाई सैटेलाइट RISAT-2B को लॉन्च किया। पीएसएलवी सी46 ने RISAT-2B को पृथ्वी की निचली कक्षा सफल तौर पर स्थापित किया गया। यह सैटेलाइट खुफिया निगरानी, कृषि, वन और आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में काम आएगा। इसके जरिए अंतरिक्ष से जमीन पर 3 फीट की ऊंचाई तक की बेहतरीन तस्वीरें ली जा सकती हैं। यह दिन के साथ रात में भी साफ तस्वीरें लेने और सभी मौसमों में काम करने वाला है। यह धरती पर हो रही छोटी-छोटी गतिविधियों की सटीक स्थिति दिखा पाने में सक्षम है। इससे दुश्मनों पर नजर रखने में मदद मिलेगी।

सैन्य उपग्रह एमीसेट सफलतापूर्वक लॉन्च
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन- इसरो ने 1 अप्रैल, 2019 को पीएसएलवी- सी 45 का सफल प्रक्षेपण किया। इसके साथ EMISAT और अन्य विदेशी नैनो उपग्रहों को अंतरिक्ष में छोड़ा गया। पहली बार इसरो का मिशन एक साथ तीन कक्षाओं के लिए भेजा गया। एमिसैट का वजन 436 किलोग्राम है। यह डीआरडीओ का इलैक्ट्रॉनिक इंटेलीजेंस सैटेलाइट है। इससे दुश्मन देशों की गतिविधियों पर नजर रखी जा सकेगी। एमिसैट से दुश्मन के राडार और सेंसर्स पर निगरानी रखने में मदद मिलेगी।इसके साथ 28 सैटलाइट को भी लॉन्च किया गया। इन 28 में 24 अमेरिकी सैटेलाइट शामिल हैं।

स्पेस में सैटेलाइट मार गिराने वाला महाशक्ति बना भारत
भारत अंतरिक्ष में लाइव सैटेलाइट को मार गिराने की क्षमता रखने वाला चौथा देश बन गया है। इससे पहले यह क्षमता अमेरिका, रूस और चीन के ही पास थी। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि भारत ने आज अपना नाम अंतरिक्ष महाशक्ति के नाम पर दर्ज करा दिया है। हमने अंतरिक्ष में उपग्रह को मार गिराने की क्षमता हासिल कर ली है। हमारे वैज्ञानिकों ने अंतरिक्ष में 300 किमी दूर LEO (Low Earth Orbit ) में एक लाइव सैटेलाइट को मार गिराया है जो कि एक पूर्व निर्धारित लक्ष्य था। 3 मिनट में ही सफलतापूर्वक ये ऑपरेशन पूरा किया गया है। इसे 27 मार्च 2019 को अंजाम दिया गया।

संचार उपग्रह जी सैट-31 सफलतापूर्वक लॉन्च
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन- इसरो ने 6 फरवरी, 2019 को फ्रेंच ग्‍याना के अंतरिक्ष स्‍थल से 40वां संचार उपग्रह जीसैट-31 का सफलतापूर्वक प्रक्षेपण किया। जीसैट-31 उपग्रह का वजन दो हजार पांच सौ 36 किलोग्राम है। यह भारत का 40वां संचार उपग्रह है। इस तरह के 11 उपग्रह पहले से ही अंतरिक्ष में देश की संचार सेवाओं के लिए काम कर रहे हैं। इस उपग्रह के काम करने की अवधि 15 साल होगी और यह कक्षा में स्थित उपग्रहों में से कुछ को अपना काम जारी रखने की सुविधा उपलब्‍ध कराएगा। साथ ही यह भू स्थिर कक्षा में केयू बैंड ट्रांसपोंडर क्षमता को भी बढ़ावा देगा। इसरो प्रमुख डॉक्टर सिवन ने बताया कि उच्च शक्ति के इस संचार उपग्रह से डीटीएच टेलीविजन के लिए ट्रांसपॉन्डर क्षमता मिलेगी और एटीएम, शेयर बाजार, ई-प्रशासन और दूरसंचार से जुड़ी अन्य सेवाओं के विस्तार में मदद मिलेगी।

पीएसएलवी सी-44 का किया सफल प्रक्षेपण
इसरो ने 24 जनवरी, 2019 को श्रीहरिकोटा से कलामसैट और इमेजिंग उपग्रह माइक्रोसैट-आर को अंतरिक्ष में ले जाने वाले पीएसएलवी सी-44 का सफल प्रक्षेपण किया। इस अंतरिक्ष अभियान की खास बात पीएसएलवी के नए रूप की उड़ान है। कलामसैट को विधार्थियों ने और चेन्‍नई स्थित स्‍पेस किड्स इंडिया ने तैयार किया है। माइक्रोसैट और कलामसैट प्रक्षेपित करने वाले पीएसएलवी सी 44 अभियान के बाद इसरो इस साल 32 अभियान संचालित करेगा।

संचार उपग्रह जीसैट-7ए सफलतापूर्वक लॉन्च
इसरो ने 19 दिसंबर, 2018 को देश का 35वां संचार उपग्रह जीसैट-7ए श्रीहरिकोटा से सफलतापूर्वक लॉन्च किया। इसे प्रक्षेपण यान जीएसएलवी-एफ11 के जरिए लॉन्च किया गया। जीसैट-7ए उपग्रह का वजन 2,250 किलोग्राम है। इसरो ने कहा है कि जीसैट 7 ए भारतीय क्षेत्र में केयू बैंड में उपयोगकर्ताओं को संचार क्षमता प्रदान करेगा। इससे वायुसेना की नेटवर्किंग क्षमता मजबूत होगी। जीसैट-7ए का जीवन आठ वर्ष है।

सबसे वजनी उपग्रह जीसैट-11 सफलतापूर्वक कक्षा में स्थापित
5 दिसंबर, 2018 को जीसैट-11 उपग्रह फ्रेंच गुयाना स्पेस सेंटर से एरियनस्पेस रॉकेट की मदद से सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किया गया। प्रक्षेपण के 33 मिनट बाद जीसैट -11 को कक्षा में स्थापित कर दिया गया। करीब 5,854 किलोग्राम वजन का जीसैट -11 इसरो का बनाया अब तक का सबसे अधिक वजन वाला उपग्रह है। इसका जीवन काल 15 साल से अधिक रहने का अनुमान है। यह अत्याधुनिक और अगली पीढ़ी का संचार उपग्रह है। जीसैट-11 देश में ब्रॉडबैंड सेवाएं प्रदान करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। जी सैट-11 उपग्रह 32 यूजर बीम के माध्‍यम से केयू बैंड और 8 हब बीम के माध्‍यम से केए बैंड में भारत के सामान्‍य और द्वीपीय क्षेत्रों में तीव्रगति की इंटरनेट सेवाएं उपलब्ध कराएगा। इसरो के अध्‍यक्ष डॉ के सिवन ने कहा ‘जीसैट-11’ देश के ग्रामीण और दूरदराज के ग्राम पंचायत क्षेत्रों में भारत नेट परियोजना के तहत आने वाली ब्रॉडबैण्‍ड सम्‍पर्क सेवा को गति देगा, जो कि डिजिटल इंडिया कार्यक्रम का एक हिस्‍सा है। सिवन ने कहा कि भारत नेट परियोजना का उद्देश्‍य ई-बैंकिंग, ई-हेल्‍थ और ई-गवर्नेंस जैसी जन कल्‍याणकारी योजनाओं को सशक्‍त बनाना है। उन्‍होंने कहा कि जीसैट-11 भविष्‍य के सभी तरह के संचार उपग्रहों के लिए एक अग्रदूत साबित होगा।

इसरो ने एक साथ 31 सैटेलाइट लॉन्च किए
अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने 29 नवंबर, 2018 को अंतरिक्ष यान पीएसएलवी-सी43 के साथ आठ देशों के 31 सैटेलाइटों को प्रक्षेपित किया। इसमें धरती का अध्ययन करने वाले भारतीय हाइपर स्पेक्ट्रल इमेजिंग सैटेलाइट (HySIS) शामिल है। 380 किलोग्राम के इस सैटेलाइट को इसरो ने विकसित किया है। इसरो के मुताबिक, आंध्र प्रदेश में श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से 29 नवंबर को पीएसएलवी-सी43 से इन उपग्रहों का प्रक्षेपण किया गया। HySIS पीएसएलवी-सी43 अभियान का प्राथमिक उपग्रह है। इसके अलावा प्रक्षेपित 30 विदेशी सैटेलाइट में 23 अमेरिका के हैं और बाकी ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, कोलंबिया, फिनलैंड, मलेशिया, नीदरलैंड और स्पेन के हैं। इन विदेशी उपग्रहों का कुल वजन 261.5 किलोग्राम है।

अंतरिक्ष में पहुंचा भारी सैटेलाइट
प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भारत का स्पेस मिशन रोजाना सफलता के नए-नए अध्याय जोड़ रहा है। इसरो ने 14 नवंबर, 2018 को अपने भारी रॉकेट जीएसएलवी-एमके3-डी2 की मदद से देश के सबसे उन्नत संचार उपग्रह जीसैट-29 को कक्षा में स्थापित किया। यह उपग्रह पूर्वोत्तर और जम्मू-कश्मीर के दूरस्थ इलाकों में इंटरनेट और अन्य संचार सुविधाएं मुहैया कराने में मददगार होगा। यह उपग्रह क्यू ऐंड वी बैंड्स, ऑप्टिकल कम्युनिकेशन और एक हाई रेजॉल्यूशन कैमरा भी अपने साथ ले गया है। भविष्य के स्पेस मिशन के लिए पहली बार इन तकनीकों का परीक्षण किया गया। इस रॉकेट में दुनिया के दूसरे सबसे बड़े बूस्टर S200 का इस्तेमाल किया गया। 3423 किलोग्राम वजन का यह सैटलाइट भारत की जमीन से लॉन्च किया गया अब तक का सबसे भारी उपग्रह है। इस अभियान को इसलिए भी अहम माना है क्योंकि भारत के महत्वाकांक्षी चंद्रयान-2 और मानवयुक्त अंतरिक्ष अभियानों में इस रॉकेट का इस्तेमाल किया जा सकता है।

100वें सैटेलाइट का हुआ सफल परीक्षण
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय अंतरिक्ष एवं अनुसंधान संगठन यानि (इसरो) रोज नए आयाम लिख रहा है। इसी वर्ष 12 जनवरी,2018 को इसरो ने सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान पीएसएलवी-40 सी के जरिये पृथ्वी अवलोकन उपग्रह कार्टोसैट-2 सहित 31 उपग्रहों का सफल प्रक्षेपण किया। इसरो की इस सफलता पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी वैज्ञानिकों की पीठ थपथपाते हुए इसरो की इस कामयाबी पर बधाई दी।

30 नैनो सैटेलाइट को पीएसएलवी-सी38 के जरिए छोड़ा
23 जून, 2017 को इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन (ISRO) ने श्रीहरिकोटा स्थित लॉन्चपैड से कार्टोसैट-2s सैटेलाइट के साथ 30 नैनो सैटेलाइट को पीएसएलवी-सी38 के जरिए छोड़ा। कार्टोसैट-2 शृंखला उपग्रह का वजन 712 किलोग्राम है। पीएसएलवी-सी38 के जरिये भेजे जाने वाले अन्य 30 उपग्रहों का कुल वजन 243 किलोग्राम है। कार्टोसैट को मिलाकर सभी 31 उपग्रहों का कुल भार 955 किलोग्राम है। यह राकेट 14 देशों से 29 नैनो उपग्रह लेकर गया है, जिसमें ऑस्ट्रिया, बेल्जियम, ब्रिटेन, चिली, चेक गणराज्य, फिनलैंड, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, लातविया, लिथुआनिया, स्लोवाकिया और अमेरिका के साथ-साथ भारत का एक नैनो उपग्रह भी शामिल है। 15 किलोग्राम वजनी भारतीय नैनो सैटेलाइट एनआईयूएसएटी तमिलनाडु की नोरल इस्लाम यूनिवर्सिटी का था। यह उपग्रह कृषि फसल की निगरानी और आपदा प्रबंधन सहायता अनुप्रयोगों के लिए मल्टी-स्पेक्ट्रल तस्वीरें प्रदान करेगा। भारतीय सेना को भी इस सैटेलाइट लॉन्च से फायदा होगा। निगरानी से जुड़ी ताकत बढ़ेगी।

जीएसएलवी मार्क 3-डी1 के जरिये जीसेट-19 अंतरिक्ष की कक्षा में स्थापित
देश के सबसे भारी रॉकेट जीएसएलवी मार्क 3-डी1 के जरिए सबसे वजनदार संचार उपग्रह जीसेट-19 को सफलतापूर्वक अंतरिक्ष की कक्षा में स्थापित किया गया। GSLV Mk III रॉकेट को ISRO ने FAT BOY नाम दिया है। इसकी खासियत ये है कि ये ISRO द्वारा निर्मित अबतक का सबसे भारी (640 टन) लेकिन, सबसे छोटा (43 मीटर) रॉकेट है। 200 परीक्षणों के बाद ISRO ने इसे 5 जून, 2017 को अंतरिक्ष में भेजने में सफलता हासिल की। जीएसएलवी मार्क3-डी1 भूस्थैतिक कक्षा में 4,000 किलो और पृथ्वी की निचली कक्षा में 10,000 किलो तक के पेलोड या उपग्रह ले जाने की क्षमता रखता है। रॉकेट में स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन लगा है। इसके सफल प्रक्षेपण से भविष्य में अंतरिक्ष यात्रियों को भेजने का भारत का रास्ता साफ होगा। अब तक 2,300 किलो से ज्यादा वजन वाले संचार उपग्रहों के प्रक्षेपण के लिए इसरो को विदेशी रॉकेटों पर निर्भर रहना पड़ता था। इसरो के पूर्व प्रमुख व सलाहकार डॉ राधाकृष्णन ने इस सफलता को मील का पत्थर करार दिया है। उन्होंने कहा, इसने प्रक्षेपण उपग्रह की क्षमता 2.2-2.3 टन से करीब दोगुनी 3.5-4 टन कर दी है। हम अब संचार उपग्रहों के प्रक्षेपण में आत्मनिर्भर हो जाएंगे।

GPS से भी 6 गुना बेहतर ‘नाविक’
भारत का अपना GPS सफलतापूर्वक काम करने लगा है और अगले साल तक देश की जनता भी इसका इस्तेमाल कर सकेगी। सबसे बड़ी बात ये है कि देशी NavIC अमेरिकी GPS से कहीं अधिक अचूक है। खास बात ये है कि NavIC यानी ‘Navigation with Indian Constellation’ का हिंदी अर्थ नाविक है, जो नाम खुद प्रधानमंत्री मोदी ने दिया है। इसके साथ ही भारतीय अंतरिक्ष रिसर्च संगठन (ISRO) ने एकबार फिर से अंतरिक्ष की दुनिया में अपनी कामयाबियों की कड़ी में एक और झंडा गाड़ दिया है। वैज्ञानिकों ने NavIC को इस तरह से डिजाइन किया है कि इस्तेमाल करने वालों को देश के अंदर किसी भी जगह की सटीक से सटीक जानकारी मिल सकेगी। जानकारी के अनुसार अब अगर आप कहीं भी रास्ता भटक जाएं, तो ‘NavIC’ आपकी मदद के लिए हाजिर होगा। इसके लिए ISRO ने IRNSS-1G (Indian Regional Navigation Satellite System) सफलतापूर्वक अंतरिक्ष में भेजा था। इसी के बाद प्रधानमंत्री ने इस शुद्ध देशी GPS का नाम NavIC (Navigation with Indian Constellation) दिया था। जानकारों के अनुसार अमेरिकी GPS, 24 सैटेलाइट्स का समूह है, इसीलिए उसका दायरा बहुत अधिक है और वो पूरी दुनिया पर नजर रख सकता है। लेकिन सिर्फ 7 सैटेलाइट के समूह वाले NavIC का दायरा सिर्फ भारत और उसके आसपास के क्षेत्रों तक सीमित है। लेकिन अमेरिकी GPS की तुलना में इसकी सू्क्ष्मता बहुत ही ज्यादा सटीक है। NavIC की accuracy 5 मीटर है, जबकि GPS की accuracy 20-30 मीटर की है।

इसरो ने 5 सालों में विदेशी सैटलाइट की लॉन्चिंग से कमाए 11000 करोड़
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने पिछले कई सालों में विदेशी उपग्रहों (Satellites) का सफलतापूर्वक प्रक्षेपण किया है। इसरो ने इन विदेशी सैटेलाइटों के प्रक्षेपण से करोड़ों रुपये कमाए। यह जानकारी संसद में अंतरिक्ष मंत्री जितेंद्र सिंह ने दी। एक सवाल के जवाब में केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने 15 दिसंबर 2022 को राज्यसभा को बताया कि इसरो ने विदेशी उपग्रहों के प्रक्षेपण से पिछले पांच सालों में लगभग 1100 करोड़ रुपये कमाए हैं। पिछले पांच सालों यानी जनवरी 2018 से नवंबर 2022 के बीच इसरो ने इन विदेशी सैटेलाइटों का प्रक्षेपण किया है। इसरो ने अपने कॉमर्शियल हथियारों के माध्यम से कुल 19 देशों के 177 विदेशी उप्रगह लॉन्च किए हैं। इन 19 देशों में ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, कनाडा, कोलंबिया, फिनलैंड, फ्रांस, इजराइल, इटली, जापान, लिथुआनिया, लक्समबर्ग, मलेशिया, नीदरलैंड, कोरिया गणराज्य, सिंगापुर, स्पेन, स्विट्जरलैंड, ब्रिटेन और अमेरिका भी शामिल है।

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