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The Sunday Guardian की रिपोर्ट में बड़ा खुलासा, भारत के आंतरिक मामलों में विदेशी हस्तक्षेप, मोदी सरकार को हटाने के लिए दिल्ली से लेकर लंदन तक हो रही अंतरराष्ट्रीय साजिश

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भारत में 2024 का आम चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आ रहा है, वैसे-वैसे मोदी सरकार के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय साजिशें भी तेज होती जा रही हैं। इस साजिश में विपक्षी दलों के सदस्यों और वकीलों के अलावा कुछ अप्रवासी भारतीय और विदेशी दूतावास शामिल है, जो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से नफरत करते हैं। वे प्रधानमंत्री मोदी और भारत के बढ़ते अंतरराष्ट्रीय कद से परेशान है। वे किसी भी कीमत पर प्रधानमंत्री मोदी को सत्ता से बेदखल करना चाहते हैं। The Sunday Guardian ने एक बड़ा खुलासा किया है कि 2024 में नरेन्द्र मोदी फिर से प्रधानमंत्री नहीं बने इसके लिए दिल्ली से लेकर लंदन तक बैठकों का दौर शुरू हो चुका है। इन बैठकों में मोदी सरकार के खिलाफ अभियान चलाने के लिए टूलकिट तैयार किया जा रहा है, जिसमें प्रधानमंत्री मोदी और उनकी सरकार के खिलाफ झूठे आरोप लगाकर उनकी छवि खराब करने की रणनीति तैयार की गई है। 

पीएम मोदी के खिलाफ दिल्ली और लंदन में कई दौर की बैठकें

दरअसल न्यूज वेबसाइट sundayguardianlive.com ने “Some PIOs and European officials plan government change in 2024” शीर्षक से एक रिपोर्ट प्रकाशित की है, जिसमें चौकाने वाला खुलासा किया गया है। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि मोदी सरकार को सत्ता से बेदखल करने के लिए 2021 से साजिशें की जा रही हैं। इसके लिए दिल्ली और लंदन में कई दौर की बैठकें हो चुकी हैं। इन बैठकों में भारतीय मूल के व्यक्ति (पीआईओ) और कुछ विदेशी दूतावासों के सदस्य शामिल रहे हैं। The Sunday Guardian ने इन बैठकों में मौजूद रहे लोगों के हवाले से बताया है कि बैठकों में मोदी सरकार को हटाने के लिए व्यापक विचार-विमर्श किया गया और 2024 के आम चुनाव से पहले सरकार के खिलाफ व्यापक अभियान चलाने की रणनीति बनाई गई।

पिछले तीन महीने में दिल्ली में तीन बैठकों का आयोजन

इस रिपोर्ट के मुताबिक जिस तरह मोदी सरकार को हटाने के लिए अंतरराष्ट्रीय साजिशें की जा रही है, वो भारत के आंतरिक मामलों में विदेशी हस्तक्षेप के समान है। पिछले तीन महीनों में दिल्ली में भी ऐसी कम से कम तीन बैठकें हो चुकी हैं। इनमें से एक बैठक दक्षिणी दिल्ली के मोती बाग में एक निजी आवास पर आयोजित की गई थी। दूसरी बैठक एक गैर-यूरोपीय यूनियन, गैर-नाटो यूरोपीय देश के दूतावास में आयोजित की गई। दूतावास दक्षिण-पश्चिम दिल्ली में स्थित है। तीसरी बैठक एक वकील के कार्यालय में हुई, जो बहादुर शाह जफर मार्ग पर स्थित है।

बैठकों में राजनयिक, वकील, डॉक्टर और आईटी पेशेवर रहे शामिल

इन बैठकों में शामिल लोगों की संख्या के बारे में खुलासा किया गया है। मोती बाग और दूतावास की बैठकों में कम से कम 20 लोग शामिल थे, जबकि बहादुर शाह जफर मार्ग स्थित कार्यालय में हुई बैठक में 12 लोगों ने हिस्सा लिया था। जहां तक मोती बाग की बैठक का सवाल है तो इसमें टेक्सास और संयुक्त राज्य अमेरिका के अन्य हिस्सों में रहने वाले कुछ भारतीय मूल के लोग भी शामिल थे, जो खालिस्तानी संगठनों से जुड़े बताये जा रहे हैं। इन बैठकों में शामिल लोगों के मुताबिक दिल्ली और लंदन में हुई बैठकों में यूरोपीय देशों के कुछ राजनयिक, वकील, डॉक्टर और आईटी पेशेवर भी शामिल हुए थे।

2024 के चुनाव को प्रभावित करने के लिए प्रोपेगेंडा की साजिश

2024 के लोकसभा चुनाव से पहले यानि सितंबर 2023 से मोदी सरकार और उसके “दोस्तों” के खिलाफ बड़े पैमाने पर अभियान शुरू करने और इसके लिए मार्केटिंग प्रोफेशनल्स, पीआर एजेंसियों और सोशल मीडिया एक्सपर्ट्स की भर्ती करने का फैसला किया गया। इसमें मोदी सरकार के खिलाफ नैरेटिव तैयार करने वाले लोगों की मदद लेने पर जोर दिया गया। सोशल मीडिया और व्हाट्सएप सहित ऑफ़लाइन और ऑनलाइन दोनों माध्यमों से जनता तक पहुंचने और मोदी सरकार की कमजोरियों को उजागर करने की रणनीति बनाई गई। मोदी सरका के खिलाफ अभियान चलाने के लिए भारतीय मूल के लोगों और अन्य विदेशी संगठनों की तरफ से फंड उपलब्ध कराया जा रहा है। 

बीबीसी की विवादित डॉक्यूमेंट्री विदेशी साजिश का हिस्सा

अब प्रधानमंत्री मोदी और भारत को बदनाम करने की पश्चिम की साजिश भी सामने आ गई है। ब्रिटिश ब्रॉडकास्टिंग कॉरपोरेशन (बीबीसी) ने दो एपिसोड की एक डॉक्यूमेंट्री बनाई है जिसका नाम है – इंडिया: द मोदी क्वेश्चन। बीबीसी ने साल 2002 के गुजरात दंगों के दौरान गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में प्रधानमंत्री मोदी के कार्यकाल पर ​निशाना साधते हुए दो पार्ट्स में एक सीरीज दिखाई थी। यह डॉक्यूमेंट्री प्रधानमंत्री मोदी की छवि को खराब करने के एजेंडे तहत बनाया गया है। इसमें नरेन्द्र मोदी के मुख्यमंत्री रहते हुए गुजरात में साल 2002 में हुई हिंसा में लोगों की मौत पर सवाल उठाए गए हैं। अब जबकि सुप्रीम कोर्ट से भी प्रधानमंत्री मोदी को इस मामले में क्लीन चिट मिल गई है तो फिर 22 साल बाद इस मुद्दे को उठाने के मकसद को आसानी से समझा जा सकता है। दरअसल विदेशी बैठकों और साजिशों के तहत तय प्रोपेगेंडा के लिए यह डॉक्यूमेंट्री लाई गई है। इसका असल मकसद वही है…भारत को कमजोर रखो और केंद्र में बैठकी सरकार को इशारों पर नचाओ।

“दोस्तों” के खिलाफ अभियान चलाने की रणनीति तहत लाई गई हिंडनबर्ग रिपोर्ट

प्रधानमंत्री मोदी और उनके “दोस्तों” के खिलाफ बड़े पैमाने पर अभियान चलाने की रणनीति के तहत अडानी समूह को निशाना बनाया गया है और उसके खिलाफ हिंडनबर्ग रिपोर्ट लाई गई है। दरअसल पिछले कुछ सालों में अडानी ग्रुप ने अपना प्रभाव जमाया है। गौतम अडानी ने अडानी ग्रुप के वैश्विक विस्तार मिशन को आगे बढ़ाया। ऐसे में वैश्विक रूप से अडानी ग्रुप का बढ़ना भला विदेशी कंपनियों को कैसे रास आ सकता है। तब तो और नहीं जब अडानी ग्रुप भारत की पहचान को दिनोदिन और सुदृढ़ करने में आगे की ओर बढ़ता जा रहा है। यही कारण है कि पिछले कुछ वर्षों में पश्चिमी दुनिया में जिस गति से भारत विरोधी नैरेटिव को फैलाया जा रहा है उसमें काफी वृद्धि हुई है। वालस्ट्रीट जनरल ने अपनी रिपोर्ट में प्रोपेगेंडा फैलाने की कोशिश की। उसने लिखा- हिंडनबर्ग ने “हिंदू राष्ट्रवादी पीएम” मोदी के आर्थिक विकास के गुजरात मॉडल से भरोसा हिला दिया है और “यह कॉर्पोरेट भारत के बारे में बहुत कुछ कहता है”।

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