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पीएम मोदी के नेतृत्व में भारत के पेरिस समझौते के लक्ष्य से बेहतर प्रदर्शन करने की संभावना

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विकास ही नहीं पर्यावरण को लेकर भी दुनिया की चिंता से मोदी सरकार पूरी तरह वाकिफ है । पेरिस में हुए जलवायु परिवर्तन समझौते को लेकर भारत की जिम्मेदारियों को भी मोदी सरकार पूरी तरह से समझती है और पीएम मोदी के नेतृत्व में इन जिम्मेदारियों को वक्त पर पूरा करने के लिए हर मोर्चे पर सरकार पूरी कोशिश कर रही है।

मोदी सरकार की कोशिशों की सारी दुनिया में सराहना 

जलवायु को लेकर मोदी सरकार की इन्हीं कोशिशों की अब सारी दुनिया में सराहना की जा रही है । साफ है कि मोदी सरकार पर्यावरण को लेकर अपनी जिम्मेदारियों को पूरी करने में तेजी से जुटी है। 

भारत वर्ष 2005 के स्तर से, 2030 तक अपने सकल घरेलू उत्पाद का 33-35 प्रतिशत उत्सर्जन कम करने के पेरिस जलवायु समझौते के लक्ष्य को पूरा करने की दिशा में अग्रसर है। ये क्ष्य जलवायु परिवर्तन के खिलाफ सफल वैश्विक अभियान में पासा पलटने वाला साबित होने वाले हैं।

जलवायु परिवर्तन के मोर्चे पर मोदी सरकार का अथक प्रयास 

अंतरराष्ट्रीय मौद्रिक और वित्तीय समिति की बैठक में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा है कि ‘‘विद्युत उत्पादन क्षमता में गैर-जीवाश्म ईंधन की हिस्सेदारी लगभग 60 प्रतिशत तक पहुंचने वाली है, जो कि भारत के 40 प्रतिशत के संकल्प से अधिक है।’’ सीतारमण ने कहा कि भारत ने 2030 तक 4,50,000 मेगावाट नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन क्षमता के लक्ष्य के साथ दुनिया में सबसे महत्त्वाकांक्षी हरित ऊर्जा परियोजना शुरू की है, जो जलवायु परिवर्तन के खिलाफ भारत के अभियान में पासा पलटने वाला साबित हो सकता है और दुनिया के लिए जलवायु परिवर्तन की रोकथाम में मददगार होगा। 

विकासशील देशों के लिए जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों पर बोलते हुए वित्त मंत्री ने कहा कि भारत और बाकी विकासशील देशों के लिए विकट चुनौती पर्याप्त और सस्ता वित्त तथा कम लागत वाली प्रौद्योगिकी तक पहुंच है। सीतारमण ने कहा, ‘‘विकासशील देशों को 2030 तक सालाना 500 अरब डॉलर तक के नए निवेश की जरूरत होगी, ताकि उनके बढ़ते ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को सीमित किया जा सके।

क्या है पेरिस में हुआ जलवायु समझौता 

ये समझौता वर्ष 2015 में संयुक्त राष्ट्र के वार्षिक जलवायु सम्मेलन (कॉप-21) के दौरान, 196 पक्षों की ओर से 12 दिसम्बर को पारित किया गया था। 4 नवम्बर 2016 को यह समझौता लागू हो गया था।

 

पेरिस में हुए जलवायु समझौते का लक्ष्य 

  • औद्योगिक काल के पूर्व के स्तर की तुलना में वैश्विक तापमान में बढ़ोत्तरी को 2 डिग्री सेल्सियस से कम रखना है, और 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के लिये विशेष प्रयास किये जाने हैं। 
  • तापमान सम्बन्धी इस दीर्घकालीन लक्ष्य को पाने के लिये देशों का लक्ष्य, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के उच्चतम स्तर पर जल्द से जल्द पहुँचना है ताकि उसके बाद, वैश्विक स्तर पर उसमें कमी लाने की प्रक्रिया शुरू की जा सके।
  • इसके ज़रिये 21वीं सदी के मध्य तक कार्बन तटस्थता (नैट कार्बन उत्सर्जन शून्य) हासिल करने का लक्ष्य रखा गया है. जलवायु कार्रवाई के लिये बहुपक्षीय प्रक्रिया में पेरिस समझौता एक अहम पड़ाव है।

पहली बार क़ानूनी रूप से बाध्यकारी इस समझौते के तहत सभी देशों को, साझा उद्देश्य की पूर्ति के लिए साथ लाया गया है ताकि जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों से निपटा जा सके । 

नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में मोदी सरकार के बड़े लक्ष्य

ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोत के बिना परंपरागत स्त्रोतों पर हम कब तक आधारित रह सकेंगे, पेट्रोल-डीजल के लिए देश कब तक दुनिया के दूसरे देशों पर निर्भर रहेगा। जैसे-जैसे विकास की रफ्तार तेज हो रही है, भारत की उर्जा जरूरतें भी बढ़ रही है। इसी को ध्यान में रखते हुए मोदी सरकार ने नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में बड़ा कदम उठाने का फैसला लिया है।

नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में मोदी सरकार का बड़ा लक्ष्य

  • नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा को तेजी से बढ़ाने की कोशिश
  • 2030 तक 4,50,000 मेगावाट नवीकरणीय ऊर्जा का लक्ष्य     
  • कम होगी पेट्रोल-डीजल पर देश की निर्भरता

पीएम मोदी के नेतृत्व में नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय भारत में 2030 तक 4,50,000 मेगावाट नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन क्षमता हासिल करने के लिए तैयार है। इस महीने की शुरुआत में एमएनआरई ने फिक्की के साथ मिलकर दुबई एक्सपो 2020 में जलवायु एवं जैवविविधता सप्ताह में 6-8 अक्टूबर के बीच कई कार्यक्रमों का आयोजन किया। इनमें

  • भारत की नवीकरणीय ऊर्जा उपलब्धियां
  • नवीकरणीय ऊर्जा को लेकर भारत की महत्वाकांक्षा
  • भारत में नवीकरणीय ऊर्जा के अवसर

जैसे विषयों को शामिल कर नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में भारत की क्षमताओं और जरूरतों को दुनिया के सामने पेश किया गया।

पर्यावरण प्रदूषण से बढ़ा जलवायु परिवर्तन का खतरा

पर्यावरण प्रदूषण से जलवायु परिवर्तन का खतरा बढ़ता जा रहा है। ऐसे में इसके गंभीर दुष्परिणाम से बचने के लिए नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में तेजी से काम करने की जरूरत है।

बिजली और नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्री आर के सिंह ने कहा है कि ‘‘हमारी स्थापित क्षमता का 39 फीसदी हिस्सा पहले ही गैर-जीवाश्म आधारित स्रोतों से आता है। हम 2022 तक 40 फीसदी के लक्ष्य तक पहुंच जाएंगे।’

मोदी सरकार की कोशिश 2030 तक 4,50,000 मेगावाट नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन के टारगेट को हर हाल में पूरा करना है।

2030 तक सौर उर्जा से बदल जाएगी देश की तकदीर

प्रधानमंत्री मोदी अब 10 जुलाई को मध्य प्रदेश के रीवा जिले में एशिया के सबसे बड़े सौर ऊर्जा संयंत्र का उद्घाटन किया था। इस सौर ऊर्जा परियोजना की क्षमता 750 मेगावाट है।

जलवायु परिवर्तन की समस्या से निपटने के लिए भी मोदी सरकार कदम उठा रही है। ताकि ऊर्जा की जरूरतें भी पूरी हों और प्रकृति का संरक्षण भी साथ-साथ जारी रहे। माना जा रहा है LED बल्ब का इस्तेमाल इस दिशा में अपने-आप में बहुत बड़ा कदम है। इसके प्रयोग से सालाना 8 करोड़ टन कार्बन उत्सर्जन को रोका जा सकता है। इसके साथ-साथ 4 हजार करोड़ रुपये की सालाना बिजली की बचत भी होगी। इसके साथ-साथ केंद्र सरकार नवीकरणीय ऊर्जा पर भी जोर दे रही है। सबसे बड़ी बात है कि पर्यावरण की रक्षा के लिए सरकार 2030 तक देश के सभी वाहनों को इलेक्ट्रिक वाहनों में बदल देने का लक्ष्य लेकर काम में जुटी है। इससे सालाना 10 हजार करोड़ रुपये से अधिक fossil fuels (जीवाश्म ईंधन) की बचत होगी। सरकार की ओर से कराए गए एक रिसर्च के अनुसार 2030 तक राजस्थान की केवल एक प्रतिशत भूमि से पैदा हुई सौर ऊर्जा से देशभर के सभी वाहनों के लिए पर्याप्त ईंधन का इंतजाम हो सकता है।

भारत में सौर ऊर्जा का इस्तेमाल तेजी से बढ़ रहा है। जहां कुछ सालों पहले बहुत कम लोगों को सौर ऊर्जा के बारे में जानकारी थी, वहीं पीएम मोदी के प्रयासों के चलते अब काफी लोग सौर ऊर्जा के इस्तेमाल के प्रति सजग हो पाए हैं और अब देश भर में गांवों से शहरों तक में सौर ऊर्जा के प्रयोग में बढ़ोत्तरी हो रही है।

 

यूएन पर्यावरण प्रमुख ने भी सौर ऊर्जा प्रोत्साहन के लिए की थी भारत की तारीफ

संयुक्त राष्ट्र के पर्यावरण प्रमुख ने पिछले दिनों सौर ऊर्जा प्रोत्साहन के लिए भारत की तारीफ की थी। अपनी ऊर्जा जरूरतों को सौर ऊर्जा से पूरा करने और प्लास्टिक के इस्तेमाल पर रोक के भारत के प्रयासों की सराहना करते हुए पर्यावरण प्रमुख ने कहा था कि धरती को बचाने के लिये अभी बहुत कुछ करने की जरूरत है।

सौर ऊर्जा से चलने वाला पहला हवाई अड्डा

दक्षिण भारत में दुनिया का ऐसा पहला हवाई अड्डा है जो पूरी तरह सौर ऊर्जा से चल रहा है। केरल का कोचीन अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा पूरी से सौर ऊर्जा से चलने वाला पहला हवाई अड्डा है।

भारत बना दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा पनबिजली उत्पादक

प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भारत दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा पनबिजली उत्पादक बन गया है। इंटरनेशनल हाइड्रोपॉवर एसोसिएशन (आईएचए ) के लंदन स्थित वैश्विक जल विद्युत व्यापार निकाय ने 2020 पनबिजली स्थिति रिपोर्ट प्रकाशित की है। रिपोर्ट के अनुसार वैश्विक पनबिजली परियोजनाओं की क्षमता 2019 में 1308 गीगावॉट तक पहुंच गई। पनबिजली उत्पादन में भारत ने जापान को पीछे छोड़ दिया है। इंटरनेशनल हाइड्रोपॉवर एसोसिएशन के अनुसार कनाडा, अमेरिका, ब्राजील और चीन के बाद भारत का कुल स्थापित आधार 50 गीगावॉट है। आईएचए के अनुसार स्वच्छ, विश्वसनीय और सस्ती ऊर्जा पहुंचाने में महामारी ने जलविद्युत के लचीलापन और महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित किया है।

पनबिजली क्षेत्र को बढ़ावा दे रही है मोदी सरकार

26 मई 2014 को प्रधानमंत्री मोदी के पहली बार देश की बागडोर संभालने के समय बिजली की हालत बहुत ही खराब थी, लेकिन देश अब बिजली निर्यात भी करने लगा है। उर्जा क्षेत्र में इस कायापलट के पीछे उन योजनाओं के क्रियान्यवन में बेहतर तालमेल रहा है जिसे मोदी सरकार ने लागू किया है। मोदी सरकार ने वर्ष 2022 तक सौर और पवन बिजली क्षमता में 160 गीगावॉट जोड़ने और वर्ष 2030 तक गैर-फोसाइल ईंधन स्रोतों से कुल क्षमता का 40 प्रतिशत जोड़ने का लक्ष्य निर्धारित किया है।

पर्यावरण अनुकूल होने के साथ-साथ, पनबिजली की अन्य कई महत्वपूर्ण विशेषताएं हैं, जिनमें शीघ्रतापूर्वक रैम्पिंग, ब्लैक स्टार्ट, प्रतिक्रियात्मक अवशोषण आदि शामिल हैं। इन विशेषताओं के बल पर यह पीकिंग पावर, स्पीनिंग रिजर्व और ग्रिड संतुलन के लिये एक आदर्श है। इसके अलावा, पनबिजली क्षेत्र से रोजगार के अवसर मिलने और पर्यटन क्षेत्र का विकास होने से संपूर्ण क्षेत्र का सामाजिक-आर्थिक विकास होता है। साथ ही, इससे जल सुरक्षा, सिंचाई सुविधा और बाढ़ में कमी होने जैसे लाभ भी मिलते है। अधिकांश पनबिजली परियोजनाएं हिमालय की ऊंचाइयों और पूर्वोत्तर क्षेत्र में स्थित हैं, इससे विद्युत क्षेत्र में प्रत्यक्ष रोजगार मिलने से इस क्षेत्र का सामाजिक-आर्थिक विकास सुनिश्चित होगा।

मोदी सरकार ने दिया 90 हजार करोड़ रुपये का पैकेज

प्रधानमंत्री मोदी ने 12 मई को 20 लाख करोड़ रुपये के राहत पैकेज का एलान करते हुए कहा था कि इसमें हर सेक्टर के लिए रकम निर्धारित है। प्रधानमंत्री मोदी के ऐलान के मुताबिक अब सभी सेक्टर्स को राहत मिलना शुरू हो गया है। इससे संकट का सामना कर रही बिजली कंपनियों को भी संजीवनी मिली है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बताया कि बिजली कंपनियों के लिए 90 हजार करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। सरकार पीएफसी और आरईसी डिस्कॉम को यह पैसा देंगी। इस घोषणा के बाद बिजली वितरण कंपनियों ने राहत की सांस ली है।

परमाणु बिजली उत्पादन में भी आत्मनिर्भरता

मोदी सरकार ने 10 नए Pressurized Heavy-Water Reactors (PHWR) के निर्माण का फैसला किया है। सबसे बड़ी बात ये है कि ये काम अपने वैज्ञानिक करेंगे और कोई भी विदेशी मदद नहीं ली जाएगी। इन दस नए स्वदेशी न्यूक्लियर पावर प्लांट से 7,000 मेगावाट बिजली पैदा की जा सकेगी। इस निर्णय का सबसे बड़ा प्रभाव यह होगा कि भारत भी विश्व के अन्य देशों को Pressurized Heavy-Water Reactors की तकनीक देने वाला देश बन जायेगा, जो मेक इन इंडिया योजना को बहुत अधिक सशक्त करेगा। इसके अतिरिक्त 2021-22 तक 6,700 मेगावाट परमाणु ऊर्जा पैदा करने के लिए अन्य न्यूक्लियर पावर प्लांट के निर्माण का भी काम चल रहा है।

मोदी सरकार में जरूरत से अधिक बिजली उत्पादन क्षमता

बिजली मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि इस वक्त बिजली उत्पादन क्षमता हमारी जरूरत से अधिक है। इंटरस्टेट ग्रिड में भी एक लाख से अधिक सर्किट किमी की लाइन जोड़ी गई है। ताकि, एक राज्य से दूसरे राज्य में बिजली को लाना और ले जाना आसान हो।

सफल हुई पीएम मोदी की ‘एक ग्रिड-एक देश’ की योजना

बिजली मंत्री आरके सिंह का कहना है कि हम देश को एक ग्रिड में पिरोने में सफल रहे हैं। हम पूरे देश में कहीं और कहीं से भी बिजली को ला और ले जा सकते हैं। कश्मीर में पैदा होने वाली हाईड्रो पावर को कन्याकुमारी भेज सकते हैं। इस वक्त हम कच्छ में सौर या पवन उर्जा पैदा करे और उसका इस्तेमाल अरुणाचल प्रदेश में कर सकते हैं। क्योंकि, पूरा देश एक ग्रिड से जुड़ चुका है। हमारे पास बिजली को लाने और ले जाने के लिए मजबूत नेटवर्क है। जहां 2014-15 से 2018-19 तक 1,11,433 सीकेएम संचरण ग्रिड का विस्तार हुआ, वहीं वित्त वर्ष 2018-19 में 11,799 सीकेएम जोड़ा गया।

सौभाग्य’ योजना के तहत हर घर रौशन

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 25 सितंबर, 2017 को प्रधानमंत्री सहज बिजली हर घर योजना ‘सौभाग्य’ की शुरुआत की। योजना की शुरूआत से लेकर अब तक 2, 62,84, 577 घरों को रोशन किया जा चुका है। इस तरह पूरे देश में कुल 21 करोड़ 44 लाख से अधिक घरों में बिजली पहुंच चुकी है। ‘सौभाग्य’ योजना का फायदा उन लोगों को मिल रहा है, जो पैसों की कमी के चलते अभी तक बिजली कनेक्शन नहीं ले पाए हैं। इसके तहत गरीब परिवारों को बिजली कनेक्शन मुफ्त उपलब्ध कराया जाता है।

मोदी राज में भारत के हर गांव को मिली अंधेरे से आजादी

28 अप्रैल,2018 की शाम 5.30 बजे जब मणिपुर के लाइसंग गांव में बिजली पहुंची तो इसके साथ ही मोदी सरकार ने इतिहास रच दिया। देश के प्रत्येक गांव तक बिजली पहुंचाने का प्रधानमंत्री मोदी का सपना पूरा हो गया, वो भी तय समय से पहले। इस उपलब्धि का ऐलान करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक ट्वीट में कहा कि, ‘28 अप्रैल 2018 को भारत की विकास यात्रा में एक ऐतिहासिक दिन के रूप में याद किया जाएगा। कल हमने एक वादा पूरा किया, जिससे भारतीयों के जीवन में हमेशा के लिए बदलाव आएगा। मुझे इस बात की प्रसन्नता है कि अब भारत के हर गांव में बिजली सुलभ होगी।’

 

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