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पीएम मोदी का दूरदर्शी विजन: चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव का सटीक जवाब होगा इंडिया-मिडिल ईस्ट यूरोप इकोनॉमिक कॉरिडोर, इसके रणनीतिक मायने के साथ यह हैं अहम खासियतें

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पीएम नरेन्द्र मोदी के दूरदर्शी विजन के चलते यूं तो जी-20 शिखर सम्मेलन से भारत की सफलता का डंका दुनियाभर में गुंजायमान हुआ है। दिल्ली घोषणा पत्र पर सभी सदस्य देशों की सहमति के भारत की रणनीति को लेकर कई देश आश्चर्यचकित हैं। समिट शुरू होने से पहले ही सबकी इस पर निगाह थी कि सभी सदस्य देश संयुक्त घोषणा पत्र पर राजी होंगे या नहीं। भारत के नजरिये से देखें तो जी-20 समिट की एक और बड़ी अहम उपलब्धि इंडिया-मिडिल ईस्ट-यूरोप इकोनॉमिक कॉरिडोर के निर्माण पर सहमति है। इस कॉरिडोर के निर्माण से न सिर्फ भारत के लिए मध्य पूर्व और यूरोपीय देशों तक एक नया ट्रेड रूट खुल जाएगा, बल्कि यह कॉरिडोर चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) का भी सटीक जवाब माना जा रहा है। इस कॉरिडोर में भारत से बंदरगाहों के जरिए सऊदी अरब (व मध्य पूर्व) तक कनेक्टिविटी रहेगी। इसके बाद रेल नेटवर्क के जरिए मध्य पूर्व को यूरोपीय देशों तक जोड़ा जाएगा।आर्थिक राजधानी मुंबई से शुरू होकर कॉरिडोर यूरोप तक जाएगा
पीएम मोदी का विजन भारत को जल्द से जल्द तीसरी आर्थिक महाशक्ति बनाने का रहा है। मुंबई से शुरू होने वाला यह नया कॉरिडोर न सिर्फ भारत की इकोनॉमी को बूस्ट करेगा, बल्कि चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) का विकल्प होगा। यह कॉरिडोर 6 हजार किमी लंबा होगा। इसमें 3500 किमी समुद्र मार्ग शामिल है। कॉरिडोर के बनने के बाद भारत से यूरोप तक सामान पहुंचाने में करीब 40% समय की बचत होगी। अभी भारत से किसी भी कार्गो को शिपिंग से जर्मनी पहुंचने में 36 दिन लगते हैं, इस रूट से 14 दिन की बचत होगी। इस तरह परिवहन पर होने वाला खर्च भी बचेगा। यूरोप तक सीधी पहुंच से भारत के लिए आयात-निर्यात आसान और सस्ता होगा।व्यापारिक दृष्टि के साथ ही इस कॉरिडर के रणनीतिक मायने भी
प्रस्तावित नया कॉरिडोर व्यापारिक दृष्टि से तो महत्वपूर्ण है ही, लेकिन साथ ही इसके रणनीतिक मायने भी हैं। इसे चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) की काट माना जा सकता है। साल 2013 में चीन ने यह प्रोजेक्ट शुरू किया था। इसके तहत चीन कारोबार के लिए पूरी दुनिया में सड़कों, रेलवे लाइनों और समुद्री रास्तों का जाल बिछाना चाहता है। इसलिए इंडिया- मिडिल ईस्ट-यूरोप इकोनॉमिक कॉरिडोर को चीन के बीआरआई का सटीक जवाब माना जा रहा है।

अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के लिए स्वेज नहर पर निर्भरता कम होगी
अभी अंतरराष्ट्रीय व्यापार का 10 फीसदी हिस्सा स्वेज नहर पर निर्भर है। यहां छोटी- सी दिक्कत आने से भी बड़ी चुनौती पैदा हो जाती है। नए प्रोजेक्ट से वैश्विक व्यापार के लिए नया शिपिंग रूट उपलब्ध हो जाएगा। अभी भारत या इसके आसपास मौजूद देशों से निकलने वाले कंटेनर स्वेज नहर से होते हुए भूमध्य सागर और फिर यूरोपीय देशों तक पहुंचते हैं। इस नए कॉरिडर के बनने से भविष्य में ये कंटेनर समुद्र से दुबई पहुंचेंगे और फिर दुबई से इजराइल स्थित हाइफा बंदरगाह तक ट्रेन से जा सकेंगे।

इन सात वजहों से भारत के लिए बहुत महत्वपूर्ण है यह कॉरिडोर
• सबसे पहले भारत और अमेरिका इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में काम कर रहे थे, लेकिन पहली बार दोनों मिडिल ईस्ट में साझेदार बने हैं।
• भारत की मध्य एशिया से जमीनी कनेक्टिविटी की सबसे बड़ी बाधा पाकिस्तान का तोड़ मिल गया है। वह 1991 से इस प्रयास को रोकने की कोशिश कर रहा था।
• भारत के ईरान के साथ संबंध सुधरे हैं, लेकिन अमेरिका के प्रतिबंधों के कारण ईरान से यूरेशिया तक के रूस-ईरान कॉरिडोर की योजना प्रभावित होती जा रही है।
• अरब देशों के साथ की भागीदारी बढ़ी है, यूएई और सऊदी सरकार भी भारत के साथ स्थायी कनेक्टिविटी बनाने के लिए प्रयास कर रहे हैं।
• ऐसी उम्मीद की जा रही है कि इस मेगा कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट से अरब प्रायद्वीप में राजनीतिक स्थिरता आएगी और संबंध सामान्य हो सकेंगे।
• यूरोपीय यूनियन ने 2021-27 के दौरान बुनियादी ढांचे के खर्च के लिए 300 मिलियन यूरो निर्धारित किए थे। भारत भी इसका भागीदार बना।
• नया कॉरिडोर चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव का विकल्प है। कई देशों को चीन के कर्ज जाल से मुक्ति मिलेगी। जी-20 में अफ्रीकी यूनियन के भागीदार बनने से • चीन और रूस के अफ्रीकी देशों में बढ़ती दादागीरी को रोकने में मदद मिलेगी।

कार्गो को शिपिंग से जर्मनी पहुंचने में 36 के बजाए 22 दिन ही लगेंगे
भारत-यूरोप कॉरिडोर के तहत दो अलग-अलग कॉरिडोर बनेंगे। पहला पूर्वी कॉरिडोर भारत को खाड़ी से जोड़ेगा। दूसरा उत्तरी कॉरिडोर खाड़ी क्षेत्र को यूरोप से जोड़ेगा। इस तरह दक्षिण एशिया से यूरोप तक व्यापार आसान हो सकेगा। भारत, यूएई, सऊदी अरब, फ्रांस, जर्मनी, इटली व अमेरिका सहित सात देशों व यूरोपियन यूनियन ने एमओयू पर दस्तखत किए हैं। वैसे अमेरिका इस रूट पर नहीं है, लेकिन उसे परोक्ष रूप से फायदा होगा। निवेश करेगा। इस प्रोजेक्ट का फायदा इजराइल और जॉर्डन को भी मिलेगा। भारत से यूरोप तक सामान पहुंचाने में करीब 40 फीसदी समय की बचत होगी। अभी भारत से किसी भी कार्गो को शिपिंग से जर्मनी पहुंचने में 36 दिन लगते हैं। इस रूट से 14 दिन की बचत हो सकेगी। इस कॉरिडोर में रेल और बंदरगाहों से जुड़े नेटवर्क का निर्माण किया जाएगा।

एक नजर में प्रस्तावित कॉरिडोर पर…
•     भारत-यूरोप के बीच व्यापारिक साझेदारी
•     ईयू-भारत के बीच गुड्स का व्यापार 72 अरब यूरो
•     भारत में वर्तमान में हैं 4500 ईयू कंपनियां
•     15 लाख प्रत्यक्ष रोजगार, 50 लाख परोक्ष रोजगार
•     ईयू का भारत में निवेश फ्लो- 70 अरब यूरो (2000-2021)
•     24 लाख लोगों ने ईयू- भारत के बीच यात्रा की 2022 में
•     यूरोपियन इन्वेस्मेंट बैंक ने भारत में बुनियादी ढांचे, ऊर्जा आदि पर 4 अरब यूरो का निवेश किया

वैश्विक स्तर पर इन 5 प्रमुख मार्गों से होता था व्यापार
1.फारस मार्ग
भारत और यूरोप के बीच कुछ व्यापार फारस (आधुनिक ईरान) के रास्ते भी होता था। ईरान तक परिवहन सड़क मार्ग से होता था और उसके आगे समुद्र मार्ग से। इस मार्ग से वस्त्रों, मसालों और कीमती रत्नों का आदान-प्रदान होता था।
2.रेशम मार्ग
यह परस्पर जुड़े व्यापार मार्गों का एक विशाल नेटवर्क था, जो चीन, भारत से लेकर यूरोप तक फैला हुआ था। भारतीय व्यापारी यूरोपीय व्यापारियों के साथ रेशम, मसाले और रत्नों का व्यापार इसी रूट के जरिए करते थे। इसका ज्यादातर हिस्सा जमीन से होकर गुजरता था, जो करीब 6,500 किमी लंबा था।
3.हिंद महासागर मार्ग
हिंद महासागर से होकर गुजरने वाला समुद्री मार्ग भारत और यूरोप के बीच व्यापार के लिए काफी महत्वपूर्ण था। इस समुद्री मार्ग से भारतीय व्यापारियों की विभिन्न यूरोपीय बंदरगाहों तक सीधे पहुंच थी। इस रूट के जरिए काली मिर्च, दालचीनी और लौंग के साथ ही कपड़ा और कीमती रत्नों का व्यापार किया जाता था।
4.लाल सागर मार्ग
भारतीय सामान लाल सागर मार्ग से भी यूरोप पहुंचाया जाता था। भारत से माल लेकर व्यापारी आम तौर पर अदन (वर्तमान में यमन) के बंदरगाह पर पहुंचते थे और फिर वहां से यूरोप के अन्य देशों तक पहुंचाया जाता था।
5.रोमन व्यापार मार्ग
रोमन साम्राज्य के दौरान यह भारत को भूमध्य सागर से जोड़ने वाला एक सीधा समुद्री मार्ग था। रोमन व्यापारी भारत के साथ भारतीय वस्त्रों, रत्नों और मसालों जैसी वस्तुओं का व्यापार करने को लालायित रहते थे। मिस्र में अलेक्जेंड्रिया और इटली में ओस्टिया के बंदरगाह इस व्यापार के महत्वपूर्ण केंद्र थे।दुनिया के सबसे ताकतवर देशों का जी-20 सम्मिट अब तक का सबसे सफल जी-20 शिखर सम्मेलन माना जा रहा है। पहली बार G20 शिखर सम्मेलन की भारत ने मेजबानी की है। राजधानी दिल्ली में आयोजित मुख्य समारोह में वसुधैव कुटुम्बकम और वन अर्थ-वन फैमिली-वन फ्यूचर वाले विजन के जरिए इसे मेगा शो बनाने का काम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया। ऐतिहासिक नई दिल्ली घोषणापत्र ने पूरी दुनिया को चौंका दिया। इसके साथ-साथ पीएम ने अपनी जबरदस्त कूटनीति के जरिए चीन को पस्त कर दिया। उनके दांव और भारत की सफलता से पाकिस्तान कुलबुला रहा है तो चीन बिलबिलाया हुआ है। भारत की अध्यक्षता में हुए शिखर सम्मेलन के नई दिल्ली घोषणापत्र ने जी-20 का कायाकल्प कर दिया है। यह कह सकते हैं कि भारत की पहल से इस संगठन की प्रोफाइल ही चेंज हो गई है। दुनिया को संदेश गया है कि अब जी-20 विकासशील और गरीब मुल्कों को तवज्जो देने वाला संगठन बन गया है। भारत ने यह कर दिखाया है। रूस-यूक्रेन के मुद्दे पर भारत ने सभी के मध्य सहमति बनाने के लिए मेहनत की। इस सफल सम्मेलन से भारत की साख बढ़ी है। आने वाले दिनों में इसके सकारात्मक दूरगामी परिणाम भी सामने आएंगे। 

घोषणा-पत्र पर सर्वसम्मति बनाने में मोदी मैजिक व मोदी की गारंटी काम आई
जी20 घोषणा-पत्र पर सर्वसम्मति बनाने में सबसे बड़ी बाधा थी, रूस – यूक्रेन विवाद। इस पर सर्वसम्मत शब्दावली तय करने के लिए करीब 300 बैठकों में कई घंटे की बातचीत हुई। करीब 15 ड्रॉफ्ट तैयार किए गए और फिर उन्हें फाइनल रूप दिया गया। विदेश मंत्रालय के अफसरों के मुताबिक आखिरकार इसमें मोदी मैजिक व पीएम मोदी की गारंटी काम आई। सबसे पहले दोनों पक्षों को एक शब्दावली पर सहमत करने के लिए अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं में उनकी प्रतिबद्धताओं के वक्तव्य खंगाले गए। उनके आधार पर नई शब्दावली तैयार की गई।

नई शब्दावली बनाने और दोनों पक्षों को उस पर सहमत करने का विकल्प चुना
इसके बाद में उन मुद्दों को सामने रखा, जिस पर कभी ना कभी दोनों पक्ष सहमत हुए थे। संयुक्त राष्ट्र की संस्थाओं जैसे सुरक्षा परिषद और मानव अधिकार परिषद में दिए गए वक्तव्य निकाले। सर्वसम्मति के लिए दो विकल्प थे। पहला यह कि बाली के जिस जी-20 घोषणापत्र पर सर्वसम्मति नहीं बन पाई थी उसकी शब्दावली सुधारें। या फिर एकदम नए सिरे से इस बार कोई प्रस्ताव तैयार किया जाए। आखिरकार तय हुआ कि नई शब्दावली बनाएंगे और दोनों पक्षों को उस पर सहमत करेंगे। यह संकल्प और कोशिशें पूरी तरह रंग लाई और दुनियाभर के देशों को इसने हैरान कर दिया।

जी20 लीडर्स के इस घोषणापत्र में कही गई 10 अहम बातें

  • नई दिल्ली जी20 लीडर्स के इस इस घोषणापत्र में जी20 समूह ने कहा कि मजबूत, दीर्घकालिक, संतुलित और समावेशी विकास में तेजी लाने के लिए काम किया जाएगा। इसके साथ ही सतत विकास के लिए 2030 के एजेंडे को लागू करने की दिशा में काम होगा।
  • इसमें रूस के विदेश मंत्री की मौजूदगी के बावजूद यूक्रेन युद्ध का जिक्र है। रूस और उसके समर्थक देशों की मौजूदगी में यूक्रेन युद्ध की निंदा की गई। पश्चिमी देशों और रूस के बीच भारत ने मध्यस्थता की जो कोई नहीं कर पाया।
  • घोषणापत्र में कहा गया कि हम शांति के लिए सभी धर्मों की प्रतिबद्धता को स्वीकार करते हैं और नस्लवाद और असहिष्णुता के अन्य रूपों समेत आतंकवाद के सभी रूपों की निंदा करते हैं।
  • नई दिल्ली जी20 लीडर्स घोषणा पत्र में कहा गया कि हम सुनिश्चित करेंगे कि कोई भी पीछे न छूटे। हम 2030 एजेंडा के कार्यान्वयन में तेजी लाने के लिए भारतीय राष्ट्रपति पद के प्रयासों की सराहना करते हैं।
  • जी20 ने अपने संयुक्त घोषणापत्र में कहा कि हम संयुक्त राष्ट्र महासभा के प्रस्ताव ए/आरईएस/77/318, विशेष रूप से धार्मिक और सांस्कृतिक विविधता, संवाद और सहिष्णुता के प्रति सम्मान को बढ़ावा देने की प्रतिबद्धता के प्रति संकल्पित हैं।
  • इस घोषणापत्र में आगे कहा गया कि हम महिलाओं के नेतृत्व वाले विकास को प्रोत्साहित करते हैं और वैश्विक चुनौतियों से निपटने और समाज के सभी क्षेत्रों के रूप में योगदान देने के लिए निर्णय निर्माताओं के रूप में महिलाओं की पूर्ण, समान, प्रभावी और सार्थक भागीदारी बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
  • घोषणापत्र में कहा गया कि हम भारत की जी-20 अध्यक्षता के दौरान स्टार्ट-अप 20 एंगेजमेंट ग्रुप की स्थापना और इसके जारी रहने का स्वागत करते हैं।
  • हम घोषणापत्र में शामिल डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढांचे के माध्यम से वित्तीय समावेशन और उत्पादकता लाभ को आगे बढ़ाने के लिए स्वैच्छिक और गैर-बाध्यकारी जी-20 नीति सिफारिशों का समर्थन करते हैं।
  • इसके साथ ही नई दिल्ली घोषणापत्र में निजी व्यवसाय को लेकर कहा गया कि हम सतत विकास को गति देने और आर्थिक परिवर्तन को आगे बढ़ाने में निजी उद्यम की महत्वपूर्ण भूमिका को पहचानते हैं।
  • घोषणापत्र में कहा गया कि हम विकसित देशों से अपनी संबंधित ओडीए प्रतिबद्धताओं को पूरी तरह से पूरा करने का आह्वान करते हैं।

अमेरिका ने साबित किया कि बोला ज्यादा गया, काम कम हुआ- चीन
चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स ने लिखा है कि दिल्ली में जी-20 समिट में एक बार फिर अमेरिका ने अपनी पुरानी योजना को आगे बढ़ाया है। यह पहली बार नहीं है जब अमेरिका ने इस योजना के विस्तार का खाका पेश किया है। चीन का दुनिया में आइसोलेट करने के मकसद के साथ अमेरिका के इस प्रोजेक्ट को अभी अच्छा रेस्पांस नहीं मिला है। गल्फ और अरब देशों रेललाइन का वादा किया गया है लेकिन अमेरिका के पास वास्तविक इरादा और क्षमता नहीं है। अमेरिका ने एक बार फिर साबित किया है कि बोला ज्यादा गया, काम कम हुआ है।

भारत-पश्चिम एशिया व यूरोप के बीच कॉरिडोर के ऐलान ने पाक में बौखलाहट
सम्मेलन की सफलता से चीन और पाकिस्तान में बौखलाहट है। दिलचस्प बात यह है कि जी-20 के मंच से हुए फैसलों से अपने हितों पर चोट पहुंचते देखने के बावजूद चीन विरोध नहीं कर पाया। सम्मेलन में चीनी प्रधानमंत्री ली कियांग भले ही भारत में समावेशी विकास की बातें कर के गए हों, लेकिन चीनी रक्षा मंत्रालय से जुड़े चाइना इंस्टीट्यूट ऑफ कंटेम्पररी इंटरनेशनल रिलेशंस ने आरोप लगाया है कि जी 20 की मेजबानी का उपयोग भारत अपने हितों को बढ़ाने व चीन को नुकसान पहुंचाने के लिए कर रहा है। भारत की अगुवाई में अफ्रीकन यूनियन को जी-20 का सदस्य बनाया। चीनी कर्ज का जाल काटने व प्रभाव कम करने वाला कदम है। अब चीन के बजाय भारत ग्लोबल साउथ की आवाज बना है। भारत-पश्चिम एशिया व यूरोप के बीच कॉरिडोर के ऐलान ने पाकिस्तानियों को चिंता में डाल दिया है। इसमें सऊदी अरब और यूएई के शामिल होने से उन्हें लग रहा है कि ऐसा होने के बाद पाकिस्तान अलग-थलग पड़ जाएगा और भारत की पहुंच सीधे अरब देशों और यूरोप तक हो जाएगी।

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