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जर्मनी को पछाड़कर भारत बना रूस का सबसे बड़ा दवा सप्लायर, मोदी काल में दवाओं का निर्यात दोगुना हुआ

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भारत अभी दुनिया में तीसरा सबसे बड़ा दवा उत्पादक है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में ‘विश्व की फार्मेसी’ बनने की ओर अग्रसर है। भारत जर्मनी को पछाड़कर रूस का सबसे बड़ा दवा सप्लायर बन गया है। जर्मनी वर्ष 2021 और 2022 में रूस का सबसे बड़ा दवा सप्लायर था। वहीं 2023 में भारत ने अपने निर्यात में 3 प्रतिशत की वृद्धि की, जिससे रूस को दवा के लगभग 294 मिलियन पैकेज भेजे गए। वहीं जर्मनी ने पिछले साल रूस को 238.7 मिलियन पैकेज भेजे। भारत से दवाओं का निर्यात लगातार बढ़ रहा है। दुनिया में पहुंचने वाली हर तीसरी गोली (दवा) का निर्माण भारत में होता है। आज भारत दुनिया में जेनरिक दवाओं का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता बन गया है। मोदी काल में दवाओं का निर्यात बढ़कर दोगुना हो गया है। अप्रैल-दिसंबर 2013-14 में भारत से दवाओं का निर्यात जहां 49,200 करोड़ रुपये का था वहीं अप्रैल-दिसंबर 2022-23 में यह बढ़कर 1,17,740 करोड़ रुपये हो गया।

भारतीय दवा कंपनियों ने रूस को आपूर्ति बढ़ाई
रूसी समाचार वेबसाइट आरटी डॉट कॉम की रिपोर्ट के मुताबिक भारतीय फार्मा कंपनियां संयुक्त उद्यमों सहित रूस में अपने व्यापार के अवसरों का विस्तार कर रही हैं। आंकड़ों से पता चलता है कि 2023 में, अकेले मुंबई स्थित ऑक्सफोर्ड लैबोरेटरीज ने रूस को अपनी आपूर्ति 67 प्रतिशत बढ़ाकर 4.8 मिलियन पैकेज कर दी। इसके पोर्टफोलियो में कार्डियोवैस्कुलर, इरेक्टाइल डिसफंक्शन, नेत्र संबंधी और अन्य प्रकार की दवाएं शामिल हैं। जेनेरिक में विशेषज्ञता रखने वाली एक और बड़ी भारतीय फार्मास्युटिकल कंपनी इप्का लेबोरेटरीज ने दवा के समान घटकों वाली दवाएं जो एक बार केवल पेटेंट धारक द्वारा बनाई जाती हैं, ने पिछले साल अपने निर्यात को 58 प्रतिशत बढ़ाकर 13.7 मिलियन पैकेज कर दिया।

वर्ष 24 में दवा निर्यात 28 अरब डॉलर होने की संभावना
भारत के दवा उद्योग का FY24 में निर्यात वर्ष 2023-24 में 10.2 प्रतिशत की वृद्धि के साथ 28 अरब डॉलर तक पहुंचने की संभावना है। दरअसल, अमेरिका और यूरोप दवा के अत्यधिक संकट के दौर से गुजर रहे हैं। वहीं, अफ्रीका के देशों में मांग के फिर से जोर पकडऩे के चलते दवा उद्योग का निर्यात बढ़ाने में प्रमुख भूमिका निभाई है।

वर्ष 2023 में दवा निर्यात बढ़कर 25.4 अरब डॉलर पहुंचा
दवा निर्यात संवर्द्धन परिषद (फार्मेक्सिल) के अनुसार भारत का दवा निर्यात वित्त वर्ष 2023 में 3.2 प्रतिशत से बढ़कर 25.4 अरब डॉलर पर पहुंच गया। इस अवधि में निर्यात प्रमुख तौर पर यूरोप और अमेरिका के कारण बढ़ा था। इस दौरान अफ्रीकी क्षेत्र को निर्यात 5.4 प्रतिशत गिर गया था। जाम्बिया, नाइजीरिया, जिम्बाब्वे, बुर्किना फासो आदि में मांग कम होने के कारण अफ्रीका को निर्यात गिरा था। फार्मेक्सिल के अनुसार, अप्रैल से अक्टूबर 2023 के दौरान दवा निर्यात 8.13 प्रतिशत बढ़कर 1578.545 करोड़ डॉलर पहुंच गया। अक्टूबर में निर्यात 29.3 प्रतिशत बढ़कर 242.436 करोड़ डॉलर को छू गया था और यह इस महीने में अब तक का सर्वाधिक निर्यात था।

अमेरिका और यूरोप के देशों में दवा की कमी जारी
फार्मेक्सिल के महानिदेशक उदय भास्कर का कहना है कि अमेरिका और यूरोप के देशों में दवा की कमी जारी है। इससे इन देशों में निर्यात को बढ़ावा मिला। इसके अलावा अफ्रीका के देशों से भी फिर मांग आने लगी है। अप्रैल से अक्टूबर के दौरान अफ्रीकी देशों को निर्यात सालाना आधार पर छह प्रतिशत बढ़ा है।

भारत से यूरोप को होने वाला निर्यात 16 प्रतिशत बढ़ा
अप्रैल से अक्टूबर में उत्तरी अमेरिका को निर्यात में 8.85 प्रतिशत का इजाफा हुआ जिसमें अमेरिका को होने वाला निर्यात 9.58 प्रतिशत बढ़ा था। यूरोप को होने वाले निर्यात में करीब 16 फीसदी का इजाफा हुआ। भारत के दवा निर्यात के तीन प्रमुख गंतव्य उत्तरी अमेरिका, यूरोप और अफ्रीका हैं। भारत के कुल दवा निर्यात में इन तीन की हिस्सेदारी करीब 69 फीसदी है। इस अवधि में केवल सीआईएस क्षेत्र की वृद्धि दर नकारात्मक रही। स्वतंत्र राष्ट्रों के राष्ट्रमंडल (सीआईएस) को वृद्धि दर में 9.66 प्रतिशत की गिरावट आई। सीआईएस क्षेत्र में संकट जारी है। इससे सबसे बड़े बाजार में निरंतर गिरावट जारी है।

70 प्रतिशत जेनेरिक दवाओं का निर्माण भारत में
इस समय विश्व की करीब 70 फीसदी जेनेरिक दवाओं का निर्माण भारत में होता है। जेनेरिक दवाओं की अफ्रीका की कुल मांग का 50 फीसदी, अमेरिका की मांग का 40 फीसदी तथा ब्रिटेन की कुल मांग का 25 फीसदी हिस्सा भारत से ही जाता है।

दवाई के मूल्य के मामले में 14वें स्थान पर
देश में 3,000 से अधिक दवा कंपनियां हैं, 10,500 से अधिक क्रियाशील दवाई उत्पादक इकाइयां हैं तथा भारत 185 से अधिक देशों को दवाओं का निर्यात करता है। भारतीय दवा उद्योग उत्पादन के मामले में विश्व में तीसरे स्थान पर है और दवाई के मूल्य के मामले में 14वें स्थान पर है।

50 फीसदी टीकों का उत्पादन भारत में
दुनिया के कोई 50 फीसदी से अधिक विभिन्न टीकों का उत्पादन भी भारत में होता है। साथ ही प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (पीएलआइ) योजना और विभिन्न देशों के साथ हो रहे मुक्त व्यापार समझौतों (एफटीए) की बदौलत फार्मा क्षेत्र का कारोबार वर्तमान 50 अरब डॉलर से छलांग लगाकर अगले दो वर्षों में 70 अरब डॉलर तक पहुंच सकता है। 

देश के कुल निर्यात में फार्मा सेक्टर की हिस्सेदारी 6 फीसदी
देश के कुल निर्यात में फार्मा सेक्टर की हिस्सेदारी करीब 6 फीसदी है। भारत दुनिया के शीर्ष पांच फार्मास्युटिकल उभरते बाजारों में शामिल है। जेनेरिक दवाइयों में विश्व नेता होने के अलावा भारत में अमेरिका से बाहर सबसे ज्यादा यूएस-एफडीए (US-FDA) अनुपालन वाले फार्मा प्लांट हैं। यहां 3,000 से ज्यादा फार्मा कंपनियां हैं। वहीं दक्ष मानव संसाधन के साथ साढ़े 10,500 से ज्यादा विनिर्माण सुविधाओं (manufacturing facilities) का मजबूत नेटवर्क है। इन आंकड़ों से अंदाजा लगाया जा सकता है कि भारत की अर्थव्यवस्था में फार्मा सेक्टर कितना बड़ा और महत्वपूर्ण है।

सालाना आधार पर दवा उद्योग में 12 फीसदी की बढ़ोतरी
पिछले वर्ष 2022 में भारत से निर्यात में 4.3 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। जबकि सालाना आधार पर देखें तो इसमें 12 फीसदी की भारी बढ़ोतरी देखी गई। ​मासिक दर पर भी वित्त वर्ष 2022 में 5.4 फीसदी की बढ़ोतरी देखी गई।

मेडिकल वीजा में इजाफा, दो लाख विदेशी इलाज कराने भारत आए
कोविड महामारी की वजह से पाबंदी के बावजूद 2020 में भारत में करीब दो लाख विदेशी इलाज कराने आए थे। 2014 से ही मेडिकल वीजा की संख्या में बहुत तेजी से इजाफा हुआ है। 2013 में 59 हजार 129 मेडिकल वीजा जारी किए गए। 2014 में ये आंकड़ा 75, 671 था। वहीं 2015 में करीब एक लाख 34 हजार 344 विदेशी नागरिकों ने इलाज के लिए भारत का रुख किया। 2016 में 54 देशों के दो लाख एक हजार 99 नागरिकों को मेडिकल वीजा जारी किए गए। भारत में इलाज के लिए आने वाले विदेशी नागरिकों में एशिया और अफ्रीकी देश के लोग तो शामिल हैं ही, इनके अलावा अमेरिका, ब्रिटेन, रूस और ऑस्ट्रेलिया जैसे विकसित देशों के लोग भी इलाज कराने भारत आ रहे हैं।

भारत में हेल्थ टूरिज्म बाजार 6 अरब डॉलर का
2016 से ही हर साल दो लाख से ज्यादा विदेशी यहां अपना इलाज करवाने आ रहे हैं। फिलहाल चेन्नई, मुंबई, दिल्ली, अहमदाबाद और बेंगलुरु इलाज के लिए विदेशी नागरिकों की पसंदीदा जगह है। भारत में फिलहाल हेल्थ टूरिज्म 6 अरब डॉलर का बाजार है। 2026 तक इसके 13 अरब डॉलर तक पहुंचने की संभावना है। ‘Heal In India’ पहल से इस सेक्टर में और तेजी से बढ़ोत्तरी होगी। 

2047 तक 400 अरब अमेरिकी डॉलर का होगा कारोबार
डॉ. रेड्डीज लैबोरेटरीज के प्रवक्ता ने कहा कि भारतीय दवा क्षेत्र का लक्ष्य 2030 तक 120-130 अरब अमेरिकी डॉलर और 2047 तक 350-400 अरब अमेरिकी डॉलर तक बढ़ने का है। ‘मेडिकल टेक्नोलॉजी एसोसिएशन ऑफ इंडिया’ (एमटीएआई) के चेयरमैन पवन चौधरी ने कहा कि बदलती भू-राजनीति स्थिति तथा वैश्विक रुझानों के साथ भारत में, एशिया में निवेश के लिए पश्चिमी देशों तथा जापान के लिए पसंदीदा स्थान बनने की क्षमता है, अगर देश साक्ष्य-आधारित नीति निर्माण जारी रखता है। उन्होंने कहा कि इस क्षेत्र में उच्च सीमा शुल्क और सार्वजनिक खरीद पर प्रतिबंध जैसी बाधा डालने वाले दो व्यवधानों को शीघ्र दूर करने की आवश्यकता है। 

देश में 9 हजार जन औषधि केंद्र खुले, लोगों मिल रही सस्ती दवाएं
केंद्र सरकार देश के गरीब और मध्य वर्ग के लोगों के लिए स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर करने और और इलाज के खर्च को कम करने की लगातार कोशिश कर रही है। इस परियोजना ने भारत के आम जनमानस के जीवन पर सीधा सकारात्मक प्रभाव डाला है। एक मृत योजना को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पुनः जीवित कर देशवासियों की सेवा में समर्पित किया है। जब पीएम मोदी की सरकार बनी तो पूरे देश में केवल 80 केंद्र संचालित थे और इसपर कोई भी कार्य नहीं हो रहा था। आज इस योजना के अन्तर्गत देश में 9000 से अधिक केंद्र शुरू किए जा चुके हैं। जो जनता को सस्ती व अच्छी दवाई उपलब्ध करवा रहे हैं। केंद्रों पर 2039 दवाइयां व सर्जिकल उपकरण उपलब्ध हैं।

जन औषधि केंद्रों से गरीबों के 20 हजार करोड़ बचे
प्रधानमंत्री ने कहा कि हमारे यहां करीब 9 हजार जन औषधि केंद्र हैं और यहां बाजार भाव से बहुत सस्ती दवाएं उपलब्ध हैं। इससे भी गरीब और मिडिल क्लास परिवारों को लगभग 20 हजार करोड़ रुपये की बचत हुई है। उन्होंने कहा कि देश में अच्छे और आधुनिक हेल्थ इंफ्रा का होना बहुत जरूरी है। आज देश में डेढ़ लाख हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर तैयार हो रहे हैं. इन सेंटरों में डायबिटीज, कैंसर और हार्ट से जुड़ी गंभीर बीमारियों की स्क्रीनिंग की सुविधा है।

आयुष्मान भारत और जन औषधि से गरीबों के बचे 1 लाख करोड़ रुपये
मोदी राज में आयुष्मान भारत और जन औषधि से गरीब परिवारों ने 1 लाख करोड़ रुपये की बचत की है। स्वास्थ्य और चिकित्सा अनुसंधान वेबिनार में 6 मार्च को पीएम मोदी ने कहा कि दोनों योजनाओं से लाभार्थी 1 लाख करोड़ रुपये की बचत करने में सफल हुए हैं। आयुष्मान भारत योजना के जरिए लाभार्थियों को 5 लाख रुपये का स्वास्थ्य बीमा दिया जा रहा है, जबकि बाजार भाव से 50 से 90 फीसदी सस्ती कीमत में दवाएं उपलब्ध कराने के लिए देश में 9 हजार जन औषधि केंद्र खोले जा चुके हैं।

आयुष्मान भारत से मरीजों के 80 हजार करोड़ बचे
पीएम मोदी ने कहा है कि भारत में गरीबों को इलाज के लिए सामर्थ्यवान बनाना हमारी सरकार की प्राथमिकता रही है। इसीलिए आयुष्मान भारत योजना के तहत 5,00,000 रुपये तक का मुफ्त इलाज की सुविधा दी जा रही है। इससे देश के करोड़ों मरीजों के लगभग 80 हजार करोड़ रुपए जो बीमारी में उपचार के लिए खर्च होने वाले थे वो बचे हैं।

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