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राहुल की दादी ने आपातकाल में जोड़े ‘सेकुलर-समाजवादी’ शब्द, होसबाले के बयान से संविधान पर गरमाई बहस

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संविधान की प्रस्तावना में ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्दों को लेकर देश की राजनीति एक बार फिर गरमा गई है। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के पोते और कांग्रेस नेता राहुल गांधी की ओर से बीजेपी पर बार-बार संविधान बदलने का आरोप लगाने के बीच ऐतिहासिक तथ्य साबित करते हैं कि खुद उनकी पार्टी ने अपनी सुविधा और राजनीतिक स्वार्थ के लिए संविधान में सबसे ज्यादा बदलाव किए हैं।

आपातकाल पर एक कार्यक्रम के दौरान कल, गुरुवार 26 जून को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS- आरएसएस) के महासचिव दत्तात्रेय होसबाले ने इसको लेकर कांग्रेस को आईना दिखाने का काम किया। उन्होंने साफ कहा कि ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ ये दोनों शब्द मूल संविधान का हिस्सा नहीं थे, बल्कि आपातकाल के दौरान इंदिरा सरकार ने इन्हें जोड़ा।

आपातकाल की 50वीं वर्षगांठ पर आयोजित एक कार्यक्रम में होसबाले ने कहा कि ‘आपातकाल के दौरान संविधान की प्रस्तावना में ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द जोड़े गए, जो डॉ. अंबेडकर द्वारा निर्मित मूल प्रस्तावना का हिस्सा नहीं थे। उस समय संसद सामान्य रूप से काम नहीं कर रही थी, नागरिक अधिकार निलंबित थे और न्यायपालिका पंगु हो गई थी। फिर भी इन दो शब्दों को संविधान में जोड़ दिया गया। यह तय होना चाहिए कि ये शब्द रहें या नहीं। इस पर सार्वजनिक चर्चा जरूरी है।’

कांग्रेस पर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा कि जिन्होंने आपातकाल थोपा, वे आज संविधान की प्रतियां लेकर घूम रहे हैं, लेकिन देश से माफी नहीं मांगी। होसबाले ने आरोप लगाया कि आपातकाल के दौरान एक लाख से अधिक लोगों को जेल में डाला गया, 250 से ज्यादा पत्रकारों को कैद किया गया, मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हुआ और 60 लाख लोगों की जबरन नसबंदी कराई गई।

दत्तात्रेय होसबाले के बयान के बाद संविधान की प्रस्तावना में ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्दों की समीक्षा पर फिर से बहस शुरू हो गई है। समीक्षा की मांग ने एक बार फिर भारतीय राजनीति में विचारधारा और लोकतंत्र की बहस को केंद्र में ला दिया है। आरएसएस इसे सार्वजनिक विमर्श का विषय मानता है और आने वाले दिनों में यह मुद्दा संसद से लेकर सड़क तक चर्चा में रहने की संभावना है।

संविधान में बदलाव की बहस ने कांग्रेस का दोहरा चरित्र उजागर कर दिया है। एक ओर वह दूसरों पर संविधान बदलने का आरोप लगाती है, दूसरी ओर खुद अपने राजनीतिक स्वार्थ के लिए संविधान में बार-बार बड़े बदलाव करती रही है। कांग्रेस ने जब-जब चाहा, संविधान को अपनी सुविधा और सत्ता के अनुरूप ढाल लिया। आज उसी कांग्रेस का दूसरों पर आरोप लगाना राजनीतिक विडंबना से कम नहीं। आइए जानते हैं कब और कैसे जुड़े ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द?

-26 जनवरी 1950 को जब संविधान लागू हुआ, तब इसकी प्रस्तावना में ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द नहीं थे।
-1976 में इंदिरा गांधी सरकार ने आपातकाल के दौरान 42वें संविधान संशोधन के जरिए इन दोनों शब्दों को प्रस्तावना में जोड़ा।
-संशोधन के समय देश में आपातकाल लगा था, मौलिक अधिकार निलंबित थे और संसद व न्यायपालिका की स्वतंत्रता सीमित थी।

आइए अब देखते हैं कि संविधान बदलने का आरोप लगाने वाले कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी की पार्टी ने कितने संविधान संशोधन किए हैं।

-कांग्रेस के शासनकाल में 80 से अधिक बार संविधान में संशोधन किया गया है।
-नेहरू के कार्यकाल में ही 17 बार संविधान बदला गया।
-इंदिरा गांधी के 42वें संशोधन को ‘मिनी संविधान’ कहा जाता है, जिसमें प्रस्तावना समेत कई मूलभूत हिस्सों में बदलाव किए गए।
-अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर पहला हमला भी कांग्रेस ने ही किया। 1951 में पहला संविधान संशोधन लाकर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सीमित की गई।
-1971 के 24वें संशोधन से संसद को मौलिक अधिकारों में संशोधन का अधिकार मिला।
-आपातकाल के दौरान लोकसभा का कार्यकाल 6 साल कर दिया गया, जो लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ था।

संविधान को ‘परिवार की जागीर’ समझने का आरोप
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और अन्य भाजपा नेताओं ने संसद में बार-बार कहा है कि कांग्रेस ने संविधान को ‘एक परिवार की निजी संपत्ति’ समझा और जब-जब अपनी सत्ता या राजनीतिक हितों को खतरा महसूस हुआ, तब-तब संविधान में बदलाव कर डाले।

धर्म के आधार पर आरक्षण और असंवैधानिक फैसले
कांग्रेस ने संविधान की मूल भावना के खिलाफ जाकर धर्म के आधार पर आरक्षण देने की कोशिश की, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने असंवैधानिक करार दिया। इससे यह भी स्पष्ट होता है कि कांग्रेस ने कई बार संविधान के प्रावधानों की अनदेखी की।

आज कांग्रेस संसद से लेकर सड़क तक संविधान की प्रतियां लहराते हुए खुद को ‘संविधान का रक्षक’ बताती है, जबकि इतिहास गवाह है कि संविधान में सबसे ज्यादा बदलाव और मूल अधिकारों पर सबसे ज्यादा हमले कांग्रेस के शासन में ही हुए हैं। कई बार इन संशोधनों का मकसद सिर्फ सत्ता बचाना या विरोधियों को दबाना रहा, न कि लोकतंत्र या नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करना।

ऐसे में संविधान की प्रस्तावना में ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्दों को लेकर लोगों का तर्क है कि ये शब्द भारतीय संविधान की मूल भावना का हिस्सा नहीं थे और इन्हें आपातकाल जैसे अलोकतांत्रिक माहौल में जोड़ा गया, इसलिए इनकी प्रासंगिकता पर पुनर्विचार होना चाहिए। और दत्तात्रेय होसबाले के बयान ने इस बहस को और तेज कर दिया है।

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