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मनमोहन से हुड्डा ने की थी मांग, APMC के एकाधिकार पर लगे रोक और किसानों को उपज बेचने के लिए प्रतिबंधों से मिले मुक्ति

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नए कृषि कानूनों के मामले में कांग्रेस की अवसरवादी राजनीति की पोल हर रोज खुल रही है। इसके बावजूद कांग्रेस किसानों की आड़ में अपनी सियासी रोटियां सेंकने से बाज नहीं आ रही है। आज भूपेंद्र सिंह हुड्डा भी किसानों के आंदोलन को पूरा समर्थन दे रहे हैं। उनका कहना है कि किसान पूरी तरह से सही हैं और सरकार को बिना देरी किए उनकी बात को मान लेना चाहिए। लेकिन साल 2010 में भूपेंद्र सिंह हुड्डा की अगुवाई वाली समिति द्वारा सुझाए गए सुधार उपायों को भी नए कृषि कानूनों में शामिल किया गया है।

2010 में हरियाणा के तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपिंदर सिंह हुड्डा ने तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को पत्र लिखकर APMC के एकाधिकार पर अंकुश लगाने की मांग की थी। भूपिंदर सिंह हुड्डा वर्किंग ग्रुप ऑन एग्रीकल्चर प्रोडक्शन के चेयरमैन भी थे। हुड्डा ने दिसंबर 2010 में सौंपी गई अपनी रिपोर्ट में कहा था, “कृषि उपज के लिए बाजार को आवाजाही, व्यापार, भंडारण, वित्त, निर्यात आदि सभी प्रकार के प्रतिबंधों से तुरंत मुक्त किया जाना चाहिए।”

समिति ने यह भी सिफारिश की थी कि किसान के बाजार की परिकल्पना को बढ़ावा दिया जाना चाहिए, जहां किसान सीधे तौर पर उपभोक्ताओं को अपनी उपज बेच सके। समिति ने यह भी कहा था, “आवश्यक वस्तु अधिनियम का उपयोग केवल आपातकालीन परिस्थतियों में ही किया जाना चाहिए और इस पर फैसला राज्य सरकारों से विचार-विमर्श के बाद ही लिया जाना चाहिए।”

भूपिंदर सिंह हुड्डा ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि बाजार में न तो एपीएमसी का एकाधिकार होना चाहिए और न ही कॉरपोरेट घरानों का। उन्होंने अपनी रिपोर्ट में 2003 में जारी मॉडल एग्रीकल्चर मार्केटिंग लॉ का भी जिक्र किया था। इसे सभी राज्यों में लागू करने को कहा गया था। इस कानून में कहा गया कि किसानों के लिए बाजार के वैकल्पिक चैनल मुहैया कराए जाएं। इसके अलावा इसकी मुख्य विशेषता ये है कि प्राइवेट मार्केट की स्थापान की जाए और उपभोक्ता किसान बाजार बनाए जाएं। किसानों को कॉन्ट्रैक्ट फॉर्मिंग की सुविधा दी जाए और उन्हें डायरेक्टर मार्केटिंग का अधिकार दिया जाए।

 

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