राजस्थान की जनता से ज्यादा ध्यान गुजरात कांग्रेस पर
राजस्थान में डेंगू की रोकथाम के बजाए लगातार चल रही गहलोत सरकार की लापरवाही ने डेंगू से हुई मौतों के पिछले सरकारी रिकार्ड तोड़ दिए हैं। यह हालात भी तब हैं, जबकि सरकार डेंगू से मौतों पर सरेआम झूठ बोल रही है और वास्तविक आंकड़े छिपा रही है। चिकित्सा मंत्री रघु शर्मा ने गुजरात कांग्रेस का प्रभारी बनने के बाद तो चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग को अतिरिक्त प्रभार वाले अधिकारियों के भरोसे छोड़ दिया है। सरकार की अनदेखी का यह हाल है कि प्लेटलेट्स, ब्लड और खून से प्लेटलेट्स अलग करने वाली एसडीपी किट की कमी से मारामारी मची हुई है।केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मंडाविया बैठक में रघु शर्मा शामिल नहीं हुए
सरकार के मुताबिक डेंगू के अब तक राज्य में मात्र 23 मौतें हुई हैं। इसके विपरीत अकेले जयपुर के सवाई मानसिंह अस्पताल में ही 37 मौतें डेंगू के हो चुकी हैं। प्रदेश का आंकड़ा तो सरकारी आंकड़े के पांच-छह गुना ज्यादा है। दरअसल, चिकित्सा मंत्री रघु शर्मा के पास राज्य के लिए समय ही नहीं है। पिछले दिनों केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया की ओर के ली गई महत्वपूर्ण बैठक में भी चिकित्सा मंत्री रघु शर्मा शामिल नहीं हुए। वह कथित व्यस्तताओं के कारण नहीं आए। उनका प्रतिनिधित्व चिकित्सा राज्य मंत्री सुभाष गर्ग को करना पड़ा।अतिरिक्त प्रभार के भरोसे चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग
चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग को राज्य सरकार ने अतिरिक्त प्रभार वाले अधिकारियों के भरोसे छोड़ दिया है। खुद चिकित्सा मंत्री गुजरात के कांग्रेस प्रभारी बनने के बाद के ही लगातार गुजरात में ही संगठन के कार्यों में व्यस्त हैं। चिकित्सा विभाग के प्रमुख शासन सचिव पद का अतिरिक्त प्रभार अखिल अरोड़ा के पास है। चिकित्सा शिक्षा विभाग के सचिव वैभव गालरिया को ही चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग के सचिव के अतिरिक्त प्रभार सौंपा हुआ है।सरकार के झूठ, फर्जी आंकड़े और बदहाल स्वास्थ्य सेवाएं
आइये, डेंगू की सरकार की बदइंतजामी को इन सात सवालों और वास्तविक स्थिति के समझने का प्रयास करते हैं। निश्चित रूप के यह सवाल सरकार के लिए असहज होंगे, क्योंकि इनके जवाब या कहें वास्तविकता सरकार के झूठ, फर्जी आंकड़ों और बदहाल स्वास्थ्य सेवाओं की पोल खोल रहे हैं…
सवाल-1 : सबसे पहले मच्छरों के ब्रीडिंग स्पॉट तक पहुंचना था। एंटी लार्वा टीमें वहां क्यों नहीं पहुंची?
वास्तविकता : जिला स्तर पर फोगिंग और अन्य उपाय करने चाहिए थे। प्रदेश में 70 प्रतिशत ब्रीडिंग स्पॉट (जहां पर मच्छर पनपते हैं) तक कोई टीम पहुंची ही नहीं। डेंगू की समयावधि पता होने के बावजूद सरकारी स्तर पर टीमों की मॉनिटरिंग करने वाला कोई नहीं था।
सवाल-2 : शहरों से कस्बों तक आबादी क्षेत्रों में फोगिंग करानी थी। क्या करवाई गई ?
वास्तविकता : कस्बों और सघन आबादी वाले गांवों को छोड़िए, राजधानी जयपुर में ही सीएम की नाक के नीचे 200 के अधिक कालोनियों में कोई फोगिंग करने नहीं पहुंचा। ऐसे में आसानी के समझा जा सकता है कि प्रदेश के दूरदराज वाले इलाकों में क्या स्थिति हुई होगी ?सवाल-3 : डेंगू के लिए हेल्पलाइन बनानी थी। बन गई तो लोगों को क्या फायदा मिला ?
वास्तविकता : डेंगू हेल्पलाइन बस नाम-मात्र को ही बनाई गई है। इस पर लोगों और जरूरतमंदों के फोन ही अटैंड नहीं हो रहे हैं। इसके कारण अस्पतालों में बेड और ब्लड-प्लेटलेट्स की उपलब्धता की जानकारी मरीजों को नहीं मिल पा रही है। चिकित्सा मंत्रालय के लेकर वरिष्ठ अधिकारियों तक पूरा विभाग प्रभार पर चल रहा है। ऐसे में काम हो तो कैसे ?
सवाल-4 : डेंगू की पुष्टि के लिए एलाइजा टेस्ट जरूरी है या फिर ब्लड टेस्ट, कार्ड टेस्ट ही पर्याप्त है ?
वास्तविकता : डेंगू की पुष्टि के लिए एलाइजा टेस्ट सबसे प्रमाणिक वैज्ञानिक तरीका है। पूरे प्रदेश में डेंगू का डंक फैल जाने के बावजूद सरकार ने इसकी कोई तैयारी नहीं की। प्रदेश के कई जिलों के बड़े कस्बों तक में एलाइजा टेस्ट की सुविधा ही नहीं है। मजबूरन लोगों को कार्ड टेस्ट के ही काम चलाना पड़ रहा है।सवाल-5 : अस्पतालों में पर्याप्त बेड होने के सरकारी दावा है। फिर एक बेड पर दो-दो मरीज भर्ती क्यों हैं?
वास्तविकता : प्रदेश के अस्पतालों में इस समय मरीजों की तुलना में वार्डों में बेड्स की संख्या काफी कम है। सरकारी आंकड़े ही बताते हैं कि 2019 को छोड़ दें तो मरीजों की संख्या पिछले कई सालों का रिकार्ड तोड़ चुकी है. यही वजह है कि कई जिलों में अस्पतालों की यह हालत है कि गैलरियों में बेड लगवाने पड़ रहे हैं, पहले से इंतजाम न होने के कारण अस्पतालों में एक बेड पर दो-दो मरीजों को रखना पड़ रहा है।
सवाल-6 : डेंगू के मरीजों को ब्लड, प्लेटलेट्स, दवाएं और एसडीपी किट क्यों नहीं मिल पा रही हैं?
वास्तविकता : राज्य में अभी तो दस हजार मरीजों का आंकड़ा ही क्रॉस हुआ है। फिर भी प्रदेश में प्लेटलेट्स और ब्लड की जबरदस्त मारामारी मची हुई है। खून के प्लेटलेट्स अलग करने वाली एसडीपी किट की भी भारी कमी है। लेकिन मंत्रियों से लेकर अधिकारियों की आंखें बंद हैं।सवाल-7 : रैपिड रेस्पांस टीमें मरीजों की पुष्टि के बाद उनके क्षेत्रों का सर्वे करने गई या नहीं ?
वास्तविकता : दरअसल, राज्य में एंटीलार्वा गतिविधि, गम्बूशिया मछली का उपयोग, डोर टू डोर फिजिकल सर्वे जैसे आदेश तो कागजों में हैं, लेकिन धरातल पर इनकी अनुपालना 25 प्रतिशत भी नहीं हो पा रही है। इसकी सबसे बड़ी वजह यही है कि धरातल पर वास्तविक काम न होने पर कोई रोक-टोक करने वाला नहीं है।
सवाल-8 : यह सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न है। प्रदेश में ऐसे हालात में भी स्वास्थ्य मंत्री कहां पर व्यस्त हैं ? डेंगू की रोकथाम के लिए उन्होंने क्या किया ?
वास्तविकता : निश्चित रूप से यह विभागीय मंत्री ही जिम्मेदारी होती है कि आपात स्थिति में वह आगे रहकर व्यवस्थाओं को संभालें। अधिकारियों को अलर्ट मोड पर लेकर आएं। कमियों को तत्काल दूर करें। लेकिन वास्तविकता यही है कि चिकित्सा मंत्री खुद अपने राज्य को लेकर अलर्ट मोड में नहीं हैं। राजस्थान की जनता से ज्यादा उनका ध्यान गुजरात में कांग्रेस संगठन पर है।और मौतों पर मुंह चिढ़ाते सात साल के आंकड़े
वर्ष केस मौतें
2015 4043 07
2016 5292 16
2017 8427 14
2018 9587 10
2019 13706 17
2020 2023 07
2015 9693 23