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हरियाणा सरकार का सख्त स्टैंड, एसडीएम को सस्पेंड नहीं करा पाने से किसानों में हताशा, भीड़ छंटने से वापस लौटे टिकैत समेत बड़े नेता

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हरियाणा में करनाल के एसडीएम को सस्पेंड कराने की मांग को लेकर किसान मिनी सचिवालय के सामने डेरा डाले हुए है। लेकिन खट्टर सरकार के सख्त रूख और भीड़ छटने की वजह से तीसरे दिन यानि 9 सितंबर, 2021 को प्रदर्शनकारी किसानों के तेवर ढीले पड़ते नजर आए। शुरुआत के दो दिन तो अच्छी खासी भीड़ और किसानों में जोश देखने को मिला। राकेश टिकैत, गुरनाम सिंह चढूनी सहित कई बड़े किसान नेताओं ने बीजेपी सरकार पर जमकर हमला बोला। अब प्रदर्शन में शामिल किसानों की संख्या तेजी से घट रही है और पहेल जैसा जोश भी नहीं है।

करनाल में तीन कृषि कानून विरोधी किसानों को मुंह की खानी पड़ी है। क्योंकि माना जा रहा था कि किसानों के भारी प्रदर्शन के बाद सरकार किसानों की एसडीएम को बर्खास्त करने वाली मांग मान लेगी और प्रदर्शन खत्म करवा देगी, लेकिन सरकार टस से मस नहीं हुई। इसके बाद राकेश टिकैत बिना मांग मनवाए वापस लौट गए। इसलिए अब किसान आंदोलन के प्रभाव, अस्तित्व, प्रासंगिकता और भविष्य को लेकर नए सिरे से बात शुरू हो गई है।

दरअसल राकेश टिकैत और अन्य नेताओं को किसानों के बंटने का डर सता रहा है। उन्हें लग रहा है कि करनाल को प्रदर्शन का दूसरा केंद्र बनाने से किसान बंट सकते हैं और उनकी लड़ाई कमजोर पड़ सकती है। पंजाब से हरियाणा होकर आने वाले किसान अब करनाल में ही शामिल हो सकते हैं, तो वहीं हरियाणा के किसान भी दिल्ली जाने की बजाए करनाल जा सकते हैं।

दूसरी तरफ किसान आंदोलन का केंद्र बने दिल्ली से किसानों की भीड़ 140 किलोमीटर दूर करनाल शिफ्ट होना सरकार के हित में है। कृषि कानूनों को लेकर किसानों की सीधी लड़ाई दिल्ली की केंद्र सरकार से रही है, लेकिन अगर हरियाणा के करनाल में खट्टर सरकार के खिलाफ मोर्चा खुलेगा तो आंदोलन के क्षेत्रीय मुद्दों पर सिमटने का डर है। हो भी यही रहा है। मांगें क्षेत्रीय हैं और सरकार वे भी नहीं मान रही है। इसके अलावा 9 महीने से संघर्ष कर रहे किसानों के बीच भी यही संदेश जाएगा कि कहां केंद्र की सरकार को झुकाने निकले थे, कहां करनाल में एक एसडीएम को सस्पेंड तक नहीं करवा पा रहे हैं।

एक तरफ संयुक्त किसान मोर्चा के नेता राकेश टिकैत देशभर में घूम-घूम कर महापंचायतें कर भीड़ जुटा रहे हैं और बात हो रही है कि अगले साल होने वाले UP चुनाव को ये रैलियां प्रभावित करेंगी। दूसरी तरफ अब करनाल मोर्चे पर वे खुद मुंह की खा गए हैं, जो उनकी साख को भी चोट पहुंचा सकती है। गौरतलब है कि 7 और 8 सितंबर को किसानों और अधिकारियों के बीच हुई बातचीत में किसानों की एक भी बात नहीं मानी गई। किसानों की एसडीएम को सस्पेंड करने की मांग को भी सरकार ने ठुकरा दिया।

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