Home समाचार Gehlot Vs Pilot : सचिन का सीएम पर निशाना, पेपर लीक में...

Gehlot Vs Pilot : सचिन का सीएम पर निशाना, पेपर लीक में छोटे-मोटे दलालों को नहीं, सरगना को पकड़ो, बीजेपी बोली- सरगना तो सरकार में हैं, सीबीआई जांच से ही होगा खुलासा

SHARE

राजस्थान में चुनावी साल में भी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट के बीच सियासी घमासान जारी है। अब तो दिलचस्प यह है कि कांग्रेस हाईकमान भी इनकी सियासी अदावत को खत्म कराने के बजाए जलती आग पर तेल छिड़कता दिखाई दे रहा है। सरकार जब चार साल के कामकाज की समीक्षा और भविष्य के लिए चिंतन-मंथन करने बैठी तो राहुल गांधी ने सचिन पायलट को अकेले ही राजस्थान में किसानों की रैलियां करने भेज दिया। पायलट को जनता का प्लेटफॉर्म मिला तो वो भी अपनी ही सरकार पर निशाना साधने से नहीं चूके। उन्होंने कहा कि नौजवान जब विपरीत हालात में पढ़ाई करके परीक्षा देता है, ऐसे में लगातार पेपर लीक के मामले सामने आते हैं तो सच में मन बहुत आहत होता है। पेपर लीक मामले में जो छोटी मोटी दलाली करते हैं, उनके बजाए सरकार को इनके सरगना को पकड़ना चाहिए, ताकि पेपर लीक पर विराम लग सके। दूसरी ओर बीजेपी नेताओं ने कहा है कि पेपर लीक के सरगनाओं का कनेक्शन तो गहलोत सरकार से ही है।गहलोत वर्सेज पायलट के अल्प युद्ध-विराम को राहुल की मुलाकात ने हवा दी
राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के दौरान गहलोत वर्सेज पायलट के अल्प युद्ध-विराम से पार्टी ने मान लिया कि यात्रा राजस्थान में नेताओं को जोड़ने में सफल रही है। लेकिन हकीकत इससे एकदम उलट है। यात्रा के जाने के बाद यहां जिस तरीके से गहलोत और पायलट के बीच सियासी जंग तेज हुई, उससे साफ है कि चुनावी साल में सियासी संग्राम चरम पर पहुंचने वाला है। इससे कांग्रेस में राजस्थान के लिए सियासी संकट जैसी स्थिति बनी हुई है। बताते हैं कि इस संकट को पिछले दिनों राहुल गांधी और सचिन पायलट की मुलाकात ने और हवा दे दी। राहुल गांधी ने न जाने कौन-सा मंत्र फूंका कि सचिन पायलट कांग्रेस संगठन से अलहदा अकेले ही किसान रैलियों और जन-संपर्क के लिए निकल पड़े।दिग्गजों की सियासी लड़ाई का दुष्परिणाम कांग्रेस को चुनाव में भुगतना पड़ेगा
सचिन पायलट ने राजस्थान में जैसा अभियान शुरू कर दिया है, उसके सियासी हलकों में कई मायने निकाले जा रहे हैं। इस अभियान में पायलट ने जिस तरीके से किसानों और लोगों को संबोधित किया, उससे पूरे राजस्थान में एक अलग संदेश भी पहुंचना शुरू हो गया है। क्या पायलट पार्टी से अलग-थलग होकर अपने दम पर ही चुनाव में जाएंगे ? या फिर कांग्रेस हाईकमान ही पायलट-गहलोत को दो पलड़ों में रखकर दूर से तमाशा देखना चाह रही है ? राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अगर वक्त रहते राजस्थान में सचिन पायलट और अशोक गहलोत के बीच का विवाद शांत नहीं किया गया, तो इसका असर इसी साल होने वाले विधानसभा के चुनावों में कांग्रेस को भुगतना पड़ सकता है। सत्ता पक्ष के दो बड़े नेताओं के बीच में अहम को लेकर मामला और फंसता नजर आ रहा है।अगर युवाओं को वक्त पर उसका हक नहीं मिलेगा तो वह निराश भी होगा और आक्रोशित भी
पूर्व अध्यक्ष सचिन पायलट ने राजस्थान में किसान सम्मेलन और जनसंपर्क अभियान की शुरुआत में ही अपने तेवर दिखा दिए। नागौर किसान सम्मेलन में सचिन पायलट ने न सिर्फ अपने संघर्षों को याद किया, बल्कि उनकी लड़ी जाने वाली लड़ाई का भी जिक्र किया। पायलट ने इस जनमंच का इस्तेमाल अपनी ही सरकार पर निशाना साधने में भी किया। पायलट ने सरकार की कमजोर नस को दबाते हुए कहा कि लगातार पेपर लीक के मामले सामने आते हैं तो सच में मन बहुत आहत होता है। नौजवान जब विपरीत हालात में पढ़ाई करके परीक्षा देता है, ऐसे में सिस्टम की लापरवाही के चलते अगर उसे बार-बार पेपर लीक का सामना करना पड़ेगा तो वह निराश भी होगा और आक्रोशित भी होगा। पायलट ने मौजूद लोगों से कहा कि अगर युवाओं को वक्त पर उनका हक नहीं मिलता है, तो उससे युवा कमजोर होता है। राजनीतिक विश्लेषक इसको राजस्थान की वर्तमान राजनीति से जोड़कर भी देख रहे हैं। साथ ही इसका मतलब यह भी निकाल रहे हैं कि यदि सरकार की लापरवाही से युवाओं को रोजगार-नौकरी न मिली तो वह इसका बदला विधानसभा चुनाव में ले सकता है।सरकार की गले की फांस बनी प्रतियोगी परीक्षाएं, चार साल में दस एग्जाम के पेपर लीक
दरअसल, राजस्थान में प्रतियोगी परीक्षाएं सरकार की गले की फांस बनकर रह गई हैं। सरकार परीक्षाएं कराती है तो बार-बार पेपर लीक होने के कारण बेरोजगारों के सपने धरे के धरे रह जाते हैं। पेपर लीक माफिया और सरगना पर सख्त कार्रवाई के अभाव में पिछले चार साल में 10 परीक्षाओं के पेपर लीक हो चुके हैं। सचिन पायलट ने भी सभा में कहा कि प्रतियोगी परीक्षाओं में छोटी-मोटी दलाली करने के बजाए सरकार को इनके सरगना को पकड़ना चाहिए। ऐसा कहकर पायलट ने एक तीर से दो निशाने साधे हैं। एक तो उन्होंने सरकार की कमजोरी और लापरवाही को उजागर किया, दूसरा पेपर लीक के मामले में इशारों-इशारों में बीजेपी नेताओं की बात का ही समर्थन कर दिया है।

आरपीएससी से भी पेपर लीक का कनेक्शन, सीबीआई जांच क्यों नहीं करा रही सरकार
राजस्थान में पेपर लीक होने के मामले में बीजेपी सांसद किरोड़ी लाल मीणा, प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनियां, उपनेता प्रतिपक्ष राजेन्द्र सिंह राठौड़ लगातार यह कहते रहे हैं कि पेपर लीक होने पर सरकार सिर्फ दिखावे के लिए छोटी मछलियों को पकड़कर वाहवाही लूटने की कोशिश करती रहती है। असली सरगना पकड़ से बाहर होते हैं, इसलिए अगली प्रतियोगी परीक्षा में फिर से पेपर लीक हो जाते हैं। बीजेपी सांसद किरोड़ी मीणा तो साफ आरोप लगाते हैं कि पेपर लीक के सरगना आरपीएससी और सरकार में बैठे हैं, तभी तो उनकी पहुंच प्रतियोगी परीक्षाओं के पेपरों तक आसानी से हो जाती है। बीजेपी नेता रीट पेपर लीक होने से लेकर अब तक कई बार इस सारे मामले की जांच सीबीआई से कराने की कर चुके हैं। बीजेपी नेताओं का आरोप है कि सरकार इसलिए सीबीआई जांच नहीं करा रही है, क्योंकि उसे खुद के एक्सपोज हो जाने का डर है।

बार-बार पेपर लीक होने से राजस्थान में बेरोजगारी दर बढ़कर देश में दूसरे स्थान पर पहुंची
राजस्थान में बेरोजगारी ने नए रिकॉर्ड बनाए हैं। प्रदेश में कांग्रेस सरकार की लापरवाह कार्यशैली दंगे, हिंसा और तनाव को तो निमंत्रण दे ही रही है, इसके साथ ही युवाओं को तनाव देते हुए राजस्थान बेरोजगारी में भी देशभर में नंबर वन बन गया है। राजस्थान में बेरोजगारी का आंकड़ा 30% के करीब पहुंच गया है। जनवरी में बेरोजगारी दर 18.9 प्रतिशत थी। तीन महीने में ही इसमें करीब दस प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है। राजस्थान में देश की औसत बेरोजगारी दर की तुलना में चार गुना ज्यादा बेरोजगारी हो गई है। इसका एक बड़ा कारण लापरवाही और मिलीभगत के चलते प्रतियोगी परीक्षाओं में अनियमितता भी है।  पेपर लीक से रीट लेवल-2 परीक्षा निरस्त हुई तो 16,500 पदों पर भर्ती रुक गई। आरएएस-प्री का रिजल्ट भी रद्द हो गया था। पहले कांस्टेबल और अब टीचर भर्ती परीक्षा को भी पेपर लीक होने के चलते रद्द करना पड़ा।

राजस्थान में सिर्फ बजट में भर्तियां, हकीकत के धरातल पर क्रियान्वयन ही नहीं
राजस्थान में बेरोजगारी की स्थिति चौंकाने वाली है। कांग्रेस सरकार हर साल बजट में भर्तियों की घोषणा तो कर देती है, लेकिन उनके क्रियान्वयन को लेकर कोई योजना नहीं रहती। भर्ती कराने वाली एजेंसियों के पास भर्ती कैलेंडर तक नहीं होता। इसके अलावा पेपर लीक, नकल और फर्जी अभ्यर्थियों के चयन के कारण भर्तियों की विश्वसनीयता भी खत्म होती जा रही है। हाल में 5 बार स्थगित करने के बाद शिक्षक पात्रता परीक्षा रीट-2021 का आयोजन हुआ तो इसमें भी पेपर लीक हो गया। रिजल्ट में भी गड़बड़ी के बात सामने आई हुई।

प्रतियोगी परीक्षाएं समय पर न होने से लाखों बेरोजगार, पटरी पर नहीं आ रही जिंदगी
आखिर में लेवल-2 की परीक्षा तो रद्द की करनी पड़ी। लेवल-1 शिक्षकों की नियुक्ति प्रक्रिया अब चल रही है। वहीं लेवल-2 के पुराने पदों को मिलाकर रीट-2022 का आयोजन होगा। आरएएस-2021 में भी यही स्थिति हुई। प्री पर विवाद हुआ तो मेन्स से दो दिन पहले इसे भी स्थगित कर दिया गया। कांस्टेबल भर्ती में 18 लाख, वीडीओ भर्ती में 14 लाख तो वनपाल-वनरक्षक भर्ती तक में 22 लाख से अधिक आवेदन आए हैं। कोरोनाकाल में रोजगार छिने तो वे अब तक पटरी पर नहीं आ पाए हैं।युवाओं को रोजगार देने का वादा फेल, हर दूसरे ग्रेजुएट के पास काम ही नहीं  
ऐसा लगता है कि कांग्रेस की सरकारों में चुनावी वादों को याद रखने की परिपाटी ही नहीं है। कांग्रेस के जिन वादों पर भरोसा करके राजस्थान की जनता ने 2018 में कांग्रेस को सत्ता की चाबी सौंपी थी, वह उससे बेरोजगारों कि किस्मत का ताला खोलना ही भूल गई है। अपनी अंदरूनी लड़ाई में मस्त गहलोत सरकार का बेरोजगारों की ओर तनिक भी ध्यान नहीं है। हालात यह हैं कि राजस्थान में दिसंबर-17 में स्नातक बेरोजगारों की दर 11.9 प्रतिशत थी, जो कांग्रेस के राज में चार साल बाद दिसंबर-22 में बढ़कर 53.4 प्रतिशत हो गई है। यानि चार गुना से ज्यादा बेरोजगारी दर हो चुकी है, वह भी पढ़े-लिखों की। भारत में आबादी के लिहाज से सातवां सबसे बड़ा राज्य राजस्थान बेरोजगारी में टॉप पर है। राजस्थान में बेरोजगारी का आलम यह है कि प्रदेश में 65 लाख ग्रेजुएट किए हुए हर दूसरे शख्स के पास काम नहीं है। 

 

 

Leave a Reply