राजस्थान में बेरोजगारी ने नए रिकॉर्ड बनाए हैं। प्रदेश में कांग्रेस सरकार की लापरवाह कार्यशैली दंगे, हिंसा और तनाव को तो निमंत्रण दे ही रही है, इसके साथ ही युवाओं को तनाव देते हुए राजस्थान बेरोजगारी में भी देशभर में नंबर वन बन गया है। सीएमआईई 2016 से रिपोर्ट जारी कर रही है। राजस्थान में बेरोजगारी का आंकड़ा 30% के करीब पहुंच गया है। जनवरी में बेरोजगारी दर 18.9 प्रतिशत थी। तीन महीने में ही इसमें करीब दस प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है। राजस्थान में देश की औसत बेरोजगारी दर की तुलना में चार गुना ज्यादा बेरोजगारी हो गई है। इसका एक बड़ा कारण लापरवाही और मिलीभगत के चलते प्रतियोगी परीक्षाओं में अनियमितता भी है। हाल में रीट लेवल-2 परीक्षा निरस्त हुई तो 16,500 पदों पर भर्ती रुक गई। आरएएस 988 के लिए 27 अक्टूबर 2021 को हुई प्री का रिजल्ट भी रद्द हो गया था।देशभर के ग्रामीण इलाकों में बेरोजगारी दर 7.29% से घटकर 7.18% रह गई
सेंटर फॉर मॉनिटरिंग ऑफ इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) के आंकड़े बताते हैं कि देशभर में ग्रामीण इलाकों में बेरोजगारी दर घटी है। गांवों में दर 7.18% रही, जो मार्च में 7.29% थी। इससे पहले मार्च में राजस्थान में बेरोजगारी दर 25.5% थी। यानी एक माह में ही बेरोजगारी दर 3.3% बढ़ी है। विशेषज्ञों के अनुसार, बेरोजगारी बढ़ने के पीछे सरकारी नौकरियों की कमी तो है ही। कोरोना से जो उद्योग उबर रहे थे, उन पर रूस-यूक्रेन युद्ध और अब बिजली संकट का साया पड़ा है। इससे उत्पादन व रोजगार प्रभावित हुए।
राजस्थान में सिर्फ बजट में भर्तियां, हकीकत के धरातल पर क्रियान्वयन ही नहीं
राजस्थान में बेरोजगारी की स्थिति चौंकाने वाली है। कांग्रेस सरकार हर साल बजट में भर्तियों की घोषणा तो कर देती है, लेकिन उनके क्रियान्वयन को लेकर कोई योजना नहीं रहती। भर्ती कराने वाली एजेंसियों के पास भर्ती कैलेंडर तक नहीं होता। इसके अलावा पेपर लीक, नकल और फर्जी अभ्यर्थियों के चयन के कारण भर्तियों की विश्वसनीयता भी खत्म होती जा रही है। हाल में 5 बार स्थगित करने के बाद शिक्षक पात्रता परीक्षा रीट-2021 का आयोजन हुआ तो इसमें भी पेपर लीक हो गया। रिजल्ट में भी गड़बड़ी के बात सामने आई हुई।
प्रतियोगी परीक्षाएं समय पर न होने से लाखों बेरोजगार, पटरी पर नहीं आ रही जिंदगी
आखिर में लेवल-2 की परीक्षा तो रद्द की करनी पड़ी। लेवल-1 शिक्षकों की नियुक्ति प्रक्रिया अब चल रही है। वहीं लेवल-2 के पुराने पदों को मिलाकर रीट-2022 का आयोजन होगा। आरएएस-2021 में भी यही स्थिति हुई। प्री पर विवाद हुआ तो मेन्स से दो दिन पहले इसे भी स्थगित कर दिया गया। कांस्टेबल भर्ती में 18 लाख, वीडीओ भर्ती में 14 लाख तो वनपाल-वनरक्षक भर्ती तक में 22 लाख से अधिक आवेदन आए हैं। कोरोनाकाल में रोजगार छिने तो वे अब तक पटरी पर नहीं आ पाए हैं।गहलोत सरकार युवाओं को रोजगार देने का वादा पूरा करने में फेल
ऐसा लगता है कि कांग्रेस की सरकारों में चुनावी वादों को याद रखने की परिपाटी ही नहीं है। कांग्रेस के जिन वादों पर भरोसा करके राजस्थान की जनता ने 2018 में कांग्रेस को सत्ता की चाबी सौंपी थी, वह उससे बेरोजगारों कि किस्मत का ताला खोलना ही भूल गई है। अपनी अंदरूनी लड़ाई में मस्त गहलोत सरकार का बेरोजगारों की ओर तनिक भी ध्यान नहीं है। हालात यह हैं कि राजस्थान में दिसंबर-17 में स्नातक बेरोजगारों की दर 11.9 प्रतिशत थी, जो कांग्रेस के राज में चार साल बाद दिसंबर-21 में बढ़कर 53.4 प्रतिशत हो गई है। यानि चार गुना से ज्यादा बेरोजगारी दर हो चुकी है, वह भी पढ़े-लिखों की।
राजस्थान में हर दूसरे ग्रेजुएट युवक के पास काम ही नहीं है
भारत में आबादी के लिहाज से सातवां सबसे बड़ा राज्य राजस्थान बेरोजगारी में टॉप पर है। राजस्थान में बेरोजगारी का आलम यह है कि प्रदेश में ग्रेजुएट किए हुए हर दूसरे शख्स के पास काम नहीं है। राजस्थान में 65 लाख, हिमाचल में 2.55 लाख, बिहार में 38.84 लाख, झारखंड में 18.19 लाख, हरियाणा में 24.80 लाख, पंजाब में 8.10 लाख, यूपी में 28.41 लाख, छत्तीसगढ़ में 2.85 लाख, दिल्ली में 7.26 लाख, महाराष्ट्र में 19.12 लाख, मध्य प्रदेश में 6.27 लाख व गुजरात में 4.92 लाख बेरोजगार हैं।
आबादी के लिहाज से सातवां और बेरोजगारी में नंबर वन है मरुधरा
कोरोना का दंश तो देशभर के सभी राज्यों में है, इसका रोजगार पर असर भी हुआ है। अन्य सरकारों ने ग्रेजुएट बेरोजगारों को नौकरी या स्व रोजगार देने के तरीके निकाले हैं। लेकिन राजस्थान में हालात तो दयनीय हो गए हैँ। गैर सरकारी संस्था सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी के ताजा आंकड़ों के अनुसार राजस्थान में हर दूसरे ग्रेजुएट युवा के पास काम नहीं है। आबादी के लिहाज से देश के सातवें सबसे बड़े राज्य राजस्थान में बेरोजगारी देश में सबसे ज्यादा हो गई है। बेरोजगारी की यह दर गहलोत सरकार में ही ज्यादा बढ़ी है।
खट्टर सरकार के प्रयास रंग लाए, गहलोत राज में बढ़ गए बेरोजगार
आंकड़ों में बात करें तो राजस्थान में कुल 65 लाख से अधिक बेरोजगार हैं, इनमें से 20.67 लाख बेरोजगार ग्रेजुएट हैं, जो देशभर में सबसे ज्यादा हैं। बिहार में 38.84 लाख और हरियाणा में 24.80 लाख बेरोजगार हैं। कोरोना की दूसरी लहर के दौरान हरियाणा में बेरोजगारी दर राजस्थान से ज्यादा थी, लेकिन इस बीच खट्टर सरकार द्वारा किए गए उपायों से ग्रेजुएट बेरोजगारी दर 33.6 प्रतिशत रह गई है, जो राजस्थान में 53.4 प्रतिशत है।देश के बड़े राज्यों में गुजरात, मध्यप्रदेश में रोजगार की स्थिति बेहतर
यदि तीन बड़े राज्यों गुजरात, मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र की बात करें तो यहां पर बेरोजगारी की स्थिति अपेक्षाकृत बेहतर है। गुजरात में 13 ग्रेजुएट में से सिर्फ एक बेरोजगार है। मप्र-महाराष्ट्र में 9 में से एक ग्रेजुएट का पास काम नहीं है। कुल बेरोजगारी में भी मप्र- और गुजरात की स्थिति बेहतर है। गुजरात ही ऐसा राज्य है जहां पर चार साल में बेरोजगारी दर बढ़ने के बजाए घटी है।
65.30 प्रतिशत महिलाएं बेरोजगार, शहरी आबादी के पास रोजगार कम
सीएमआईई की मई-अगस्त-2021 की बेरोजगारी दर रिपोर्ट में राज्य में 55.75% ग्रेजुएट व हायर एजुकेशन वाले युवा बेरोजगार थे। जबकि पूरे देश में यह आंकड़ा 20.21% है। वहीं ओवरऑल बेरोजगारी के मामले में राजस्थान, हरियाणा के बाद सबसे अधिक बेरोजगारी वाला राज्य है। बेरोजगारी के मामले में महिलाओं की संख्या सबसे अधिक चिंताजनक है। 65.3% महिलाओं के पास नौकरी नहीं है। वहीं 20 से 24 वर्ष की आयु सीमा की 98.06% महिलाओं के पास नौकरी नहीं है। साथ ही शहरी आबादी, ग्रामीणों की तुलना में अधिक बेरोजगार है।