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मोदीराज में मजबूत हुई अर्थव्यवस्था, मनमोहन सरकार से बेहतर है विकास दर 

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की दूरदर्शी नीतियों की वजह से देश की अर्थव्यवस्था लगातार मजबूत होती जा रही है। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सरकार के दौरान अर्थव्यवस्था की हालत ठीक नहीं थी। सरकार पॉलिसी पैरालिसिस की शिकार थी। मोदी सरकार के दौरान अर्थव्यवस्था का आधार मजबूत हुआ और दुनिया में देश की विश्वसनीयता कायम हुई है। मोदी सरकार ने अर्थव्यवस्था में जीएसटी और इंसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड जैसे कई बड़े ढांचागत सुधार किए, जिनके सकारात्मक परिणाम मिलने लगे हैं।

मनमोहन सरकार से अधिक है विकास दर 

आजकल पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह डीजीपी विकास दर को लेकर मोदी सरकार को नसीहत देते नजर आ रहे हैं। ऐसे में मोदी सरकार और पूर्व की मनमोहन सरकार की पहली तुलना जीडीपी वृद्धि दर से की जानी चाहिए। वर्ष 2009 से 2014 के बीच अर्थव्यवस्था औसतन 6.7 प्रतिशत की दर से बढ़ रही थी। वहीं, मोदी सरकार में भारतीय अर्थव्यवस्था वर्ष 2014 से 2019 के बीच औसतन 7.5 प्रतिशत की दर से बढ़ी है।

अर्थशास्त्री मनमोहन सिंह के सरकार में 4.5 प्रतिशत रही विकास दर

पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह एक बड़े अर्थशास्त्री हैं। वे योजना आयोग के उपाध्यक्ष, रिजर्व बैंक के गवर्नर, प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष भी रहे हैं। डॉ. सिंह 1991 से 1996 तक भारत के वित्त मंत्री रहे। इसके बाद दस साल तक भारत के प्रधानमंत्री रहे।

विभिन्न पदों पर रहने के कारण उन्हें देश की अर्थव्यवस्था और शासन-प्रशासन का खासा अनुभाव हैं। इसके बावजूद देश की अर्थव्यवस्था की विकास दर 2012-13 के दौरान 4.5 प्रतिशत रही। द हिन्दू के मुताबिक यह पिछले एक दशक की सबसे कम विकास दर थी। केंद्रीय सांख्यिकी विभाग की ओर से जारी आंकड़ों के मुताबिक़ 2012-13 के चौथी तिमाही (जनवरी-मार्च) में विकास दर 4.4 प्रतिशत रही थी। 2013-14 के दौरान भी अर्थव्यवस्था की रफ्तार काफी धीमी थी। भारत की आर्थिक विकास दर 4.7 प्रतिशत और वित्तीय वर्ष की चौथी तिमाही में 4.6 प्रतिशत रही। 

सराहनीय रही मोदी सरकार में विकास दर 

मोदी सरकार में जीडीपी की विकास दर सराहनीय इसलिए भी है क्योंकि भारतीय अर्थव्यवस्था ने नोटबंदी और जीएसटी जैसे ढांचागत सुधारों को भी देखा है। इससे अर्थव्यवस्था की विकास दर पर प्रभाव पड़ा है। विश्व के बड़े अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थान भी भारत की आर्थिक विकास दर को लेकर सकारात्मक अनुमान ही जता रहे हैं। भारत आने वाले कुछ वर्षों में विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकता है।

कर संग्रह में अव्वल रही है मोदी सरकार
वैसे भी अपनी कार्य योजना और कार्यशैली से मोदी सरकार कर संग्रह में हमेशा अव्वल रही है। मोदी सरकार जिस प्रकार कर की संरचना की है उससे देश में करदाताओं की संख्या में अच्छी खासी बढ़ोत्तरी हुई है। करदाताओं की संख्या बढ़ने की वजह से ही कर संग्रह में भी वृद्धि हुई है। इसी के तहत मोदी सरकार के पार्ट-2 को भी कर के फ्रंट पर अच्छी खबर मिली है। मई महीने में ही जीएसटी संग्रह एक लाख करोड़ रुपये के पार पहुंच गया। पिछले साल मई महीने में जहां करीब 94 हजार करोड़ की वसूली हुई थी वहीं इस साल यह बढ़कर एक लाख करोड़ के पार पहुंच गया । जबकि अप्रैल 2019 में इससे भी ज्यादा करीब 1,13,865 करोड़ रुपये  की वसूली हुई थी। 

पिछली सरकारों की तुलना में प्रत्यक्ष कर संग्रह में वृद्धि

प्रत्यक्ष कर संग्रह के आंकड़ों को लेकर सरकार हमेशा पूर्ववर्ती सरकार से ज्यादा का दावा करती रही है। अगर कुल बढ़ोतरी देखें तो पिछली सरकार की तुलना में प्रत्यक्ष कर संग्रह मोदी सरकार में अधिक हुआ है। इनकम टैक्स रिटर्न के क्षेत्र में मोदी सरकार ने बड़ी सफलता हासिल की है। सरकारी आंकड़ों से पता चलता है कि 8 नवंबर, 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा घोषित नोटबंदी का सकारात्मक असर हुआ। नोटबंदी वाले साल और उसके बाद डायरेक्ट नेट टैक्स कलेक्शन में बड़ी वृद्धि, पर्सनल इनकम टैक्स के तहत अडवांस और सेल्फ असेसमेंट से राजस्व में असाधारण तेजी और नए इनकम टैक्स फाइलर्स की संख्या में लगातार बढ़ोतरी नोटबंदी के सकारात्मक प्रभावों की ओर इशारा करते हैं। नोटबंदी के बाद प्रत्यक्ष कर संग्रह में लगातार बढ़ोतरी दर्ज की गई है। जहां वित्तीय वर्ष 2017-18 में  प्रत्यक्ष कर संग्रह 18 प्रतिशत की बढ़ोतरी के साथ 10 लाख करोड़ रुपए तक पहुंच गया। वहीं यह 2016-17 में 8.5 लाख करोड़, 2015-16 में 7.4 लाख करोड़ और 2014-15 में 6.9 लाख करोड़ रुपये था।

कॉर्पोरेट और पर्सनल इनकम टैक्स में बढ़ोतरी

राजस्व में बढ़ोतरी का ट्रेंड नोटबंदी के दो साल बाद वित्त वर्ष 2018-19 में भी जारी रहा, कॉर्पोरेट इनकम टैक्स 14 फीसदी और पर्सनल इनकम टैक्स 13 फीसदी की दर से बढ़ा। सूत्रों के मुताबिक अडवांस टैक्स के तहत वॉलंटरी टैक्स पेमेंट भी 14 फीसदी की गति से बढ़ रहा है, यदि इसे बढ़ते डिजिटलाइजेशन के साथ देखें, तो साफ-सुथरे इकनॉमिक सिस्टम की ओर इशारा करता है।

आयकर रिटर्न भरने वाले लोगों की संख्या में वृद्धि

इनकम टैक्स रिटर्न फाइलिंग की संख्या में वृद्धि का ट्रेंड मंद नहीं हुआ है। इस साल फरवरी तक 1 करोड़ से अधिक नए फाइलर्स जुड़ चुके हैं। नोटबंदी वाले साल 2016-17 में नए इनकम टैक्स फाइलर्स की संख्या में 29 फीसदी की बढ़ोतरी हुई। इससे पहले निर्धारण वर्ष 2014-15 में 1.91 करोड़ लोगों ने कर का भुगतान किया था जबकि इनकम टैक्स रिटर्न (ITR) भरने वालों की संख्या 3.65 करोड़ थी। आयकर विभाग के आंकड़ों के मुताबिक, 31 अगस्त 2018 तक 5.29 करोड़ लोगों ने इनकम टैक्स रिटर्न भरा। 

टैक्स और GDP के अनुपात में 200 बेसिस अंक का सुधार

बीते पांच सालों में टैक्स और GDP के अनुपात में 200 बेसिस अंक का सुधार हुआ है। इलारा कैपिटल ने कहा, “अनुपालन में सुधार हुआ है। इसका असर रिटर्न की संख्या और रिटर्न भरने वाले लोगों की संख्या में वृद्धि के अनुपात से समझा जा सकता है। यह अनुपात एक साल में प्रति व्यक्ति रिटर्न दिखाता है।”

महंगाई के मोर्चे पर मोदी सरकार को अप्रत्याशित सफलता

मनमोहन सरकार और मोदी सरकारों के बीच तुलना करने के लिए एक और पैमाना लिया जा सकता है, वह महंगाई दर है। इस मामले में मोदी सरकार ने अप्रत्याशित सफलता हासिल की है। 2014 में खुदरा महंगाई की दर 7.72% थी, जो मोदी सरकार में घटकर दर 2.25% तक पहुंच गई। मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री बनने के बाद यूपीए-1 के 2004-05 से 2008-09 के दौरान महंगाई दर 5.7 प्रतिशत और यूपीए-2 के 2009-10 से 2013-14 के दौरान महंगाई दर 10.21 प्रतिशत थी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की नीतियों की वजह से देश में महंगाई कम हो रही है। फल, सब्जी, दूध जैसी रोजमर्रा की चीजों के दामों में कमी आई है। 

उपभोक्ता मूल्य महंगाई दर में कमी

एनडीए सरकार के राज में उपभोक्ता महंगाई दर का औसत वित्त वर्ष 2018 में 3.58 प्रतिशत और वित्त वर्ष 2015 में 5.97 प्रतिशत था। मोदी सरकार ने इसे मापने का आधार वर्ष 2010 से बदलकर 2012 कर दिया था। इस दौरान औसत उपभोक्ता मूल्य सूचकांक वित्त वर्ष 2014 में 9.49 प्रतिशत और वित्त वर्ष 2013 में 10.21 प्रतिशत रहा था। 

फिस्कल डेफिसिट 4.5% प्रतिशत से घटाकर 3.4% प्रतिशत

केंद्र सरकार अपना फिस्कल डेफिसिट यूपीए सरकार के 4.5% प्रतिशत से घटाकर 3.4% प्रतिशत पर ले आई है।  मोदी सरकार ने वित्तीय वर्ष 2018-19 में भी 3.4 प्रतिशत के राजकोषीय लक्ष्य को हासिल कर लिया। राजकोषीय घाटा जो साल 2017-18 में 3.5 प्रतिशत था, वो घटकर साल 2018-19 में 3.4 प्रतिशत रह गया। सरकार ने चालू वित्त वर्ष के लिए राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को घटाकर GDP का 3.3 प्रतिशत कर दिया है।

  

यूपीए की तुलना में अधिक हुआ प्रत्यक्ष विदेशी निवेश

एनडीए सरकार के दौरान प्रत्यक्ष विदेशी निवेश जमकर हुआ। मोदी सरकार के पहले पांच साल में देश में औसतन 52.2 अरब डॉलर सालाना का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश हुआ। यूपीए-2 में सालाना औसतन 38.4 अरब डॉलर और यूपीए-1 के दौर में 18.1 अरब डॉलर सालाना का विदेशी निवेश आया था। मोदी सरकार ने जो तमाम सुधार किए हैं, उनका फायदा विदेशी निवेश में दिख रहा है।  पिछले वित्त वर्ष 2018-19 में अब तक का सर्वाधिक 64.37 अरब डॉलर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) भारत में किया गया है। उद्योग एवं आंतरिक व्यापार संवर्द्धन विभाग (डीपीआईआईटी) की 2018-19 की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार देश में पिछले पांच साल के दौरान 286 अरब डॉलर का एफडीआई आया है। 

5 साल में भारत में 5 अरब डॉलर का निवेश करेगी फेयरफैक्स
प्रधानमंत्री मोदी की नीतियों का ही असर है कि आज भारत में विदेशी कंपनियां खूब निवेश कर रही हैं। कनाडा की कंपनी फेयरफैक्स अगले पांच साल में भारत में 5 अरब डॉलर का निवेश करने जा रही है। कंपनी पिछले पांच साल में भारत में 5 अरब डॉलर का निवेश कर चुकी है और इतनी ही रकम वह अगले पांच साल में लगाने जा रही है। कंपनी के प्रमुख और अरबपति निवेशक प्रेम वत्स ने इकनॉमिक टाइम्स के साथ इंटरव्यू में भारत में आर्थिक सुस्ती की आशंकाओं को खारिज करते हुए कहा कि यहां ‘शानदार मौके’ हैं। उन्होंने कहा कि मेरे हिसाब से भारत दुनिया का नंबर वन देश है। प्रेम वत्स ने कहा, ‘दुनिया की जीडीपी में भारत का योगदान 3 प्रतिशत है, लेकिन कुल वैश्विक निवेश में इसकी हिस्सेदारी 1 प्रतिशत ही है। अगर इसे बढ़ाकर 2 प्रतिशत भी कर दिया जाए तो भारत में 3 लाख करोड़ डॉलर का निवेश बढ़ेगा।’  प्रधानमंत्री मोदी की तारीफ करते हुए उन्होंने कहा कि भारत खुशकिस्मत है कि उसे मोदीजी जैसे बिजनस-फ्रेंडली नेता मिला है। उनका पूरा ध्यान देश के लिए अच्छा करने पर है। वत्स ने कहा कि इस तरह का तजुर्बा ग्लोबल लीडर में कम ही होता है। 

विदेशी मुद्रा भंडार पहली बार 430 अरब डॉलर के पार
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में देश की अर्थव्यवस्था लगातार मजबूत हो रही है। मोदी सरकार की नीतियों के कारण आज भारत का विदेशी का मुद्रा भंडार नए रिकॉर्ड पर पहुंच गया है। विदेशी मुद्रा भंडार पहली बार 430 अरब डॉलर के पार 430.38 अरब डॉलर पर पहुंच गया है। रिजर्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार, 19 जुलाई को समाप्त सप्ताह में 1.58 अरब डॉलर बढ़कर पहली बार 430.38 अरब डॉलर पर पहुंच गया। रिजर्व बैंक के अनुसार, 19 जुलाई को समाप्त सप्ताह में विदेशी मुद्रा भंडार का सबसे बड़ा घटक विदेशी मुद्रा परिसंपत्ति 1.39 अरब डॉलर बढ़कर 401.09 अरब डॉलर हो गया। इस दौरान स्वर्ण भंडार 24.30 अरब डॉलर पर स्थिर रहा। विदेशी मुद्रा भंडार ने आठ सितंबर 2017 को पहली बार 400 अरब डॉलर का आंकड़ा पार किया था। जबकि यूपीए शासन काल के दौरान 2014 में विदेशी मुद्रा भंडार 311 अरब डॉलर के करीब था।

मोदी सरकार में ग्रामीण भारत पर जोर

एनडीए सरकार के दौरान केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय के खर्च में लगातार बढ़ोतरी देखने को मिली। पीएम आवास योजना, मनरेगा, स्वच्छ भारत अभियान, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना आदि पर काफी पैसा खर्च किया गया। 2014 में सिर्फ 54 प्रतिशत गांव सड़क से जुड़े हुए थे, जो मोदी सरकार में बढ़कर 82 प्रतिशत तक पहुंच गए।

हर रोज 30 किलोमीटर रोड का निर्माण 

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का इंफ्रास्ट्रक्चर के निर्माण पर विशेष जोर रहता है। पीएम मोदी की पहल पर केंद्र सरकार पूरे देश को यातायात सुविधाओं का जाल बिछाने पर काम कर रही है। मोदी सरकार ने मनमोहन सरकार के मुकाबले ढाई गुना तेज गति से सड़कों का निर्माण किया है। मोदी सरकार में हर रोज सड़क बनाने का दायरा बढ़ा है, जहां साल 2014-15 में 12 किलोमीटर हर रोज सड़क निर्माण होता था, जो 2018-19 में बढ़कर हर रोज 30 किलोमीटर हो गया है। वित्त वर्ष 2018-19 में राजमार्गों का निर्माण और विस्तार 10,800 किमी तक पहुंच गया। यह यूपीए शासन के दौरान 2013-14 की तुलना में ढाई गुना अधिक है। टाइम्स ऑफ इंडिया के अनुसार यूपीए- 2 के पांच वर्षों के दौरान कुल 24,690 किमी का निर्माण या चौड़ीकरण किया गया था, जबकि मोदी राज में कुल निर्माण 39,350 किमी को छू गया, जो लगभग 70% की वृद्धि है।

NPA के मामलों में सरकार को मिली बड़ी कामयाबी

रिजर्व बैंक आफ इंडिया की सालाना रिपोर्ट के मुताबिक बैंकों का ग्रॉस एनपीए घटकर 9.1 फीसदी पर आ गया है। यह एक साल पहले 11.2 फीसदी पर था। रिपोर्ट के अनुसार बैंकों के फंसे कर्ज के बारे में जल्द पता चलने और उसका जल्द समाधान होने से एनपीए को नियंत्रित करने में मदद मिली है। रिपोर्ट में कहा गया है कि शुरूआती कठिनाइयों के बाद इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड (IBC) बैंकिंग सिस्टम का पूरा माहौल बदलने वाला कदम साबित हो रहा है। पुराने फंसे कर्ज की रिकवरी में सुधार आ रहा है और इसके परिणामस्वरूप, संभावित निवेश चक्र में जो स्थिरता बनी हुई थी, उसमें सुगमता आने लगी है।

मोबाइल फोन के उत्पादन और निर्यात में 8 गुना बढ़ोतरी 

यूपीए सरकार के दौरान वर्ष 2014 में देश में मोबाइल निर्माण करने वाली कंपनियों की संख्या महज दो थी, जो बढ़ कर अब 113 तक पहुंच गयी है। भारत में मोबाइल फोन के उत्पादन और निर्यात में पिछले पांच वर्षों में 8 गुना वृद्धि हुई है। भारतीय रिजर्व बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक, 2018-19 में भारत ने 24.3 बिलियन डॉलर के मोबाइल फोन का उत्पादन किया, जो 2014-15 में सिर्फ 3.1 बिलियन डॉलर था। भारत में ‘मेक इन इंडिया’ और ‘डिजिटल इंडिया’ अभियान के तहत मोबाइल फोन मैन्युफैक्चरिंग एक प्रमुख क्षेत्र के रूप में उभरा है। मोदी सरकार ने मोबाइल फोन मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देने के लिए कई कदम उठाए हैं,जिसमें टैरिफ संरचना में सुधार, बुनियादी ढांचे का विकास, प्रक्रिया को सरल बनाने और कई तरह के प्रोत्साहन शामिल है। 2.5 लाख ग्राम पंचायतों में ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी प्रदान की गयी है।

इसी साल दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी इकोनॉमी बन जाएगा भारत

यूपीए के समय देश की अर्थव्यवस्था दुनिया में 11वें स्थान पर थी, जबकि मौजूदा समय में यह दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने जा रहा है। यह देश की तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था और उसकी मजबूती का संकेत है। अर्थव्यवस्था के मामले में भारत आज विश्व की चोटी के देशों को चुनौती दे रहा है। आईएचएस मार्किट की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत इस साल ब्रिटेन को पछाड़कर दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा। इतना ही नहीं रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि 2025 तक भारत जापान को पीछे छोड़कर दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश हो जाएगा। इस रिपोर्ट में भारतीय उपभोक्ता बाजार के भी 2019 में 1.9 खरब डॉलर से लगभग दोगुना बढ़कर 2025 तक 3.6 खरब डॉलर हो जाने की भविष्यवाणी भी की गई है।

वर्ष 2018-19 में पहली बार डेबिट कार्ड से अधिक हुआ यूपीआई ट्रांजेक्शन

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अगुवाई में डिजिटल इंडिया की मुहिम परवान चढ़ती जा रही है। मोदी सरकार की नीतियों की वजह से डिजिटल लेनदेन में लगातार बढ़ातरी दर्ज की जा रही है। आरबीआई की वार्षिक रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2018-19 में यूनीफाइड पेमेंट इंटरफेस यानि यूपीआई के जरिए डिजिटल पेमेंट ने डेबिट कार्ड से हुए लेनदेन को पीछे छोड़ दिया है। वित्त वर्ष 2019 में देश में 5.35 बिलियन यूपीआई ट्रांजेक्शन हुए, जबकि डेबिट कार्ड के जरिए सिर्फ 4.41 बिलियन लेनदेन हुए। देश में ऐसा पहली बार हुआ है कि यूपीआई ट्रांजेशक्शन के आंकडों ने डेबिट कार्ड के जरिए लेनदेन के आंकड़ों को पीछे छोड़ दिया है।

JAM के जरिए हजारों करोड़ की बचत
देश डिजिटल की राह में जितना ही आगे बढ़ रहा है, उतनी ही बड़ी राशि की बचत भी होती जा रही है जिनसे गरीबों और वंचितों की योजनाओं को और बल मिलेगा। जन धन, आधार और मोबाइल की त्रिमूर्ति से 90,000 करोड़ रुपयों की बचत हो चुकी है। यानि ये बचत हुई है 440 सरकारी योजनाओं के लाभार्थियों को डिजिटल तरीके से पेमेंट किए जाने से। गुड गवर्नेंस का कॉन्सेप्ट आज तकनीक के सहारे बेहतरीन तरीके से काम कर रहा है। समयसीमा के भीतर कामकाज को पूरा करने में इसकी पूरी मदद ली जा रही है, वहीं लोगों तक सर्विस भी समय से पहुंच रही है। जनसामान्य को मोबाइल पावर यानि एम-पावर के जरिए सबल किया जा रहा है और इसके दायरे में लगातार बढ़ोतरी हो रही है।

कॉमन सर्विस सेंटर से डिजिटल उद्यमशीलता को बढ़ावा
दो लाख ग्राम पंचायतों को मिलाकर देश भर में करीब 3 लाख कॉमन सर्विस सेंटर के माध्यम से 300 सेवाएं-सुविधाएं लोगों तक पहुंच रही हैं। कॉमन सर्विस सेंटर के सहारे आधार एनरॉलमेंट, टिकट बुकिंग और जन सुविधाओं से जुड़ी कई प्रकार की ई-गवर्नेंस सर्विस दी जा रही हैं। कॉमन सर्विस सेंटर ने देश के गरीब, हाशिए पर खड़े, दलित और महिलाओं में डिजिटल उद्यमशीलता को बढ़ावा दिया है। इन सेंटरों में 52,000 से अधिक महिलाएं काम कर रही हैं जो लोगों को टिकट बुकिंग, टेली मेडिसिन, जन औषधि और आधार सर्विस मुहैया करा रही हैं। इनके अलावा देश के 101 छोटे शहरों में 124 BPOs के माध्यम से युवाओं को घर बैठे ही रोजगार मिले हैं।

गांवों में डिजिटल साक्षरता बढ़ाने पर विशेष जोर
आंकड़े बताते हैं कि भारत की डिजिटल प्रोफाइल लगातार कैसे दमदार होती जा रही है। 130 करोड़ लोगों के इस देश में 121 करोड़ मोबाइल फोन हैं, 122 करोड़ आधार कार्ड बन चुके हैं, करीब 50 करोड़ इंटरनेट उपभोक्ता हैं। देश भर में एक लाख से अधिक ग्राम पंचायतों को हाई स्पीड ऑप्टिकल फाइबर से कनेक्ट किया जा चुका है और 2.5 लाख से अधिक गांवों में हाई स्पीड ब्रॉडबैंड सर्विस पहुंचाई जा चुकी है। वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में अब तक एक करोड़ से अधिक लोगों को डिजिटली साक्षर किया जा चुका है।

नोटबंदी के फैसले के बाद से ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जोर पैसों के डिजिटल ट्रांजेक्शन को बढ़ाने पर रहा है। देशभर में उनकी इस मुहिम को जनता का समर्थन भी मिल रहा है। आइए एक नजर डालते हैं डिजिटल ट्रांजेक्शन को बढ़ावे के लिए मोदी सरकार के प्रयासों और उनके असर पर।

पीएम मोदी की पहल पर आठ गुणा बढ़ा डिजिटल पेमेंट
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की पहल पर देशभर में लेन-देन के लिए ई-पेमेंट के प्रति लोगों में जागरूकता बढ़ी है। लोग ई-पेमेंट को तवज्जो देने लगे है। उसी का असर है कि ई-पेमेंट के माध्यम से लेन-देन होने वाले की संख्या आठ गुणा बढ़ी है। पीएम मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार नकद लेन-देन को कम करने और ई-पेमेंट को बढ़ावा देने के लिए बैंकिंग सेक्टर से लेकर तमाम पेमेंट प्रोवाइडरों की सुविधाओं पर ध्यान दे रही है। केंद्र सरकार वित्तीय वर्ष 2018-19 में ई-पेमेंट के जरिए 3,013 करोड़ रुपए का कारोबार करने लक्ष्य निर्धारित किया। 

मोबाइल वॉलेट के उपयोग में नंबर एक बना भारत
भारत में डिजिटल पेमेंट के लिए मोबाइल वॉलेट का उपयोग तेजी से बढ़ता जा रहा है। नवंबर 2016 में नोटबंदी के फैसले के बाद मोबाइल वॉलेट के इस्तेमाल में खासी बढ़ोतरी हुई है। आजकल सुपरमार्केट, परचून की दुकान, चाय के स्टॉल, पेट्रोलपंप और यहां तक कि ऑटो और टैक्सी के किराए के भुगतान में भी मोबाइल वॉलेट का उपयोग किया जा रहा है। ग्लोबल डाटा के सर्वेक्षण के अनुसार मोबालइट वॉलेट के उपयोग के मामले में भारत ने अमेरिका, चीन, ब्रिटेन जैसे देशों को पीछे छोड़ दिया है।

आंकड़ों के अनुसार पिछले पांच वर्षों में मोबाइल वॉलेट का उपयोग कई गुना बढ़ गया है। 2013 में जहां मोबाइल वॉलेट के माध्यम से 24 अरब रुपये का लेनदेन हुआ, वहीं 2017 में यह बढ़ कर 955 अरब हो गया। ग्लोबल डाटा की रिपोर्ट के अनुसार भारत में कैश की जगह डिजिटल माध्यम से पैसों के लेनदेन में खासी वृद्धि दर्ज की गई है। सर्वेक्षण के मुताबिक भारत में 55.4 प्रतिशत से अधिक लोग किसी न किसी तरीके से मोबाइल के जरिए पेमेंट करते हैं, जो विश्व में सबसे ज्यादा है।

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 2016 के अंत में नोटबंदी का फैसला लेने के बाद डिजिटल पेमेंट में बढ़ोतरी हुई। हालांकि भारत में लोग बड़े लेनदेन के लिए डिजिटल बैंकिंग का उपयोग करते हैं, लेकिन दैनिक जीवन में छोटे-मोटे भुगतान के लिए मोबाइल वॉलेट का उपयोग किया जा रहा है, और यह दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है। 2013 में जहां 7 प्रतिशत लोग मोबाइल वॉलेट का इस्तेमाल करते थे वहीं 2017 में यह आंकड़ा बढ़ कर 29 प्रतिशत हो गया।

हर महीने बढ़ रहा है डिजिटल पेमेंट का आंकड़ा
यूपीआई, नेशनल पेमेंट्स कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (NPCI) की मोबाइल के जरिए डिजिटल पेमेंट का एक तरीका है। भारत इंटरफेस फॉर मनी यानी BHIM एप के ताजा आंकड़ों के मुताबिक फरवरी 2018 में यूपीआई प्लेटफॉर्म पर 17.12 करोड़ ट्रांजेक्शन के माध्यम से करीब 19,100 करोड़ रुपयों का लेनदेन हुा। वहीं जनवरी 2018 महीने में यूपीआई प्लेटफॉर्म पर 15.17 करोड़ ट्रांजेक्शन के जरिए लगभग 15,540 करोड़ का लेनदेन हुआ। जबकि दिसंबर 2017 में 14.5 करोड़ ट्रांजेक्शन हुए थे और लगभग 13,174 करोड़ रुपये का लेनदेन हुआ था। नवंबर, 2017 मे इसके जरिए 10.5 करोड़ ट्रांजेक्शन हुए थे, और लगभग 9,669 करोड़ रुपये का लेनदेन हुआ था। इसी प्रकार अक्टूबर, 2017 में कुल 7.69 करोड़ ट्रांजेक्शन हुए थे और लगभग 7,075 करोड़ रुपये का लेनदेन हुआ था। यानी आंकड़ों से साफ है कि हर महीने यूपीआई के जरिए डिजिटल पेमेंट की संख्या में अच्छी-खासी बढ़ोतरी देखने को मिल रही है। आपको बता दें कि वैसे तो यूपीआई को अगस्त, 2016 में ही लांच किया गया था, लेकिन इसके जरिए लेनदेन की संख्या में बढ़ोतरी 8,नवंबर 2016 को नोटबंदी के बाद हुई।

डिजिटल भुगतान में भारत ने यूके, चीन और जापान को भी पछाड़ा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने डिजिटल पेमेंट को बढ़ावा देने के लिए हर तरह की कोशिशें की हैं। उनके प्रयासों से हुई सफलता का लोहा दुनिया भी मानने लगी है। एक सर्वे में पता चला है कि डिजिटल पेमेंट्स के मामले में भारत ने यूनाइटेड किंगडम, चीन और जापान जैसे देशों को भी काफी पीछे छोड़ दिया है।लाइव मिंट की खबरों के अनुसार एफआईएस के सर्वे में डिजिटल भुगतान प्रणाली में भारत को 25 देशों में सबसे विकसित माना गया है। एफआईएस अमेरिका स्थित एक बैंकिंग टेक्नोलॉजी प्रोवाइडर है जिसने हर वक्त उपलब्धता, स्वीकार किए जाने लायक और तत्काल भुगतान के मापदंडों के आधार पर यह सर्वे किया है। इस सर्वे से यह भी साफ हो गया है कि यूनाइटेड पेमेंट्स इंटरफेस (UPI) ने भी लोकप्रियता के नए शिखर को छू लिया है। यानी लोग कैश की जगह प्वॉइंट ऑफ सेल मशीन और ई-वॉलेट का इस्तेमाल धड़ल्ले से कर रहे हैं।

 

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