Home विचार ममता राज में ‘आवाज’ उठाना छोड़ दीजिए वरना मारे जाएंगे

ममता राज में ‘आवाज’ उठाना छोड़ दीजिए वरना मारे जाएंगे

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‘’भाजपा के ओबीसी कार्यकर्ता 27 साल के दीपक महतो और उनके पिता 52 वर्षीय लालमन महतो की टीएमसी के लोगों ने हत्या कर दी।”  ये आरोप पश्चिम बंगाल भाजपा के महासचिव सायंतन बासु ने लगाए हैं।  दरअसल मारे गए दोनों व्यक्ति पुरुलिया मंडल समिति के प्रभावी कार्यकर्ता थे और वे चावल वितरण में तृणमूल कांग्रेस के भ्रष्टाचार का विरोध कर रहे थे। आरोप है कि इसी के चलते उनकी निर्मम हत्या की गई। हालांकि पुलिस इस मामले की भी लीपापोती करने में लग गई है।

पंचायत चुनाव के बाद बढ़ गए भाजपा कार्यकर्ताओं पर हमले
पंचायत चुनाव के बाद पश्चिम बंगाल में भाजपा कार्यकर्ताओं की हत्याओं का सिलसिला चल पड़ा है। बीते डेढ़ महीने में ही 23 कार्यकर्ताओं की सरेआम हत्या कर दी गई है। उन्हें न सिर्फ सरेआम मारा जा रहा है बल्कि कइयों को तो मार कर लटका भी दिया जा रहा है। तालिबानी शासन शैली में किए जा रहे इस कृत्य के पीछे का उद्देश्य सिर्फ और सिर्फ यही  है कि पूरे प्रदेश में यह संदेश जाए कि बीजेपी को समर्थन किया तो यही हश्र होगा।

ममता राज में पेड़ पर लटकाया गया था लोकतंत्र
29 मई को पुरुलिया के ही जंगल में 18 साल के त्रिलोचन महतो की हत्या कर शव को एक पेड़ से लटका दिया गया था। गौरतलब है कि दलित बिरादरी से आने वाले त्रिलोचन के पिता हरिराम महतो उर्फ पानो महतो भी भाजपा से जुड़े हैं, इसलिए उसने पश्चिम बंगाल के पंचायत चुनाव में जी-तोड़ मेहनत की थी। उसकी मेहनत के कारण बलरामपुर ब्लॉक की सभी सातों सीटों पर भाजपा को जीत मिली थी। जाहिर है यही सक्रियता उनके लिए जानलेवा साबित हुई और उन्हें सरेआम फांसी पर लटका दिया गया। त्रिलोचन ने जो टी-शर्ट पहनी थी, उसपर एक पोस्टर चिपका मिला जिसपर लिखा था कि बीजेपी के लिए काम करने वालों का यही अंजाम होगा।

‘पूर्व का कन्नूर’ बनता जा रहा बंगाल का पुरुलिया
जिस तरह केरल का कन्नूर राजनीतिक हत्याओं के बदनाम रहा है ठीक वैसा ही दृश्य पश्चिम बंगाल के पुरुलिया में उभर रहा है। यूं कहें कि पुरिुलिया अब ‘पूर्व का कन्नूर’ बनता जा रहा है। दरअसल इससे पहले यहीं पर त्रिलोचन महतो और बलरामपुर में दुलाल कुमार को भी मारकर लटका दिया गया था।  हालांकि पुलिस ने इस मामले को भी ‘आत्महत्या’ बताया था। जबकि हालांकि त्रिलोचन महतो के कपड़ों से बरामद हुए एक नोट में लिखा था कि उसकी हत्या भाजपा के साथ जुड़ाव के चलते की गई है। गौरतलब है कि पुरुलिया में हाल ही में खत्म हुए पंचायत चुनावों में भाजपा ने काफी अच्छा प्रदर्शन किया है। 

भाजपा समर्थक महिला को निर्वस्त्र करने की कोशिश
बीते अप्रैल महीने में 24 परगना जिले में तृणमूल कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने भाजपा की महिला कार्यकर्ता की सरेआम पिटाई की। महिला प्रत्याशी पर उस समय हमला हुआ जब वह बारुईपुर एसडीओ ऑफिस में नामांकन दाखिल करने पहुंची। टीएमसी कार्यकर्ताओं ने महिला को सड़क पर पटक कर मारा और उसके साथ बदसलूकी की। उसे निर्वस्त्र तक करने की कोशिश की गई। हैरानी की बात है कि महिला कार्यकर्ता की मदद के लिए कोई आगे नहीं आया लोग वहां खड़े तमाशा देखते रहे।

लेफ्ट के दो कार्यकर्ताओं को TMC के लोगों ने जिंदा जलाया
पंचायत चुनाव के दौरान बंगाल के रायगंज में तैनात चुनाव अधिकारी राजकुमार रॉय की हत्या इसलिए कर दी गई कि उसने निष्पक्ष चुनाव करवाने की कोशिश की। इसी तरह उत्तर 24 परगना में पंचायत चुनाव के दौरान ही सीपीएम के एक कार्यकर्ता के घर में आग लगी दी गई। इसमें कार्यकर्ता और उसकी पत्नी इसमें जिंदा जल गई। सीपीएम ने आरोप लगया कि इसमें टीएमसी का हाथ है।

पंचायत चुनाव में ममता ने लोकतंत्र का किया था अपहरण
पश्चिम बंगाल के पंचायत चुनाव में टीएमसी ने बिना एक वोट डाले ही 34.2 प्रतिशत सीटें जीत लीं। ऐसा इसलिए हुआ कि इन सभी ग्रामीण सीटों पर टीएमसी यानि ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस की दहशत के सामने कोई दूसरी पार्टी उम्मीदवार ही नहीं खड़ा कर पाई। जाहिर है राजनीतिक प्रतिशोध में मारपीट, हत्या, बलात्कार का दूसरा नाम बन चुके बंगाल में दूसरी पार्टी का कोई उम्मीदवार चुनाव लड़ने का साहस ही नहीं जुटा सका। बीते दिनों सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा था कि पश्चिम बंगाल में जो रहा है वह लोकतांत्रिक मर्यादाओं के अनुकूल नहीं है।

ममता और वाम दलों के शासन का खूनी इतिहास
बंगाल में राजनीतिक झड़पों का एक लंबा और रक्तरंजित इतिहास रहा है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2016 में बंगाल में राजनीतिक कारणों से झड़प की 91 घटनाएं हुईं और 205 लोग हिंसा के शिकार हुए। 2015 में राजनीतिक झड़प की कुल 131 घटनाएं दर्ज की गई थीं और 184 लोग इसके शिकार हुए थे। वर्ष 2013 में बंगाल में राजनीतिक कारणों से 26 लोगों की हत्या हुई थी, जो किसी भी राज्य से अधिक थी। 1997 में बुद्धदेब भट्टाचार्य ने विधानसभा मे जानकारी दी थी कि वर्ष 1977 से 1996 तक पश्चिम बंगाल में 28,000 लोग राजनीतिक हिंसा में मारे गये थे। 

कम्युनिस्टों की हिंसक विरासत को ममता ने बढ़ाया आगे
राजनीतिक हिंसा के क्षेत्र में ममता बनर्जी के शासन ने कम्युनिस्ट शासन की हिंसक विरासत को भी पीछे छोड़ दिया है। सबसे खास यह कि जिस ‘लोकतंत्र खतरे में है’ गैंग को केंद्र सरकार और बीजेपी की राज्य सरकारों में हर रोज लोकतंत्र खतरे में दिखाई देता है, वो गैंग पश्चिम बंगाल पर एक भी शब्द बोलने को तैयार नहीं है। ममता राज में हर रोज हो रही लोकतंत्र की हत्या पर सत्ताधारी दल की सहमति की गवाही दे रहा है।

मीडिया और तथाकथित बुद्धिजीवियों के ‘दोगलेपन’ वाली खामोशी को समझना जरूरी है!
ममता राज में भाजपा समर्थकों की सरेआम हत्या की जा रही है, लेकिन देश की मीडिया खामोश है। खुलेआम आतंक फैलाया जा रहा है, लेकिन तथाकथित बुद्धिजीवियों के लिए बंगाल में लोकतंत्र अभी तक ख़तरे में नहीं आया है। बीते चार साल से पूरे देश को असहिष्णु बताने वाली मीडिया और तथाकथित बुद्धिजीवियों के नक़्शे में शायद बंगाल नहीं है। हालांकि यह भी एक तथ्य है कि राज्य और पार्टी का नाम कुछ और होता तो दिन रात आंदोलन चलते। सवाल इन बुद्धिजीवियों और मीडिया के मठाधीशों से पूछा जाना चाहिए कि एक अखलाक की हत्या पर देश सिर पर उठाने वाले आज ज़मीन में सिर दबा कर क्यों बैठे हैं? कैसे लोग हैं ये? अख़लाक और दुलाल कुमार में क्यों फर्क करते हैं? आखिर यह खामोशी इनका यह दोगलापन नहीं तो और क्या है?

बहरहाल हमारा सवाल यह है कि क्या आपको यह सोचकर चुप रहना चाहिए कि आग तो पड़ोसी के घर लगी है? क्या इस कृत्य के लिए इतिहास आपको माफ करेगा? क्या आप बंगाल का मॉडल हिमाचल, पंजाब, उत्तर प्रदेश, बिहार, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश, गुजरात और  छत्तीसगढ़ में चाहते हैं?  जाहिर है सोचना तो आपको ही पड़ेगा कि क्या ये बंगाल वाला मॉडल पूरे देश के लिए चाहिए?

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