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दिल्ली में बन सकती है बीजेपी की सरकार, इंटरनल सर्वे में पार्टी को आप से ज्यादा सीटें

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दिल्ली विधानसभा चुनाव में बीजेपी शुरू से आम आदमी पार्टी (आप) को कड़ी टक्कर देती दिख रही थी, लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की रैलियों के बाद पलड़ा भाजपा के पक्ष में भारी हो गया है। मतदाताओं का माहौल बीजेपी के पक्ष में बनता दिखने लगा है। नवभारत टाइम्स की खबर के अनुसार बीजेपी के इंटरनल सर्वे में पार्टी को 27 और आप को 26 सीटें मिलती दिख रही हैं। कांग्रेस को 8 से 9 सीटों पर संतोष करना पड़ सकता है। बाकी की सीटों पर बीजेपी और आप के बीच कड़ा मुकाबला देखने को मिल रहा है।

बताया जा रहा है कि प्रधानमंत्री मोदी की रैली के बाद ग्रामीण इलाकों में बीजेपी की स्थिति और सुधरने की उम्मीद है। इस इंटरनल सर्वे के अनुसार प्रधानमंत्री मोदी ने मतदाताओं के सामने शाहीन बाग, सर्जिकल स्ट्राइक, बाटला हाउस जैसे मुद्दों पर जिस तरह खुलकर अपनी बात सामने रखी है, उसका लोगों पर काफी असर पड़ता दिख रहा है।

आइए जानते हैं कि आखिर दिल्ली के मतदाताओं का केजरीवाल से मोहभंग क्यों हुआ है-

दिल्ली के मतदाता मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के झूठे वादे और तुष्टिकरण की नीति से तंग आ चुके हैं। केजरीवाल राजनीति के कीचड़ को साफ करने के लिए सियासी मैदान में उतरे थे, लेकिन खुद दलदल में फंसते गए। उन्होंने दावा किया था कि आम आदमी पार्टी किसी दागी को उम्मीदवार नहीं बनाएगी, लेकिन सत्ता में आते ही उसे भुला बैठे। एसोसिएशन ऑफ़ डेमोक्रेटिक रिफार्म्स (एडीआर) की रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी के आधे से अधिक उम्मीदवारों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं। आम आदमी पार्टी के 70 उम्मीदवारों में से 36 पर आपराधिक मामले दर्ज है।

दागी विधायकों की संख्या बढ़ी
केजरीवाल की सरकार सिर्फ अराजकता से ही नहीं, बल्कि आपराधियों से भी भरी हुई है। आपको ये जानकर हैरानी होगी कि सरकार में केजरीवाल समेत आम आदमी पार्टी के 57 विधायकों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं। इनमें से आधे से अधिक विधायकों के खिलाफ हत्या, लूट, डकैती, रेप जैसे संगीन अपराधों के तहत केस दर्ज हैं और ये जेल भी जा चुके हैं। पार्टी के कई विधायकों पर संगीन आरोप लग चुके हैं और कई तो जेल की हवा भी खा चुके हैं। समय के साथ केजरीवाल के साथी असीम अहमद, राखी बिड़लान, अमानतुल्ला, दिनेश मोहनिया, अखिलेश त्रिपाठी, संजीव झा, शरद चौहान, नरेश यादव, करतार सिंह तंवर, महेन्द्र यादव, सुरिंदर सिंह, जगदीप सिंह, नरेश बल्यान, प्रकाश जरावल, सहीराम पहलवान, फतेह सिंह, ऋतुराज गोविंद, जरनैल सिंह, दुर्गेश पाठक, धर्मेन्द्र कोली और रमन स्वामी जैसे आप विधायक और नेताओं पर आरोपों की लिस्ट लंबी होती गई है। जाने-माने आरटीआई एक्टिविस्ट डॉ. डी सी प्रजापति ने दिल्ली पुलिस से सूचना के अधिकार के तहत आम आदमी पार्टी के विधायकों पर दर्ज आपराधिक मामलों की जानकारी मांगी। उन्हें दिल्ली पुलिस की तरफ से जो जानकारी दी गई है, उससे साफ पता चलता है कि आम आदमी पार्टी सिर्फ अपराधियों की पार्टी बनकर रह गई है।

छेड़खानी में फंसे कई आप विधायक
दिल्ली के मुख्यमंत्री महिलाओं के मुद्दे पर कितने संवेदनशील है इसका अंदाजा इससे लगता है कि उन्होंने यौन उत्पीड़न के एक मामले में पीड़िता को समझौता करने के लिए कहा था। नरेला से आप कार्यकर्ता सोनी ने मौत से पहले पार्टी के ही एक कार्यकर्ता रमेश भारद्वाज पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था। महिला का कहना था कि रमेश भारद्वाज की शिकायत लेकर वह मुख्यमंत्री से भी मिली थी, मगर कोई सुनवाई नहीं हुई। उसने केजरीवाल पर आरोप लगाया कि उन्होंने भारद्वाज से समझौता करने को कहा। अरविन्द ने कहा था कि बैठकर बात कर लो, रमेश माफी मांग लेगा। महिला ने आरोप लगाया कि रमेश शारीरिक संबंध बनाने के लिए दबाव डालता था। वह कहता था कि राजनीति में ऊपर जाने के लिए समझौता करना पड़ता है। सोनी मामले में आम आदमी पार्टी के विधायक शरद चौहान को जेल भी जाना पड़ा क्योंकि सोनी ने उन पर आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप लगाया था।

इसके साथ ही प्रकाश जारवाल पर एक महिला ने छेड़खानी और धमकी देने का आरोप लगाया। आप नेता रमन स्वामी पर संगीन इल्जाम लगा कि उन्होंने शादीशुदा महिला के साथ बलात्कार किया। महिला ने नेताजी पर दोस्ती के बाद नौकरी दिलाने का झांसा देने और बलात्कार करने का आरोप लगाया जो मेडिकल परीक्षण में साबित भी हुआ। दिनेश मोहनियां पर न सिर्फ एक महिला ने बदसलूकी का आरोप लगाया था, बल्कि एक बुजुर्ग ने भी उनके खिलाफ थप्पड़ जड़ने का आरोप लगाया था। विधायक अमानुल्लाह खान पर उनके ही इलाके में रहने वाली एक महिला ने बलात्कार और हत्या की धमकी देने का आरोप लगाया। महिला कल्याण मंत्री संदीप कुमार ने तो ऐसा कारनामा कर डाला कि केजरीवाल सरकार मुंह दिखाने लायक नहीं रह गयी। एक ऐसी सीडी सामने आयी जिसमें संदीप कुमार महिलाओं के साथ अंतरंग अवस्था में थे।

कानून मंत्री की डिग्री निकली फर्जी
आम आदमी पार्टी की सरकार भले ही ईमानदारी की सर्टिफिकेट बांटने का दम्भ भरती हो, लेकिन खुद उनके कानून मंत्री की डिग्री फर्जी निकली। जालसाजी कर उन्होंने डिग्री हासिल की थी। इस आरोप में दिल्ली पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। केजरीवाल भी लम्बे समय तक तोमर के साथ खड़े रहे। कहते रहे कि आरोप अभी साबित नहीं हुआ है। विवि ने तोमर की डिग्री को गलत बताया है। तोमर की डिग्री का पूरा मामला अब भी दिल्ली हाईकोर्ट में चल रहा है।

सोमनाथ भारती पर लगे पत्नी के साथ मारपीट के आरोप
सोमनाथ भारती पर कानून मंत्री रहते अपनी पत्नी के साथ मारपीट करने, उन्हें कुत्ते से कटवाने के आरोप लगे। वहीं, आम आदमी पार्टी ने कभी एक महिला की आवाज़ नहीं सुनी। महिला आयोग के बुलाने पर सोमनाथ ने वहां पहुंचना जरूरी नहीं समझा। आखिरकार पत्नी ने केस दर्ज कराया।

मौका देखकर बदलता है रंग
दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल के कई रूप हैं। वह कभी कट्टर हिन्दू बन जाते हैं, तो कभी मुस्लिम धर्म के कट्टर हिमायती। उनके इस रूप के दर्शन अक्सर होते रहते हैं। खासकर कर चुनाव के समय तो खुद को बहुरूपिया साबित करने में केजरीवाल कोई कोर-कसर नहीं छोड़ते। आजकल दिल्ली में विधानसभा चुनाव को लेकर काफी सरगर्मी है। बीजेपी और आम आदमी पार्टी के बीच शाहीन बाग को लेकर आरोप-प्रत्यारोप का दौर चल रहा है। ऐसे में बीजेपी से मिल रही चुनौती को देखते हुए केजरीवाल हिन्दू कार्ड खेलने से भी नहीं चूके। एक न्यूज चैनल से खास बातचीत में केजरीवाल हनुमान भक्त के रूप में नजर आए। उन्होंने कहा कि मैं हनुमानजी का कट्टर भक्त हूं और बीजेपी मुझे हिंदू विरोधी कहती है। इस दौरान दिल्‍ली के मुख्‍यमंत्री ने हनुमान चालीसा का पाठ भी किया। 

रामनवमी जुलूस पर प्रतिबंध लगाने की कोशिश
हनुमान भक्त केजरीवाल ने अप्रैल 2018 में दिल्ली में रामनवमी जुलूस पर प्रतिबंध लगाने की कोशिश की थी। 5 अप्रैल, 2018 को दिल्ली विधानसभा में रामनवमी जुलूस के नाम पर माहौल खराब करने के विषय पर चर्चा होनी थी, लेकिन विधायक कपिल मिश्रा और बीजेपी विधायकों के मुखर विरोध के कारण चर्चा नहीं हो सकी।

बीजेपी ने केजरीवाल के एजेंडे का किया विरोध  
केजरीवाल के एजेंडे में “रामनवमी जुलूस के बहाने कथित साम्प्रदायिक उपद्रव भड़काने के प्रयास” पर चर्चा शामिल थी। ओखला से विधायक अमानतुल्लाह खान को इस चर्चा की शुरुआत करनी थी। कपिल मिश्रा ने इस मुद्दे पर विरोध किया था और एजेंडे की कॉपी वेल में फाड़ दी थी। विधानसभा अध्यक्ष ने कपिल मिश्रा को मार्शलों से बाहर निकलवा दिया था। इस एजेंडे के खिलाफ बीजेपी ने भी बॉयकॉट किया था।

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कपिल मिश्रा ने सवाल उठाया था कि दूसरे मजहबों के जुलूस पर सवाल खड़े नहीं किए जाते तो फिर रामनवमी को बदनाम करने की कोशिश क्यों की जा रही है?

न दंगा – न फसाद, फिर क्यों राजनीति कर रहे थे केजरीवाल
केजरीवाल सरकार ने राशन घोटाले से ध्यान भटकाने के लिए बहुत घिनौना प्लान बनाया था। आप सरकार विधानसभा में सांप्रदायिक मुद्दे को तूल देने की योजना पर काम कर रही थी, ताकि मीडिया का ध्यान उनके भ्रष्टाचार और घोटालों से हट जाए। आप पार्टी के विधायक अमानतुल्ला के इस प्रस्ताव में लिखा गया, ‘रामनवमी जुलूस के बहाने कथित साम्प्रदायिक उपद्रव भड़काने के प्रयास’ के संबंध में चर्चा। अमानतुल्ला खान के अलावा विधायक नितिन त्यागी और प्रवीण कुमार का नाम इसमें शामिल थे।

हिंदू आस्था पर कुठाराघात था अमानतुल्ला का प्रस्ताव
अब सवाल ये है कि जब दिल्ली में किसी भी तरह का सांप्रदायिक उपद्रव नहीं हुआ, तो केजरीवाल इस पर राजनीति क्यों कर रहे थे? दरअसल आप विधायक अमानतुल्ला खान द्वारा विधानसभा में ‘रामनवमी के जुलूस’ के ख़िलाफ़ जो प्रस्ताव लाया जा रहा था, वह काफी विवादास्पद था । इसके तहत दिल्ली में मस्जिदों के सामने से रामनवमी और रामलीला के जुलूस निकालने पर पाबंदी का कानून बनाने की तैयारी की जा रही थी। यही नहीं हिन्दू धार्मिक जुलूसों में धनुष बाण, गदा और तलवार लेकर चलने पर प्रतिबंध का भी प्रस्ताव किया जा रहा था। इससे पता चलता है कि केजरीवाल वोट को लेकर किसी भी स्तर तक जाने को तैयार है।

देश का हिंदू चुपचाप खड़ा देख रहा है : कपिल मिश्रा
विशेष समुदाय की राजनीति करने पर कपिल मिश्रा नो केजरीवाल को घेरते हुए कहा कि ध्रुवीकरण की राजनीति बीजेपी नहीं कर रही बल्कि केजरीवाल कर रहे हैं। केजरीवाल एक खास समुदाय के लोगों को तो मुआवजा भी देते हैं और उनके साथ भी खड़े होते हैं जबकि देश का हिंदू चुपचाप खड़ा देख रहा है। उसको सब समझ में भी आ रहा है कि कौन कर रहा है ध्रुवीकरण की राजनीति।

केजरीवाल ने मुस्लिमों का वोट हासिल करने के लिए तुष्टिकरण का सहारा लिया है, आइए देखते हैं केजरीवाल ने किस तरह दिल्ली सरकार का खजाना मुस्लिमों के लिए खोल दिया… 

प्रदर्शन में मारे गए लोगों के परिजनों को 5-5 लाख रुपए देने की घोषणा
सीएए और एनआरसी के विरोध-प्रदर्शन के दौरान मारे गए लोगों के लिए दिल्ली वक्फ बोर्ड ने बड़ी घोषणा की। आम आदमी पार्टी के विधायक और बोर्ड के चेयरमैन अमानतुल्ला ने कहा कि हर एक मृतक के परिवार को वक्फ बोर्ड की ओर से 5-5 लाख रुपए की सहायता दी जाएगी। अमानतुल्ला ने देशभर में हो रहे सीएए और एनआरसी के विरोध-प्रदर्शन में मारे गए 20 लोगों की एक सूची जारी की। जामिया मिल्लिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी में हुई हिंसा में अपनी एक आंख गंवाने वाले छात्र मिन्हाजुद्दीन को अमानतुल्ला खान ने 5 लाख रुपए की सहायता राशि का चेक और वक्फ बोर्ड में पक्की नौकरी का नियुक्ति पत्र सौंपा।

मस्जिदों के इमामों के वेतन में दोगुनी बढ़ोतरी
लोकसभा चुनाव 2019 से पहले दिल्ली की केजरीवाल सरकार मुस्लिम तुष्टिकरण में जुटी थी। मुसलमानों को लुभाने के लिए मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली की मस्जिदों के इमाम और मोअज़्ज़िन का वेतन करीब दोगुना करने का एलान किया। दिल्ली के 185 मस्जिदों के इमामों को 18 हज़ार रुपये वेतन दिया, पहले ये वेतन 10 हज़ार रुपये हुआ करता था। वही मुअज़्ज़िन को अब 16 हज़ार रुपये प्रतिमाह वेतन दिया जबकि अब तक मुअज़्ज़िन को 9 हज़ार रुपये मिला करता था।

देश में ऐसा पहली बार हुआ
इतना ही नहीं, दिल्ली सरकार ने दिल्ली वक़्फ़ बोर्ड के तहत ना आने वाली मस्जिदों के इमाम और मुअज़्ज़िन को भी वेतन देने का एलान कर दिया। ऐसा देश में पहली बार हुआ है कि वक्फ़ बोर्ड के दायरे के बाहर की मस्जिदों के इमाम और मुअज़्ज़िन को भी सरकार की जेब से तनख्वाह दी जा रही है।

मौलवियों के लिए खोला खजाना
दिल्ली में अब वक़्फ़ बोर्ड के दायरे के बाहर की मस्जिदों के इमामों को 14 हज़ार और मुअज़्ज़िन को 12 रुपये महीने वेतन मिलेगा। केजरीवाल ने दिल्ली वक़्फ़ बोर्ड के एक कार्यक्रम में शिरकत करते हुए ये ऐलान किया। इसमें सीएम अरविंद केजरीवाल के अलावा उनके मंत्री इमरान हुसैन और दिल्ली वक़्फ़ बोर्ड के अध्य्क्ष अमनातुल्ला खान मौजूद थे।

मुसलमानों को दिखाया मोदी का खौफ
वक़्फ़ बोर्ड के इस कार्यक्रम में दिल्ली की सभी मस्जिदों के इमामों और मुअज़्ज़िन को बुलाया गया था। दरअसल इसके पीछे शुद्ध राजनीति थी। उन्होंने मुस्लिमों को मोदी के दोबारा प्रधानमंत्री बनने का भी डर दिखाया। उन्होंने एक और चारा भी फेंका। उन्होंने कहा कि “मैं मोदी और अमित शाह को हराने के लिए किसी भी हद तक जा सकता हूं। अगर आपके वोट विभाजित होते हैं, तो देश को भारी नुकसान होगा। केजरीवाल ने कहा कि आप लोकसभा चुनाव में सभी सात सीटों पर जीत हासिल करेगी।केजरीवाल ने कार्यक्रम के दौरान मुसलमानों से आम आदमी पार्टी को वोट देने की भी अपील की। इस दौरान अमानतुल्लाह ने कहा कि अगर केंद्र में मोदी सरकार को रोकने के लिए कांग्रेस को भी समर्थन देना पड़ा तो आम आदमी पार्टी, कांग्रेस को भी समर्थन देगी।

मुस्लिम वोट बैंक के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार
केजरीवाल की नजर मुस्लिम वोट बैंक पर है। इस वोट बैंक को पाने के लिए वह किसी भी हद तक जाने को तैयार है। उनका हमेशा प्रयास रहा है कि मुस्लिम वोट नहीं बंटे और पूरे वोट उसे ही मिले। लोकसभा चुनाव-2019 के दौरान केजरीवाल ने सिविल लाइन स्थित अपने निवास पर ऑल इंडिया शिया सुन्नी फ्रंट के नेताओं के एक प्रतिनिधिमंडल से मुलाकात की। इस मौके पर केजरीवाल ने कहा कि मुस्लिम वोट बैंक नहीं बंटे इसके लिए हम कांग्रेस से गठबंधन करना चाहते थे। गठबंधन के लिए हर संभव प्रयास किए। मगर कांग्रेस ने गठबंधन नहीं किया। 

दिल्ली में करीब 20% वोटर मुस्लिम
गौरतलब है कि दिल्ली में मुसलमानों का वोट पहले कांग्रेस को मिलता था, लेकिन 2014 के बाद कांग्रेस की हालत पतली देख मुसलमानों ने आम आदमी पार्टी को वोट देना शुरू कर दिया। इन्हीं वोटों के कारण आम आदमी पार्टी ने 2015 के विधानसभा चुनाव में 67 सीट हासिल की। दिल्ली में करीब हर पांचवां वोटर मुसलमान है और केजरीवाल इतनी बड़ी आबादी को लुभाने के लिए सारे हथकंडे आजमा रहे हैं।

केजरीवाल की फितरत में है धोखा देना
दिल्ली के विवादास्पद मुख्यमंत्री केजरीवाल अपनी सुविधा की राजनीति करने के लिए जाने जाते हैं। केजरीवाल ने समय-समय पर कई संगठनों और व्यक्तियों का सीढ़ियों की तरह इस्तेमाल किया और आगे बढ़ते गए। जिस किसी ने भी उनकी सोच या कार्यशैली का विरोध किया, केजरीवाल ने उनका साथ छोड़ दिया। कई लोग जो केजरीवाल के साथ घुटन महसूस करते थे उन्होंने पार्टी खुद ही छोड़ दी। कई ऐसे भी हैं जिन्हें पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया या फिर उन्हें ‘सबक’ सिखाया गया।

आइए डालते हैं एक नजर उन साथियों पर जिन्हें केजरीवाल ने किनारे लगाया है। 

1. अरुणा रॉय का साथ छोड़ा
अरविंद केजरीवाल का मन आईआरएस की नौकरी से ज्यादा अपनी संस्था ‘परिवर्तन’ में ही लगा रहता था। इसी दौरान उनको मैगसासे अवार्ड मिला और उसके धन से दिसबंर 2006 में एक नई संस्था पब्लिक कॉज रिसर्च फाउंडेशन बनाया। इसके बाद सितंबर 2010 में अरुणा रॉय के नेतृत्व में स्वयंसेवी संस्थाओं के ग्रुप नेशनल कैंपेन फॉर पीपल राइट टू इनफॉरमेशन की लोकपाल ड्राफ्टिंग कमेटी के अध्यक्ष बने। यहां से केजरीवाल को एक नये आंदोलन की रुपरेखा समझ में आयी और अरुणा राय को छोड़कर अन्ना हजारे के साथ महाआंदोलन की तैयारी करने लगे।

2. अन्ना हजारे का साथ लेना और फिर दरकिनार कर देना
अन्ना हजारे के नेतृत्व में जनलोकपाल की ऐतिहासिक लड़ाई हुई, जिनके अनशन के सामने पूरी सरकार ने घुटने टेक दिए। पर, स्वार्थ का राजनीतिक फल खाने के लिए केजरीवाल ने अन्ना को ही ठेंगा दिखला दिया। केजरीवाल ने सारे आंदोलन को अपने हाथ में ले लिया। केजरीवाल ने कहना शुरु कर दिया कि राजनीति का कीचड़ साफ करना है तो कीचड़ में उतरना ही पड़ेगा। अन्ना के विरोध के बाद भी केजरीवाल ने 26 नवंबर 2012 को आम आदमी पार्टी का गठन कर दिया। अब अन्ना और केजरीवाल के सुर नहीं मिलते, अन्ना केजरीवाल पर धोखा देने तक का आरोप लगा चुके है। मार्च 2013 में एक अंग्रेजी न्यूज चैनेल को दिए अपने इंटरव्यू में केजरीवाल ने कहा कि अन्ना और मेरे बीच विश्वास की कमी हो गई थी जिसकी वजह से हम दोनों के रास्ते अलग हो गये।

3. शांति भूषण को किनारे किया
पार्टी के वयोवृद्ध और संस्थापक नेता शांति भूषण ने केजरीवाल की तानाशाही के खिलाफ अपनी आवाज बुलन्द की और आंतरिक लोकतंत्र का सवाल उठाया। उन्होंने पैसे लेकर टिकट बांटने के आरोप भी लगाए। बदले में केजरीवाल ने उन्हें अपना दुश्मन मान लिया और बुरा-भला कहते हुए पार्टी के दरवाजे शांति भूषण के लिए बंद कर दिए। जबकि पार्टी को खड़ा करने में इन्होंने अपनी गाढ़ी मेहनत की कमाई भी लगाई थी।

4. प्रशांत भूषण भी हुए बाहर
अन्ना आंदोलन से लेकर आम आदमी पार्टी बनाने तक केजरीवाल ने जिन मुद्दों पर देश में सुर्खियां बटोरी, वो सारे कानूनी दांवपेंच प्रशांत भूषण ने अपनी मेहनत से जमा किया। प्रशांत पार्टी का थिंक टैंक माने जाते थे। पर जैसे ही केजरीवाल की मनमानी का प्रशांत भूषण ने विरोध किया, आंतरिक लोकतंत्र की बात उठायी – केजरीवाल ने उन्हें बेईज्जत कर पार्टी से निकालने में देर नहीं की।

5. योगेन्द्र यादव हुए तानाशाही के शिकार
अन्ना आंदोलन से लेकर आप के गठन तक में थिंक टैंक का हिस्सा रहे योगेन्द्र यादव। आप को शून्य से शिखर तक लाने में इनके राजनीतिक विश्लेषण का भरपूर इस्तेमाल किया गया। लेकिन जैसे ही इन्होंने केजरीवाल की मनमानी का विरोध किया, तो केजरीवाल ने उनके लिए गाली-गलौच करने से भी गुरेज नहीं की। बाद में बे-इज्जत कर पार्टी से भी निकाल दिया।

केजरीवाल ने शांति भूषण, प्रशांत भूषण और योगेन्द्र यादव तीनों को पार्टी विरोधी गतिविधियों का आरोप लगाकर बाहर का रास्ता दिखाया था। 28 मार्च 2015 को हुई दिल्ली के कापसहेड़ा में नेशनल कांउसिल की मीटिंग में जो हुआ उससे साफ पता चलता है कि केजरीवाल कितने तानाशाही प्रवृति के हैं। मीटिंग में प्रशांत भूषण, योगेंद्र यादव, अजीत झा और प्रोफेसर आनंद कुमार को राष्ट्रीय कार्यकारिणी से बाहर निकाल दिया गया। इन्हें बाउंसर्स की मदद से उन्हें घसीटकर बाहर निकाल दिया गया।

6. प्रोफेसर आनन्द कुमार भी हुए बाहर
टीम केजरीवाल में थिंकटैंक का हिस्सा रहे प्रोफेसर आनन्द कुमार ने जब पार्टी और सरकार में एक व्यक्ति एक पद की बात उठायी तो अरविन्द केजरीवाल भड़क गये। पार्टी के संयोजक पद से इस्तीफे का दांव खेलकर केजरीवाल ने प्रोफेसर आनन्द कुमार, योगेंद्र यादव और प्रशान्त भूषण को एक झटके में पार्टी से निकाल दिया।

7. किरण बेदी का भी साथ छोड़ा
अरविंद केजरीवाल और किरण बेदी ने अपने जीवन का सबसे महत्वपूर्ण आंदोलन ‘लोकपाल आंदोलन’ साथ ही किया। दोनों ही टीम अन्ना के अहम सदस्य थे, लेकिन 2011 में शुरू हुआ लोकपाल आंदोलन डेढ़ साल बाद जब एक सामाजिक आंदोलन से एक राजनीतिक पार्टी की तरफ बढ़ चला तो किरण बेदी ने राजनीति में आने से इनकार करते हुए केजरीवाल के साथ चलने से मना कर दिया, और केजरीवाल से अलग हो गई। केजरीवाल की तानाशाही रवैये का उन्होंने हमेशा विरोध किया।

8. स्वामी रामदेव भी हुए अलग
अरविन्द केजरीवाल ने स्वामी रामदेव से तभी तक दोस्ती रखी जब तक कि उनका इस्तेमाल हो सकता था। अन्ना आंदोलन से जुड़कर और हटकर भी योगगुरू रामदेव ने कालाधन और भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन जारी रखा, लेकिन केजरीवाल ने उनका साथ देने से हमेशा खुद को पीछे रखा। दरअसल तानाशाही सोच रखने वाले केजरीवाल ने कभी चाहा ही नहीं कि उनसे अलग कोई बड़ा मूवमेंट हो।

9. जनरल वीके सिंह की नहीं हुई पूछ
अन्ना आंदोलन में खुलकर अरविन्द केजरीवाल के साथ रहे जनरल वीके सिंह को केजरीवाल ने पार्टी बनाने के बाद नहीं पूछा। अपनी उपेक्षा से नाराज रहे वीके सिंह अन्ना के साथ जुड़े रहे। केजरीवाल की स्वार्थपरक राजनीति देखने के बाद जनरल वीके सिंह ने बीजेपी का साथ देने का फैसला किया।

10. शाजिया इल्मी भी साइडलाइन
शाजिया इल्मी पत्रकारिता से अन्ना आंदोलन में आईं। आम आदमी पार्टी के चर्चित चेहरों में से एक थीं। जब शाजिया ने महसूस किया कि खुद केजरीवाल ने उन्हें लोकसभा चुनाव में हराने का काम किया ताकि उनका कद ऊंचा ना हो सके, तो उन्होंने केजरीवाल पर महिला विरोधी होने का आरोप लगाते हुए पार्टी छोड़ दी। अब शाजिया बीजेपी में हैं।

11. मेधा पाटकर का नहीं कोई मान
आम आदमी पार्टी के लिए लोकसभा चुनाव लड़ चुकीं मेधा पाटेकर ने अपनी उपेक्षा से नाराज होकर अरविन्द केजरीवाल का साथ छोड़ दिया। मेधा ने केजरीवाल को मकसद से भटका हुआ बताया। दरअसल आम चुनाव में करारी हार के बाद केजरीवाल की सोच स्वार्थवश दिल्ली की सियासत तक सिमट गयी। फिर मेधा जैसे समाजसेवी उनके लिए यूजलेस और सियासी नजरिए से जूसलेस हो गयीं थीं।

12. जस्टिस संतोष हेगड़े भी हटे
जनलोकपाल का ड्राफ्ट जिन तीन लोगों ने मिलकर तैयार किया था उनमें से एक हैं जस्टिस संतोष हेगड़े। अन्ना आंदोलन में सक्रिय जुड़े रहे। पर, राजनीतिक महत्वाकांक्षा जगने के बाद केजरीवाल ने हेगड़े को भी किनारा करना शुरू कर दिया। उपेक्षित और अलग-थलग महसूस करने के बाद जस्टिस हेगड़े ने टीम अन्ना से दूरी बना ली। वो इतने खिन्न हो गये कि केजरीवाल के शपथग्रहण समारोह में बुलाए जाने के बाद भी नहीं पहुंचे।

13. श्री श्री रविशंकर ने कहा जय श्री राम
श्री श्री रवि शंकर ने अन्ना आंदोलन को अपना समर्थन दिया था। अरविन्द केजरीवाल के राजनीतिक दल बनाने को भी उन्होंने गलत नहीं बताया था। पर, केजरीवाल ने अपनी गतिविधियों से उनको नाराज कर दिया। श्री श्री रविशंकर ने कहा कि केजरीवाल ने दिखा दिया कि वो अन्य राजनेताओं से अलग नहीं हैं। सस्ती लोकप्रियता, उनकी अतिमहत्वाकांक्षा और तानाशाही ने लोगों की उम्मीदों पर पानी फेर दिया। केजरीवाल और श्री श्री में ट्विटर पर भी खुली जंग हुई।

14. एडमिरल रामदास ने भी कहा राम-राम
आम आदमी पार्टी में आंतरिक लोकपाल पूर्व नौसेनाध्यक्ष एडमिरल रामदास तब भौंचक रह गये जब उन्हें उनके पद से हटा दिया गया। एडमिरल रामदास ने कहा कि मैं यह जानकर चकित हूं कि अब पार्टी को मेरी जरूरत नहीं रही। आंदोलन से लेकर राजनीतिक दल बनने तक एडमिरल रामदास ने अरविन्द केजरीवाल का साथ दिया, लेकिन मौका मिलते ही उन्होंने उनसे इसलिए किनारा कर लिया क्योंकि लोकपाल के तौर पर उन्होंने किसी किस्म के समझौते से इनकार कर दिया था।

15. जेएम लिंग्दोह को दिया त्याग
पूर्व निर्वाचन आयुक्त लिंग्दोह की भूमिका जनलोकपाल बिल को तैयार करने में रही। लिंग्दोह उन चंद लोगों में शामिल रहे जिन्होंने खुलकर जनलोकपाल के लिए समर्थन दिया। राजनीतिक दल बना लेने के बाद केजरीवाल ने उन्हें भी त्याग दिया। दरअसल लिंग्दोह जैसे लोगों के रहते केजरीवाल के लिए पार्टी और सरकार में तानाशाही चलाना मुश्किल होता।

16. स्वामी अग्निवेश ने किया किनारा
एक समय अन्ना आंदोलन का चेहरा बन चुके थे अग्निवेश। सरकार और आंदोलनकारियों के बीच बातचीत में उन्होंने बड़ी भूमिका निभाई। पर, बाद में अरविन्द केजरीवाल ने उनसे किनारा कर लिया। स्वामी अग्निवेश को पार्टी बनाने से पहले ही केजरीवाल ने त्याग दिया था। टीम केजरीवाल ने उन्हें कांग्रेस का दलाल साबित करने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी।

17. अंजलि दमानिया
महाराष्ट्र से आप की कार्यकर्ता और केजरीवाल की प्रमुख सहयोगी अंजलि दमानिया ने 11 मार्च 2015 को केजरीवाल का साथ छोड़ दिया। जिस तरह से प्रशांत भूषण और योगेन्द्र यादव को निकालने के लिए केजरीवाल ने स्टिंग ऑपरेशन और अप्रजातंत्रिक हरकतें की थी उससे सभी दुखी थे, उनमें से एक अंजलि दमानिया भी थी।

18. मधु भादुड़ी
आप के संस्थापक सदस्यों में से एक मधु भादुड़ी ने 3 फरवरी 2014 को दिल्ली विधान सभा चुनावों के बाद आप छोड़ दिया। वो आप की विदेश नीति बनाने वाली समिति की सदस्य थी। उन्होंने इस्तीफा देते समय कहा कि आप में महिलाओं का सम्मान नहीं होता है। मेरा मात्र एक ही मुद्दा है कि महिलाऐं भी मुनष्य हैं और उनके साथ भी मनुष्य जैसा व्यवहार किया जाना चाहिए। पार्टी की मानसिकता खाप पंचायत जैसी है, इसमें महिलाओं के लिए कोई स्थान नहीं हैं। उनका केजरीवाल पर सीधा आरोप था कि यह पार्टी वोट के लिए बदल चुकी है और केवल चुनाव जीतना चाहती है

19. विनोद कुमार बिन्नी निकाले गए
दिल्ली में सरकार बनने के बाद सबसे पहले अरविन्द केजरीवाल की तानाशाही का विरोध विनोद कुमार बिन्नी ने ही किया था। बिन्नी ने खुलकर केजरीवाल के खिलाफ आरोप लगाए। इस वजह से उन्हें पार्टी से निकाल दिया गया। बिन्नी तब से अरविन्द केजरीवाल के साथ थे जब अन्ना आंदोलन शुरू भी नहीं हुआ था।

20. मुफ्ती शमून कासमी को किया किनारे
अन्ना हजारे को धोखा देने की वजह से अरविन्द केजरीवाल से खफा हो गये मुफ्ती शमून कासमी। उन्होंने केजरीवाल पर अन्ना के कंधे पर रखकर बंदूक चलाने का आरोप लगाया। दिल्ली विधानसभा चुनाव में मौलाना की शरण में जाने के लिए भी कासमी ने केजरीवाल की निन्दा की और तभी कह दिया कि जरूरत पड़ी तो ये आदमी कांग्रेस से भी हाथ मिला सकता है। कासमी का दावा था कि केजरीवाल की सत्ता के लिए भूख सबसे पहले उन्होंने ही पहचानी।

21. कैप्टन गोपीनाथ ने छोड़ी पार्टी
भारत में कम कीमत के हवाई यातायात में प्रमुख भूमिका निभाने वाले जी आर गोपीनाथ को भी पार्टी छोड़नी पड़ी। पार्टी छोड़ते हुए गोपीनाथ ने अरविन्द केजरीवाल की कार्यप्रणाली की आलोचना की। उन्होंने कहा कि पार्टी केजरीवाल के नेतृत्व में रास्ते से भटक गयी है।

22. एसपी उदय कुमार नहीं कर सके एडजस्ट
विज्ञान के क्षेत्र में बड़े सम्मान से लिया जाने वाला नाम है एसपी उदयकुमार। उनके आम आदमी पार्टी में जुड़ने को बड़ी उपलब्धि के तौर पर देखा गया था। लेकिन केजरीवाल के साथ वे भी एडजस्ट नहीं कर सके। उन्होंने दक्षिणी राज्यों की उपेक्षा की वजह से पार्टी छोड़ दी। ये उपेक्षा तो होनी ही थी क्योंकि वहां कोई राजनीतिक लाभ केजरीवाल के लिए नहीं था।

23. तानाशाही से खिन्न मयंक गांधी ने भी साथ छोड़ा
योगेन्द्र यादव, प्रशांत भूषण और अन्य साथियों को जिस तरह से केजरीवाल ने साजिश के साथ बाहर निकाला था, उसका खुलासा मयंक गांधी अपने ब्लॉग में किया। वह जानते थे कि उनकी पारदर्शिता की मांग से एक न एक दिन उन्हें भी केजरीवाल बाहर का रास्ता दिखा ही देंगे। 11 नवंबर 2015 को मयंक गांधी ने भी केजरीवाल की तानाशाही प्रवृति से तंग आकर इस्तीफा दे दिया।

24. एमएस धीर- धैर्य ने दिया जवाब
आप सरकार में स्पीकर रहे एमएस धीर का अरविन्द केजरीवाल से ऐसा मोहभंग हुआ कि उन्होंने पार्टी ही छोड़ दी। सिखों के प्रति केजरीवाल की कथनी और करनी में अंतर बताते हुए उन्होंने पार्टी छोड़ी। उन्होंने नेतृत्व पर सिख दंगे में मारे गये लोगों के परिजनों को इंसाफ दिलाने में विफल रहने का आरोप उन्होंने लगाया।

25. अजित झा हो गए आजिज
प्रोफेसर आनन्द कुमार के साथ अजित झा ने भी पार्टी के भीतर लोकतंत्र की आवाज उठायी। आंदोलन और पार्टी में सक्रिय रहे। केजरीवाल ने चर्चित फोन टेप कांड में अजित झा के लिए भी अपशब्द कहे थे। योगेंद्र यादव, आनन्द कुमार, प्रशांत भूषण के साथ-साथ इन्हें भी पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया।

26. कपिल मिश्रा ने छोड़ा साथ
आम आदमी पार्टी के पूर्व नेता कपिल मिश्रा को अरविंद केजरीवाल पर भ्रष्टाचार करने का आरोप लगाने के कारण पार्टी से निकाल दिया गया। कपिल मिश्रा उन पर सत्येंद्र जैन से दो करोड़ रुपये की घूस लेने का आरोप लगा चुके हैं। कपिल मिश्रा के मुताबिक उन्होंने अपनी आंखों से ये होते देखा। ऐसे संगीन आरोप वाले कपिल मिश्रा का यह भी कहना है कि केजरीवाल ने बीस करोड़ रुपये से अधिक की हेराफेरी की है।

27. कुमार विश्वास बने 27 वां शिकार
अरविंद केजरीवाल ने राज्यसभा टिकट बंटवारे के साथ ही कुमार विश्वास को किनारे लगा दिया। आम आदमी पार्टी के संस्थापकों में से एक कुमार विश्वास ने कहा कि उन्हें सर्जिकल स्ट्राइक से लेकर तमाम मुद्दों पर सच बोलने की सजा दी गई। कुमार विश्वास ने कहा, ‘अरविंद ने मुझसे एक बार कहा था कि सर जी, आपको मारेंगे, पर शहीद नहीं होने देंगे। मैं अपनी शहादत स्वीकार करता हूं।’ केजरीवाल पर हमला बोलते हुए कुमार ने यह भी कहा कि उनसे असहमत होकर पार्टी में जीवित रहना संभव नहीं है।

28. आशुतोष के अरमानों पर फिरा पानी
पत्रकारिता छोड़कर राजनीति में आने वाले आशुतोष ने भी हाल ही में आम आदमी पार्टी को अलविदा कह दिया। उसके पहले आशुतोष ने ट्वीट कर ये आरोप लगाया कि पिछले लोकसभा चुनावों के दौरान पार्टी नेताओं ने उनसे उनकी जाति का इस्तेमाल करने को कहा था। उन्होंने लिखा, ’23 साल के पत्रकारिता करियर में मुझे कभी अपनी जाति का इस्तेमाल नहीं करना पड़ा, लेकिन जब मैं आम आदमी पार्टी के टिकट से चुनाव लड़ा, तब मुझे जाति का इस्तेमाल करने को कहा गया।’ साफ है आशुतोष को पता चल गया था कि आम आदमी पार्टी जाति आधारित राजनीति को बढ़ावा देती है। फिर भी वो चार साल तक पार्टी के साथ कदम से कदम मिलाकर चलते रहे, लेकिन फैसला तब जाकर किया जब राज्यसभा सांसद बनने के उनके अरमानों पर अरविंद केजरीवाल ने पानी फेर दिया।

29. आशीष खेतान भी हुए परेशान
पार्टी के सीनियर लीडर आशीष खेतान ने भी आम आदमी पार्टी से इस्तीफा दे दिया। केजरीवाल के रवैये से परेशान होकर उन्होंने कहा कि अब वे लीगल प्रैक्टिस करेंगे। पार्टी में साइड लाइन होने के बाद से ही आशीष खेतान नाराज चल रहे थे।

30. एच एस फुल्का का भी हुआ मोहभंग
पार्टी के वरिष्ठ नेता हरविंदर सिंह फुल्का ने भी हाल में इस्तीफा दे दिया। पेशे से वकील फुल्का दिल्ली में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच बढ़ती नजदीकी पर कई बार नाराजगी जता चुके हैं। एचएस फुल्का ने कई बार यह जिक्र किया था कि केजरीवाल सरकार ने 1984 के हिंसा पीड़ितों के लिए उम्मीद के मुताबिक काम नहीं किया। ना पीड़ित परिवारों को मुआवजा दिलवाया ना नौकरी दी।

केजरीवाल ने आंदोलन और राजनीति में जिन लोगों का साथ लिया उनको अपनी सोच मनवाने के लिए मजबूर करते रहे, जो मजबूर नहीं हुए उन्होंने साथ छोड़ दिया और जो मजबूर हैं आज उनके साथ हैं।

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