प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारत आकाश से लेकर पाताल तक नई-नई उपलब्धियां हासिल कर रहा हैं। इसी क्रम में शुक्रवार (29 अक्टूबर, 2021) को एक और इतिहास रचा गया, जब चेन्नई में भारत के पहले मानवयुक्त महासागर मिशन ‘समुद्रयान’ की शुरुआत हुई। इसके साथ ही भारत अमेरिका, रूस, जापान जैसे उन चुनिंदा देशों की सूची में शामिल हो गया, जिनके पास समुद्र के भीतर गतिविधियों के लिए मानवयुक्त मिशन चलाने की क्षमता है। जहां तक विकासशील देशों की बात है तो भारत ऐसी क्षमता हासिल करने वाला पहला देश बन गया है।
मिशन की शुरुआत करते हुए केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने कहा कि पेयजल, स्वच्छ ऊर्जा और समुद्र आधारित अर्थव्यवस्था (ब्लू इकॉनमी) के लिए समुद्री संसाधनों की संभावना के नए अध्याय की शुरुआत हुई है। मानवयुक्त पनडुब्बी ‘मत्स्य 6000’ का प्रारंभिक डिजाइन तैयार कर लिया गया है। केन्द्रीय मंत्री ने बताया कि जहां 500 मीटर तक की गहराई में जाने में सक्षम मानवयुक्त पनडुब्बी के पहले संस्करण का समुद्री परीक्षण 2022 की अंतिम तिमाही में होने की संभावना है, वहीं 6000 मीटर गहरे पानी में जाने में सक्षम संस्करण के 2024 की दूसरी तिमाही तक परीक्षण होने की उम्मीद है। 2.1 मीटर व्यास वाले टाइटेनियम मिश्र धातु से निर्मित मानवयुक्त पनडुब्बी को तीन व्यक्तियों को ले जाने के लिए डिज़ाइन किया गया है।
मोदी राज में गगनयान से समुद्रयान तक
इसरो के मनवयुक्त ‘गगनयान’ मिशन की तरह ही एनआईओटी मानवयुक्त ‘समुद्रयान’ मिशन पर काम कर रहा है। स्वदेश में विकसित ‘समुद्रयान’ दुर्लभ खनिजों का पता लगाने और गहरे समुद्री खनन के लिए भू विज्ञान मंत्रालय की पायलट परियोजना का हिस्सा है। जहां भारत तीन दिशाओं से महासागरों से घिरा हुआ है और देश की लगभग 30 प्रतिशत आबादी तटीय क्षेत्रों में रहती है, वहीं महासागर भोजन, ऊर्जा, खनिज, दवा, मौसम और जलवायु के भंडार हैं और पृथ्वी पर जीवन का आधार हैं। ऐसे में समुद्रयान मिशन से महासागरीय संसाधनों को जनोपयोगी बनाने में मदद मिलेगी।
समुद्रयान से ‘ब्लू इकॉनमी’ में आएगी क्रांति
- समुद्रयान तीन लोगों के साथ 6 किमी की गहराई में समुद्र तल पर 72 घंटे तक चल सकता है।
- यह सामान्य स्थिति में 12 घंटे और आपात स्थिति में 96 घंटे तक समुद्र की गहराई में रह सकता है।
- इससे समुद्र तल और गहरे पानी में जीवित और निर्जीव (जल, खनिज और ऊर्जा) संसाधनों के बारे में जानकारी प्राप्त होगी।
- समुद्रयान से शोधकर्ताओं को प्रत्यक्ष उपस्थित होकर खोज का विशिष्ट अनुभव प्राप्त करने का मार्ग प्रशस्त होगा।
- महासागर में पॉलीमेटेलिक खनिजों के अन्वेषण से निकट भविष्य में वाणिज्यिक दोहन का मार्ग प्रशस्त होगा।
- जलवायु परिवर्तनों से आने वाली आपदाओं का अनुमान लगाने और सहायता प्रदान करने वाले उपकरणों के विकास में मदद मिलेगी।