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Corona Crisis :चीन के प्रति दुनिया में फैला नफरत भारत के लिए मौका

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कोरोना महामारी के मद्देनजर एक तरफ जहां लोगों की जिंदगी बचाने की हरसंभव कोशिश की जा रही हैं, वहीं कोरोना संकट के बाद अर्थव्यवस्था को लेकर विश्वभर में चर्चा काफी जोरों पर है। वर्ल्ड बैंक और मूडी जैसी संस्थाएं अर्थव्यवस्था को लेकर काफी चिताएं जाहिर कर चुकी हैं। लेकिन इन सबसे बीच कोरोना संकट को भारत के लिए एक अच्छा मौका के रूप में देखा जा रहा है। कोरोना के कारण चीन के प्रति दुनिया की नफरत अब जग जाहिर हो चुकी है और ऐसे में खबरें आ रही हैं कि 1000 से ज्यादा कंपनियां अपना बिजनेट समेट कर दूसरे देशों में शिफ्ट करने की तैयारी में है और ऐसे में कोरोना संकट भारत के लिए अच्छा मौका लेकर आ सकता है।  

कंपनियों को आकर्षित करने के लिए राज्य रहें तैयार

इकोनॉमिक्स टाइम्स में छपी खबर के अनुसार सोमवार को कोविड-19 के मुद्दे पर देश के मुख्यमंत्रियों के साथ बैठक में प्रधानमंत्री मोदी ने राज्यों को विदेशी कंपनियों को आकर्षित करने के लिए तैयार रहने को कहा है। खबर के अनुसार उन्होंने मुख्यमंत्रियों से उन कंपनियों को आकर्षित करने के लिए कहा, जो वुहान को कोविड-19 की जड़ मान कर चीन से बाहर निकल रही हैं या निकलने का विचार कर रही हैं। प्रधानमंत्री ने कहा कि राज्यों को अत्यधिक मानव क्षमता और बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर के साथ भारत में ऐसे निवेश के लिए तैयार रहना चाहिए। भारत इन कंपनियों के लिए बढ़िया विकल्प बन कर उभर सकता है। पीएम मोदी ने मुख्यमंत्रियों से कहा, “जैसा कि आप जानते हैं कि कोरोना वायरस संकट के बाद कई इंडस्ट्रीज चीन से बाहर निकलने के विषय में सोच रही हैं। ऐसे में हमें भारतीय राज्यों को निवेश के विकल्प के रूप में पेश करनी की योजना बनानी चाहिए।”

कोरोना संकट को भारत के लिए एक मौका

इससे पहले सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी भी कह चुके हैं कि कोरोना संकट भारत के लिए एक मौका है। उनके अनुुसार कोरोना संकट में दुनिया चीन को नफरत से देख रही है। भारत को इसे आर्थिक मौके में बदलकर विदेशी निवेश आकर्षित करने पर ध्यान देना चाहिए। रविवार को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए छात्रों से बातचीत करते हुए उन्होंने जापान का उदाहरण देकर कहा कि हमें भी ऐसा ही सोचना चाहिए और हम इस पर ध्यान भी देंगे। चीन से कारोबार समेट रही अपनी कंपनियों के लिए जापान ने आर्थिक पैकेज घोषित किया है।

आर्थिक लड़ाई जीतने के लिए भारत तैयार

नीतिन गडकरी ने कहा कि विदेशी निवेश को बढ़ावा देने के लिए क्लीयरेंस और दूसरी सुविधाओं में तेजी लाई जाएगी। वित्त मंत्रालय समेत सभी विभाग और आरबीआई कोरोना के बाद की आर्थिक लड़ाई को जीतने के लिए नीतियां बना रहे हैं। इससे देश को 5 ट्रिलियन डॉलर की इकोनॉमी बनाने का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सपना पूरा होगा। गडकरी ने कहा कि इसी दौरान हम 100 लाख करोड़ का इन्फ्रास्ट्रक्चर भी तैयार कर सकते हैं।

चीन से शिफ्ट करने की तैयारी में 1000 कंपनियां

मीडिया में छपी खबरों के मुताबिक कोरोना वायरस महामारी के कारण हुई दिक्कतों के बीच लगभग 1000 विदेशी कंपनियां सरकार के अधिकारियों से भारत में अपनी फैक्ट्रियां लगाने को लेकर बातचीत कर रही हैं। बिजनस टुडे में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, इनमें से कम से कम 300 कंपनियां मोबाइल, इलेक्ट्रॉनिक्स, मेडिकल डिवाइसेज, टेक्सटाइल्स तथा सिंथेटिक फैब्रिक्स के क्षेत्र में भारत में फैक्ट्रियां लगाने के लिए सरकार से सक्रिय रूप से संपर्क में हैं। अगर इन कंपनियों से बातचीत सफल होती है तो यह भारत के लिए बड़ा फायदा साबित हो सकता है।  

चीन के रवैए से ग्लोबल इकोनॉमी खतरे में: अमेरिका

अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने पिछले हफ्ते कहा था कि चीन ने कोरोनावायरस से जुड़ी जानकारी छिपाई, इससे अमेरिका समेत दुनियाभर की अर्थव्यवस्था के सामने चुनौतियां खड़ी हो गई हैं। चीन की सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी को इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी। अमेरिका समेत दुनियाभर के देशों का चीन पर दबाव है।

ट्रंप ने कोरोना को चाइनीज वायरस कहा

चीन के वुहान से फैले कोरोना वायरस से सबसे ज्यादा नुकसान अमेरिका को हुआ है। अमेरिका में इससे मरने वालों की तादाद 50 हजार से ज्यादा हो गई है। कोरोना के बारे में जानकारी छिपाने के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति कई बार चीन और विश्व स्वास्थ्य संगठन की निंदा कर चुके हैं। व्यापारिक हितो को लेकर अमेरिका और चीन पहले ही एक दूसरे से खिलाफ हैं और दोनों के बीच बिजनेस वार चल रहा था। अब कोरोना के बाद दोनों देशों के बीच दूरियां और बढ़ती दिख रही है। एक पत्रकार के सवाल के जवाब मे अमेरिकी राष्ट्रपति कह चुके हैं कि अगर कोरोना के लिए चीन जिम्मेदार है तो उसे इसके नतीजे भुगतने होंगे। 

कोरोना संकट के मद्देजनर विश्व के आर्थिक विशेषज्ञ यह मान रहे हैं कि आने वाला समय अर्थव्यवस्था के लिए काफी मुश्किल दौर होगा लेकिन कुछ एक्सपर्ट ये भी मान रहे हैं कि भारत इस संकट से जल्द उबरने में कामयाब हो जाएगा। आइए, कुछ प्वाइंट्स के जरिए इसे समझते हैं।

कोरोना संकट का होगा कम प्रभाव

भारत में कोरोना से निपटने के लिए पिछले कुछ समय से उपयुक्त प्रयास किए जा रहे हैं। इस कारण भारत में कोरोना का आर्थिक असर अमेरिका और यूरोप की तुलना में कम है। इसके अलावा भारत की अर्थव्यवस्था कमोबेश आत्मनिर्भर है और वैश्विक व्यापार पर भारत की निर्भरता भी कम है। इसी कारण लॉकडाउन के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था में दुनिया की अन्य अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में पटरी पर लौटने की संभावना अधिक बताई जा रही है।

देश में पर्याप्त खाद्यान्न भंडार

देश का वर्तमान खाद्यान्न भंडार करीब डेढ़ वर्ष तक लोगों की खाद्यान्न संबंधी जरूरतें पूरी करने में सक्षम है। इस महीने तक देश के सरकारी भंडारों में करीब 10 करोड़ टन खाद्यान्न का भंडार होगा। देश में चल रही विभिन्न जन कल्याणकारी योजनाओं और राशन कार्ड रखने वाले लोगों को साल में करीब छह करोड़ टन अनाज वितरित किया जाता है। केंद्र सरकार का मानना है कि लॉकडाउन के मौजूदा दौर में राज्यों द्वारा करीब तीन करोड़ टन खाद्यान्न की मांग तुरंत की जा सकती है। इससे सभी राज्य छह महीने तक खाद्यान्न की जरूरतें सरलता से पूरी कर सकते हैं। इस साल खाद्यान्न का रिकॉर्ड उत्पादन हुआ है और कृषि विशेषज्ञों ने आगामी मानसून की अच्छी संभावनाएं भी जताई हैं।

कच्चे तेल की कीमतों में भारी कमी

पेट्रोलियम उत्पादों के दाम घटने से भारतीय ग्राहकों को फायदा मिलने की संभावना बन गई है। केंद्र सरकार इस मौके का फायदा अपना राजस्व बढ़ाने के रूप में कर रही है। पेट्रोल और डीजल पर उत्पाद शुल्क में वृद्धि करने से राजस्व संग्रह के मोर्चे पर चुनौती झेल रही सरकार को लाभ होगा। विशेषज्ञों का कहना है कि कच्चे तेल की कीमत में भारी कमी से ढांचागत विकास के लिए फंड जुटाने में मदद मिलेगी तथा राजकोषीय घाटे में कमी आएगी।

भारत की बनी बेहतर छवि

कोरोना संकट में भारत की छवि पूरे विश्व में बेहतर हुई है। हाइड्रोक्सी क्लोरोक्वीन दवा के जरिए भारत ने हर एक जरुरतमंद देश की मदद की। अमेरिका, ब्राजील, इसराइल, स्पेन, ग्रेट ब्रिटेन, खाड़ी देश, मलेशिया समेत पड़ोसी देशों जैसे नेपाल, श्रीलंका, मालदीव, श्रीलंका, भूटान को मदद पहुंचाई गई। विश्व के देशों ने भारत की इस पहल की तारीफ की। भारत में कोरोना संकट को देखते हुए हाइड्रोक्सी क्लोरोक्वीन पर बैन लगा दिया था लेकिन मानवता को देखते हुए भारत ने विश्व के देशों मदद पहुंचाई। इसके अलावा नरेंद्र मोदी की पहल पर कोविड-19 और जी-7 देशों की अलग से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए बैठक आयोजित पर विचार विमर्श किया गया।

दवा के क्षेत्र में भारत की कंपनियों को फायदा

अमेरिका को हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन दवा निर्यात करने के बाद भारत की दवा कंपनियों के लिए एक बडी संभाावना खुल गई है। अमेरिका को दवा देने पर भारत में काफी हो हल्ला मचाया गया है। इस तरह की खबरें फैलाई गई कि भारत अमेरिका के आगे झूक गया लेकिन हकीकत ये है कि प्रधानमंत्री मोदी ने इसके बदले उन्होंने अमेरिकी दवा नियामक US FDA को भारतीय दवा कंपनियों के लिए अपना बाजार खोलने के लिए मजबूर कर दिया। जब यह खबर आई कि US FDA ने एक दिन के अंदर ही भारत की पांच दवा कंपनियों के लिए अपना बाजार खोल दिया।

 

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