Home विपक्ष विशेष अहमद पटेल की जीत में कांग्रेस की बड़ी हार छिपी है!

अहमद पटेल की जीत में कांग्रेस की बड़ी हार छिपी है!

अहमद पटेल को जीत दिलाने में कांग्रेस ने बहुत कुछ गंवा दिया, रिपोर्ट

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0.49 प्रतिशत… यही वो आंकड़ा है जिसके अंतर पर अहमद पटेल राज्यसभा की सीट जीतने में सफल रहे हैं। आधा वोट से मिली जीत से कांग्रेसी इतने आह्लादित हैं कि वे वास्तविकता से मुंह मोड़ रहे हैं। दरअसल इस हाफ विक्ट्री में कांग्रेस ने इतना कुछ गंवाया है जिसका अंदाजा शायद जीत के नशे में न हो, लेकिन नशा उतरने के बाद तो पांव तले की जमीन खिसकनी लाजिमी है। अहमद पटेल की ये जीत जितनी असंवैधानिक है उतनी ही अनैतिक भी है, क्योंकि इसमें सियासत के सिद्धांतों और लोकतांत्रिक मूल्यों का नुकसान किया गया है। इसके साथ यह भी स्पष्ट है कि छोटे अंतर से कांग्रेस जीत तो गई है लेकिन वृहद परिप्रेक्ष्य में यह जीत कांग्रेस की एक बड़ी हार है। 

25 प्रतिशत विधायक छोड़ गए कांग्रेस का हाथ
राज्यसभा चुनाव से पहले कांग्रेस के कुल 57 विधायक थे, लेकिन पहले पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष शंकर सिंह वाघेला ने पद छोड़ा फिर पार्टी भी छोड़ दी। फिर एक के बाद एक छह विधायकों ने भी कांग्रेस का दामन छोड़ दिया। रह गए 51 विधायकों में से दो विधायकों ने तो सरेआम कह दिया कि उन्होंने बीजेपी को वोट दिया है। सबसे खास तो यह है कि जिन 44 विधायकों को अहमद पटेल ने कर्नाटक के रिसॉर्ट में कैद रखा था उनमें से भी एक विधायक करमासी बृजभाई पटेल ने क्रॉस वोटिंग कर दी, यानि कांग्रेस को बाकी बचे 51 में से भी 43 विधायकों का समर्थन ही मिला। साफ है कि इस पूरे प्रकरण में कांग्रेस ने अपने 25 प्रतिशत विधायकों को गंवा दिया है लेकिन वह इसे अपनी जीत बताने पर तुली है।

Image result for अहमद पटेल और कांग्रेस61 के बदले कांग्रेस को मिले महज 44 मत 
कांग्रेस के सारे दिग्गजों ने दावे किए थे कि पार्टी के प्रत्याशी को 61 वोट मिलेंगे। इसमें जो उन्होंने समीकरण बताए थे उनमें 57 अपनी पार्टी के साथ 2 एनसीपी, एक जेडीयू और एक अन्य पार्टी के विधायकों के समर्थन का दावा किया था। लेकिन वोटिंग के दिन 57 कांग्रेस के विधायकों में से 14 ने तो साथ नहीं ही दिया एनसीपी ने भी कांग्रेस को ठेंगा दिखा दिया। स्पष्ट है कि कांग्रेस इस एक सीट को जीतने में अपने कई समर्थक विधायकों को गंवाना पड़ा है लेकिन शायद कांग्रेस को आने वाले समय में इस हुए नुकसान की समझ आए!

Image result for गुजराती खाना मिस कर रहे कांग्रेसी

बाढ़ पीड़ितों को भंवर में छोड़ खोया जनाधार
कांग्रेस भले ही जीत पर अपनी पीठ खुद ही थपथपा रही है, लेकिन आने वाले वक्त में अपनी पार्टी के 14 एमएलए का साथ छूटना कांग्रेस के लिए बड़ा सेटबैक साबित होने वाला है। दरअसल गुजरात के बनासकांठा सहित दस जिले जब बाढ़ की तबाही झेल रहे थे तो कांग्रेस के विधायक कर्नाटक में मौज कर रहे थे। उनमें से ज्यादातर ऐसे हैं जिनका जनाधार ही इन्हीं बाढ़ग्रस्त इलाकों से है। लेकिन कांग्रेस ने बाढ़ पीड़ितों के बीच वक्त बिताने, उनकी पीड़ा बांटने का अवसर गंवा दिया है। ये सबकुछ ऐसे समय में हुआ है जब गुजरात चुनाव के तीन महीने बाकी हैं।

Image result for गुजरात में कांग्रेस के बागी

नेतृत्व के प्रति अविश्वास हुआ उजागर
57 में से 14 विधायकों ने पार्टी के विरुद्ध जाकर मतदान किया, लेकिन कांग्रेस बेपरवाह है। पार्टी के भीतर मचे इस भगदड़ की वास्तविकता यह है कि कांग्रेस में नेतृत्व का संकट है। केंद्रीय नेतृत्व हो या राज्य में अहमद पटेल की राज्य में लीडरशिप। दोनों जगहों पर कांग्रेस का नेतृत्व अपने ही पार्टी के विधायकों और नेताओं में विश्वास पैदा करने में असमर्थ साबित हो रहा है। सवाल उठ रहे हैं कि आज कांग्रेस यहां तक आ गयी है कि एक राज्यसभा सीट के लिए भी पूरा जोर लगाना पड़ रहा है। आखिर कांग्रेस की ऐसी गत उनके नेतृत्व के कारण ही तो हुई है।

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अनैतिक तरीके से जीते अहमद पटेल
कांग्रेस पार्टी 0.49 प्रतिशत के अंतर से अहमद पटेल को जितवाने में सफल रही है। लेकिन अगर कांग्रेस के दो बागी विधायकों के वोट रद्द न हुए होते तो अहमद पटेल का जीतना संभव नहीं था। लेकिन यह भी हकीकत है कि अहमद पटेल ने इस जीत के लिए सारे तिकड़म और हथकंडे अपनाए। पहले तो अपनी ही पार्टी के 44 विधायकों को कैद रखा। फिर जेडीयू के विधायक छोटू बसावा को जैसे-तैसे अपने पाले में करने में कामयाब रहे, इसके बाद जीपीपी के एक विधायक जो बीजेपी के खेमे में थे उन्हें अपना शिकार बनाया और फिर चुनाव आयोग में झूठी दलील देकर दो बागी विधायकों के वोट रद्द करवा दिए। जाहिर तौर पर इतने तिकड़मों के बाद जीते अहमद पटेल की यह वास्तविक नहीं अनैतिक जीत है।

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अब तो चुनाव आयोग पर सवाल नहीं उठाएगी कांग्रेस?
चुनाव आयोग ने दो विधायकों के निर्णय रद्द कर यह साबित कर दिया कि वह एक स्वतंत्र संस्था है जिसपर किसी का दबाव नहीं चलता है। लेकिन यही कांग्रेस चुनाव आयोग पर दबाव की बात बार-बार उठाती रही है। यूपी चुनाव में ईवीएम मे गड़बड़ी को लेकर बवाल मचाया तो परिणाम से पहले चुनाव आयोग पर पूरा दबाव बनाए रखा। इतना ही नहीं चुनाव आयोग के निर्णय पर जब बीजेपी ने सवाल उठाया तो कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि हर हारने वाला ऐसा ही करता है। तो क्या कांग्रेस ने यूपी-उत्तराखंड में हार के बाद जानबूझकर हाय तौबा मचाया था। ईवीएम के मुद्दे पर चुनाव आयोग को किस साजिश के तहत बदनाम किया था? तो क्या अब कांग्रेस पार्टी का भरोसा चुनाव आयोग पर कायम हो गया है? ये सवाल इसलिए मौजू हैं कि आने वाले समय में अभी और कई राज्यों में चुनाव हैं और जैसी कि संभावना है कांग्रेस की कारारी हार तय मानी जा रही है। तो क्या कांग्रेस का यही स्टैंड कायम रहेगा?

बहरहाल कांग्रेस जीत को लेकर जितने भी दावे कर ले, लेकिन यह पार्टी द्वारा अपनाए गए अनैतिक हथकंडों की जीत है। लोकतंत्र को अपना गुलाम बनाकर रखने वाली कांग्रेस ने इस बार भी विधायकों की कैद से लेकर हॉर्स ट्रेडिंग तक की कितनी ही कहानियां लिख दी हैं। राहुल-सोनिया के वंशवादी नेतृत्व में आस्था जता-जता कर कांग्रेस यहां तक आ गयी है कि एक राज्यसभा सीट के लिए भी आज उसे पूरा दमखम लगाना पड़ा। महज एक राज्यसभा की सीट के लिये पार्टी ने 14 विधायकों को खो दिया वह भी तब जब तीन महीने बाद ही विधानसभा चुनाव होने हैं। जाहिर है तथ्य यह है कि कांग्रेस भले ही कितना ही दावा कर ले वह जीती तो थोड़े मार्जिन से लेकिन उसकी हार वाकई में बड़ी है। 

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