1984 का दंगा स्वतंत्र भारत का सबसे बड़ा और क्रूर दंगा था, जिसकी रूह को हिला देने वाली घटनाएं आज भी लोगों को कंपा देती हैं। इस दंगे में करीब 2,733 लोगों को जान से मार दिया गया था। यह खौफनाक दंगा कांग्रेसी प्रधानमंत्री राजीव गांधी के कार्यकाल में हुआ था और कांग्रेसी नेताओं ने ही करवाया था। हैरानी की बात यह है कि फिर भी कांग्रेस अपने को देश में धर्मनिरपेक्षता का सबसे बड़ा झंडाबरदार मानती है। यही नहीं, कांग्रेस ने सत्ता की ताकत के बल पर इन दंगों के दोषी कांग्रेसी नेताओं को सजा से बचाने के लिए पूरे सरकारी तंत्र को घुटने के बल कर दिया। यही कारण है कि आज तक इन कांग्रेसी नेताओं को सजा नहीं मिल सकी है।
आखिरकार, एक स्टिंग आपरेशन ने सच्चाई को सामने ला ही दिया। 5 फरवरी 2017 को दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने एक स्टिंग जारी किया, जिसमें कांग्रेसी नेता जगदीश टाइटलर 1984 के सिख दंगों में अपना हाथ होने की बात स्वयं कैमरे के सामने स्वीकार रहे हैं।
1984 में दिल्ली नरसंहार की आंखों देखी घटना- यह आंखों देखी घटना त्रिलोकपुरी, दिल्ली के रहने वाले मोहन सिंह की है-
हम राजस्थान में अलवर के रहने वाले हैं। शुरुआत में हम शाहदरा में कस्तूरबा नगर में रहते थे। वर्ष 1976 में हम त्रिलोकपुरी आए। आपातकाल के दौरान मकानों की तोड़फोड़ हो रही थी और कस्तूरबा नगर के हमारे मकान को भी तोड़ दिया गया। घर तोड़ने के बाद हमें त्रिलोकपुरी में 25-25 गज का प्लॉट देकर पुनर्वास कॉलोनी में बसाया गया था। तीन बेटों सहित हमारा पूरा परिवार वहीं त्रिलोकपुरी में रहता था। मैं ऑटोरिक्शा चलाता था।
वो 31 अक्टूबर 1984 की शाम थी। मैंने रेडियो और टीवी पर इंदिरा गांधी की मौत की खबर सुनी। शुरुआत में हमें पता ही नहीं चला कि ये सब कैसे हुआ। उसके बाद हमने सरदारों के खिलाफ हिंसा की बात सुनी। शुरुआत में सबसे ज्यादा हिंसा सफदरजंग अस्पताल के पास हो रही थी। मैं उसी इलाके में ऑटोरिक्शा चला रहा था।
रास्ते में मैंने देखा कि सरदारों पर हमले हो रहे हैं। शकरपुर में एक और गुरुद्वारा जला हुआ था। मैं डरा हुआ था। शाम छह, सात बजे कत्लेआम शुरू हुआ। चारों ओर अंधेरा था। इलाके का बिजली, पानी काट दिया गया था। इलाके में करीब 200 लोगों की भीड़ इकट्ठा हो गई थी। वो लोगों को घर से निकालते, उन्हें मारते, फिर उन पर तेल छिड़ककर आग लगा देते।त्रिलोकपुरी की तंग गलियों के कारण लोग चाहकर भी भाग नहीं सकते थे। तलवारों से लैस दंगाइयों की भीड़ ने इलाके को घेर रखा था। रात करीब साढ़े नौ बजे मैंने अपने बाल काटे और फिर मैं किसी तरह बचते-बचाते कल्याणपुरी थाने आ गया। थाने में मैंने पुलिसवालों को बताया कि हमारे ब्लॉक 32 में बहुत सारे लोग मारे गए हैं और वहां लूटपाट जारी है। मैंने उनसे मदद की गुहार लगाई। लेकिन मदद करने के बजाय उन्होंने मुझे भगा दिया। उन्होंने मुझसे कहा कि तुम भी एक सरदार हो. दरअसल, मेरे बाल ठीक से नहीं कटे थे।
Public Policy Research Centre का दंगों पर किया गया शोध कुछ महत्वपूर्ण तथ्यों को हमारे सामने रखता है-
• प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु के शासनकाल में 1950 से 1964 के दौरान 16 राज्यों में 243 सांप्रदायिक दंगे हुए।
• प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के शासन काल में 1966-77 तक और 1980-84 तक, 15 राज्यों में 337 सांप्रदायिक दंगे हुए। सभी प्रधानमंत्रियों में सबसे अधिक दंगे प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के काल में हुए। इंदिरा गांधी के शासन काल के दौरान देश की आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था बहुत ही नाजुक रही।
• प्रधानमंत्री राजीव गांधी के शासनकाल 1984-89 के दौरान 16 राज्यों में 291 सांप्रदायिक दंगे हुए। इसमें 1984 का सबसे भीषण सिक्ख दंगा रहा।
• 1950-1995 तक के दंगों पर किये गये इस शोध से तथ्य सामने आता है कि इन वर्षों में कुल 1,194 दंगे हुए जिसमें 871 दंगे यानि 72.95 प्रतिशत दंगे नेहरु, इंदिरा और राजीव गांधी के शासनकाल के दौरान हुए।
• इसमें सबसे अधिक गुजरात राज्य दंगों की चपेट में रहा। इस दौरान अहमदाबाद को छोड़कर पूरे राज्य में 244 दंगे जिसमें 1601 लोगों की हत्या हुई। जबकि अकेले अहमदाबाद में 71 दंगे हुए जिसमें 1701 लोग मारे गये। सारे ही दंगें कांग्रेस राज में हुए। अहमदाबाद का सबसे भीषण दंगा सितंबर-अक्टूबर 1969 में हुआ जिसमें 512 लोग मारे गये और 6 महिनों तक दंगा चला था।
आइए आजादी के समय के नरसंहार को छोड़कर कुछ बड़े नरसंहारों पर नजर डालते हैं, जो कांग्रेस की सत्ता में हुए हैं-
- 1969 अहमदाबाद 512 लोग मारे गये
- 1970 जलगांव 100 लोग मारे गये
- 1980 मुरादाबाद 1500 लोग मारे गये
- 1983 नेयली, आसाम 1819 लोग मारे गये
- 1984 भिवंडी 146 लोग मारे गये
- 1984 दिल्ली 2733 लोग मारे गये
- 1985 अहमदाबाद 300 लोग मारे गये
- 1989 भागलपुर 1161 लोग मारे गये
- 1990 अलीगढ़ 150 लोग मारे गये
- 1992 सूरत 152 लोग मारे गये
- 1993 मुंबई 872 लोग मारे गये
धर्मनिरपेक्षता और गांधी की अहिंसा को आदर्श मानने वाली कांग्रेस का यह असली चरित्र है, जो धर्मों और जातियों को लड़ा कर इस देश की सत्ता में बने रहने का कुचक्र रचती रही है।