कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के करीबी सैम पित्रोदा ने 1984 के सिख विरोधी दंगों को लेकर विवादित बयान दिया है। राहुल का राजनीतिक सलाहकार सैम मे कहा है कि 84 में हुआ तो हुआ। सैम के इस शर्मनाक बयान से देश सकते में है। सुनिए सैम पित्रोदा ने क्या कहा-
सैम पित्रोदा जिस दंगे के बारे में कह रहे हैं कि हुआ तो हुआ… 1984 का यह दंगा स्वतंत्र भारत का सबसे बड़ा और क्रूर दंगा था, जिसकी रूह को हिला देने वाली घटनाएं आज भी लोगों को कंपा देती हैं। इस दंगे में करीब 2,733 लोगों को जान से मार दिया गया था। यह खौफनाक दंगा कांग्रेसी प्रधानमंत्री राजीव गांधी के कार्यकाल में हुआ था और कांग्रेसी नेताओं ने ही करवाया था। कांग्रेस नेता और पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने स्वीकार किया कि सिख दंगो की जिम्मेदार कांग्रेस है और दंगो में 5 कांग्रेसी नेता शामिल थे, जिसमें अर्जुन दास, ललित माकन, सज्जन कुमार, एचकेएल भगत शामिल हैं
दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने 5 फरवरी 2017 को एक स्टिंग जारी किया था, जिसमें कांग्रेसी नेता जगदीश टाइटलर 1984 के सिख दंगों में अपना हाथ होने की बात स्वयं कैमरे के सामने स्वीकार रहे हैं। आखिरकार, एक स्टिंग आपरेशन ने दंगों की सच्चाई को सामने ला ही दिया।
1984 में दिल्ली नरसंहार की आंखों देखी घटना- यह आंखों देखी घटना त्रिलोकपुरी, दिल्ली के रहने वाले मोहन सिंह की है-
हम राजस्थान में अलवर के रहने वाले हैं। शुरुआत में हम शाहदरा में कस्तूरबा नगर में रहते थे। वर्ष 1976 में हम त्रिलोकपुरी आए। आपातकाल के दौरान मकानों की तोड़फोड़ हो रही थी और कस्तूरबा नगर के हमारे मकान को भी तोड़ दिया गया। घर तोड़ने के बाद हमें त्रिलोकपुरी में 25-25 गज का प्लॉट देकर पुनर्वास कॉलोनी में बसाया गया था। तीन बेटों सहित हमारा पूरा परिवार वहीं त्रिलोकपुरी में रहता था। मैं ऑटोरिक्शा चलाता था।
वो 31 अक्टूबर 1984 की शाम थी। मैंने रेडियो और टीवी पर इंदिरा गांधी की मौत की खबर सुनी। शुरुआत में हमें पता ही नहीं चला कि ये सब कैसे हुआ। उसके बाद हमने सरदारों के खिलाफ हिंसा की बात सुनी। शुरुआत में सबसे ज्यादा हिंसा सफदरजंग अस्पताल के पास हो रही थी। मैं उसी इलाके में ऑटोरिक्शा चला रहा था।
रास्ते में मैंने देखा कि सरदारों पर हमले हो रहे हैं। शकरपुर में एक और गुरुद्वारा जला हुआ था। मैं डरा हुआ था। शाम छह, सात बजे कत्लेआम शुरू हुआ। चारों ओर अंधेरा था। इलाके का बिजली, पानी काट दिया गया था। इलाके में करीब 200 लोगों की भीड़ इकट्ठा हो गई थी। वो लोगों को घर से निकालते, उन्हें मारते, फिर उन पर तेल छिड़ककर आग लगा देते।त्रिलोकपुरी की तंग गलियों के कारण लोग चाहकर भी भाग नहीं सकते थे। तलवारों से लैस दंगाइयों की भीड़ ने इलाके को घेर रखा था। रात करीब साढ़े नौ बजे मैंने अपने बाल काटे और फिर मैं किसी तरह बचते-बचाते कल्याणपुरी थाने आ गया। थाने में मैंने पुलिसवालों को बताया कि हमारे ब्लॉक 32 में बहुत सारे लोग मारे गए हैं और वहां लूटपाट जारी है। मैंने उनसे मदद की गुहार लगाई। लेकिन मदद करने के बजाय उन्होंने मुझे भगा दिया। उन्होंने मुझसे कहा कि तुम भी एक सरदार हो. दरअसल, मेरे बाल ठीक से नहीं कटे थे।
राजीव गांधी ने कहा था- जब कोई बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती हिलती है
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के पिता और पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने 1984 में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सिख विरोधी हिंसा का यह कहकर बचाव किया था कि, ‘जब कोई बड़ा पेड़ गिरता है तो आसपास की धरती हिलती है।’
Rajiv Gandhi, the father of mob lynching, justifying the 1984 Sikh bloodletting… How could Rahul even attempt to whitewash this genocide unleashed by the Congress party? pic.twitter.com/0hMNibHQXK
— Amit Malviya (@amitmalviya) August 24, 2018
सच्चाई ये भी है कि कांग्रेस की इस हरकत के लिए पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने माफी भी मांगी थी। 34 साल पहले दिए गए राजीव गांधी के उस बयान को हाल ही में उनकी जयंती पर पश्चिम बंगाल कांग्रेस ने आधिकारिक ट्विटर हैंडल पर स्वीकार भी किया था। लेकिन विवाद होने के डर से बाद में उसे डिलीट कर दिया था।
कमलनाथ को सीएम बनाकर राहुल ने छिड़का सिखों के जख्मों पर नमक
1984 में सिखों का कत्लेआम करने वाले नेताओं को कांग्रेस लगातार बड़ी जिम्मेदारी देती रही है। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ पर भी सिख विरोधी हिंसा में शामिल होने का आरोप है। इसके बावजूद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने कमलनाथ को इतनी बड़ी जिम्मेदारी दे दी। आम आदमी पार्टी के कंवर संधू कहा कि धर्मनिरपेक्षता का दावा करने वाली कांग्रेस पार्टी को ये नहीं भूलना चाहिए कि 1984 के सिख विरोधी दंगों को लेकर कमलनाथ के बारे में क्या आम राय है।
वहीं वरिष्ठ नेता एच एस फूलका ने कहा कि भले ही कमलनाथ को 1984 के सिख विरोधी दंगों को लेकर किसी कानूनी कार्रवाई का सामना नहीं करना पड़ा हो लेकिन ऐसे गवाह हैं जिन्होंने कमलनाथ को दिल्ली के गुरुद्वारा रकाबगंज के पास भीड़ को उकसाते देखा है।
शिरोमणि अकाली दल ने भी कांग्रेस पर सिख दंगों के जिम्मेदार नेताओं को पुरस्कृत करने का आरोप लगाया। दिल्ली में विधायक मनजिंदर सिंह सिरसा ने कहा, ‘जब भी गांधी परिवार सत्ता में आता है तो ये लोग 1984 में हुए सिख विरोधी दंगों के जिम्मेदारों को बचाने का काम करते हैं। अब राहुल कमलनाथ को सीएम पद से नवाज रहे हैं। राहुल गांधी शायद ये संदेश देना चाहते हैं कि सिखों की हत्या में शामिल लोगों को अब चिंता करने की जरूरत नहीं है, वे उनके साथ हैं और उन्हें ईनाम भी देंगे।’
कांग्रेस ने नहीं होने दी जांच
आम आदमी पार्टी के नेता और जाने माने वकील एचएस फूलका ने वर्ष 2006 में एक गवाह अदालत के सामने पेश किया जिसका नाम मुख्त्यार सिंह बताया जाता है। इस गवाह के बयान के आधार पर ही कमलनाथ का नाम सिख विरोधी दंगों से जुड़े मामलों में शामिल किया। लेकिन कांग्रेस ने अपनी चालों से कमलनाथ को फंसने नहीं दिया। एनडीए शासनकाल में सिख विरोधी दंगों की जांच कर रहे नानावटी कमीशन के सामने कमलनाथ की पेशी भी हुई थी। रंगनाथ मिश्रा कमेटी के सामने भी कमलनाथ की पेशी हो चुकी है। तब पत्रकार संजय सूरी ने बतौर गवाह ने कमलनाथ की पहचान की थी।
मोदी सरकार ने दिलाया सिखों को इंसाफ
30 साल से इंसाफ के लिए तरस रहे 1984 सिख विरोधी हिंसा पीड़ितों को मोदी सरकार में 3 साल में इंसाफ मिल गया। पिछले महीने नवंबर में ही दिल्ली की पटियाला हाऊस कोर्ट ने दो सिख युवकों की नृशंस हत्या के मामले में यशपाल सिंह को फांसी और नरेश सहरावत को उम्र कैद की सजा दी है। हैरत की बात ये है कि 1994 में कांग्रेस सरकार के दबाव में दिल्ली पुलिस ने ये केस बंद कर दिया था। लेकिन मोदी सरकार ने 2015 में सिखों को इंसाफ दिलाने के लिए एसआईटी बनाई और एक केस में सजा भी दिला दी।
दरअसल 1984 की सिख विरोधी हिंसा देश के इतिहास में काला अध्याय है। इस हिंसा में देशभर में हजारों सिखों का कत्लेआम हुआ, हजारों मां-बहनों की आबरू से खिलवाड़ किया गया और अरबों रुपये की संपत्ति लूटी गई, लेकिन इसमें शामिल कांग्रेस नेताओं को सरकार लगातार बचाती रही। और तो और तब के प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने अमानवीय बयान देकर इस हत्याकांड को सही ठहराने की कोशिश भी की। बहरहाल सिख संगठनों और पीड़ितों को इंसाफ दिलाने की सबसे गंभीर पहल वाजपेयी सरकार ने साल 2000 में शुरू की लेकिन 2004 में कांग्रेस की सरकार बनने के साथ ही ये प्रक्रिया पटरी से उतर गई। नरसंहार के सबसे बड़े गुनहगार सज्जन कुमार और जगदीश टाइटलर को कांग्रेस ने 2004 में न केवल सांसद बनाया बल्कि सिखों के जख्मों पर नमक छिड़कने के लिए टाइटलर को 2005 में मंत्री भी बना दिया।
कांग्रेस राज में सबसे अधिक दंगे हुए- ऐसा नहीं है, कि कांग्रेस ने सत्ता के मद में 1984 में पहली बार देश में नरसंहार करवाया। देश की आजादी के बाद कांग्रेस की सत्ता के नीचे सैकड़ों नरसंहार हुए हैं। इन नरसंहारों पर नजर डालने पर दिल दहल उठता है। विभाजन की त्रासदी को झेल चुके देश में 1960 तक सामाजिक माहौल आमतौर पर शांत रहा था लेकिन 1961 के बाद से देश में दंगों की संख्या बढ़ने लगी। 1960 में जहां मात्र 26 दंगे हुए थे वहीं 1961 में 1070 दंगों की घटनाऐं हुईं।
कश्मीर में हिंदुओं के नरसंहार के लिए कांग्रेस जिम्मेदार
1986 में हिंदुओं का नरसंहार किया गया। मंदिरों को तोड़ा गया, हिंदू महिलाओं की इज्जत से खिलवाड़ किया गया। उस समय केंद्र में कांग्रेस की ही सरकार थी, लेकिन उसने जान बूझकर आंखें मूंदे रखी। कांग्रेस ने हिंदुओं के कत्लेआम करने की खुली छूट दे रखी थी। दो हजार से अधिक लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया और 4 लाख 50 हजार से अधिक कश्मीरी हिंदुओं को अपना घर-बार छोड़ना पड़ा। कांग्रेस का हिंदुओं से नफरत इस स्तर पर है कि दंगा करने वालों के खिलाफ मुकदमा तक चलाने में बेरूखी दिखाई। विस्थापित कश्मीरी हिंदुओं को न तो मुआवजा दिया गया और न ही उन्हें दोबारा कश्मीर में बसाने के लिए कोई नीति ही बनाई गई।
बंटवारे के वक्त भी हिंदुओं के नरसंहार में कांग्रेस का हाथ
स्वतंत्रता प्राप्ति के वक्त हुए दंगों में 30 लाख हिंदुओं का कत्ल करवाने की दोषी कांग्रेस ही है। दरअसल कांग्रेस ने सत्ता की कुर्सी पाने के लिए धर्म की आड़ में ये सब किया। कलकत्ता दंगे में ही करीब एक लाख से अधिक हिंदुओं का नरसंहार किया गया। इसके बाद 1948 में हैदराबाद में निजाम की सेना ने हिंदुओं पर जुल्म ढाए गए। हिंदू महिलाओं की अस्मत को तार-तार किया जाता रहा। बावजूद इसके तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू मूकदर्शक बनकर देखते रहे, क्योंकि इसमें उनका राजनीतिक हित जुड़ा था।
कांग्रेस के नेताओं ने देश ही नहीं, दिल भी बांट दिया
कांग्रेस ने न सिर्फ देश को बांटा है, बल्कि धार्मिक आधार पर भेदभाव करने और हिंदुओं को जातियों में बांटकर रखने की भी दोषी है। 1971 में पूर्वी पाकिस्तान में लाखों हिंदुओं के कत्लेआम और महिलाओं के बलात्कार को इंदिरा गांधी ने ब्लैक आउट करा दिया था। मतलब साफ था कि हिंदुओं को एकजुट होने से रोको और मुसलमानों के एकमुश्त वोट के बल पर सत्ता हासिल करो।
इसी तरह 1969 में अहमदाबाद में भीषण सांप्रदायिक दंगा कांग्रेस के मुख्यमंत्री हितेंद्र भाई देसाई के समय हुआ। इसके बाद 1985, 1987, 1990 और 1992 में अहमदाबाद में भीषण सांप्रदायिक दंगे हुए और इन दंगों के दौरान गुजरात की बागडोर कांग्रेसी मुख्यमंत्रियों के हाथ में रही। इसके बावजूद न तो दंगाइयों को सजा मिली और न ही दंगा पीड़ितों को इंसाफ।
Public Policy Research Centre का दंगों पर किया गया शोध कुछ महत्वपूर्ण तथ्यों को हमारे सामने रखता है-
• प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु के शासनकाल में 1950 से 1964 के दौरान 16 राज्यों में 243 सांप्रदायिक दंगे हुए।
• प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के शासन काल में 1966-77 तक और 1980-84 तक, 15 राज्यों में 337 सांप्रदायिक दंगे हुए। सभी प्रधानमंत्रियों में सबसे अधिक दंगे प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के काल में हुए। इंदिरा गांधी के शासन काल के दौरान देश की आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था बहुत ही नाजुक रही।
• प्रधानमंत्री राजीव गांधी के शासनकाल 1984-89 के दौरान 16 राज्यों में 291 सांप्रदायिक दंगे हुए। इसमें 1984 का सबसे भीषण सिक्ख दंगा रहा।
• 1950-1995 तक के दंगों पर किये गये इस शोध से तथ्य सामने आता है कि इन वर्षों में कुल 1,194 दंगे हुए जिसमें 871 दंगे यानि 72.95 प्रतिशत दंगे नेहरु, इंदिरा और राजीव गांधी के शासनकाल के दौरान हुए।
• इसमें सबसे अधिक गुजरात राज्य दंगों की चपेट में रहा। इस दौरान अहमदाबाद को छोड़कर पूरे राज्य में 244 दंगे जिसमें 1601 लोगों की हत्या हुई। जबकि अकेले अहमदाबाद में 71 दंगे हुए जिसमें 1701 लोग मारे गये। सारे ही दंगें कांग्रेस राज में हुए। अहमदाबाद का सबसे भीषण दंगा सितंबर-अक्टूबर 1969 में हुआ जिसमें 512 लोग मारे गये और 6 महिनों तक दंगा चला था।
आइए आजादी के समय के नरसंहार को छोड़कर कुछ बड़े नरसंहारों पर नजर डालते हैं, जो कांग्रेस की सत्ता में हुए हैं-
- 1969 अहमदाबाद 512 लोग मारे गये
- 1970 जलगांव 100 लोग मारे गये
- 1980 मुरादाबाद 1500 लोग मारे गये
- 1983 नेयली, आसाम 1819 लोग मारे गये
- 1984 भिवंडी 146 लोग मारे गये
- 1984 दिल्ली 2733 लोग मारे गये
- 1985 अहमदाबाद 300 लोग मारे गये
- 1989 भागलपुर 1161 लोग मारे गये
- 1990 अलीगढ़ 150 लोग मारे गये
- 1992 सूरत 152 लोग मारे गये
- 1993 मुंबई 872 लोग मारे गये
धर्मनिरपेक्षता और गांधी की अहिंसा को आदर्श मानने वाली कांग्रेस का यह असली चरित्र है, जो धर्मों और जातियों को लड़ा कर इस देश की सत्ता में बने रहने का कुचक्र रचती रही है।