Home गुजरात विशेष साजिशों के सहारे गुजरात जीतना चाहती है कांग्रेस !

साजिशों के सहारे गुजरात जीतना चाहती है कांग्रेस !

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नरेंद्र पटेल का भाजपा पर खरीद-फरोख्त आरोप लगाना… निखिल सवानी का 15 दिन में ही भारतीय जनता पार्टी छोड़ देना… इसी मसले पर राहुल गांधी का ट्वीट करना… हार्दिक पटेल का कांग्रेस को समर्थन देने की घोषणा करना और अल्पेश ठाकोर का कांग्रेस में शामिल हो जाना… ये क्या है? जाहिर तौर पर राजनीति की थोड़ी बहुत भी समझ रखने वाला यह समझ लेगा कि इस ड्रामे का प्लॉट पहले से तैयार था बस सही मुहुर्त पर पर्दा उठाना भर बाकी था… और ये पिछले 24 घंटों में ही इस ड्रामे का क्लाइमेक्स भी आ गया। इस ड्रामे पर कांग्रेस के युवराज ने अपना ‘क्रांतिकारी’ भाषण भी दे डाला।


दरअसल कांग्रेस यह मानकर बैठी है कि विकास के मुद्दे पर वह बीजेपी को हरा नहीं पाएगी इसलिए अगर गुजरात में जीत हासिल करनी है तो साजिशें रचनी ही होंगी। कांग्रेस के रणीतिकारों ने इसे बीते तीन सालों में बखूबी अंजाम भी दिया है… लेकिन शायद इन रणनीतिकारों को भान नहीं है कि गुजरात की जनता कांग्रेस के सारे खेल को समझ चुकी है और इस झांसे में नहीं आने वाली है। आइये पांच ‘पटकथाओं’ से समझते हैं कांग्रेस की साजिश-

गुजरात चुनाव जीतने के लिए के लिए चित्र परिणाम

पटकथा नंबर -1
नरेंद्र पटेल और निखिल सवानी… पाटीदार समुदाय के ये दो नाम ऐसे हैं जिन्होंने कांग्रेस की स्क्रिप्ट के अनुसार अपनी भूमिका निभाई है। निखिल सवानी 15 दिन पहले बीजेपी में शामिल हुए और नरेंद्र पटेल 22 अक्टूबर को बीजेपी का हिस्सा बने, लेकिन टाइमिंग देखिये बीजेपी में शामिल होने के 15 घंटे के भीतर नरेंद्र पटेल 10 लाख की गड्डी लेकर रात के 11 बजे टेलिविजन चैनलों पर आ गए। आरोप बीजेपी पर खरीद फरोख्त का लगाया और पार्टी से इस्तीफा दे दिया। समझा जा सकता है कि जिस व्यक्ति ने पहले 1 करोड़ का डील किया और 10 लाख ले भी लिया और सोमवार को बाकी के 90 लाख लेने वाले थे। तो फिर इतनी जल्दी क्या थी कि वे कैमरे के सामने आ गए। एक करोड़ मिलते तो सामने आते, आखिर इतनी जल्दी भी क्या थी भाई? जाहिर है इसमें कोई डील नहीं थी, लेकिन एक फील जरूर थी कि इससे बीजेपी की फजीहत हो जाएगी। नरेंद्र पटेल से जब सवाल पूछे जाने लगे तो वे बगलें झांकने लगे। इसी तरह निखिल सवानी ने भी बीजेपी छोड़ने का नाटक किया और कांग्रेस को बेहतर करार दे दिया। कांग्रेस विरोध की बुनियाद पर राजनीति करने वाले निखिल सवानी की विश्वसनीयता तो खुद सवालों में आ गई है। क्योंकि पाटीदारों का समर्थन उन्हें इसीलिए मिला था कि सभी पाटीदार नेताओं ने यह कहा था कि वह बीजेपी से दूरी बना रही है तो कांग्रेस के साथ भी नहीं जाएगी, लेकिन अब इनका U-Turn साजिश नहीं तो क्या है?

नरेंद्र पटेल और निखिल सवानी के लिए चित्र परिणाम

पटकथा नंबर-2
हार्दिक पटेल और राहुल गांधी के बीच 23 अक्टूबर को मुलाकात हुई, लेकिन हार्दिक ने राहुल के साथ कैमरे के सामने आने से इनकार कर दिया। जाहिर है यह निर्णय उस दुविधा के कारण लिया गया जिसमें पाटीदार समुदाय हार्दिक को गद्दार न करार दे दे। दरअसल इनकी पूरी मंशा है कि पाटीदार समुदाय को मोदी विरोध के नाम पर इस्तेमाल कर कांग्रेस के हित को फायादा पहुंचाया जाए, लेकिन पाटीदारों का मन-मिजाज तो बीजेपी से मिलता है। ऐसे में हार्दिक पटेल का लुका-छिपी का ये खेल लोगों को समझ में आने लगा है। हालांकि हार्दिक पटेल ने कई बार संकेत दिए हैं कि वे कांग्रेस का समर्थन करेंगे। दरअसल हार्दिक पटेल के पिता भरत पटेल बीजेपी में रहे थे, लेकिन पुत्रमोह में पार्टी छोड़ कांग्रेस का दामन थाम लिया। अब भरत पटेल और हार्दिक पटेल की कांग्रेस से क्या डील हुई यह तो उन्हें ही पता होगा, लेकिन इतना तय है कि साधारण परिवार से आने वाले हार्दिक पटेल की गाड़ियों का काफिला, लाव लश्कर का खर्च कहां से आता है। फ्लाइट का खर्च कौन देता है। जाहिर है ये साजिश नहीं तो क्या है?

नरेंद्र पटेल और निखिल सवानी राहुल गांधी के लिए चित्र परिणाम

पटकथा नंबर-3
गुजरात चुनाव जब भी आता है कांग्रेस को बुखार लग जाता है। प्रधानमंत्री ने 16 अक्टूबर को गुजरात में ये बात कही थी तो जनसभा में उपस्थित भीड़ ने जबरदस्त रिस्पॉन्स दिया था। यानी जनता भी कांग्रेस की पीड़ा और छटपटाहट को जानती है। याद कीजिए प्रधानमंत्री मोदी को 2002 के दंगों के बाद जब कांग्रेस ने ‘मौत का सौदागर’ कहा था। याद कीजिए जब पीएम मोदी को कांग्रेस ने ‘जहर की खेती’ करने वाला कहा था। याद कीजिए जब कांग्रेस ने ‘खून की दलाली’ करने वाला कहा था। जाहिर तौर पर ऐसे शब्द यूं ही नहीं निकलते। ये प्री-प्लांट होते हैं और इसकी स्क्रिप्ट तैयार की जाती है। ये स्क्रिप्ट भी गुजरात चुनावों से जोड़कर लिखी गई थी, लेकिन जब शब्दों के ऐसे वार पीएम मोदी को डिगा नहीं पाए तो कांग्रेस पार्टी ने समझ लिया कि बिना साजिश के गुजरात फतह करना कठिन है। साजिश रची गई उना कांड की। इसमें कांग्रेसी साजिश की परतें खुलती चली गई। साजिश रची गई गौरक्षकों द्वारा दलितों की पिटाई की, इसमें भी अहमद पटेल की साजिश की बू आई। साजिश रची गई दलितों को मूंछें नहीं रखे देने की, तो ये मामला भी झूठा निकला और सरकार को बदनाम करने की ही साजिश निकली। यानी कांग्रेस अपनी गिरावट की चरम सीमा पर है, इसके बाद कांग्रेस का पतन नहीं तो क्या होगा? क्योंकि जनता कांग्रेस की ऐसी साजिश को पिछले कई चुनावों में देख चुकी है…और इस बार भी वो कांग्रेस के खेल को पकड़ चुकी है।गुजरात में कांग्रेस की साजिश के लिए चित्र परिणाम

पटकथा नंबर-4
प्रधानमंत्री मोदी जब गुजरात के सीएम थे तो उन्होंने सूबे की तस्वीर बदल दी थी। आज देश-दुनिया गुजरात मॉडल को जानती-समझती है। इसका अध्ययन करने आती है। विकास के हर पैमाने पर गुजरात आगे है। प्रतिव्यक्ति आय, बिजली उत्पादन, खेती का विकास, डेयरी का विकास, इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट, सड़कों का विकास, शहरों का विकास, गांवों का विकास या महिलाओं का सशक्तिकरण। तमाम मामलों में आज गुजरात सबसे आगे है। गुजरात के लोग स्वयं को गुजराती कहलाने में गर्व का अनुभव करते हैं। ऐसा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विकास कार्यों और गुजरात की अस्मिता और स्वाभिमान को एक नया आयाम देने के कारण हुआ है। पिछले 12 महीने में ही प्रधानमंत्री मोदी 10 बार गुजरात का दौरा कर चुके हैं और इन दौरों में उन्होंने हर बार गुजरात को विकास योजनाओं की विशेष सौगात दी है। इसके साथ ही उन्होंने गुजरात को विकास की नयी ऊंचाईयों पर पहुंचाने का संकल्प भी हर बार दोहराया है। जाहिर तौर पर कांग्रेस के पास गुजरात के विकास की काट नहीं है। क्योंकि बीते 70 वर्षों में देश को खोखला कर देने वाली कांग्रेस ने गुजरात के साथ भी हर स्तर पर छल किया है। सरदार सरोवर योजना तो इसका ज्वलंत उदाहरण है, क्योंकि यह बांध 56 सालों से इसलिए तैयार नहीं होने दिया गया क्योंकि इसमें सरदार पटेल का नाम जुड़ा था।

पटकथा नंबर-5
12 सितंबर, 2017 को अमेरिका में कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा, ”भारत की प्रकृति वंशवाद की है।” 13 अक्टूबर, 2017 को कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कहा, ”अब समय आ गया है कि कांग्रेस अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी राहुल गांधी को सौंप दी जाए।” यानी सब सेट है… और राहुल गांधी का कांग्रेस अध्यक्ष बनना भी तय है, लेकिन राहुल की ताजपोशी में अड़चन भी बड़ी है। दरअसल कांग्रेस पार्टी राहुल गांधी को हर बार मेगा लॉन्चिग के जरिये भारतीय राजनीति में स्थापित करना चाहती है, लेकिन वो फेल हो जाते हैं। पिछले कई चुनावों में राहुल गांधी खराब तरीके से हारते रहने का रिकॉर्ड भी लगातार बनाते जा रहे हैं। अब तक उनके नेतृत्व में लड़ा गया एक भी चुनाव कांग्रेस पार्टी ने नहीं जीता है। वो 2014 का लोकसभा चुनाव हो या फिर हाल में हुए पांच विधानसभा चुनाव। जाहिर तौर पर कांग्रेस में वरिष्ठ नेताओं और लाखों कार्यकर्ताओं को राहुल गांधी पर भरोसा नहीं है। यही भरोसा जताने के लिए राहुल के नेतृत्व में एक अदद जीत की जरूरत है। गुजरात में कांग्रेस इसलिए भी सारे दांव लगा रही है क्योंकि उसे पता है भाजपा का गढ़ है गुजरात। अगर यहां उसे सफलता मिलती है तो 2019 में राहुल को प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर आगे किया जा सकता है, लेकिन क्या देश की जनता ऐसा होने देगी? साफ है कि नहीं, क्योंकि गुजरात में भी राहुल की अगुआई में कांग्रेस सबसे खराब हार की ओर बढ़ती जा रही है।राहुल को लॉन्च के लिए चित्र परिणाम

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