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कर्नाटक में कांग्रेस को मुसलमानों का वोट चाहिए, इसके लिए वह कुछ भी कर रही है

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कर्नाटक में चुनाव की घोषणा से पहले से ही कांग्रेस हर तरह से मुसलमानों पर डोरे डालने में लगी है। चुनाव करीब आने के बाद तो वह मुस्लिम वोट बैंक के लिए संविधान और आदर्श चुनाव आचार संहिता को भी ताक पर रख चुकी है। पार्टी के जिम्मेदार नेता अब खुलेआम धर्म के नाम पर मुसलमानों को भड़काने लगे हैं। आचार संहिता लागू रहने के दौरान कांग्रेस की ओर से हो रही है इस हरकत पर चुनाव आयोग क्या संज्ञान लेता है, ये देखने वाली बात होगी।

मुसलमान एकजुट होकर कांग्रेस को करें मतदान- गुलाम नबी आजाद
कर्नाटक के कलबुर्गी की एक चुनावी सभा में वरिष्ठ कांग्रेसी और राज्यसभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद ने मुसलमानों से विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को वोट देने की अपील की है। उन्होंने कहा है, “भाजपा को किसी भी हाल में कर्नाटक की सत्ता में नहीं आने देना चाहिए। मुसलमानों को बड़ी तादाद में एकजुट होकर कांग्रेस उम्मीदवार के पक्ष में मतदान करना चाहिए।” उन्होंने मुसलमानों से यह भी कहा कि आप हिंदुओं की आलोचना करेंगे, तो भाजपा सत्ता में आ जाएगी। इसलिए हिंदुओं की आलोचना के बजाय कांग्रेस के पक्ष में वोट डालिए। आजाद का यह बयान सीधे तौर पर चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन के दायरे में आ सकता है।

मुस्लिमों के लिए हिंदुओं का करती आई है अपमान
कर्नाटक में हिंदुओं का अपमान और मुसलमानों को उकसाने का काम कांग्रेस ने चुनाव की घोषणा से बहुत पहले ही शुरू कर दिया था। यही कारण है जब देश में गोमांस की खरीद-बिक्री पर रोक का विवाद चल रहा था, तब राज्य के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने खुलेआम बीफ खाने को बढ़ावा दिया। अक्टूबर, 2015 में यूथ कांग्रेस के एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा था, “अब मैं बीफ खाऊंगा, आप कौन होते हैं रोकने वाले?’’ इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा था, ‘’आज तक मैंने कभी गाय का मांस नहीं खाया है, लेकिन अगर मुझे इसका स्वाद सही लगा तो कोई मुझे नहीं रोक सकता है।‘’ यही नहीं मैसुरू के एक कार्यक्रम में खुद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने हिंदुओं की स्थानीय पगड़ी ‘पेटा’ पहनने तक से इनकार कर दिया।

हिंदुओं को बांटने का किया है हर प्रयास
विधानसभा चुनाव से ठीक पहले हिंदुओं को बांटने के लिए सिद्धारमैया सरकार ने एक ही परंपरा से आने वाले वीरशैव लिंगायत और लिंगायत में भी फूट डालने की कोशिश की थी। कर्नाटक की मौजूदा सरकार ने लिंगायत को अलग धार्मिक अल्पसंख्यक समुदाय का दर्जा देने का फैसला भी इसलिए किया। दरअसल लिंगायत समुदाय का राज्य की 224 विधानसभा सीटों में से 100 से ज्यादा पर सीधा प्रभाव माना जाता है। पारंपरिक तौर पर लिंगायतों को भाजपा का वोटर माना जाता रहा है।

तुष्टिकरण का कोई मौका नहीं छोड़ा है
कर्नाटक की कांग्रेस सरकार ने चुनाव से पहले आनन-फानन में दंगों में शामिल सभी मुसलमानों पर से केस हटा लिया था। जनवरी, 2018 में एक सर्कुलर जारी किया गया, जिसमें अल्पसंख्यकों के खिलाफ पिछले 5 सालों में दर्ज सांप्रदायिक हिंसा के केस वापस लिए जाने का आदेश था। यही नहीं, राज्य की जनता के भारी विरोध को दरकिनार करके भी सिद्धारमैया सरकार ने टीपू सुल्तान का महिमामंडन किया। गौर करने वाली बात है कि कर्नाटक में एक बड़ा वर्ग टीपू को कट्टर और आततायी मानता है। कोडावा समुदाय तो उसे धर्मांध और अत्याचारी बताकर नफरत करते हैं, तो मेलकोट गांव के लोग उसे 800 ब्राह्मणों का हत्यारा मानते आए हैं।

कांग्रेस को चुनाव के समय ही याद आते हैं हिंदू
गुजरात चुनाव के बाद कांग्रेस ने कर्नाटक में भी सॉफ्ट हिंदुत्व की राह अपना ली है। पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी अब तक कर्नाटक में गावी सिद्धेश्वर मठ, हुलगम्मा मंदिर, कनकचला लक्ष्मी नरसिम्हा मंदिर, कलबुर्गी के शरणाबासवेश्वरा मंदिर, बेलगावी के वीरभद्रेश्वरा मंदिर, सवादात्ती यलाम्मा मंदिर, धारवाड़ के मुरुगा मठ, श्रृंगेरी के शारदा देवी मंदिर, मंगलुरु के कुद्रोली गोकरणनाथेश्वर मंदिर, कोलार के कुरुदुमलाई गणेश मंदिर,टुमाकुरु के सिद्धगंगा मठ, बेंगलुरु के अधिचंचनागिरि मठ, मैसूर के चामुंडेश्वरी मंदिरों में जा चुके हैं। सबसे बड़ी बात ये है कि इसी दौरान उन्होंने जल्द ही कैलाश मानसरोवर की यात्रा पर जाने की भी घोषणा की है। इसी तरह कभी बीफ खाने की बात करने वाले सीएम सिद्धारमैया ने भी नामांकन भरने से पहले अपने गांव के कई मंदिरों में पूजा-अर्चना की और बाद मैसुरू में मां चामुंडेश्वरी देवी का दर्शन किया था। ये वो लोग हैं जो चुनाव न हो तो मंदिर वाले रास्ते से गुजरने से भी परहेज करेंगे।

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