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बीबीसी दिखा रहा था कानून को ठेंगा, ईडी ने डिलीट ईमेल खोज निकाला, खुल गई पोल! आयकर सर्वे पर छाती कूटने वाले अब क्या करेंगे?

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भारत विरोधी और हिंदू विरोधी ब्रिटेन का मीडिया संस्थान ब्रिटिश ब्रॉडकास्टिंग कॉरपोरेशन (BBC) के दिल्ली और मुंबई के दफ्तरों पर 14 फरवरी 2023 को आयकर सर्वे किया गया था। आयकर सर्वे एक सामान्य प्रक्रिया थी और आयकर विभाग को जब कुछ टैक्स चोरी या कुछ असामान्य दिखता है तो वह इसकी जांच करता है। उस समय कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी दलों एवं लेफ्ट लिबरल गैंग ने छातीकूट हाहाकार मचाया था। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर खतरा बताकर मोदी सरकार के खिलाफ नैरेटिव बनाने की कोशिश की थी। लेकिन अब बीबीसी के साथ ही इन सब की पोल खुल गई है। प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने वित्तीय अनियमितता को लेकर बीबीसी इंडिया के खिलाफ विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (FEMA) के तहत मामाल दर्ज कर लिया है। बीबीसी इंडिया पिछले तीन साल से डिजिटिल मीडिया संस्थान में 26 प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) कानून का उल्लंघन करती रही है। दिए गए नोटिस का जवाब नहीं दिया और जानबूझकर भारतीय कानून के दायरे से खुद को बाहर रखा।

बीबीसी जानबूझकर कर रहा था भारतीय कानून का उल्लंघन

क्या कोई संस्थान भारतीय कानून का उल्लंघन कर भारतीय धरती से काम कर सकता है? जवाब होगा नहीं। लेकिन बीबीसी ऐसा कर रहा था और वह भी जानबूझकर। इस संबंध में बीबीसी को कई नोटिस भेजे गए लेकिन उसने सभी को अनदेखा कर दिया। जांच आगे बढ़ी तो एजेंसियों को बीबीसी के ईमेल में वित्तीय अनियमितता के कई सबूत मिले। जब बीबीसी को इस बात की जानकारी हुई कि इन ईमेल से उनका भेद खुल जाएगा तो उन्होंने ईमेल डिलीट कर दिया। लेकिन प्रवर्तन निदेशालय ने उस ईमेल को रिट्रीव कर लिया है। यानी उसके पास अब सबूत है। इसके बाद मामला दर्ज कर लिया गया और आगे की जांच की जा रही है।

बीबीसी इंडिया के खिलाफ विदेशी मुद्रा उल्लंघन का मामला दर्ज

प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने समाचार प्रसारक बीबीसी इंडिया के खिलाफ विदेशी मुद्रा उल्लंघन को लेकर फेमा मामला दर्ज किया है। समाचार कंपनी के कुछ वरिष्ठ अधिकारियों से पूछताछ की गई है। अधिकारियों ने बताया कि ईडी ने विदेशी मुद्रा प्रबंधन कानून (फेमा) के प्रावधानों के तहत दस्तावेज मांगे हैं और कंपनी के कुछ अधिकारियों के बयान दर्ज करने को कहा है। उन्होंने कहा कि जांच अनिवार्य रूप से कंपनी द्वारा प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) के उल्लंघन की हो रही है। इस साल 14 फरवरी को आयकर विभाग ने कर चोरी की जांच के तहत लंदन मुख्यालय वाले प्रसारक के दिल्ली और मुंबई स्थित कार्यालयों में सर्वेक्षण अभियान चलाया था। यह सर्वेक्षण तीन दिनों तक चला था।

सीबीडीटी ने कहा था- बीबीसी की आय और लाभ परिचालन के पैमाने के अनुरूप नहीं

आयकर विभाग की प्रशासनिक संस्था केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) ने कहा था कि बीबीसी समूह की विभिन्न इकाइयों द्वारा दिखाई गई आय और लाभ भारत में उनके परिचालन के पैमाने के अनुरूप नहीं है और इसकी विदेशी संस्थाओं द्वारा कुछ प्रेषण पर कर का भुगतान नहीं किया गया है। सीबीडीटी के अनुसार संगठन के संचालन से संबंधित कई सबूत एकत्र किए हैं जो इंगित करते हैं कि कुछ प्रेषण पर कर का भुगतान नहीं किया गया है, जिसे समूह की विदेशी संस्थाओं की ओर से भारत में आय के रूप में प्रकट नहीं किया गया है।

बीबीसी ने वर्षों से ट्रांसफर प्राइसिंग नियमों का पालन नहीं किया

बीबीसी ने वर्षों से ट्रांसफर प्राइसिंग नियमों का लगातार पालन नहीं किया है। उसी के परिणामस्वरूप, बीबीसी को कई नोटिस जारी किए गए हैं। हालांकि, बीबीसी लगातार इस पर ध्यान नहीं दे रहा है और अड़ियल रवैया अपनाकर इसकी अनदेखी करता रहा। मतलब कि इस नियम के प्रति बीबीसी Non-compliance रहा है। अभी जो सर्वे (Income Tax Survey) किया गया है, उसका उद्देश्य यह पता लगाना है कि कितने की टैक्स चोरी हुई है। सूत्रों के अनुसार, बीबीसी ने बड़े पैमाने पर अपने मुनाफे को काफी हद तक डायवर्ट किया है।

क्या है ट्रांसफर प्राइसिंग, जिसके लिए BBC पर हुई कार्रवाई

ट्रांसफर प्राइसिंग का निर्धारण एक अकाउंटिंग प्रेक्टिस है। यह उस मूल्य का प्रतिनिधित्व करता है जो किसी कंपनी में एक डिवीजन कंपनी के ही किसी दूसरे डिवीजन से प्राप्त करता है या भुगतान करता है। दरअसल, किसी एक कंपनी के कोई डिवीजन अन्य डिवीजन से वस्तु या सेवा की खरीद बिक्री करते रहते हैं। उनके बीच कोई नकदी का आदान प्रदान होता नहीं है, बस उसे अकाउंट में चढ़ा लिया जाता है। उसे ही इनकम टैक्स की भाषा में ट्रांसफर प्राइसिंग कहते हैं।

ट्रांसफर प्राइसिंग की आड़ में बेजा फायदा उठाती हैं कुछ कंपनियां

ट्रांसफर प्राइसिंग के लिए इनकम टैक्स विभाग ने नियम बनाए हुए हैं। ट्रांसफर प्राइसिंग किसी कंपनी या इनटिटी को सहायक कंपनियों, सहयोगी कंपनियों, या सामान्य रूप से नियंत्रित कंपनियों के बीच वस्तुओं और सेवाओं के आदान-प्रदान के लिए कीमतों की स्थापना की अनुमति देता है। टैक्स अथॉरिटीज किसी कंपनी के टैक्स से बचने या कम टैक्स चुकाने की दशा में ऐसी प्राइसिंग के जरिए टैक्स के ऊंचे रेट वाले देश से कम टैक्स वाले देश में इनकम के ट्रांसफर रोकने के लिए आमतौर पर सख्त नियम लागू करता है। इन्हीं नियमों की आड़ में कुछ कंपनियां खूब फायदा भी उठाती है। बीबीसी भी ट्रांसफर प्राइसिंग में लिप्त रही है।

डिजिटल न्यूज मीडिया के लिए 26 प्रतिशत FDI कैप

केंद्र सरकार ने डिजिटल समाचार कंपनियों के लिए 26 प्रतिशत एफडीआई सीमा सितंबर 2019 में लागू की थी। सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने 16 नवंबर 2019 को एक सार्वजनिक नोटिस के जरिये इसे लागू होने की जानकारी दी थी। सितंबर 2019 से पहले, FDI कैप केवल प्रिंट मीडिया के लिए 26 प्रतिशत और समाचार प्रसारण टेलीविजन कंपनियों के लिए 49 प्रतिशत मौजूद थी, डिजिटल मीडिया के लिए ऐसी कोई सीमा नहीं थी। चूंकि प्रिंट और प्रसारण समाचार प्लेटफार्मों के लिए एफडीआई कैप पहले से मौजूद है, इसलिए यह नया कदम सभी माध्यमों – प्रिंट, प्रसारण और डिजिटल मीडिया के लिए एक समान अवसर पैदा कर रहा है। इस कानून के लागू होने की जानकारी होने के बावजूद बीबीसी लगातार इसे नजरअंदाज करता रहा। बीबीसी के उच्च अधिकारियों के बीच इस नए एफडीआई कानून को लेकर ईमेल के जरिये करीब तीन साल तक चर्चा हुई उसके बावजूद उन्होंने इसका पालन नहीं किया।

बीबीसी इंडिया में मूल कंपनी की 100 प्रतिशत हिस्सेदारी कैसे?

बीबीसी भारत में बीबीसी वर्ल्ड सर्विस इंडिया प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के नाम से काम करती है। यह कंपनी ब्रिटिश मीडिया कंपनी बीबीसी वर्ल्ड सर्विस की सब्सिडियरी (सहायक) कंपनी है। बीबीसी वर्ल्ड सर्विस इंडिया प्राइवेट लिमिटेड कंपनी में बीबीसी वर्ल्ड सर्विस की 100 प्रतिशत हिस्सेदारी है। 2019 के कानून के मुताबिक यह 26 प्रतिशत से ज्यादा नहीं हो सकती है। इस कानून की जानकारी होते हुए भी बीबीसी ने इस पर अमल नहीं किया। भेजे गए नोटिस का जवाब नहीं दिया। और तीन साल तक उच्च अधिकारियों के बीच इसे लेकर केवल आपस में चर्चा ही होती रही। ऐसा लगता है कि जैसा कांग्रेस के शासनकाल में आमतौर पर होता था कि जब चीजें मैनेज हो जाती थी, बीबीसी ने सोचा होगा कि इसे भी मैनेज कर लिया जाएगा। लेकिन अब नया भारत है, न खाऊंगा न खाने दूंगा वाली मोदी सरकार है। तो बीबीसी की घपलेबाजी पर नियम के अनुरूप ही कार्रवाई जा रही है।

याहू इंडिया ने अगस्त 2021 में भारत में समाचार सर्विस बंद कर दी

डिजिटल मीडिया के लिए 2019 में नए एफडीआई नियम लागू होने के बाद अमेरिका की जानी-मानी कंपनी याहू इंडिया ने अगस्त 2021 में भारत में समाचार सर्विस बंद कर दी थी। कंपनी ने कहा था कि नए मीडिया इन्वेस्टमेंट नियमों की वजह से उसने भारत में न्यूज, क्रिकेट, फाइनेंस, एंटरटेनमेंट और मेकर्स इंडिया की सर्विस बंद कर दी है। हालांकि यूजर्स के लिए पहले की तरह याहू ई-मेल और सर्च सर्विसेज चलती रहेंगी। भारत में डिजिटल कंटेंट का ऑपरेशन और पब्लिकेशन करने वाली मीडिया कंपनियों के विदेशी स्वामित्व को सीमित करने वाले नए प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) नियमों के चलते कंपनी ने यह कदम उठाया। यानी याहू इंडिया के पास कानून के मुताबिक दो विकल्प थे या तो वह प्रत्यक्ष विदेशी निवेश कानून के मुताबिक 26 प्रतिशत हिस्सेदारी अपने पास रखती और बाकी हिस्सेदारी किसी भारतीय मीडिया संस्थान अथवा व्यक्ति के पास होती और दूसरा कि अपनी सेवा भारत से बंद कर ले। नए आईटी नियमों का मतलब है कि याहू इंडिया को देश में समाचार और करंट अफेयर्स व्यवसाय संचालित करने के लिए एक खास समय सीमा के भीतर अपने पूरे मीडिया व्यवसाय का पुनर्गठन करना होता। याहू ने कानून पर अमल करते हुए दूसरा विकल्प चुना।

अमेरिकी मीडिया कंपनी हफपोस्ट ने भी बंद किया भारत कारोबार

अमेरिका आधारित मीडिया कंपनी हफपोस्ट (पूर्व में ‘द हफिंगटन पोस्ट’) ने नवंबर 2020 में भारत में परिचालन बंद कर दिया था। द वायर ने रिपोर्ट किया है, इसने नवंबर 2020 में नए एफडीआई नियमों को देखते हुए भारत में कारोबार बंद कर दिया। अब सवाल उठता है कि कानून जब सभी के लिए बराबर है तो बीबीसी ने तीन साल तक इसे अनदेखा कैसे किया। याहू और हफपोस्ट ने अपना कारोबार बंद करने का निर्णय लिया जबकि बीबीसी भारतीय कानून की अवहेलना करता रहा।

देश में लगे बीबीसी के होर्डिंग बताते हैं… उसे भारी फंडिंग मिली

एक तरफ बीबीसी भारत को कमजोर करने के लिए देश विरोधी नैरेटिव वाले कार्यक्रम बनाती है वहीं वह देश में जगह-जगह होर्डिंग लगाकर अपना प्रचार करती है जिससे ज्यादा से ज्यादा लोगों तक बीबीसी की पहुंच बन सके। यह भी भारत को कमजोर करने के लिए बीबीसी को की जा रही अंतर्राष्ट्रीय फंडिंग को दर्शाता है। इससे समझा जा सकता है कि अंतर्राष्ट्रीय ताकतें किस तरह भारत और मोदी सरकार को कमजोर करने के लिए काम कर रही हैं।

केजरीवाल ने बीबीसी पर आयकर सर्वे पर उठाया था सवाल

टैक्स चोरी, वित्तीय अनियमितता और ट्रांसफर प्राइसिंग के साथ नियमों की अनदेखी के आरोप में इनकम टैक्स डिपार्टमेंट ने फरवरी 2023 में बीबीसी ऑफिस में सर्वे किया था। इसके पहले आयकर विभाग ने बीबीसी को कई बार नोटिस जारी किए गए थे, लेकिन जवाब देना तो उसने दूर अड़ियल रवैया अपनाए रखा। नोटिस का जवाब ना मिलने पर बीबीसी के दफ्तर में सर्वे का काम शुरू किया गया। इस सर्वे को लेकर दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल बीबीसी के पक्ष में आ गए। केजरीवाल ने ट्वीट कर सर्वे पर सवाल उठाने शुरू कर दिए थे, लेकिन इस कदम पर सोशल मीडिया पर लोगों ने उन्हें करारा जवाब दिया था।

बीबीसी सर्वे पर कांग्रेस को याद आया पुराना याराना

जैसे ही आयकर विभाग ने बीबीसी के कार्यालयों में अपना “सर्वे” शुरू किया था, कांग्रेस को पुराना याराना याद आ गया। उसने इस कदम की आलोचना तेज कर दी और कहा कि इस तरह के कार्यों से दुनिया भर में भारत की छवि खराब होती है। पार्टी ने पूछा कि भारत के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी इस तरह की कार्रवाइयों के माध्यम से दुनिया के सामने क्या छवि पेश कर रहे हैं, खासकर ऐसे समय में जब देश G20 की अध्यक्षता कर रहा है। कांग्रेस मीडिया विभाग के प्रमुख पवन खेड़ा से लेकर राहुल गांधी के करीबी जयराम रमेश सक्रिय हो गए और मोदी सरकार पर हमला करना शुरु कर दिया।

महुआ मोइत्रा ने भी प्रतिक्रिया देने में देर नहीं लगाई

तृणमूल कांग्रेस नेता महुआ मोइत्रा ने सरकार पर तंज कसते हुए कहा, “बीबीसी के दिल्ली दफ्तर पर छापेमारी की खबर मिली है। क्या सच में? इसकी तो उम्मीद ही नहीं थी…इस बीच अदाणी की फरसान सेवा (अदाणी को गुजराती व्यंजन मिलेंगे) होगी, जब वे सेबी प्रमुख से बातचीत के लिए पहुंचेंगे।”

महबूबा मुफ्ती का भी दर्द छलक पड़ा

कश्मीर में आतंकवादियों को चरमपंथी कहने वाले बीबीसी के लिए पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती का दर्द छलक पड़ा। महबूबा मुफ्ती ने केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए कहा, “बीबीसी के दफ्तर पर छापेमारी की वजह साफ है। भारत सरकार सच बोलने वालों के पीछे पड़ी है। फिर चाहे वह नेता हों, मीडिया हो या कार्यकर्ता हो या कोई और है।”

बीबीसी ने 2008 में बालश्रम पर दिखाई थी फेक स्टोरी

आज तक के मुताबिक, जून 2008 में भारत सरकार और बीबीसी के बीच टकराव देखने को मिली थी। उस दौरान बीबीसी ने एक पैनोरमा शो में एक फुटेज दिखाया जिसमें बच्चे एक वर्कशॉप में काम करते हुए दिख रहे थे। इस पर काफी हंगामा हुआ और बाल श्रम को बढ़ावा देने के आरोप लगे। लेकिन बाद में ये स्टोरी ही फर्जी निकली। ब्रिटिश ब्रॉडकास्टिंग कॉरपोरेशन की सरकारी बॉडी ने फैसला सुनाया कि एक प्रमुख खोजी रिपोर्टिंग कार्यक्रम ने बेंगलुरु के वर्कशॉप में कपड़ों की सिलाई करने वाले बच्चों की नकली फुटेज बनाई।

इंदिरा गांधी ने 1970 में बीबीसी को किया था बैन

1970 में तब इंदिरा गांधी सरकार ने बीबीसी को बैन कर दिया था जब एक शो में भारत की नकारात्मक तस्वीर पेश की गई थी। 1970 में, जब फ्रांसीसी निर्देशक लुइस मैले की डॉक्यूमेंट्री सीरीज बीबीसी पर दिखाई गई, तो इसके परिणामस्वरूप दिल्ली स्थित बीबीसी का दफ्तर 2 साल के लिए बंद कर दिया गया था। डॉक्यूमेंट्रीज में भारत में रोजाना की जिंदगी दिखाई गई थी। भारत सरकार ने इस फिल्मांकन को पूर्वाग्रह से ग्रसित और भारत को गलत रूप से पेश करने वाला करार दिया था।

निर्भया गैंग रेप के दोषी की डॉक्यूमेंट्री पर भी लगी थी रोक
 
मार्च 2015 में दिल्ली हाई कोर्ट ने बीबीसी की एक डॉक्यूमेंट्री को बैन करने के फैसले को सही ठहराया था। इस वृतचित्र में दिल्ली के निर्भया गैंग रेप के दोषी मुकेश सिंह को दिखाया जा रहा था। इस डॉक्यूमेंट्री के इंटरनेट प्रसारण पर भी सरकार ने रोक लगाई थी।

नया भारत में अब कोई “लाट साहब” नहीं

आयकर सर्वे हो या किसी अन्य एजेंसी की जांच। नियम-क़ानून के आगे सब बराबर है, नया भारत में अब कोई “लाट साहब” नहीं है। इतिहास में पढ़ाया गया कि कांग्रेस ने अंग्रेजों से लड़ाई लड़ी, लेकिन कुछ समय से देखा जा रहा है कि चाहे हिडनबर्ग हो या बीबीसी, कांग्रेस अपने देश के विरुद्ध अंग्रेजों के लिए लड़ाई लड़ रही है।

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