कानून और अभिव्यक्ति की आजादी की दुहाई देने वाले किस तरह कानून की धज्जियां उड़ाते हैं। इसका सबसे बड़ा प्रमाण शनिवार (अक्टूबर 17, 2020) को मुंबई में देखने को मिला। जब मुंबई पुलिस ने अग्रिम जमानत के बावजूद रिपब्लिक टीवी के कंसलिटिंग एडिटर प्रदीप भंडारी को गैर कानूनी तरीके से हिरासत में ले लिया। हालांकि 8 घंटे की पूछताछ के बाद पुलिस ने भंडारी को रिहा कर दिया। लेकिन इससे सवाल उठता है कि क्या अभिव्यक्ति की आजादी पर सिर्फ शिवसेना के मुखपत्र ‘सामना’, वामपंथी और सेक्युलर मीडिया का पेटेंट है ?
मुंबई पुलिस ने प्रदीप भंडारी को अवैध रूप से हिरासत में लिया था। भंडारी के आसपास पुलिस अधिकारी समेत 11 पुलिसकर्मी मौजूद थे। हिरासत में लेने के बाद भंडारी के साथ खार वेस्ट थाने में मारपीट की गई। उनका फोन भी छीन लिया गया। फोन अनलॉक करने के लिए एक आईटी व्यक्ति भी खार पुलिस स्टेशन पहुंचा था। यहां तक कि उन्हें वकील से मिलने से रोका गया।
#BREAKING | Complete abuse of law and order: Pradeep Bhandari detained despite being granted anticipatory bail; not being allowed to meet lawyers at Khar police station https://t.co/RZHKU3wOei pic.twitter.com/Uqwu6hkvOa
— Republic (@republic) October 17, 2020
लंबी पूछताछ के बाद पुलिस ने भंडारी को मुक्त किया। हिरासत से बाहर आने के बाद प्रदीप भंडारी ने कहा कि समन के नाम पर इन्होंने मेरे साथ कस्टोडियल इंटेरोगेशन की। मेरे सभी फोन जब्त कर लिए। इन लोगों ने कहा कि इन्हें ऊपर से फोन आया था। महाराष्ट्र में पूरी तरह से अलोकतांत्रिक रूप से कार्रवाई की जा रही है।
बता दें, मुंबई पुलिस द्वारा समन जारी होने के बाद प्रदीप भंडारी ने बिहार कवरेज को छोड़कर पटना से मुंबई पहुंचे थे। थाणे के खार पुलिस स्टेशन में पेश होने के बाद प्रदीप भंडारी को हिरासत में ले लिया गया। जबकि उन्हें पहले ही कोर्ट से अग्रिम जमानत मिली है।
हमेशा विरोधियों पर तीखे हमले करने और जहर उगलने के लिए कुख्यात ‘सामना’ के पूर्व संपादक उद्धव ठाकरे पर जब सवाल उठाए गए, तो उद्धव तिलमिला उठे। जिस अभिव्यक्ति की आजादी का इस्तेमाल ‘सामना’ करता है, जब रिपब्लिक टीवी ने उसी आजादी का इस्तेमाल किया, तो उद्धव और उनकी पुलिस ने कानून की धज्जियां उड़ा दीं। गौरतलब है कि मुख्यमंत्री बनने के बाद उद्धव ठाकरे ने ‘सामना’ के संपादक पद से इस्तीफा दे दिया था।
प्रदीप भंडारी को अवैध रूप से हिरासत में लिए जाने के मामले में अभिव्यक्ति की आजादी के पैरोकार मीडिया संगठन ने चुप्पी साध रखी है। किसी ने इस अवैध हिरासत पर उद्धव सरकार और मुंबई पुलिस से सवाल नहीं पूछा। यही संगठन फर्जी खबरें फैलाते वमपंथी और सेक्युलर गैंग पर कार्रवाई होती है, तो अभिव्यक्ति की आजादी को खतरे में बताकर हंगामा खड़ा करने लगता है। सरकार को असहिष्णु, निरंकुश और तानाशाही करार देने में होड़ लगाने लगते हैं। इससे पता चलता है इनकी अभिव्यक्ति की आजादी सिर्फ एजेंडा को आगे बढ़ाने के लिए है।
बता दें, भंडारी के खिलाफ मुंबई पुलिस ने एक शिकायत दर्ज की थी। आईपीसी की धारा188 के तहत – (लोक सेवक द्वारा विधिवत आदेश देने की अवज्ञा), 353 (आईपीसी की अपनी ड्यूटी के निर्वहन से लोक सेवक को हिरासत में लेने के लिए हमला या आपराधिक बल) और बॉम्बे के 37 (1), 135 पुलिस अधिनियम के तहत शिकायत दर्ज की गई थी। यह शिकायत उस समय दर्ज की गई थी, जब वह बॉलीवुड अभिनेत्री कंगना रनौत के कार्यालय को बीएमसी द्वारा तोड़ा जा रहा था, तो उस दौरान भंडारी रिपोर्टिंग कर रहे थे। भंडारी – सर्वे कंपनी के ‘जन की बात’ के संस्थापक हैं।