संसद सत्र से पहले मोदी सरकार को बदनाम करने की बड़ी साजिश का भंडाफोड़ हो गया है। पेगासस स्पाईवेयर के जरिए नेताओं, नौकरशाहों और पत्रकारों के फोन की जासूसी का मामला फर्जी निकला है। इस पूरे मामले में एमनेस्टी इंटरनेशनल ने अपना पल्ला झाड़ लिया है। इजरायली मीडिया कैलकलिस्ट की एक रिपोर्ट के अनुसार, एमनेस्टी इंटरनेशनल ने साफ कहा है कि उसने कभी भी यह दावा नहीं किया कि यह लिस्ट एनएसओ से संबंधित थी। रिपोर्ट के अनुसार एमनेस्टी इंटरनेशनल ने कभी भी इस सूची को ‘एनएसओ पेगासस स्पाइवेयर सूची’ के रूप में पेश नहीं किया है। दुनिया के कुछ मीडिया ने ऐसा किया होगा।
पत्रकार किम जेटटर के अनुसार एमनेस्टी का कहना है कि उसने मीडिया संस्थानों से साफ तौर पर कहा था कि ये ऐसे फोन नंबर हैं, जिनकी जासूसी इजरायली स्पाईवेयर पेगासस का इस्तेमाल करने वाले देश कर सकते हैं। इसका मतलब ये नहीं है कि जासूसी की ही गई। एमनेस्टी का कहना है कि उन्होंने शुरू में ही साफ कर दिया था कि सूची में ऐसे लोग शामिल हैं, जिनकी एनएसओ के क्लाइंट आमतौर पर जासूसी करने में रुचि रखते हैं, न कि वो लोग जिन पर जासूसी की गई। साफ है कि जासूसी किए जाने का कोई सबूत नहीं मिला है और कुछ प्रोपेगेंडा मीडिया संस्थानों ने मोदी सरकार को बदनाम करने के लिए संसद सत्र शुरू होने से ठीक पहले सारा झमेला खड़ा कर दिया।
So Amnesty is essentially saying now that the list contains the *kind* of people NSO’s clients would ordinarily be interested in spying on, but the list isn’t specifically a list of people who were spied on — though a very small subset of people on the list were indeed spied on
— Kim Zetter (@KimZetter) July 21, 2021
Amnesty says it never claimed list was NSO: “Amnesty International has never presented this list as a ‘NSO Pegasus Spyware List’, although some of the world’s media may have done so..list indicative of the interests of the company’s clients” https://t.co/51U72HI9yF
h/t @ersincmt— Kim Zetter (@KimZetter) July 21, 2021
ऑपइंडिया के अनुसार इसके पहले एमनेस्टी इंटरनेशनल ने दावा किया था कि दुनिया भर के कई मोबाइल उपकरणों का फॉरेंसिक विश्लेषण करने पर पाया गया कि एनएसओ ग्रुप ने पेगासस स्पाइवेयर के जरिए पत्रकारों के साथ कई बड़े लोगों की गैरकानूनी तरीके से जासूसी की है। इसने इस क्रम में 10 देशों के 80 से ज्यादा पत्रकारों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के फोन टैपिंग का फॉरेंसिक विश्लेषण का दावा किया था। लिस्ट में फ्रांस के राष्ट्रपति एमैनुएल मैक्रों सहित 14 वर्तमान या पूर्व राष्ट्राध्यक्षों के नाम होने का दावा किया गया। साथ ही पेरिस स्थित एनजीओ फॉरबिडन स्टोरीज और एमनेस्टी इंटरनेशनल ने 50,000 से अधिक सेलफोन नंबरों की सूची से 1,000 से ज्यादा ऐसे व्यक्तियों की पहचान की, जिन्हें एनएसओ के ग्राहकों ने संभावित निगरानी के लिए कथित तौर पर चुना।
एमनेस्टी का ताजा बयान एनएसओ के उस बयान के बाद आया है जिसमें उसने साफ कहा था कि जिन नंबरों की सूची बताकर कहा जा रहा है कि उनकी जासूसी करने के लिए पेगासस का इस्तेमाल हुआ, वह वास्तविक में उनकी न है और न कभी थी। ‘फॉरबिडन स्टोरीज’ ने जो 50 हजार नंबरों का डेटा हासिल किया है, वो उनका है ही नहीं। एनएसओ ने साफ कहा कि इस लिस्ट में शामिल नामों को लेकर जो कहा जा रहा है वह बिलकुल झूठ और फर्जी है। एनडीटीवी के साथ बातचीत में भी एनएसओ ने इससे इनकार किया था।
इसके पहले केंद्रीय आईटी मंत्री अश्विनी वैष्णव ने भी संसद में कहा था कि मीडिया में यह खबर संसद के मानसून सत्र के प्रारंभ होने से एक दिन पहले आई है। यह महज संयोग नहीं हो सकता। पहले भी इसी प्रकार से पेगासस स्पाईवेयर के व्हाट्सअप पर दुरुपयोग के दावे किए गए थे। इन दावों का कोई तथ्यात्मक आधार नहीं था और सर्वोच्च न्यायालय सहित सभी जगह संबंधित पक्षों ने उन्हें खारिज कर दिया था। 18 जुलाई 2021 को मीडिया में इस संबंध में छपी खबरें भारत के लोकतंत्र और इसकी मजबूत संस्थाओं की गरिमा को ठेस पहुंचाने के उद्देश्य से प्रकाशित की गई हैं।
उन्होंने संसद में अपने बयान में कहा कि इस खबर का आधार एक समूह है जिसने कथित तौर पर 50 हजार फोन नंबरों के लीक किए गए डेटा बेस को प्राप्त किया। आरोप यह है कि इन फोन नंबरों से संबंधित व्यक्तियों पर निगरानी रखी जा रही थी। लेकिन रिपोर्ट यह कहती है कि डेटा बेस में फोन नंबर मिलने से यह सिद्ध नहीं होता है कि फोन पेगासस स्पाईवेयर से प्रभावित था या उस पर कोई साइबर हमला किया गया था। किसी भी फोन का तकनीकी विश्लेषण किए बगैर यह कह पाना कि उस पर किसी साइबर हमले का प्रयास सफल हुआ या नहीं, उचित नहीं होगा। इसलिए, यह रिपोर्ट स्वत: कहती है कि डेटा बेस में फोन नंबर का मिलना किसी प्रकार की निगरानी को सिद्ध नहीं करता है।
अश्विनी वैष्णव ने कहा कि एनएसओ ग्रुप यह मानता है कि डेटा का निगरानी के लिए उपयोग होने की बात का कोई आधार नहीं है। एनएसओ ने यह भी कहा है कि जिन देशों के नाम सूची में पेगासस के उपभोक्ता के रूप में दिखाए गए हैं, वे भी गलत हैं और इनमें से कई देश उनके उपभोक्ता नहीं हैं। यह भी कहा गया है कि इसके अधिकतर उपभोक्ता पश्चिमी देश हैं। यह स्पष्ट है कि एनएसओ ने इस खबर में छपे दावों का खंडन किया है।
साफ है कि सिर्फ मोदी सरकार को बदनाम करने के लिए 16 मीडिया संस्थानों ने फर्जीवाड़ा किया और सनसनी फैलाने के लिए अपनी खबरों में बढ़ा-चढ़ाकर दावा किया कि इजरायली कंपनी एनएसओ के पेगासस स्पाईवेयर के जरिए फोन कॉल्स की जासूसी की गई।